Thursday 8 June 2017

देर आये, दुरुस्त आये

तमाम दिनों की तरह उस दिन भी किसानों को लेकर खबरें नहीं थी, और जो थी उनमें वो खलनायक थे, नायकत्व का भाव कहीं था ही नहीं । फिर 2 किसानों के मरने की अचानक ब्रेकिंग न्यूज़ दिखी ।
कुछ देर बार ज़िला कलेक्टर जी बोल रहे थे मरने वाले किसान नहीं, असामाजिक तत्व थे ।

फिर MP के गृहमंत्री का बयान आया कि वो पुलिस की गोली से नहीं मरे बल्कि कुछ असामाजिक तत्वों की गोलियों से मरे ।
इसके बाद एक घोषणा हुई कि मृतकों को पैसा और नौकरी दी जायेगी ।
लेकिन जिस खबर का इंतजार कर रहा था वो कहीं भी नहीं दिखी, इंतजार था उनकी माँगे माने जाने का पर वो इंतजार ही रहा । खैर ये कोई पहली बार नहीं हो रहा था, इसलिये आदतन ज्यादा दुःख नहीं हुआ । पर दुःख तब हुआ जब कुछ सरकार समर्थित लोगों, उनके सोशल मीडिया पर ये झूठी खबरें फैलाई गई कि जो आंदोलनरत है वो किसान नहीं, असामाजिक तत्व है, कांग्रेसी है । इसके पीछे तर्क दिया गया कि किसान जीन्स कबसे पहनने लगे । एकाएक कुछ दिन पहले जंतर मंतर पर बैठे तमिल किसानों के साथ हुई वो मुलाकात और उनके अहिंसक तरीके आँखों मे घूमने लगे । तब भी उन किसानों को मजाक बनाया गया था कि वो किसान नहीं बल्कि NGO वाले है, बिसलेरी का पानी पीते है, रेस्टॉरेंट से मंगाया खाना खाते है । और कम्युनिस्ट है । तब भी इनका उद्देश्य किसानों को किसान न बताकर असामाजिक तत्व बताना था और अब भी यही है । पर क्या मैं जान सकता हूँ कि वहाँ जंतर-मंतर पर मोदी जी "प्याऊ" लगाकर बैठे थे क्या ? या कौनसा आरएसएस ने "लंगर" लगाया था ? ऐसे ही अब MP के कौनसा नियम है कि किसान केवल फटी हुई धोती-कुर्ता ही पहनेगा ?
सरकार, किसान वही तो मांग रहे जिसका वादा आपने लोकसभा चुनाव में किया था । इसमें क्या जींस, क्या बिसलेरी बोतल, क्या होटल का खाना और क्या कांग्रेस, aap, वामपंथी ! बहाने मत बनाओ, वादा पूरा कीजिये

अब बात करते है कि किसानों को आंदोलन की जरूरत ही क्यों पड़ी आखिरकार ? यह जानने के लिये आपके सामने कुछ तथ्य रख रहा हूँ :-

- 1996 से लेकर अब तक केंद्र की सरकारों ने उद्योगपतियों और व्यापारियों का 6 लाख करोड़ का कर्ज माफ किया है जबकि किसानों का कुल कर्ज 78 हज़ार करोड़ है ।

- "1970 और 2015 के बीच गेहूं का खरीद मूल्य सिर्फ 19 गुना बढ़ा है, जबकि इसी अवधि में सरकारी कर्मचारी की आमदनी 120 से 150 गुना, कॉलेज टीचर्स की 150 से 170 गुना, और स्कूल टीचर्स की 280 से 320 गुना बढ़ गयी है. फिर कर्मचारियों को कुल 108 भत्ते मिलते हैं जबकि किसान को एक भी भत्ता नहीं मिलता है । मैच किसान के खिलाफ फिक्स है" - देवेंदर शर्मा

- किसान को अगर एक कुशल मजदूर मानकर उसकी दैनिक मजदूरी 622/- रुपये प्रतिदिन के हिसाब से सालभर की मजदूरी ही ₹ 2,27,030  रुपए बनती हैं, एक परिवार में 3 वयस्क किसान भी माने तो सालाना श्रम की कीमत ₹6,81,090 बैठती है । जबकि कमाई राष्ट्रीय आय के हिसाब से देखें तो मजदूर से भी 1/3 बैठती है ।

- 2012-13 के नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार, पंजाब के किसानों की औसत मासिक आमदनी 18,059 रुपये थी, इसके बाद हरियाणा के किसानों की मासिक आमदनी 14, 434 रुपये थी, इनमें सबसे कम बिहार के किसानों की मासिक आमदनी थी 3,588 रुपये । इस सर्वे के अनुसार, भारत के किसानों की औसत मासिक आमदनी होती है, मात्र 6,426 रुपये और दैनिक होती है 211 रुपये

