Saturday 30 January 2016

जाने किसकी नजर लग गयी है अब ...

"जाने किसकी नजर लग गयी है अब...." ये कविता गाँधी जी और युवा साथी रोहित वेमुल्ला के संघर्ष समर्पित है ....
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सदियों पहले,
मेरे गाँव में फसलें ऊगा करती थी, प्यार, भाईचारे और सद्भाव की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो उगती हैं फसलें, घृणा, दुश्मनी और तकरार की ।

सदियों पहले,
निराई की थी झूठ और अत्याचार की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो फिर से उग आई हैं झाड़ियाँ ईर्ष्या और अहंकार की ।

सदियों पहले,
बुवाई की थी मानवता और सदाचार की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो उग आई है खरपतवार कदाचार की ।

सदियों पहले,
पकने वाली थी फसल मानवता की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो पड़ा अकाल तो उजड़ गयी खेती सौहार्द की ।

सदियों पहले,
लहलहाती थी फसलें सत्य और अहिंसा की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो हो गयी है बंजर मिट्टी हिन्दुस्तान की ।



सदियों पहले,
मेरे गाँव में फसलें ऊगा करती थी, प्यार, भाईचारे और सद्भाव की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो उगती हैं फसलें, घृणा, दुश्मनी और तकरार की ।

Tuesday 26 January 2016

क्यों करूँ विश्वास तुम्हारे भगवान पर ?

( मेरी पहली कविता है, बहुत अच्छी तो नहीं बोल सकते है पर कोशिश की है अच्छा लिखने की । आगे निरंतर अच्छे लेखन के वादे के साथ सभी नास्तिकों को समर्पित मेरी ये कविता )

लोग पूछते हैं,
तुम नास्तिक क्यों ?
कहता हूँ,
क्यों करूँ विश्वास तुम्हारे भगवान पर ?
जब है यकीं भुजाओं पर,
जब है संतोष रजाओं पर,

लोग पूछते हैं,
तुम नास्तिक क्यों ?
कहता हूँ,
क्यों करूँ विश्वास तुम्हारे भगवान पर ?
डर नहीं है मौत का,
लालच नहीं है 72 हूरों का,

तो बताओ
क्यों करूँ विश्वास तुम्हारे भगवान पर ?

तुम्हारी आस्था दिखावी है,
जब बहा देते हो दूध नाली में,
बिना भरे उदर किसी दीन का ।

तुम्हारी माता की पूजा दिखावी है,
जब मारते हो औरत को,
नाम लेके दहेज का ।

तुम्हारा संथारा दिखावी है,
जब काटते हो जेब,
किसी गरीब की

तुम्हारी ईदी दिखावी है,
जब बहाते हो खून,
शक्तिहीन का

तो बताओ
क्यों करूँ विश्वास तुम्हारे भगवान पर ?


दम तोड़ देता है धर्म तुम्हारा,
इंसानियत के नाम पे

जान ले लेता है धर्म तुम्हारा,
शरीयत के नाम पे

भाग खड़ा होता है धर्म तुम्हारा,
विज्ञान के नाम पे

दुबक जाता है धर्म तुम्हारा,
तर्क के नाम पे

अंधा हो जाता है धर्म तुम्हारा
अल्लाह-ईश्वर-जीजस के नाम पे

तो बताओ
क्यों करूँ विश्वास तुम्हारे भगवान पर ?

नास्तिकता,
नाम है निरंतर चिंतन का,
कर्म है मुफ़लिस की सेवा का,
मर्म है कौमी-एकता का,
जन्म है नए विचार का,
निर्माण है नये समाज का,
इलाज है पौंगावाद का,
आगाज़ है इंक़लाब का

तो कहता है कवि, पुरे होश-ओ-हवाश में ।
नहीं मानता धर्म तुम्हारा, जो काम न आये इंसान के ।।

