Sunday 11 December 2016

Reliance Power की Commercial Operation Date के नाम पर लूट के खिलाफ AIPEF की जीत

कॉर्पोरेट्स कैसे आम आदमी को ठगते है, इसे समझने के लिये, पहले एक कहानी सुनाता हूँ, फिर आगे की बात करेंगे । तो कहानी ये है :-

मैंने मेरे दूध वाले के साथ समझौता किया कि वो मुझे सालभर तक एक निश्चित कीमत पर दूध दे और मैं उसे हर साल 31 मार्च को पूरा पेमेंट कर दूँगा, लेकिन उसने 31 मार्च को दूध दे के बोला साहब !हमारा ये साल पूरा हो गया, कल से नया साल शुरू हो जायेगा, इसलिये इस साल का पेमेंट कर दें, मैंने कहा कि आपने तो सिर्फ एक दिन दूध दिया है, तो पैसे पुरे साल के क्यों ? तो उसने समझौता पत्र दिखाया जिसमें मैंने लिखा था कि मेरे हिसाब करने का साल 31 मार्च तक का है । और जब मैंने उसे पुरे साल के पैसे देने से मना किया तो वो मुझे दूध वालों की कोर्ट ( अपीलीय ट्रिब्यूनल ) ले गया । जहाँ उसके पास अच्छे वकील होने की वजह से मैं हार गया और कोर्ट ने पैसे देने का फरमान सुनाया । मैं कुछ भी सोच नहीं पा रहा था, तभी मेरे कुछ शुभचिंतक इस मामले को बड़ी कोर्ट में ले गये और मुझे इससे राहत दिलवाई ।

ऊपर तो थी एक कहानी, जिसको पढ़कर आपको कुछ बातें समझ आ गयी होगी, जिसमें मैं था जनता, दूधवाला था अंबानी और शुभचिंतक था AIPEF ( रिटायर्ड इंजीनियर की ट्रेड यूनियन ) ।

अब आते है असल मुद्दे पर, रिलायंस पॉवर का सासन ( मध्य प्रदेश ) में पॉवर प्लांट है जिससे मप्र, हरयाणा सहित कई राज्यो को बिजली बेचीं जा रही है । इस प्लांट की अंतिम इकाई के Commercial Operation से एक साल तक सस्ती बिजली (70 पैसे की दर पर)  मिलनी थी। रिलायन्स ने कमर्शियल ऑपरेशन 31 मार्च 2014 को घोषित कर दिया वो भी प्लांट को पूरी क्षमता पर 72 घंटे तक चलाने की महत्वपूर्ण शर्त को पूरा किये बगैर । नतीजा जो सस्ती बिजली एक साल तक देनी थी वह एक दिन में ही पूरी हो गई क्योंकि 31 मार्च से शुरू हो कर वित्तीय वर्ष उसी 31 मार्च को समाप्त हो गया। केंद्रीय विद्युत् नियामक आयोग ने इसे मानने से इंकार कर दिया, रिलायंस ने आयोग के विरुद्ध अपीलेट ट्रिब्यूनल में केस लगाया और अपने बड़े बड़े वकीलों की जिरह से सफल हो गया।
केस जीतने के तुरंत बाद रिलांयस ने राज्यों को 1050 करोड़ का अतिरिक्त बिल थमा दिया । ये आम उपभोक्ताओं से वसूलना था। रिलायंस के रसूख के चलते कोई भी राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला नहीं कर प् रही थी ।

ऐसे में आल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ( AIPEF ) ने पहल की । पहले पूरे विवरण के साथ पत्र लिखे, प्रेस वार्ताएं कीं, दौरे किए पर फिर भी जब बात नहीं बनी तो स्वयं PIL फाइल की , 16 मई 2016 को ।

http://www.hastakshep.com/english/release/2014/06/04/states-have-suffered-an-energy-loss-due-to-reliance-power-plant#sthash.rixeFI82.dpuf

एक बार केस लग गया तो एक एक कर राज्य सरकारों को भी सामने आना ही पड़ा । रिलायंस ने पी चिदंबरम और कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ वकीलों की मदद ली पर अंत में जीत सच की हुई ।  8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। वेब साइट पर उपलब्ध है । उपभोक्ताओं का 1050 करोड़ रिलायंस के खाते में जाने से बच गया ।

महत्वपूर्ण  तथ्य  :-

1.  बहुत लंबे समय बाद एक ट्रेड यूनियन ने विशुद्ध जनहित की लड़ाई लड़ी ।

2.  लड़ने वाले पुरोधा पद्मजीत सिंह, अशोक राव, ए के जैन, शैलेन्द्र दुबे सभी 65 पार रिटायर्ड इंजीनियर्स हैं ।

3 रिलायंस ने इन पर दबाव बनाने के लिए और प्रेस कवरेज रोकने के लिये पद्मजीतसिह और शैलेन्द्र दुबे पर व्यक्तिगत तौर पर और AIPEF पर संस्थागत 100 - 100 करोड़ का मानहानि मुकदमा दायर किया है, पर ये लोग विचलित नहीं हुए ।

4 इतने बड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मात्र पांच माह में फैसला दे दिया। ( राज्य सरकारों को अपील फाइल करने का फैसला करने के लिए इससे ज्यादा समय लग गया था ।)

5 अभी तक कोई मीडिया कवरेज नहीं दिख रहा, जो कि अंबानी के मीडिया हाउसेस के अधिग्रहण की सफलता दर्शाता है । सिर्फ ट्रिब्यून ने एक छोटा सा आर्टिकल लिखा है, जिसका लिंक साझा कर रहा हूँ ।

http://www.tribuneindia.com/mobi/news/chandigarh/courts/sc-rejects-commercial-operation-date-of-reliance-power/334941.html


जनहित में सक्रिय योद्धाओं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय का अभिनंदन ।

Note : हिस्सा व्हाट्स एप्प की एक पोस्ट से लिया गया है, जिसके लेखक का पता नहीं है ।