- दूसरा आंकड़ा आर्थिक सर्वे 2016 का है, जिसका ज़िक्र देवेंद्र शर्मा ने अपने लेख में किया है. यह आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे की तरह पूरे देश का नहीं है, सिर्फ 17 राज्यों का है, जिसके अनुसार किसानों की मासिक आमदनी मात्र 1700 रुपये हैं । प्रति वर्ष 20,000 रुपये. दोनों में तुलना ठीक नहीं रहेगी, मगर अंदाज़ा मिलता है जो बहुत ख़तरनाक है. नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार, 2012-13 में किसान की मासिक आमदनी 6, 426 रुपये थी. 2016 के आर्थिक सर्वे के अनुसार, 1700 रुपये हो गई ।

- 2012 से 2017 के बीच किसानों की मासिक आमदनी में 4,726 रुपये की कमी आई है । तब किस आधार पर दावा किया जा रहा है कि पांच साल बाद आमदनी दुगनी हो जाएगी ।

- 2016 के हिसाब से 1700, अगर 2022 में 34,00 रुपये हो भी गई, तो क्या ये बहुत होगा ?

- देश के राष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कुछ समय पहले एक और ताज़ा आंकड़ा दिया जिसके अनुसार किसान की मासिक आय 1600 रुपये है ।
( उपरोक्त तथ्यों पर रविश कुमार की एक रिपोर्ट )
- फसलों की MSP तय करने मे और नीति आयोग में एक भी किसान नहीं । अधिकारी तय करते है । मौजाम्बिक के किसानो से 5 साल तक दाले MSP पर खरीदने का समझौता हुआ पर भारत मे MSP पर खरीद नहीं ।

- उद्योगपति फायदा उठाते है और किसान नुकसान जैसे चना, दाल की श्रेणी मे नहीं इसलिए स्टोक लिमिट भी नहीं । अडाणी ने चना दाल मे कमाया फिर अडानी के लिये मौजाम्बिक से मोदीजी और म्यामार से सुषमा जी अरहर दाल ले आई ।

- किसान आयोग सँवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है साथ ही बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट मे हल्पनामा भी दिया है कि स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू नहीं कर सकते ।

- सोयल हेल्थ कार्ड व बीमा व नीम कोटिंग यूरिया देकर 3 साल में 3 कदम उठाये पर इनसे किसानों के बजाय फायदे के नुकसान अधिक हुआ । जैसे बीमा कंपनियां ₹21500 हजार करोड़ रूपये लेकर उसका मात्र् 3.3% बाँटकर किसानों का हित करने का दावा कर रहे है ।

- FCI जल्दी ही खत्म अडाणी सैलो बनाकर स्टोक करेगा सरकारी अनुमति पँजाब मे काम शुरू

- बेयर, मोन्टेस्टो जैसे कंपनियों ने अच्छे बीज देने के नाम पर देशी बीज खत्म कर GM बीज लाये, जिसमें मिले अनाज में अंकुरण की क्षमता नहीं होने से बीजों के लिये पूर्णतया बाजार पर निर्भरता


- गेहूँ के भाव वैज्ञानिक देवेन्द्र शर्मा के अनुसार 1625 की जगह 7650 हो ।

- बाजार भाव देखने के लिये यहाँ click करें  http://news.raftaar.in/business/mandi-rates

- एक अलग पचड़ा और भी है जिसका अभी लोगों को ज्यादा पता नहीं है, नाम है World Trade Organization.
WTO की नीति गांव से शहर मजदूर भेजो जिससे बाजार को सस्ते मजदूर मिले और लागत में कमी आये जिससे पूंजीपतियों का मुनाफा और बढ़े । साथ ही खेती बँद होने से भारत अनाज आयात करे ।

- ऊपर दिए गए आँकड़ों से पता चलता है कि सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले राज्यों में सत्ता बीजेपी या NDA के पास है और सभी मे स्वामीनाथन आयोग की रिकमन्डेसन्स लागू करने का वादा करके सत्ता में आई है ।

- महँगाई दर तक पिछले तीन सालों में हर छह महिने में 3% बढ़ती रही मगर किसान की उपज पर एक भी पैसा नहीं बढ़ाया गया ! कुल मिलाकर आर्थिक मोर्चे पर किसान बेहद कमजोर हो गए ।

आंदोलन की नींव कहाँ से पड़ी ?

वर्तमान केंद्रसरकार ने लोकसभा चुनाव के वक्त हिन्दी वाले घोषणापत्र के पेज नंबर 26 पर किसानों से वादा किया था कि सरकार में आने के बाद ऐसे कदम उठाए जाएंगे कि जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े । यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लागत का 50 फीसदी लाभ हो ।

किसान आंदोलन शुरू कैसे  हुआ ?

