Tuesday 23 June 2015

दिवसों की उलझन

अभी दो दिन पहले की बात है मने 21 जून की, साल के सबसे बड़े दिन और #Father'sDay और  #YogaDay की, मैं फेसबुक चला रहा था लोग स्टेटस कम और फोटो ज्यादा लगा रहे थे, कोई खुद को योगी बता रहा था तो कोई खुद को पापा का बेटा पर सबमें एक अजीब सी होड़ थी, आगे निकलने की, खुद को अच्छा साबित करने की, खुद को स्वास्थ्य के प्रति सचेत साबित करने की, खुद के अच्छा बेटा होने की । पर इस सब जो पीछे छूट गया था वो था इंसान और उसकी इंसानियत ।
ये पूरा दिखावा वो लोग ज्यादा करते हैं जिन्होंने कभी ऐसा किया न हो । हर कोई किसी दिन विशेष पर उस तरह का होने का टैग लगाना चाहते हैं वो भी सिर्फ उसी दिन के लिये जबकि उस दिन बाद उस बात से कोई मतलब नहीं । योग दिवस पर सभी योगी बनने पर तुले थे, जैसे आज योग कर लिया तो आने वाली 7 पीढ़ियाँ बिना कुछ किये ही स्वस्थ रहेगी । अपने PM मोदी जी भी इस योग को लेकर ऐसे मैदान में कूदे कि लगा हिंदुस्तान की अवाम पहली बार योग करेगी । पूरी सरकारी मशीनरी और आरएसएस, बीजेपी और इसके सहयोगी सङ्गठनों को लगा दिया इसे सफल बनाने को ।  ₹130 करोड़ रुपये तो इसके प्रचार प्रसार में ही फूँक डाले बाकि उस दिन जहाँ भी योग शिविर लगा वहाँ कम से कम  ₹1000 का खर्चा भी माने तो देश भर में 1 लाख शिविरों का खर्चा  ₹100,000,000 बैठता है और ये और प्रचार का पैसा मिला के भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास के विभाग के बजट के बराबर है । अब इसका सारांश तब निकलता जब ये सब आगे भी जारी रहे वरना एकदिवसीय योग से सिवाय प्रचार माध्यमों ( जैसे इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया,बैनर और होर्डिंग आदि ) के अलावा किसी को फायदा पहुँचा हो, मुझे तो नहीं लगता ।
इसके बाद बात करते हैं फादर्स डे की, सब लोग आज अपने बाप की तस्वीरें लगा के खुद को सबसे संस्कारी बेटा बतलाने में लगे हैं । सभी आज अपने बाप को भगवान का दर्जा दे रहे हैं जिन्होंने बाप को कभी पानी न पकड़ाया हो, उनकी कोई बात न मानी हो, कभी उनका कहा न किया हो पर क्या करें आज तो फादर्स डे है इसलिये इनका गुणगान तो करना ही पड़ेगा । क्यों भाई, मैं अपने पापा से बहुत प्यार करता हूँ और उनकी इज्जत भी और मुझे आजतक ऐसा नहीं लगा कि आज फादर्स डे है इसलिये मुझे पापा पर ज्यादा प्यार आ रहा है या मदर्स डे है इसलिए माँ पर ज्यादा प्यार आ रहा हो । हाँ इनको याद करने के लिये साल का दिन इनको डोनेट कर दिया पर बाकि के 364 दिनों का क्या ? सच बताऊँ तो आज तक मैं पापा से गले नहीं मिला हूँ, चाहता तो बहुत हूँ पर डर लगता है कि वो क्या कहेंगे ? मन चाहता है कि जितनी देर उनके साथ रहूँ तब तक वो सर पे प्यार भरे हाथ फेरते रहें पर कह नहीं सकता । हाँ मुझे उनको अपना प्यार जताने के लिये कभी जरूरत नहीं पड़ी लेकिन मेरी आदत ही ऐसी है कि मेरा फादर्स डे पुरे साल चलता रहता है और न ही उन्होंने ने ऐसा डे टाइप में प्यार जताया हो पर सर्दियों जब कभी मुझे जुकाम या खाँसी हो जाती है और उनसे फोन पर बात करते हुये ही वो मेरी आवाज से ही पहचान लेते हैं कि मैं बीमार हूँ और वो कहते हैं कल डॉक्टर से दवाई लेके घर आ जाओ, यही उनके प्यार जताने का तरीका है । इसके अलावा पहले जब मैं छोटा था तब पापा शाम को ऑफिस से घर आते थे तो मुझे सर दबाने का बोलते थे लेकिन तब बहुत जोर आता था, गुस्सा आता था पर आज जब मैं और पापा दो अलग शहरों में रहते हैं तब बहुत याद आते हैं वो । मैं जब उनके पास होता हूँ तो जैसे ही वो ड्यूटी से घर आते हैं वो फ्रेश हो के सो जाते हैं और मैं भी उनका थोडा साथ पाने के लिये पास में उनका सर और हाथ पैर दबाने बैठ जाता हूँ, कई कईबार तो 1 से डेढ़ घण्टे तक न मैं हटता हूँ ना ही वो मना करते हैं, शायद वो भी मेरे पास रहना चाहते हैं इस बहाने पर अब कभी उनकी सेवा करने से मुझे थकान नहीं आती और न ही गुस्सा । ये सिर्फ मेरी ही नहीं बहुत से लोगों की कहानी है और ये फादर्स डे वही लोग सबसे ज्यादा मनाते हैं जिनको माँ - बाप बोझ लगते हैं और उन्हें ओल्ड ऐज होम में रखते हैं, पर क्या करें आजकल हम हो ही ऐसे गए हैं कि बजाय अच्छी बातों को जिंदगी में उतारे उनको प्रतीक बना देते हैं और उनको कैलेंडर में बैठा के एक दिवसीय गुणगान करके इतिश्री कर लेते हैं ।
यही हक़ीक़त है इन डे'ज की । एक दिन सोशल साइट्स पर इनको याद करो और बाकि दिन इनको परेशान करो । जैसे 23 मार्च को ही ले लो, भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहीदी दिवस, सब लोग 5 दिन पहले ही अपनी प्रोफाइल पिक में भगतसिंह की फ़ोटो लगा देते हैं पर  पुरे साल बातें करते हैं जाति - धर्म की, गरीबों का हक मार के पैसे कमाने की । इसके अलावा 15 अगस्त / 26 जनवरी को ले लो, खुद का कचरा डस्टबीन में डाला नहीं जाता और बातें तो करते हैं विश्व शक्ति बनने की और तो और पुरे दिन इनसे करप्सन पर भाषण झड़वा लो पर करप्सन को खत्म करने के लिए आपने क्या किया ? ये पूछते ही इनकी जान निकल जाती है, बोलते हैं हम क्यों मिटायें, ये तो सरकार का काम है ।