Sunday 4 December 2016

गर तू खुद को पहचान ले

हे ! जन गण मन,
तू खुद को ना मायूस समझ,
तू खुद को ना लाचार समझ,
तू खुद को शोषितों का ना आचार समझ,
तू खुद को पूंजीपतियों का ना बाजार समझ,

तू उठ,
अज़ान लगा,
तू विरोध कर,
तू सवाल कर,
तू बवाल कर,
तू इंक़लाब कर,
तू बदलाव का यलगार कर,

कर सकता है तू,
गर तू खुद को पहचान ले,
हक की ढाल ले,
पगड़ी को संभाल ले,
सबको साथ ले,
सबको साध ले,
और ये ठान ले,
बदलेगा ये मंजर,
जरूर एक दिन,
गर तू खुद को पहचान ले ।
गर तू खुद को पहचान ले ।।

Saturday 5 November 2016

बागों में बहार है

देशभर में मचा कोहराम है, क्योंकि बागों में बहार है

जबसे होश संभाला तबसे देखा अत्याचार है, क्योंकि बागों में बहार है

भ्रष्टाचारी अफसर - नेता यार है, क्योंकि बागों में बहार है

औरत और दलितों पर हो रहा अत्याचार है, क्योंकि बागों में बहार है

चौराहों पर यहाँ इज्जत लुटना आम है, क्योंकि बागों में बहार है

सत्ता को गाय, गोबर, मंदिर-मस्जिद से इकरार है, क्योंकि बागों में बहार है

कोर्ट - पुलिस अमीरों की खातिरदार है, क्योंकि बागों में बहार है

नोकरशाही को जनता से ना कोई सरोकार है, क्योंकि बागों में बहार है

मीडिया में चाटुकारों की बयार है, क्योंकि बागों में बहार है

भरी दोपहरी में छाया अंधकार है, क्योंकि बागों में बहार है

माल्या, अम्बानी, अडानी आम आदमी के पैसे लूटकर फरार है, क्योंकि बागों में बहार है

भूख, अत्याचार, बेरोजगारी के नजारे आम है, क्योंकि बागों में बहार है

चारों तरफ इंसानियत, भाईचारा, सद्भाव का संहार है, क्योंकि बागों में बहार है

मजदूर - किसान आत्महत्या करने को लाचार है, क्योंकि बागों में बहार है

खेती बाड़ी बर्बादी को तैयार है, क्योंकि बागों में बहार है

गुंडों की सरकारें झंडाबरदार है, क्योंकि बागों में बहार है

लोकतंत्र का गला घोंटने पर आमदा ये सरकार है, क्योंकि बागों में बहार है

पूंजीपतियों की गिरफ्त में हमारा सरदार है, क्योंकि बागों में बहार है

अथॉरिटी को सवालों से होता बुखार है, क्योंकि बागों में बहार है

सत्ता से सवाल करने का ना अधिकार है, क्योंकि बागों में बहार है

देश चल रहा है जैसे कि निर्मल दरबार है, क्योंकि बागों में बहार है

इस देश को व्यवस्था परिवर्तन की दरकार है, क्योंकि बागों में बहार है

आज किसी और का तो आपका नम्बर अगली बार है, क्योंकि बागों में बहार है

Thursday 3 November 2016

OROP की हकीकत

एक तरफ दिल्ली पुलिस शहीद के परिवार को पीट रही है, गिरफ्तार कर रही है, डेड बॉडी नहीं दे रही और दूसरी तरफ उनकी आवाज उठाने वालों को केंद्र की बीजेपी शासित सरकार और उसके गुर्गे समूह के लोग और मीडिया मिलकर देशद्रोही घोषित कर रही है, आखिर समझा क्या है इस सिस्टम को, हलवा ?

जिस OROP को लेकर भिवानी के सूबेदार ( रि.) रामकिशन ग्रेवाल ने अपने प्राणों की आहुति दी, वो असल में है क्या ? सैनिकों और सरकारी दावों में विरोधाभासों को लेकर इस वन रैंक - वन पेंशन ( OROP ) की हकीकत -

✍ पहली बात तो सरकार ने वन रैंक - वन पेंशन लागु  ही नहीं की, OROP का सीधे शब्दों मतलब होता है एक रैंक से रिटायर होने वाले सभी सैनिकों को एक समान पेंशन मिलना, जो कि किसी भी सरकार ने नहीं किया, मतलब सफ़ेद झूठ बोल रहे है
✍ जूनियर और सीनियर को समान वेतन मिलना, या किसी भी सीनियर को जूनियर से कम वेतन नहीं मिलना
✍ OROP लागु करने की दलील देने वाली सरकार ने 40% वालंटियर रिटायर लेने वाले सैनिकों  को तो वैसे भी बाहर कर रखा है, फिर इसकी जद में सब कैसे आये ?
✍ जो छोटी रैंक के फौजी है उनको आपने वैसे लटकाया हुआ  है । जो थोड़े बहुत लाभार्थी है वो बड़ी रैंक के अफसर है जो आपका मीडिया में आकर बचाव कर रहे है ।
✍ उनमें से आधे तो वो सटके हुए अफसर है जो बोलते है 10 रूपये दे देते तो इन सैनिकों की जुबान बंद हो जाती ( ibn7 का पर पूर्व आर्मी अफसर और बीजेपी प्रवक्ता हुन साहब की आज शाम 5:30 बजे की बहस को देखें )
✍ एक पुराने जनरल वीके सिंह बोलते है कि सैनिकों को 4 पैसे के लिए ऐसे बेवकूफी भरे कदम नहीं उठाने चाहिए, जबकि वो खुद जन्म की तारीख के लिए सुप्रीम कोर्ट तक चले गए थे ।
✍ OROP की रिव्यु कमिटी को आपने बनाया है उसमें सिर्फ एक आदमी को रखा है, अफसोस कि वो भी सरकारी नुमाइंदा है ।
✍ OROP रिव्यु कमिटी 5 साल में रिव्यु देगी, मतलब 5 सालों में रिटायर होने वाले सैनिकों का वेतन अलग अलग होगा जो हर 5 साल बाद एक समान किया जायेगा, इसे प्रतिवर्ष किया जाये, ये सैनिकों की माँग है
✍ बेस ईयर 2015 किया जाये जबकि सरकार 2013 पर अड़ी है,
✍ एरियर का तत्काल भुगतान किया जाये, जनवरी 2006 से आज तक का
✍ एक सैनिक की विधवा की पेंशन बढ़ाई जाये, अभी बमुश्किल 6500 है, जिसमें घर चलाना मुश्किल है
✍ सरकार जितने पैसे को लेकर फंड न होने का बहाना बना रही है, वो मात्र 200 करोड़ सालाना है जबकि उससे कहीं ज्यादा 250 करोड़ तो पिछले साल गैस सिलिंडर की 100 करोड़ की सब्सिडी छुड़ाने  के लिए advertisements पर खर्च कर दिए थे ।
✍ देश में किसी भी सरकारी कार्मिक के ऑन ड्यूटी दिव्यांग होने पर तनख्वाह का 30% मिलता है जबकि वर्तमान सरकार ने इसे सैनिकों के लिए घटाकर 10% कर दिया है ।
✍ देश में पुलिस में DIG 28 साल की सर्विस में बन जाता है, जबकि आर्मी चीफ बनने को 32 साल लगते है पर दोनों के वेतन में बहुत फर्क है ।


