Friday 25 December 2015

बातचीत ही आखिरी रास्ता

प्रिय मोदी जी,

बड़ी ख़ुशी हुई कि आप पाकिस्तान गये और उम्मीद करता हूँ कि आगे भी ऐसे ही जाते रहेंगे जिससे दोनों देशों के आपसी सम्बंधों में मजबूती आएगी । हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अवाम तो हमेशा से बातचीत के पक्ष में रही है पर निजाम हैं कि गोलियों बिना बात ही नहीं करते ।
हमारा तो यहीं मानना है कि बॉर्डर पर जो खून खराबा चलता रहता है वो बन्द हो जाये बस क्योंकि बॉर्डर पर तो हम किसान मजदूरों के भाई, बेटे शहीद होते हैं ।

सबको पता है कि आखिरी हल बातचीत से ही निकलता है । आप, आपके संघ वाले और उनके पाकिस्तानी समकक्ष जमात-उद-दावा वाले भी इसे अच्छे से समझते हैं तो इसे अपनाने में इतनी हिचक क्यों ?
आपसे पहले वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 8 जनवरी 2007 को कहा था कि " मैं एक ऐसे दिन का सपना देखता हूँ जब सुबह का नाश्ता अमृतसर में, लंच लाहौर में और डिनर काबुल में होगा " तो उनके इस मानवतापूर्ण कार्य को आगे बढाते हुये इस खाई को संकरी करने की कोशिश कीजिये ।

रही बात पाकिस्तान जाने के असल मक़सद की तो वो चाहे जिंदल का बिज़नस बढ़वाना हो या फोटो खिंचवाना हो या मिठाई खाना हो या कसाब को खिलाई बिरयानी का बदला लेना हो पर आपकी इस यात्रा से छद्म राष्ट्रवादियों ( आपके भक्तों ) में खलबली मची हुई है ।

इस मुद्दे पर आपके बोल ही ऐसे रहे हैं कि लोग तो आपके मजे लेंगे ही । अवाम आपके साथ होगी क्योंकि उसकी भलाई इसी में है । हाँ कुछ लोग बोल रहे हैं कि आपने मनमोहन सिंह को कायर, देहाती औरत और पता नहीं क्या क्या बोला था, तो अब आप जाके क्यों अपनी भद्द पिटवा रहे हैं ? माना आपमें तब इतनी समझ नहीं थी या आपको राजनीती करनी थी । कोई नहीं, ऐसा सबके साथ होता है । हमारे गाँव-देहात में कहते हैं " अक्ल बादाम खाने से नहीं, ठोकर खाने से आती है " और लग रहा है आपको भी ऐसे ही आयी है ।


एक बात और, आपके जो ये भक्त हैं न उनको सम्भाल लो, आपकी इज्जत अपने आप बढ़ जायेगी । और जो थोड़ी बहुत कमी भक्त छोड़ते हैं वो आपके बेलगाम पार्टी सांसद कर देते हैं । तो यही कहना है कि पाक से रिश्ते जोड़ोगे तो भक्तों की देशभक्ति कहीं और शिफ्ट करने का तरीका भी ढूंढ लेना नेपाल , चाइना वगैरा ।

बस अंत में यही गुजारिश है कि जैसे आपका मन किया और पाकिस्तान चले गये वैसा ही कुछ आम लोगों के लिये भी करवा दो, यानि कि दोनों देशों के बीच वीजा खत्म कर दो । वहाँ के कलाकार, खिलाड़ी यहाँ और अपने वहाँ घर समझ के खेलें कमायें, इससे अच्छा और क्या हो सकता है भला । रही बात आतंकियों के आने जाने की तो अभी कौनसा वो आपसे वीजा लेके आते- जाते हैं ।

