Wednesday 23 March 2016

" क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है " - भगत सिंह

भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु - ये 3 वो नाम हैं जिन्होंने भारतीयों को स्वतंत्रता के मायने समझाये । एक नये विचार ( शोषण का जिंदगी के अंतिम पल तक विरोध ) को जन्म देने वाले ये लोग अंग्रेजो को भारत से खदेड़ने वाले अग्रणी क्रांतिकारियों में शुमार किये जाते हैं । 
तर्क़ और विचार भगतसिंह की दो सबसे बड़ी खूबियाँ थी जो उन्हें बाकि के क्रांतिकारियों से अलग करती थी ।
भगतसिंह और उनके साथियों ने न सिर्फ अंग्रेजों का विरोध किया था साथ ही उन भारतीयों का भी, जिन्होंने भारतीयों का शोषण किया जैसे राजा, सामंत, अंग्रेजों के ऐशो - आराम पर पलने वाले भारतीय आदि, खुलकर विरोध किया । जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक तार्किक और इंक़लाबी व्यक्तित्व की जरूरत थी तब भगतसिंह युवाओं के नायक बनकर उभरे । भगतसिंह ने ने कहा था कि " क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है " अर्थात् क्रांति तब तक व्यर्थ है जब तक कि उसमें विचार न हो । बिना विचार की क्रांति असंतुष्ट लोगों के शासन में आने सिवाय कुछ नहीं है ।
भगतसिंह एक एक ऐसा क्रांतिकारी था जो अपनी बातों को तर्क़ के साथ रखता था । और जब वो भारतीयों तक अपनी आवाज पहुँचाने में असमर्थ थे और भारतीयों के बीच में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता नहीं थी तब भारतीयों तक बात पहुँचाने के लिये भगतसिंह और उनके साथियों ने लाहोर के कोर्ट में बम फेंका और अपनी गिरफ्तारी देकर अंग्रेजी राजसत्ता के अख़बारों के जरिये तर्क़ से गुलाम भारतीयों के मन में क्रांति की ज्वाला भड़काते थे ।
साथ ही भगतसिंह का ये भी मानना था कि सत्ता परिवर्तन हमारा पहला उद्देश्य नहीं होना चाहिये । हमारा पहला उद्देश्य लोगों में जागरूकता फैलाना होना चाहिये क्योंकि जागरूक लोगों को ये समझ अच्छे से होती है कि कौन उनका हक़ मार रहा है और कौन उनको हक़ दे रहा है । एक जागरूक शिक्षित नागरिक, हजारों बुजदिलों साक्षरों से ज्यादा बेहतर है ।  अकेले साक्षर बनने से हालात नहीं बदलने वाले, शिक्षित बनो । हम भारतीयों को साक्षर ( Literate ) और शिक्षित ( Educated ) का फ़र्क़ समझना होगा ।  राजसत्ता चाहती है कि एक पढ़ा लिखा अर्थात् साक्षर नागरिक तैयार हो जो उसके सभी काम कर दे पर कोई सवाल न करें, मुखर न हो जबकि शिक्षा उसमें समझ और तर्क़ पैदा करती है, जिससे वो अपनी सरकार से सवाल करता है, अधिकार माँगता है, सरकारों को निरंकुश बनने से रोकता है ।
आज भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों की सबसे ज्यादा जरूरत है, जब देश फिर से उसी दौर से गुजर रहा है, जब सरकार और उसके कारिंदे संगठन आपको बोलने, खाने, पीने, रहने और कपड़े पहनने पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहें है तब हमें भागतसिंह याद आते हैं । भागतसिंह ने हमेशा " शोषण की खिलाफत " पर जोर दिया था । आज से 85 साल पहले भगतसिंह ने आज के समय के बारे में आगाह कर दिया था, बकौल " भारत से गोरे अंग्रेज चले जायेंगे तो काले अंग्रेजों ( भारतीय शोषक वर्ग ) का शासन आ जायेगा, पर हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है जहाँ सभी सभी को उनके मूल अधिकार मिलें, सभी को समान अवसर मिले, सभी को अभिव्यक्ति, खाने, पीने, पहनने और बेबाकी से अपने विचार रखने की #आज़ादी हो ।" भगतसिंह का आज़ादी से आशय एक ऐसे समाज के निर्माण से था जहाँ गरीबी, भुखमरी, अंधविश्वास, शोषण, बेतरतीब पूँजीवाद की कोई जगह नहीं हो ।
शहीद दिवस पर भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को सच्ची श्रद्धांजली यही होगी कि उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लें और उनका सपना साकार करें ।
इंक़लाब जिंदाबाद ।

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...