आंदोलन की शुरुआत हुई महाराष्ट्र के अहमदनगर से, जहां महाराष्ट्र सरकार ने किसानों से कर्ज माफी का वादा किया, लेकिन वादा पूरा नहीं किया । लेकिन इन सब में आग में घी डाला UP सरकार की कर्ज माफी की घोषणा ने । छोटे-बड़े किसान संगठन, नेता इकट्ठा होकर 1 जून से किसान क्रांति मोर्चा के नाम से आंदोलन शुरू कर दिया गया जिसके अनुसार वो शहरों को सप्लाई होने वाली रोजमर्रा की चीजें बंद कर देंगे और इस बार खरीफ की फसल में केवल अपनी जरूरतभर की चीजें ही पैदा करेंगे । इस आंदोलन की खास बात यह रही कि इसका कोई चेहरा नहीं है, यह एक सामूहिक चेतना से बना आंदोलन है जो लगातार फैलता जा रहा है ।
आंदोलन में किसानों की प्रमुख मांगें है :-

1) कर्ज माफ किया जाए।
2) प्रोडक्शन कॉस्ट से 50% ज्यादा मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) मिले।
3) स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू हों।
4) बिना ब्याज के लोन मिले
6) माइक्रो इरीगेशन इक्विपमेंट्स के लिए फुल सब्सिडी मिले।
7)  60 साल और उससे ज्यादा उम्र के किसानों के लिए पेंशन स्कीम हो।
8) सरकारी डेयरी में दूध का रेट बढ़ाकर 50 रुपए/लीटर किया जाए ।

स्वामीनाथन आयोग क्या है ?

18 नवंबर, 2004 को प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन फॉर फॉर्मर्स का गठन किया गया, जिसने भूमि सुधार, किसानों की परेशानियां, सिंचाई, प्रोडक्टिविटी, क्रेडिट और इंश्योरेंस, फूड सिक्युरिटी, किसानों की अात्महत्या, प्रतिस्पर्धा, रोजगार, बायोरिसोर्स जैसे मुद्दों पर सुझाव दिए थे । स्वामीनाथन आयोग के प्रमुख सुझाव निम्न थे :-
- किसी फसल के प्रोडक्शन पर जितना खर्च आ रहा है, सरकार उससे डेढ़ गुना ज्यादा दाम दिलाए।
- सरप्लस और बेकार जमीनों को बांटा जाए।
- एग्रीकल्चर लैंड और जंगलों को नॉन-एग्रीकल्चर यूज के लिए कॉरपोरेट सेक्टर्स को देने पर रोक लगे।
- जंगलों में आदिवासियों और चरवाहों को जाने की इजाजत हो, साथ ही कॉमन रिसोर्स पर जाने की इजाजत भी मिले।
- नेशनल लैंड यूज एडवाइजरी सर्विस का गठन किया जाए, ताकि लैंड यूज का फैसला पर्यावरण-मौसम और मार्केटिंग फैक्टर्स को ध्यान में रखकर हो।
- एग्रीकल्चर लैंड की बिक्री को रेगुलेट करने के लिए मैकनिज्म बनाया जाए, जिसमें जमीन, प्रपोजल और खरीदार की कैटेगरी को ध्यान में रखा जाए।

अंत मे मुझे किसानों के मुद्दों पर मुखर राय रखने वाले हनुमान राम चौधरी की एक बात याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा  "मँहगाई के विरोध किसान का भोलापन है, उत्पादक कहे कि मँहगाई न हो तो वो ईश्वर ही है ।"

जो लोग आज इस किसान आंदोलन का विरोध कर रहे है वो चाहते है कि इस देश के किसान खेतों में आँसू बहाते प्याज और बासी सूखी रोटी खाए और चुपचाप आने वाली मौत का खेत में इंतजार करे जबकि बच्चों को बॉर्डर पर मरने के लिये भेज दे । बाकी ये लोग मजे करे ।
इसलिये आवाज उठाओ अगर अपना अस्तित्व बचाना है तो