बातचीत बन्द करने की बोलने वाले या तो बेवकूफ हैं या शांति विरोधी, वरना बातचीत क्यों बन्द की जाये । कोई एक तर्क बता दीजिये आप जिससे आतंकवाद रुक सकता है बातचीत बन्द करने से । मरने वाले हमारे भाई ही हैं फिर वो फौज की वर्दी में मरे या बिना वर्दी के, इससे क्या फ़र्क़ पड़ना है । जो लोग बातचीत बन्द करने की बोल रहे हैं वो एक तरह से आतंकियों की भाषा ही बोल रहे हैं और उनकी बात को पुख्ता कर रहे हैं । मोदी जी आपकी दूसरी बार तारीफ कर रहा हूँ, पिछली बार की तरह इस बार भी भद्द मत पिटवा लेना ।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिंदा न हों

आपका

आम आदमी


Wednesday 23 December 2015

रेप का उपाय सज़ा या संस्कार ?

कभी किसी लड़की के पीछे खड़े होके देखना कि बाकि लोग उसपर कैसे रिएक्ट करते हैं, सच में खुद पर गुस्सा आ जायेगा कि ये सब हरकतें कई बार हमारी दोस्त, बहन, बेटी के साथ भी होती है पर वो हमे बताती नही है, आवाज नहीं उठाती, वो घुट घुटकर मरती है । क्यों ? क्योंकि उसे हम पर भरोसा नहीं कि हम भी उन लोगों से अलग हैं ।इसके लिये हम ही जिम्मेदार हैं क्योंकि गाहे बगाहे हम उन्हीं लोगों में शामिल होते हैं, बाकि इस भाषणबाज़ी से कुछ न होगा, जब तक आधी आबादी खुद अपनी आवाज नहीं बनेगी । वैसे भी किराये के सैनिकों से लड़ाई नहीं जीती जाती ।

रही बात रेप की तो रेप करने वाले की कोई उम्र नहीं होती, किसी का रेपिस्ट बनना उसकी  मानसिक अवस्था है जिसे हम सज़ा कड़ी कर, जुवेनल एक्ट में उम्र घटाकर नही रोक सकते, इससे तो हम लोगों को अपराध की तरफ धकेलेंगे । सब जानते हैं कि आजतक जो जेल गये हैं उनमें से सुधरे बहुत कम हैं और बिगड़े ज्यादा । उम्र कम करना एक तत्कालीन उपाय हो सकता है पर दीर्घकालीन नहीं ।
आपको कुछ केस बताता हूँ जिनसे आपको अलग - अलग नजरिये देखने को मिलेंगे, जैसे :

1. आजकल जाने अनजाने में कम उम्र के नासमझ बच्चे शारीरिक सम्बन्ध बना लेते है और जब लड़की के घरवालों को पता चलता है तो लड़की को कूट-पीटकर लड़के के खिलाफ केस करवा देते हैं, फिर जब कोई बन्दा एक बार जेल होके आ गया तो उसका डर भी वही रह जाता है, और उसके सुधरने का क्रम बन्द हो जाता है । इसलिये ये कहना कि कठोर नियम से सब सुधर जायेंगे, अतिशयोक्ति होगी ।

2. यदि लड़के की उम्र 18 ( अब तो 16  कहे ) से ज्यादा हो पर लड़की की उम्र 18 से कम हो तो महिला एक्ट के हिसाब से वो रेप या सेक्सुअल हरेसमेंट माना जायेगा, फिर चाहे उसमें लड़की की कितनी भी मर्जी रही हो ।

3.  देश में इन सब कड़े कानूनों का फायदा पीड़ितों को मिलेगा, शंकित करता है । क्योंकि यहाँ जितने रेप होते हैं उनमें 25% ही दर्ज नहीं होते हैं । हम और आपने ये तो आसपास के माहौल में देखा ही होगा । और जितने दर्ज होते हैं उसके 50% प्यार,नाजायज़ सम्बन्ध इत्यादि से जुड़े होते हैं । हालांकि ऐसे केस पैसे ले देके निपट जाते हैं । बाकि बचे 25% एक बिलकुल झूठे होते हैं जो किसी को परेशान करने, पैसे ऐंठने या समाज में बदनाम करने के लिये लगाये जाते हैं ।