इस बात को मानने में कोई झिझक नहीं है कि वेतन में वृद्धि हुई है पर कितनी ? क्या माँग थी उतनी की ? नहीं न, तो फिर वृद्धि - वृद्धि क्यों चिल्ला रहे हो सरकार ?

कुल मिलाकर OROP को आपने मजाक बना दिया है, मेरे घर में 2 रिटायर्ड फौजी है, 2 आने वाले है, और 3 बंदे 6 साल बाद रिटायर आ जायेंगे, सभी की पेंशन में विसंगतिया भरी पड़ी है, आप जितनी बेबाकी से सर्जिकल स्ट्राइक का क्रेडिट खुद को, आरएसएस को दे रहे थे क्या उतनी ही बेबाकी से OROP को ढंग से लागू न करने क्रेडिट भी देंगे ?  अपना फैलियर मानेंगे ?  कभी नहीं, और उम्मीद भी नहीं है क्योंकि शहीदों के ताबूत खा सकते है उनसे उम्मीद करना बेवकूफी होगी । जब ये करने की हिम्मत नहीं है तो चुप हो जाइये और बैठ जाइये, बंद कीजिये ये दिखावा ।
और बात करते है सैनिक सम्मान की

Thursday 29 September 2016

पप्पू की चाय

पप्पू, चाय लाना

लीजिये साहब चाय

अरे तुम खुद ! पप्पू कहाँ है आज ?

 वो बीमार हो गया साहब, इसलिए गाँव भेज दिया उसे

क्या बीमारी हुई ?

डॉक्टर बोला कोई बड़ी बीमारी है, क्या तो नाम था उसका ? हाँ, मलेरिया, मलेरिया हो गया उसे

तो तुम यहाँ साफ सफाई क्यों नहीं रखते हो, आज उसे हुआ है कल तुम्हें और क्या पता मुझे भी हो जाये

छुआछुत का बीमारी है क्या साहब ?

नहीं रे बिरजू, ये तो गंदगी से फेलती है

साहब, साफ सफाई का मलेरिया से क्या सम्बन्ध ?

तुम्हें इतना भी नहीं पता कि मलेरिया केसे फेलता है ?

नहीं ।

मलेरिया मच्छरों के काटने से फेलता है, जो गंदगी में रहते है । ये जो तुम्हारें यहाँ पड़ोस में कबाड़ी की दुकान में टायरों में पड़े पानी में ही ये मच्छर अंडे देते है और फैलते है ।

ये मलेरिया होता क्या है ?

मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफ़िलेज़(Anopheles) मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर के बहुत तेजी से बढ़ते हैं जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरते हैं (चक्कर आना, साँस फूलना, द्रुतनाड़ी इत्यादि)। इसके अलावा अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई और जुखाम जैसी अनुभूति भी देखे जाते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।

अच्छा, इतना खतरनाक बीमारी है क्या ?

और नहीं तो क्या ? तुम्हें नहीं पता

नहीं

जब तुम्हें होती तब पता होता, दूसरों के दर्द से पता नहीं चलता

मेरे क्यों ?

क्योंकि वो मच्छर तो वहीं के वहीं है न, उस दुकान में

इससे कोई बचने का उपाय नहीं है क्या ?

वो गंदा ठहरा हुआ पानी फिंकवा दो जो वहाँ भरा पड़ा है

लेकिन उससे तो मेरी बोलचाल बंद है आजकल, हमारी लड़ाई हो गयी थी, पिछले महीने की 214 चाय हुई पर वो 200 ही बता रहा था तो हो गयी लड़ाई, कितनी मेहनत से कमाए जाते है पैसे, ये तो हम जानते है न

ठीक है, ठीक है । तुम्हारे ये किस्से अपने पास रखो । मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है इनमें । और सफाई न करवाओगे तो तुम्हारे ही नुकसान है

केसे

कल को तुम्हें हो गयी तो  ? तुम्हारे ग्राहकों के हो गयी तो तुम्हारी तो दुकान बंद हो जाएगी, अगर ये बीमारी बिगड़ गयी तो आदमी इससे मर भी सकता है ।

सच्ची में ! तब तो कल ही सारे गिले शिकवे दूर करता हूँ । और सफाई का भी बोलता हूँ उसे ।

खुद की जान पर आई तो पता चला न, और ये लड़का कौन है ? नया है क्या ?

नहीं साहब मेरा बेटा है चिंटू

तो इसे यहाँ काम पर  क्यों लगा रखा है, पढाओ इसे । अभी उम्र ही क्या है बेचारे की, खेलने- कूदने और पढने लिखने की उम्र है, पढाओ इसे

साहब पूरा 10 साल का है, अभी से धंधे पर लगेगा तो 2 - 4 साल में काम सीख जायेगा । बाद में खुद की दुकान खोलके घर चलाने में हाथ ही बंटायेगा

जेल में जाने का विचार है क्या ?