Monday 5 June 2017

हमामी नँगे

साहेब,
आप तो बहुत कमजोर निकले, सिर्फ एक चैनल के सवालों से घबरा गये ? एक चैनल भी पूरा कहाँ था, एक Ravish Kumar ही तो था । जनाब आपकी छाती नहीं, पेट 56 इंच का है इसलिये गिनती के कुछ सवालों से ही सांस फूलने लग गयी । मैं तो कहता हूँ आप भी रवीश के चैलेंज के जवाब में खुलेआम लालकारिये इंटरव्यू देने को, आखिर आपने काम किया है, तो डर कैसा ?
सामने आने की हिम्मत नहीं हो रही ?
होगी भी नहीं, जिस दिन एक इंटरव्यू रवीश को दे दिया न उस दिन जैसे आपकी कागजी जीडीपी नीचे आयी है न, वैसे ही आपका कार्यकाल नीचे न आ पड़े तो कहना !
वर्तमान परिदृश्य में आप अकेले नेता है जो बात करते है लोकतंत्र की और काम करते है तानाशाही का, मुझे आज तक ये नहीं समझ आया कि आप भाषणों में इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी के खिलाफ जिक्र करने के लिये इतनी बेशर्मी आखिर लाते कहाँ से है ? मुझे पता है आप और आपके चमचों पर मेरे इस पत्र का कोई असर नहीं पड़ने वाला फिर भी लिख रहा हूँ, क्योंकि लोकतंत्र में सरकार से सवाल करना लोगों हक़ है, ये चीज आपको जल्द से जल्द समझ लेनी चाहिये ।

तो इस बार सरकारी तोते का पिंजरा आखिरकार खुल ही गया,  NDTV को सज़ा मिली है सवाल करने की, अपनी ड्यूटी करने की, लोगों को सच बताने की । मीडिया का काम विपक्ष का होता है न कि सरकारी प्रवक्ता का पर इन दिनों इस देश में उल्टी गंगा बह रही है, बोले तो नमामि गंगे के एकदम उलट हमामी नँगे, काम करने वालों को परेशान तो चमचागिरी करने वालों को ईनाम दिया जा रहा है । भारतीय मीडिया लोकतंत्र के खम्भे से शराब का खम्भा बनने की और तेजी से अग्रसर है । NDTV ही एकमात्र ऐसा चैनल है जो न तो बाकियों की तरह सुबह सुबह भविष्य बताने वालों को बैठाता है, न ही नोट में झूठी चिप डालता है, न रोज फालतू में trp के लिये दाऊद या पाकिस्तान को तहस नहस करता है, न ही फालतू के बॉलीवुड के ऊप्स मोमेंट्स को खबर बनाता है । इसे ही पत्रकारिता कहते है, बाकि चैनल जो करते है उसे चमचागिरी कहते है ।

NDTV को पिछले कुछ समय मे किस तरह परेशान किया गया, उसकी बानगी देखिये जरा :

सबसे पहले कथित संवेदनशील कन्टेंट मामले में एक दिन के लिए बैन

दूसरा ED द्वारा FEMA के नियमों का उल्लंघन करने को लेकर 2030 करोड़ रुपए का नोटिस जारी करना

तीसरा ICICI बैंक का कथित तौर पर 48 करोड़ के कर्जे का मामला, अव्वल तो बैंक ने इस मामले में सरकार से कोई जाँच की माँग ही नहीं की थी फिर भी मोदीजी का तोता खुद ही इस मामले में अपनी चोंच अड़ा रहा है

साहेब, हमारा विरोध NDTV पर पड़े छापे को लेकर नहीं है, औऱ Raid कीजिये पर हर बार निशाना NDTV ही क्यों ?

जनाब, पूरा देश आपके पिट्ठू चैनल्स की हक़ीक़त जानता है, क्या इन सवालों का जवाब भी मिलेगा कभी, जो नीचे साझा कर रहा हूँ :


क्या आपने कभी जानने की कोशिश की कि अर्नब गोस्वामी जो नया चैनल लाये है उसमें कितना पैसा, किसका लगा है और कितना धन काला या गोरा है ?

बीजेपी के समर्थन से MP बने और रक्षा सौदों के बिचौलिये राजीव चन्द्रशेखर का रिपब्लिक में पैसा लगाने का क्या उद्देश्य है ?

क्या आपने रजत शर्मा को पद्मभूषण इसलिये नहीं दिया कि वो आपके संगठन से आते है और खुल के आपकी आलोचना करने वालों के खिलाफ जमकर अभियान चलाते है ।

1 करोड़ की रिश्वत लेने के स्टिंग में आने के बाद तिहाड़ जेल की हवा खा आये सुधीर चौधरी आपके झूठे कसीदे पढ़ता है, और सरेआम झूठी खबरों से आये दिन मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिये देश को गुमराह करता है, ये कारवाई से सिर्फ इसलिये बचा है क्योंकि आपके विरोधियों के खिलाफ झूठी खबरें प्लांट करवाता है ।

क्या ज़ी मीडिया के मालिक सुभाष चंद्रा को आपकी पार्टी की सहायता से राज्यसभा नहीं भेजा गया ? वो भी विपक्ष के वोट खारिज करवा कर ? इस कृपा की वजह बताइये

इसी तरह आपकी 24 ×7 हाजिरी बजाने वाले चैनल्स को आपने कई अरबों की ऐड नहीं दी ? क्या ये उनका अहसान चुकाने के अनैतिक तरीका नहीं है ?

धन्यवाद,

जवाब के इंतजार में,
आपका
एक नागरिक 

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...