4. भारत जैसे संकीर्ण मानसिकता वाले देश में जहाँ इज्जत को सेक्स से जोड़कर देखा जाये वहाँ कड़े नियमों की नहीं लोगों का मानसिक दिवालियेपन खत्म करने की जरूरत ज्यादा है ।

5. जब तक बाजार औरत को भोग की वस्तु की तरह प्रस्तुत करेगा और हम उसको बढ़ावा देते जायेंगे तब तक ये रुकना नामुमकिन है ।

6. समाज जब तक पितृ सत्तात्मक रहेगा तब तक आधी आबादी यूँ ही कुचली जायेगी । कानून बनाना है तो बेहतर शिक्षा का बनाएं । पैसे के बल पर किसी की समझ नहीं बदली जा सकती है ।
घर पर आने वाले पैसे औरत को देके सरकार ये समझती है कि इससे नारी सशक्तिकरण हो जायेगा तो ये सरासर बेवकूफी होगी, क्योंकि जब तक उसमें आत्मविश्वास पैदा नहीं होगा तब तक वो उन पैसों का भी सही जगह उपयोग नहीं कर सकती ।

7. परिवार की लड़कियों को सुरक्षा का अहसास दें न कि तानाशाही का । यदि उनके साथ किसी ने छेड़खानी की भी होगी तो भी हमारे तानाशाही व्यवहार की वजह से बताने से डरेगी, उनको सुरक्षा का भाव दें ।

कल को मेरे घर या जानकारों में भी क्या पता ऐसा कोई हादसा हो जाये और मै भी अपने ऊपर लिखे शब्दों के उलट कार्य करूँ पर इस तथ्य को कोई झुठला नहीं सकता कि सज़ा से रेप कम होंगे, जब तक हम मानसिक रूप से मजबूत नहीं होंगे तब तक रेप कम होने का सवाल ही नहीं उठता ।


अंत में यही कहूँगा कि लड़कियों के प्रति सोच बदलें, उनको अपनी माँ, बहन, बीवी आदि की जगह रखकर सोचें, रेप अपने आप कम हो जायेंगे । मैं किसी अफरोज खान जैसे विकृत सोच वाले दरिंदे के बचाव के पक्ष में नहीं हूँ जिसने किसी के पेट में रोड डालकर उसकी आंतड़ियाँ तक बाहर निकाल दी हो । विकृत मानसिकता वाले अपराधी के विरोध में तब भी सबसे आगे था और आगे भी रहूँगा ।



Tuesday 22 December 2015

Fatehpur Shekhawati : An Open Art Gallery

फतेहपुर शेखावाटी शहर, जहाँ के हम वाशिंदे हैं । इसको दुनिया की ओपन आर्ट गैलरी भी बोला जाता है क्योंकि यहाँ हवेलियों पर चित्रकारी की हुई है, जिसको हम शहर में कहीं भी घूमते हुये देख सकते हैं ।


चित्रकारी भी इतनी सलीके से की गयी है कि आपका मन इसे बार-बार देखने का करेगा । Nadine Le Prince Cultural Center नामक हवेली, जो पहले देवड़ा हवेली के नाम से जाना जाता था, को फ्रांस की एक कलाकार Nadine Le ने सन् 1998 में खरीदा और इस कलाकारी को फिर से जीवंत कर दिया ।

Photo : Nadine Le Prince Cultural Center

इसके अलावा यहाँ देखने योग्य अन्य कई हवेलियाँ भी हैं जिनमें केड़िया हवेली, सराफ हवेली, सिंघानिया हवेली और द्वारकाधीश मंदिर प्रमुख है ।

यहाँ के नवाबों ने शहर के बीच में एक बावड़ी भी बनवाई थी जो कि दुनिया के 17वें अजूबे के तौर पर गीनी जाती है पर आजकल शहर वासियों ने इसको कूड़ादान बना डाला है । इसे कूड़े कूड़ाघर बनाने में क्षेत्रीय नेताओं का भी बराबर का योगदान रहा है, जिनसे जितनी बार इसकी सफाई की पहल की उन्होंने उतनी ही इसकी बेदखली की ।