क्यों ? वो पप्पू बीमार हो गया इसलिये

नहीं, अपने बेटे से काम करवाने की वजह से

बेटा मेरा, काम मेरा फिर इसमें जेल क्यों ?

क्योंकि बाल मजदूरी अपराध है । अगर बाल मजदूरी कराता हुआ कोई पाया गया तो सीधी जेल होगी, वो भी पुरे 1 साल साथ में 10 हजार का जुर्माना भी। क्या समझे ? और कल से स्कूल भेजो पढने के लिये

ठीक है साहब, इसे पढ़ा तो ले पर आजकल स्क़ूलों की फीस इतनी है कि इसे पढ़ाना हमारे बूते से बाहर है

किसने कहा आपको,  सरकार ने 7 साल पहले एक नियम बनाया था कि 6 से 14 साल तक के सभी बच्चों को फ्री शिक्षा दी जाएगी, ये उनका हक है जो कि संविधान के अनुच्छेद 21A में लिखा है कि ये उनका मौलिक अधिकार है । और यदि कोई प्राइवेट स्कूल वाला फ्री में पढ़ाने से मना करे तो उसकी शिकायत शिक्षा विभाग में दर्ज कराओ । किसी भी प्राइवेट स्कूल की टोटल सीट में से 5% सीट RTE के तहत गरीबों के लिए आरक्षित है । क्या समझे ?

यही कि साहब, पढाई ही सब कुछ है । इसके बिना जीवन दुश्वार है ।

Dedicate to #पढ़ेगा_इंडिया_तभी_तो_बढ़ेगा_इंडिया

Wednesday 21 September 2016

कलेक्टर

फोन बजा तो मैं दौड़कर लपका, देखा हरिराम का फोन है, उठाते ही उधर से आवाज आई, " भाई रामपत, राकेश कलेक्टर बन गया, अभी उसका फोन आया था, बहुत खुश था वो " बोलते बोलते गला रूँध सा गया था उसका, शायद ज्यादा खुशी में अपने जज्बात काबू नहीं रख पा रहा था । मैंने कहा "शाम को आता हूँ, मिलके जश्न मनायेंगे " और फोन काट दिया ।
एकाएक मेरी नजरों में पुराने दिन आ गये । जब राकेश  जन्मा तो उसकी माँ की मौत हो गयी थी । क्योंकि आस पास कोई अस्पताल तो था नहीं, घर में ही दाई को बुलाया गया पर ज्यादा खून बहने से लता भाभी की मौत हो गयी । हरी भाई ने जैसे तैसे करके पाला और पढ़ाया लिखाया । माँ की कमी कभी भी महसूस नहीं होने दी । दिन रात मेहनत करता अपने छोटे से खेत में । एक बरसात वाली फसल होती थी, बाकि समय में मजदूरी करता था । कितनी मेहनत से पढ़ाया था हरिराम ने राकेश को । जब राकेश 12वीं में था और गाँव में बिजली नहीं थी तो हरिराम दिन में दूसरे गाँव जाकर बेटरी चार्ज करके लाता और उसके खाने पीने से लेकर सुबह जल्दी उठाकर चाय बनाता था । जब परिणाम आया तो राकेश ने 12वीं बोर्ड में जिलेभर में प्रथम स्थान प्राप्त किया । फिर स्नातक के लिये शहर की नामी कॉलेज में दाखिला मिल गया था । उसने मेहनत की और यूनिवर्सिटी भी टॉप किया । फिर उसने ias बनने की इच्छा प्रकट की तो हरिराम ने उसे दिल्ली भेज दिया कोचिंग के लिये । कुछ पैसे मैंने दिये और कुछ इसके पास थे, इस तरह कोचिंग की फीस का इंतजाम हो गया । हरिराम घर से कमजोर था पर उसने राकेश की पढ़ाई के आड़े पैसों की तंगी कभी नहीं आने दी । बाकि खुद का खर्चा राकेश वहाँ ट्यूशन देकर निकाल लेता था । इतने में रानी, मेरी बेटी, ने आवाज दी तो सपने से बाहर आया ।

आज सुबह जल्दी उठ गया था, नहा धोकर तैयार हुआ तो रानी की अम्मा ने पूछ लिया " आज नए कपड़े पहन के कहाँ जाने की तैयारी हो रही है ? "
मैंने कहा " शहर जा रहा हूँ । हफ्ते भर पहले जो कलेक्टर का रिजल्ट आया था न, उसमें अपने समाज के कई होनहारों का भी नाम था तो उन्हें सम्मानित करने का कार्यक्रम है । उसमें अपने हरिराम के बेटे राकेश का भी नाम है ।"
" ठीक है जाइये पर समय पर आ जाना वापस, रामपत भैया के वहाँ जाकर हमें भूल ही जाते हो, 2 - 2 दिन तक नहीं आते हो "
" अरे भागवान, उसके साथ रहता हूँ तो सुकून सा मिलता है, और उसे भी । बेटा तो दूर रहता है तो बेचारा अकेला घर में ऊब जाता है । हम बतिया लेते हैं तो उसका भी मन हल्का हो जाता है ।"
" हाँ, हाँ, हम तो आपको परेशान ही करते हैं, सारी शांति तो रामपत भैया के यहीं मिलती है आपको "
" तुम तो नाराज हो गयी, हमारे कहने का मतलब वो नहीं था ..."
" ठीक है, ठीक है, जो भी मतलब था तुम्हारा ... घर में राशन नहीं है लेते आना और जल्दी आना । ये भी याद रखना कि तुम्हारे घर पर भी बीवी बच्चे हैं "