डे'ज मनाना इसलिये शुरू किया था कि एक दिन ऐसा हो जब आप किसी को याद करें और उनके दिखाये पथ के लिये खुद को समर्पित करें न कि अख़बारों और चैनलों पर अपने फ़ोटो से व्यक्तिगत प्रचार करें या कटआउट से चौराहों का स्वरूप बिगाड़े । बाकि तो आज तक हमसे बड़े ज्ञानी लोगों से न समझे तो हमसे क्या खाक समझोगे ?

Thursday 18 June 2015

साथियों के नाम पत्र

कॉमरेड्स,
हम मई 2011 से IAC के बैनर से होते हुये आज तक भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी न किसी तरह से लड़ते रहे हैं ( कुछ साथी इससे भी पहले से लड़ाई लड़ रहे हैं ); नागरिक समाज और सामाजिक सङ्गठनों द्वारा खड़े किये सामाजिक आंदोलनों में सर्व श्री अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, वीके सिंह आदि के नेतृत्व में हम भ्रष्टाचार से टकराये, इन सबमें जनलोकपाल आंदोलन सबसे सफल रहा जिसमें उपरोक्त आंदोलनकारीयों ने हमें नेतृत्व प्रदान किया । जनलोकपाल आंदोलन के सफल रहने का एक बड़ा कारण ये भी था कि तब की कांग्रेस लीड यूपीए सरकार घोटाले पर घोटाले किये जा रही थी जिससे जनता त्रस्त थी और विपक्षी दल BJP हाथ पर हाथ धरे बैठा था, न सदन में और न ही सड़क पर, कहीं भी विपक्ष नहीं दिख रहा था । तब कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ( अरविन्द केजरीवाल, प्रशांत भूषण, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय और किरण बेदी ) ने जनलोकपाल ड्राफ्ट बनाया और अन्ना हजारे जी को चेहरा बनाके भ्रष्टाचार के खिलाफ अनसन और धरने प्रदर्शन शुरू किये जिसमें आरएसएस समर्थित किरण बेदी, बाबा रामदेव, गोविंदाचार्य, वीके सिंह आदि भी मंच पर आये और सरकार के खिलाफ माहौल बनाया । इस बीच कुछ समझदार साथियों ने आरएसएस की कठपुतली बनने के बजाय इस आंदोलन को व्यापक करते हुये 26 नवंबर 2012 को " आम आदमी पार्टी " के झंडे तले व्यवस्था परिवर्तन के खिलाफ इसे राजनैतिक लड़ाई में तब्दील कर दिया, जिसमें आरएसएस के लोग अलग हो गए लेकिन तब तक उनका मिशन लगभग पूरा हो चूका था ।
इन सबके बीच कुछ गुमनाम साथी सर्व श्री अरविन्द केजरीवाल, प्रशांत भूषण, गोपाल राय, मनीष सिसोदिया और योगेन्द्र यादव जैसे साथियों ने आम आदमी को केंद्र में रखते हुये " राष्ट्रपिता गाँधीजी के दिये सत्ता के विकेंद्रीकरण के स्वराज सिद्धान्त " पर पार्टी का साङ्गठनिक ढाँचा तैयार किया और श्री केजरीवाल को 3 साल के लिये इसका नेतृत्व सौंपा गया । इस बीच देश विदेश से कई हजारों लोग व्यवस्था परिवर्तन के लिये तन, मन और धन से सहयोग को आगे आये और दिल्ली में 8 दिसंबर 2013 को 1 साल की पार्टी ने 28 सीट हासिल करते हुये सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया । ये आज़ाद भारत के सबसे नायाब चुनावों में से एक था जिसमें जनता के चुने 70 में से 28 कैंडिडेट को जनता ने अपने पैसे और वोट से दिल्ली की विधानसभा में पहुँचाया और इनमें से अरविन्द केजरीवाल लगातार 15 साल से दिल्ली की CM रही शीला दीक्षित को 25000 वोटों से हराकर 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के मुख्यमन्त्री बने और 5 दिन में ही दिल्ली में करप्शन 80% तक कम कर दिया, ये उस देश में वाकई करिश्माई था जहाँ रिश्वत लेना एक स्टेटस सिंबल बन चूका था । ये सरकार 49 दिन चली और 14 फरवरी 2014 को जनलोकपाल बिल पर बीजेपी-कांग्रेस के एक हो जाने से बिल पास नहीं करा पाई और नैतिकता के तौर पर सरकार से इस्तीफा दे दिया । फिर मई 2014 में लोकसभा चुनाव हुए जिनमें हम 4 सीट के साथ लोकसभा में प्रवेश हुये । फिर फरवरी 2015 में हमने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में देश की सबसे बड़ी जीतों में से एक जीत, जिसमें 95% से ज्यादा सीट और 54% वोट शेयर, हासिल की ।
इस बीच हमने कई साथी खोये तो कई नये साथी जुड़े भी पर सबसे बड़ा नुकसान हुआ श्री योगेन्द्र यादव, प्रो आनन्द कुमार और प्रशांत भूषण के जाने से । इनके जाने से हमारी बौद्धिक और न्यायिक ताकत कमजोर हुई और कार्यकर्ता भी असमन्जस में फंस गये । जो साथी इनके साथ थे वो अरविन्द केजरीवाल पर तानाशाह होने का आरोप लगाने लगे जबकि AAP में बचे हुये कार्यकर्ताओं के लिये ये रातों-रात दुश्मन और गद्दार हो गये जिनके कभी दम्भ भरते थे । 
Photo Credit : all india world