Tuesday 19 January 2016

पोस्टमार्टम

जिस प्रकार मौत का रहस्य समझने के लिए मृत शरीर का पोस्टमार्टम करना पड़ता है उसी प्रकार किसी समाज के पतन के कारणों का विश्लेषण करने के लिए समाज के पढ़े लिखे लोगों के कामो को तर्क,तीक्ष्ण बुद्धि व् वैज्ञानिक ज्ञान से समझने की जरुरत है।आज अपने आप गर्व करने का दिखावा करने वाले लोगों की फ़ौज तो तैयार हो गई है लेकिन वास्तव में उनके पास गर्व करने लाइक कुछ होता नहीं है।
समाज का कोई एक महापुरुष वर्षों पहले समाज को उसकी दिशा बता देता है लेकिन हम उसकी जयंती-पुण्यतिथि पर दो-चार माला पहनाकर फोटो खींचकर अपना कर्तव्य पूरा करने का ढोंग रच देते है।साल के 363 दिनों तक हम उस महापुरुष को याद ही नहीं करते।बदलाव झुण्ड में फोटो सेशन करने से कभी नहीं आ सकते न रजाइयों में घुसकर सोशल मीडिया में एक दूसरे को नीचा दिखाने से खुद् को सफलता के चरम पर खड़ा कर सकते है।डॉ आंबेडकर चाहते थे कि जब मैं अकेला पढ़ा-लिखा पीड़ित समाज में इतना कुछ बदलाव ला सकता हूँ तो जब समाज में सैंकड़ों पढ़े लिखे लोग हो जायेंगे तो समाज के विकास का कारवां कभी नहीं रुकेगा।आज उसी समाज के पढ़े-लिखे लोगों को देखता हूँ तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ब्राह्मणवाद से त्रस्त अम्बेडकर ने उस समय बौद्ध धर्म अपना लिया लेकिन आज वो जिन्दा होते तो आत्महत्या करनी पड़ती।
आज पढ़े-लिखे लोग अपने समाज के संगठन बनाकर मनुवादियों से अंक हासिल करने के लिए अपने समाज को कुर्बान कर रहे है।आज पढ़े-लिखे लोग अपने आप को सभ्य दिखाने के लिए मनुवादियों के कर्म-कांडों में आकंठ डूब चुके है।जिन मंदिर व् रजवाड़ों के बंधन को तोड़ने के लिए पूर्वजों ने कुर्बानियां दी है उन्ही के पुनर्निर्माण में रात-दिन जुटे है।जिस शिक्षा के अधिकार के लिए सदियों लड़ाईयां लड़ी उसी शिक्षा को दरकिनार करके धर्म की चादर ओढ़ने में व्यस्त है।वैज्ञानिक ज्ञान व् तार्किककता को छोड़कर अंध-विश्वास में लिपटे नजर आ रहे है।
हमारे सपनो के घर को कुर्बान करके पत्थर मंदिरों के निर्माण में लगा रहे है।अपने बच्चों का भविष्य चौपट करके पाखंडियों के संगठनो को चंदा दे रहे है।सक्षम लोग अपने ही समाज के युवाओं की भीड़ को अपने वोट बैंक की ताकत के रूप में इस्तेमाल कर रहे है।महापुरुषों के संघर्ष की गाथाएं आज फिर मनुवादियों की चौखट पर माथा टेकने लग गई।महापुरुषों के सपने व् आत्मा फिर से मनुवादियों की कैद में है।
आज पोस्टमार्टम करने की हिम्मत किसी में बची नहीं है।जो सोचते है वो रजाई से बाहर नहीं निकल पाते।जो काबिल है उनकी आँखों पर पट्टी बंधी है।जो सक्षम है वो खुद स्वहित के लिए समाज का दुरूपयोग कर रहे है।
फिर कैसे उम्मीद करे कि अम्बेडकर पैदा हो रहा है ?
कैसे उम्मीद करे कि सर छोटूराम के सपने पुरे हो जायेंगे ?

( लेखक प्रेमाराम सियाग सम सामयिक मुद्दों पर तर्क सहित लिखते रहते हैं )

Wednesday 6 January 2016

जवाब माँगते सवाल

श्रद्धांजली ।
देशभक्ति का आभासी आवरण हटाकर अब सोचने वाली बात ये है कि 5 मामूली आतंकियों को मारने के लिये 7 जवान मरवा दिये, आर्मी मानती है कि विरोधियों का ज्यादा से ज्यादा नुकसान और खुद का कम, यदि बराबरी पर जंग छूटे तो खुद को हारा हुआ मानो । पर यहाँ तो बिलकुल उल्टा हुआ, लगा ही नहीं कि हम कहीं मुकाबले में हैं, कमियां ही कमियां पुरे ऑपरेशन में -


पहली कि sp की गाड़ी ले गये और पुलिस ने जहमत नहीं उठाई ।
दूसरी, अलर्ट के बाद इतनी बड़ी घटना को भी मामूली मानना और कोई एक्शन न लेना
तीसरी, प्रयाप्त सैनिकों का न रहना
चौथी, नेतृत्व की कमी
पाँचवी, सत्ताखोरों की उदासीनता
छठी, रणनीतिकारों का न होना
सातवीं, अफसरों की लापरवाही ( बम डिफ्यूज करते समय निरंजन का शहीद होना )
आठवीं, पास में स्थित आर्मी कैंप से सामंजस्य न बैठा पाना
नौवीं, NIA, रॉ, IB का ख़ुफ़िया तंत्र बुरी तरह से फ़ैल होना और अंतिम
दसवीं, सैनिकों में प्रशिक्षण की भारी कमी । पुरे ऑपरेशन में कहीं नहीं लगा कि आर्मी जवाब दे रही है । होम गार्ड ही पार पा लेते इस तरह की कार्यवाही को ।
नोट : sp सलविंदर सिंह से कड़ी पूछताछ होनी चाहिए, जब कार ड्राईवर को मार दिया तो sp को कैसे छोड़ा, जबकि गाड़ी पर नीली बत्ती लगी हुई थी, तो न पहचानने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...