मैंने सोचा थोडा जल्दी ही चलता हूँ, कुछ बड़े लोगों से मिल भी लूँगा, बाद में तो मुझ जैसे छोटे आदमी से मिलने का वक़्त कहाँ होगा । इसलिये तड़के 9 बजे ही पहुँच गया ।  समाज की धर्मशाला में पहुँचा तो देखा काफी चहल - पहल है,  बड़ा शामियाना सजा है, हजारों लोग आये हुये है जिनमें समाज के नेता, समाजसेवी, शिक्षक, उद्योगपति आदि शामिल हैं । मैं भी अपने जानकारों से मिला फिर इतने में हरिराम भी आ गया । उसके लिये आज आगे की सीट बुक थी तो वो मुझे भी आगे ले गया पर व्यवस्थापको ने कहा कि जिनके पास #पास हैं, वही आगे बैठ सकता है तो मैंने कहा " कोई बात नहीं, मैं पीछे बैठ जाऊँगा । राकेश को तो रोज ही देखते है, अपना ही बच्चा है "
रामपत ने भी अपना पास फेंकते हुये कहा " चलो पीछे साथ ही बैठेंगे, पास तो आज है कल नहीं, पर हम तो बरसों के साथी है, चलो "

क्योंकि मैं किसान हूँ

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बंजर को सिंचित बनाता हूँ,
सबको खिलाता हूँ,
पालनहार कहलाता हूँ,
अपना पेट काटकर सबका पेट भरता हूँ,
पर मैं भूखा सोता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं कचरा - मैला ढोता हूँ,
मैं हरिजन हूँ,
मैं गर्मी में, सर्दी में,
तपता हूँ, ठिठुरता हूँ,
मैं मजदूर हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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जब मण्डी में सेठ लगाता है बोली,
मेरी फसल की ओने पोने दामों में,
मैं टूटे मन से बेच आता हूँ,
फिर जब वही सामान दुकानों पर कंपनियों की पैकिंग में आता है,
तब मैं मोल भाव नहीं कर पाता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं दिन-रात जागता हूँ,
कड़ी धुप- बरसात में,
खुले आसमां तले रहता हूँ
नई कोंपल फूटने पर इतराता हूँ,
पानी को गिड़गिड़ाता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं भी बच्चों को पढ़ाना चाहता हूँ,
कुछ नया सिखाना चाहता हूँ,
उन्हें अफसर बनाना चाहता हूँ,
उनकी अच्छी जिंदगी का आशा करता हूँ,
पर स्कूलों की फीस सुनके थरथराता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं लाला से कर्जा लेकर,
उम्मीदों की फसलें बोता हूँ,
अंत में फसल कटने पर,
फिर जाता हूँ उम्मीदों के खेतों में,
क्योंकि मैं किसान हूँ

क्योंकि मैं किसान हूँ

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जब फसल बर्बाद हो जाती है,
तब लाला बैंकों का कर्ज न चूका पाता हूँ,
बैंक घर भेजती है पुलिस,
जैसे मैं कोई गुनहगार हूँ,
अंत में झूल जाता हूँ सबसे प्रिय पेड़ की किसी डाली पर,
क्योंकि मैं किसान हूँ

मजो ही कुछ और हो - महेश फौजी

पहले आळी हवा रही ना पहले आळ् पाणी
होगी खत्म कहाणी ना मिलति कोई भी चीज पुराणी।                        👌👌�👌�👌�👌�👌�👌�👌�👌

*�मजो ही कुछ और हो*           
          
चिमन बाबाळ घरांकन टुकारियो करबा को '                              
खाती बाबा क गदगाइ करबा को,                   
गंगजी आाळ खेत का मतीरीया खाबा को,                                                                                  हरत बामण आळी पोळी कन तास देखबा                    को,                                  
समंदर बाबोसां को माइक म फोन को हेलो मरबाको,                                                                          
*मजो ही कुछ और है।।*
                       
🏒
मोई डंका अर मारदड़ी खेलबाको,             
लुकखमिचणी म गूंण म लुखबा को           
👳ब्याव म लूखकी टुंटियो देखबा को,      🌧
⛈  नडियो जोहड़ म नागा नहाण को,              
🌠रात म कुवाळ कोठ म नहाण को,           🤕
गणपत बाब को तक की घाबा उठाण को                                         

*मजो ही कुछ और हो।*           

🎰तासयाँ कनू बीड़ी का कूटका उठाबा को                                              
फेर लूकख की बीड़ी पिण को
खेड़ा म जाकि तास खेलण को
स्कूल न जा कि गेल्ल म रहण को
काल्लू आल टिब्ब पर बस क लटकणो को

*मजो ही कुछ ओर हो*

चोमास म जोहड़ी म गुवाळी करण को
चपल भेळी करकि रसड़ी खेलबा को
तगर म खीर बणाकि कांकड़ जिमाण को
🍲🍲आथणा टिब्बा पर गांड घसेड़ी करबा को

*मजो ही कुछ ओर हो*

लामी डस आलो थेलो लेर स्कूल जाण को
रोसावांळ् ख़ात्याळ् खेतम राउण्डबाल खेलण को
गेल्लां म कांटकिलारी मारण को
रामेसरजी गुरजी ऑळ डायलोग सुणबा को
रामबच्चनजी आळ डंडा खाण को

*मजो ही कुछ ओर हो*

होळी म गीनड़ गहालबा को
खेताँ मूं सांगरी अर गुन तोड़न को
भरूंजी का बाकळऑ खाण को
चेजा अर पाया परूँ गुड़ ल्याबा को
जागरण म सारी रात चाय अर बीड़ी पिण को
मंदिर म झालर अर शँख बजाण को

*मजो ही कुछ ओर हो*

मेळ म डोकां की पूंपटी बजांण को
भरूंजी आळ जांट का खोखा खाण को
आती जाती मोटर गाडियाँ क लटकण को
कोटा की चिनी अर किरासणि तेल ल्यांण् को
लोह प्लास्टिक चुग की कुल्फी अर तरबूज ख़ाण को

*मजो ही कुछ ओर हो*

VCR पर फिल्म देखण को
न देखण दियां ट्रान्समिटर परूँ फेस उड़ाण् को
पोळी म चग्घा खेलण को
रामलीला म नकली को सांग देखण को  🤕कुआँळ् बाबोजी कन् चिलम पिण को          