इन सब साथियों को निकाला जाना एक सही फैसला नहीं था तो न ही निकालने का तरीका, कम से कम इनको अपना मत रखने देना चाहिये था । लेकिन 80% लोगों ने इन्हें पार्टी से निकालने का फैसला स्वराज मॉडल के तहत लिया और वस्तुतः इनको अपनी खड़ी की गयी पार्टी से बाहर कर दिया  गया । ये मुद्दा उतना बड़ा था नहीं जितना कि दोनों पक्षों के घमंड ने इसे बनाया, कोई झुकने को तैयार नहीं तो, सो परिणाम पार्टी में टूट के रूप में सामने आया ।
ये तो बात थी हमारे पुराने इतिहास हो चुके दिनों की, क्योंकि आगे की बात करने के लिये ये सब जानना बेहद जरुरी था । अब बात करते हैं आज की जब हम दिल्ली में सत्ता में आये 100 दिन पुरे कर चुके हैं और केंद्र की मोदी सरकार दिल्ली में LG द्वारा तरह-तरह से सविंधान की हत्या करवा रही है और केजरीवाल को काम नहीं करने दे रही है तब की ।
अब जब इन अलग हुये साथियों ने अपना अलग से स्वराज अभियान और जय किसान आंदोलन शुरू किया जिसमें बहुत ही कम लोग गये और जाने वाले लगभग हमारे ही साथी थे, जिन्होंने एक अन्य पार्टी खड़ी करने के बजाय AAP में ही विश्वास जताया है । लेकिन विवाद का मुद्दा ये है कि AAP अब अपने कार्यकर्ताओं का मौलिक और बौद्धिक हनन कर रहे हैं । स्वराज अभियान में जाने वाले साथीयों को आप पार्टी से बाहर करने की धमकी देकर अपने पाले में रखना चाह रहे हैं, आप ये सब करके अपने कार्यकर्ता का बौद्धिक विकास रोक रहे हैं, ये एक कुत्सित प्रयास है जिसका सभी कार्यकर्ता विरोध करते हैं ( स्वराज अभियान में हिस्सा लेने वाले भी और नहीं लेने वाले भी ); व्यक्ति का कहीं जाना, मिलना, समर्थन और विरोध करना संविधान प्रदत्त अधिकार हैं जिसका आप भी बाकि राजनैतिक दलों की तरह हनन कर रहे हैं । जो साथी स्वस्थ सोच रखते हैं वो शायद इस वजह से आपसे दूर भी हो रहे हैं इस वजह से अब आपके चारों तरफ चमचों की भीड़ इकट्ठा हो गयी है । किसी ने सच कहा है कि " एक अच्छा आलोचक आपका सबसे अच्छा साथी होता है जो आपको गलत रास्ते पर जाने से रोकता है |" लेकिन आप हैं कि अपने आलोचकों को चुप करा कर AAP को बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे दलों की कतार में शामिल कराने पर मरे जा रहे हैं । आपके कार्यकर्ता पर भरोसे बिना आप न तो कोई आंदोलन खड़ा कर सकते हैं और  न ही चुनाव जीत सकते हैं इस बीच व्यवस्था परिवर्तन को तो आप भूल ही जाइये ।
अंत में, सन्गठन में बैठे पदाधिकारियों से यही कहूँगा कि या तो आप व्यवस्था परिवर्तन का दिखावा कर रहे हो या फिर आप अपने आप से डरे हुए हो । अब आपको सोचना है कि आप इस लड़ाई को किस और ले जाना चाहते हो और हम जैसे कार्यकर्ताओं का कितना काम ले पाते हो वरना फिर से एक क्रांति होगी जिसकी चपेट में सड़ी - गली व्यवस्था के साथ आप भी होंगे ।
मैं आज भी कहता हूँ " अरविन्द केजरीवाल और AAP मेरा घमंड हैं "



                                          आपका साथी

                     जितेंद्र पूनिया, 9667898484

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...