*मजो ही कुछ ओर हो*

बिजळी आळ खम्बा की ताण तोड़ की चकरी गाडी बणाण् को
बिरनियांळी ट्यूबेल मूं चककरीय चोर की ल्याण को
ढ़ाण पर पाणी भरण को
चिंपटळ पर गूदड़ा धोंण को
खेळ मं डांगरां न पाणि पाण को।       🐪🐃🐐🐏🐄

*मजो ही कुछ ओर हो।*

✒✒✒✒✒✒✒✒✒✒✒ महेश फौजी

जम्बूद्वीप

तेरे हर सवाल जायज़ है इस जम्बूद्वीप में,
बस !
उनमें से कोई बुनियादी जरूरत से जुड़ा सवाल न हो ।
तुम शिक्षा पर मत बोलना,
तुम रोटी पर मत बोलना,
तुम बेरोजगारी पर मत बोलना,
तुम भ्रष्टाचार पर मत बोलना,
बेमौत मरते मजदूर-किसानों पर मत बोलना,
तुम शोषण पर मत बोलना,

लेकिन
तुम बोलो,
जोर से बोलो, गला फाड़ कर बोलो,
मंदिर - मस्जिद पर बोलो,
अमीरों के विकास पर बोलो,
जातिगत राजनीति पर बोलो,
धर्म पर बोलो,
देश पर बोलो,

पर,
ध्यान रखना,
उन सवालों से किसी अमीर का हक़ न मरे,
उनके कोई नुकसान न हो,
किसी धर्म पर आँच न आये,
किसी लुटेरे की जाँच न हो

इसलिये,
संविधान तुम्हें आज़ादी देता है
बोलने की,
करने की, रहने-खाने की,
तब तक,जब तक कि किसी पूँजीपति को कोई नुकसान न हो,




किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है ? - नागार्जुन

किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है?
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है
जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है
उसी की जनवरी छब्बीस
उसी का पंद्रह अगस्त है
बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है
कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है
कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्त है
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा
मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्त है
सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्त है
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है,
जयपुर है दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मजदूर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है!
देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
जयपुर है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है
गरीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है
धतू तेरी, धतू तेरी, कुच्छो नहीं! कुच्छो नहीं
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है
कुच्छो नहीं, कुच्छो नहीं
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है!
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है..''
~नागार्जुन

एक सुबह

एक सुबह,
जब दुनिया ने देखी,
पूर्व के कोने से उम्मीद की एक किरण,
वो भारत था,
महान भारत,
जिसने
आज तक लोगों को सिखाया था,
महान सभ्यताओं,
सिंधु घाटी - मोहनजोदड़ो के जरिये,
आज खुद सीख रहा था,
एक होना,
जनतांत्रिक होना,
स्वतंत्र होना,
खुली हवा में जीना,
और
ये सब यूँ ही संभव नहीं था,
उसकी कीमत चुकाई थी,
वीरों ने अपने खून से,
तब जाकर मिली थी आज़ादी ,
हमें सहेजना है इसे,
हर जुल्म के खिलाफ,
हर कीमत पर

वो चाहते है

वो चाहते है

वो चाहते है कि हम अपना हक छोड़ दें,
इनके तमाशों के खातिर,
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारों के नाम पर,
जात-पात, ऊँच-नीच के नाम पर,
sc, st, obc, general के नाम पर,
चंद लोगों के "कथित विकास" के खातिर,

वो चाहते है हम भूल जायें,
सदियों तक झेले अपमान को,
सभ्यता पर प्रहार को,
बेतहाशा ढहाये अत्याचार को,
धर्म, शिक्षा, के शोषण को,

वो चाहते है आवाज न उठाये,
शोषण, अत्याचार के खिलाफ,
गुलामी के खिलाफ,
निरंकुश सत्ता के खिलाफ,

आखिर "वो" कौन लोग है ?
वो वही है जिन्होंने कुचला था,
दबाया था, धमकाया था,
बहलाया था, फुसलाया था,

धर्म का धंधा

" मुझे तुम्हारे जीवन की कमियाँ चाहिए । ऐसी सभी बुरी चीजें मुझे दे दीजिए, जिससे आपके परिवार को शर्मिंदगी न उठानी पड़े । आप अपनी कमियाँ मुझे दे देंगे, तो आपका प्रवचन सुनना और मेरा सुनाना सार्थक हो जाएगा ।
मैं आपकी कमियों को दफनाउँगा । आज इंसान इसलिए खुश नहीं है क्योंकि वह गलत धारणाओं को ज्यादा पालता है, । इसलिए मुझे आपके नोट नहीं, खोट चाहिये । क्योंकि मै तो साधू हूँ, मोह माया छोड़ कर आया हूँ यहाँ, अपने तन पर कपड़े तक नहीं पहनता, सजता संवरता नही, सिर्फ परोपकार करना चाहता हूँ । मै तो कहता हूँ मुझे इज्जत भी नहीं चाहिये, शोहरत इंसान को राक्षस बना देती है, इसलिये तुम भी मेरी तरह सब त्याग दो, शांति शांति " कहकर बाबा खड़े हुये और मंच के पीछे खड़ी मर्सडीज में बैठकर अपनी कुटिया चले गये, जहाँ वो रहते है ।
भंडारी जी अपने बेटे की तरफ मुँह करके बोले " अनुज, तुमने आज इनको अपनी फैक्ट्री में बुलाकर हमें धन्य कर दिया है ।"
"पिताजी ये तो हमारे मैनेजर इटूंदावाला जी का कमाल है, उन्होंने ही पूरा मैनेज किया था ।"
" चलिये उनको भी शाम को मीटिंग में अलग से धन्यवाद बोल देंगे "
शाम को ऑफिस में ...
मैनेजर इटूंदावाला : सर, वो बाबा जी का कार्यक्रम तो पूरा अच्छे से हो गया न, कोई कमी तो नहीं रही न ?
भंडारी : अरे नहीं, आपको तो हम धन्यवाद करेंगे इसके लिये, आपकी वजह से हमें पूण्य कमाने का मौका मिला है ।
मैनेजर इटूंदावाला : सर, ये तो मेरा काम था
भंडारी : तो चलो आपको इस काम का ईनाम भी देते है, ये 10 लाख रुपये आपके ( चेक बढ़ाते हुये )
मैनेजर इटूंदावाला : सर, इसकी क्या जरूरत है ... ( कहते हुये चेक लेकर जेब में डालते हुये )
इतने में भंडारी का लड़का अनुज भी पहुँचता है
भंडारी : आओ बेटे, तुम्हारा ही इंतजार हो रहा था
मैनेजर इटूंदावाला : सर, वो अब कुछ प्रोग्राम के खर्चे का हिसाब किताब कर लिया जाये, CA ने लिस्ट तैयार करदी है, पेमेंट करना है ।
भंडारी : हाँ, क्यों नहीं । बताइये
मैनेजर इटूंदावाला : सर, 2 करोड़ की हाईवे किनारे वाली जमीन तो आपने बाबा जी को आश्रम के लिये पहले ही दे दी थी, अब उसपर आश्रम बनवाने के लिये 1.5 करोड़ और देने है ।
भंडारी : हाँ, ठीक है । इसकी बात तो पहले ही हो चुकी है । इसके अलावा बताओ
मैनेजर इटूंदावाला : 10 लाख आज टेंट वाले को दिये थे और 2 लाख बाबा जी की सिक्यूरिटी के लिये ।
भंडारी : ह्म्म्म
मैनेजर इटूंदावाला : मजदूरों के खाने पीने पर 70 हजार
70 हजार ? इसका बजट तो 50 ही रखा था न ?
मैनेजर इटूंदावाला : जी, लेकिन वो ऐसे खा रहे थे जैसे सालों से खाना नहीं मिला हो ।
अनुज : ठीक है, ऐसा समझ लेंगे कि एक दिन ओबेरॉय में खाना नहीं खाया
( सब हँसते है )
भंडारी : इटूंदावाला, आप बाबाजी के मैनेजर से आप टच में रहना, सूरत, रायपुर, कोलकाता, धारूहेड़ा वाली फैक्ट्रीयों में भी सब मजदूरों के सामने एक एक सभा करवानी है ।
मैनेजर इटूंदावाला : जी, अगले 2 महीनों में बाकि 4 जगह पर भी हो जायेगी
भंडारी : वन टाइम इन्वेस्ट, लाइफ टाइम सर्विस इसी को कहते है इटूंदावाला जी, अब बाबाजी हर साल पाँचों जगह एक एक प्रोग्राम करेंगे और मजदूरों को अपने हक़ छोड़कर धर्म के लिये जीने को कहेंगे ।
मैनेजर इटूंदावाला : साथ में अनुज सर का वो आईडिया तो और ही कमाल का है, बाबाजी को दान देने वाला । जितनी तनख्वाह हम बढ़ायेंगे उतना तो वो हमें वापस दे देंगे
( जोर का अट्टहास )
अनुज : इसी को नए जमाने का बिज़नसमैन कहते है  इटूंदावाला जी
मैनेजर इटूंदावाला : सही फ़रमाया आपने ।
लेकिन सर, वो ट्रेड यूनियन वाले रमेश, इब्राहिम, रामदीन अभी भी मजदूरी बढ़ाने और शिफ्ट का समय कम करने पर अड़े हुये है । कहीं सारे मजदूर फिर से उनके जाल में न आ जाये
भंडारी : मैनेजर इटूंदावाला जी, आप धर्म को बहुत कमजोर मान रहे है, इसकी आस्था में बड़ा जोर होता है । धर्म के आगे लोग अपनों की नहीं सुनते, ये तो फिर भी साथ वाले मजदूर ही है, सबसे बड़ा डर इस दूनिया में भगवान का है, और यही डर हमारी नींव को मजबूत बनाता है,  आपने अभी तक इसका असर देखा ही कहाँ है ।

......क्रमशः

राजस्थान में चरमराती शिक्षा व्यवस्था

किसी भी देश की सबसे बड़ी पूँजी होती है नागरिक, और जिस देश के नागरिक अशिक्षित या अज्ञानी हो उस देश का विनाश कभी भी हो सकता है । जैसा कि राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने स्कूलों के खुले में चलने को लेकर टिप्पणी की, " लगता है राज्य सरकार की स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये भवन, खेल मैदान मुहैया कराने, अध्यापक - स्टाफ की व्यवस्था करने में कोई रूचि नहीं है ।"
आज देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में  में शिक्षा व्यवस्था कैसी है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि राज्य की राजधानी जयपुर में 162 स्कूल बिना भवनों के चल रहे है । ये हालात  तो तब है जब एक स्कूल को दूसरी में मर्ज कर दिया है, इसके बावजूद आज राज्य में 848 विद्यालय बिना भवन के चल रहे है । वरना तो हालात इससे भी बदतर थे । राज्य में आज शिक्षकों के 81,243 पद खाली पड़े है और बात अगर स्कूल स्टाफ की की जाये तो ये आँकड़ा बढ़कर 98079 हो जाता है, जिनमें बाबू, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, पीटीआई आदि के 16836 पद खाली पड़े है और जहाँ भवन है वहाँ स्टाफ नहीं है । स्टाफ है तो वो आते नहीं है और गर आ भी गए तो पढ़ाते नहीं है । इन सबका कारण है स्कूल की निगरानी करने वालों का ढंग से काम न करना । सरकारी मशीनरी का इस तरह से काम न करने का मतलब है कि सरकार अपना काम ढंग से नहीं कर रही, शिक्षा मंत्री तबादलों की डिजायर देखने में बिजी है । कुल मिलाकर राजस्थान में सरकार जिस काम के लिए बनी थी उसके अलावा वो सबकुछ कर रही है

Thursday 8 September 2016

JNUSU का उत्तराधिकारी

कल JNU में स्टूडेंट यूनियन के चुनाव है, देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन का प्रेजिडेंट बनना अपने आप में बड़ी बात है क्योंकि यहाँ बाकि यूनिवर्सिटी की तरह धन-बल पर चुनाव नहीं होते, यहाँ कैंडिडेट्स को छात्रों के सामने अपना विज़न रखना पड़ता है, डिबेट करनी पड़ती है, इसलिये मेरा मानना है कि लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण में ये सबसे नायाब नमूना है क्योंकि लोकतंत्र की परिभाषा सिर्फ JNU ही चरितार्थ करता है । यहाँ हर विचारधारा के लोगों को पुरे सम्मान के साथ रहने का हक़ है, बोलने का हक़ है, कुछ भी करने का हक़ है, और इतिहास गवाह है कि जब-जब छात्रहितों की बात आती है तो देश में पहली आवाज JNU से उठती है ।
छात्रसंघ चुनावों को लेकर JNU देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है जिसके छात्रसंघ चुनाव को लिंगदोह कमिटी ने मॉडल मानते हुये देशभर में लागू करने की सिफारिश की थी , जहाँ प्रेजिडेंट का चुनाव उनकी स्पीच के आधार पर होता है न कि दारू, पैसे और जोर-जबरदस्ती से, कल रात वहाँ डिबेट में जो साथी बोले उनकी स्पीच आपके सामने रख रहा हूँ, वैसे इस बार मुझे दलित, हॉस्टल और #StandWithJNU, महिला सुरक्षा सबसे बड़े मुद्दे लगे । आप भी जानिए कौन किस मुद्दे पर लड़ रहा है -

AISA - SFI से मोहित
https://youtu.be/vnrYzRwe_pA
ABVP से जान्हवी
https://youtu.be/cXGV1BJmVCQ
BAPSA से राहुल
https://youtu.be/zh5Dt3Ee1eI
स्वराज अभियान से दिलीप
https://youtu.be/AHmZE1UmeN4
NSUI से सन्नी
https://youtu.be/VgoN8qkI_NU

सबसे पहले बात करते है AISA - SFI से उम्मीदवार मोहित कुमार पाण्डेय की, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़े हुए है और अब JNU में है, मतलब देश की 2 टॉप की यूनिवर्सिटी से पढ़े हुये उम्मीदवार है और संगठन के हिसाब से JNU के सबसे मजबूत उम्मीदवार पर AISA एक्टिविस्ट अनमोल रतन पर लगे बलात्कार के आरोप के बाद थोड़े कमजोर नजर आये लेकिन इस मुद्दे से खुद को बचाने में सफल रहे । तापसी मलिक का उदाहरण बार बार दिया । JNU में नए हॉस्टल, लिंगदोह को redefine करने, आरक्षण को जारी रखने पर इनका ज्यादा जोर रहा ।
अब बात करते है ABVP की उम्मीदवार जाह्नवी की, बोलने में तेज तर्रार लेकिन अपने आका संगठन आरएसएस-बीजेपी की वजह से कई बार चुप्पी साधनी पड़ी या सवालों से बचकर निकलना पड़ा जैसे कि #ShutdownJNU, रोहित वेमुला को दलित न मानना और JNU की लड़कियों को रांड की उपमा देना लेकिन AISA - SFI गठजोड़ के अनमोल रतन वाले मामले में कमजोर पड़ने से मुकाबले में  महिला होने का फायदा मिलेगा । इनकी उस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये जो उन्होंने करीब 3 बार कही कि मै आरएसएस-बीजेपी की spokeperson नही हूँ और न ही हमारा उनके कोई सम्बंध है । उनके इस कथन से उनकी असहजता साफ झलक रही थी ।

अब बात करते है दूसरी बार JNU छात्रसंघ में भाग ले रहे  BAPSA के कैंडिडेट राहुल की,  सबसे बेख़ौफ़ भाषण रहा और AISA - SFI और ABVP को जमकर लताड़ा । खासकर लेफ्ट फ्रंट द्वारा BAPSA के खिलाफ किये जा रहे प्रचार को कि बापसा को वोट दिया तो ABVP आ जायेगा, गब्बर आ जायेगा । इन्होंने कैंपस में समानीकरण, लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार, देश को अब ऊना मॉडल पर चलने पर जोर दिया । पिछड़े छात्रों के ड्रॉपआउट, एंटी-ब्राह्मणवाद, पिछडो को परीक्षा में कम नम्बर देना इनके प्रमुख मुद्दे है ।

बाबासाहेब अम्बेडकर की एक लाइन का बेहद खूबसूरती से प्रयोग किया, " कोई भी देश तब तक देश नहीं कहलाता जब तक कि अंतिम नागरिक उसे अपना देश न माने"

NSUI के सनी धीमान को देखकर लग ही नहीं रहा था कि वो ये लड़ाई जीतने आये है, उनका BAPSA के लिये कथन " आपकी और हमारी विचारधारा में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है " ये बताता है कि वो बापसा को फायदा पहुँचाने आये है । जैसा कि डिबेट में इन्होंने AISA - SFI और ABVP की जो हालत पतली की उससे भी यही लग रहा था कि इनका उद्देश्य बापसा को फायदा पहुँचाना ज्यादा है, जीतना कम । और ऐसा ही उद्देश्य ABVP का था, जो जाह्नवी बोली कि आपका हमारा उद्देश्य एक है राहुल, हम अम्बेडकर और विवेकानन्द के सपनो का भारत बनायेंगे" इतना कहकर बैठ गयी पर राहुल के जवाब से फिर उठकर सवाल करने आना पड़ा ।

अंत में बात करते है JNU में पहली बार स्वराज अभियान से दिलीप की, दिखने में साधारण और बोलने में मास्टर दिलीप ने सभी छात्र संगठनों की अच्छी अच्छी बातों को अपने प्रेसिडेंशल डिबेट में जगह दी । लेकिन सवाल करने में किसी को नहीं बख्शा, और डिबेट में हर किसी हतप्रभ किया ।
तो कल शाम तक इंतजार कीजिये, JNU को कन्हैया कुमार का वारिस मिल जायेगा, तब तक के लिये अंदाज़ा लगाते रहिये पर चौंकने को तैयार रहिये ... तब तक आप भी इनकी स्पीच सुनें

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...