Photo - Fatehpur Bawari

फतेहपुर के बारे में और अधिक जानने के लिये ये वीडियो भी देख सकते हैं - फतेहपुर का इतिहास
फतेहपुर के शासकों ने लोगों को पीने का पानी उपलब्ध करवाने के लिये जगह जगह बावड़ियां बनवाई, ये बावड़ियां आप शहर के आस पास के गाँवों और सड़क किनारे देख सकते हैं ।

अगर आपको कभी फतेहपुर आना हो तो होली से 10 दिन पहले आयें और होली तक रहे । इस दौरान आपको वहाँ की संस्कृति की हर झलक देखने को मिलेगी जैसे कि गींदड़ नृत्य, ग़ैर नृत्य, चंग - ढ़ोल बजाना और चित्रों से रंगी हवेलियाँ तो खैर है ही । और इस दौरान मौसम भी बहुत खुशनुमा रहता है, रात को हल्की सी ठंड और दिन में हल्की सी गर्मी । गर्मियों में यहाँ तापमान 45℃ और सर्दियों में 0℃ रहता है ।
फतेहपुर आप बस और रेल दोनों से पहुंच सकते हैं । यहाँ टेम्पो बहुत आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, जिनमें 10 रुपये सामान्य किराया है । इस किराये में आप शहर में कहीं भी घूम सकते हैं । लोग भी बहुत मिलनसार हैं ।

Tuesday 15 December 2015

CBI या सरकारी तोता

आज सुबह - सुबह ही खबर मिली कि सीबीआई ने दिल्ली CMO ऑफिस को सील कर दिया, पहले तो सोचा अफवाह होगी फिर किसी मित्र ने फोन करके पूछा तो सोचा कोई सरकारी एजेंसी CMO को सील थोड़ी न कर सकती है । लगा AAP का कोई पब्लिक स्टंट होगा । पर दिल्ली के साथियों से फोन किया तो पता चला सच में CMO को सील कर दिया गया है । सीबीआई ने रेड डाली है । शायद भारतीय राजनीती का ये अनुपम उदाहरण होगा कि मुख्यमंत्री ऑफिस को सील कर दिया गया है और शायद अंतिम भी । पर ये जनता द्वारा चुनी हुई एक सरकार के कार्यक्षेत्र में सीधा हस्तक्षेप था, ऐसा शायद आपातकाल में भी नहीं हुआ था पर अब हुआ यानि कि अघोषित आपातकाल ।

जब CM केजरीवाल ने विरोध दर्ज कराया तो बोला गया कि ये केजरीवाल के खिलाफ नहीं है, उनके अधिकारी राजेन्द्र कुमार के खिलाफ है ।
साथ ही बताया गया कि ये कार्यवाही 2007 के एक केस को लेकर है जिसमें राजेन्द्र कुमार ने एक कंपनी को शिक्षा, IT और VAT विभाग में रहते हुये अनुचित फायदा पहुँचाया था ।
तो क्या सीबीआई को केजरीवाल के ऑफिस में रेड डालनी चाहिये थी कि उन विभागों में जहाँ पुराना रिकॉर्ड रहता है । वैसे भी CM ऑफिस में कोई फ़ाइल 15 दिन से ज्यादा नहीं ठहरती है । सीबीआई को रेड डालनी थी आईटी, वैट और शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड रूम में, उस समय के मंत्रियों के घर पर और उस कंपनी पर जिसको फायदा पहुँचाने का आरोप है ।

इस पुरे मामले पर जब  पूर्व CBI अधिकारी NK सिंह से राय माँगी गयी तो उनहोंने कहा " किसी भी अधिकारी पर कार्यवाही करने से पहले उसके सीनियर को भरोसे में लेने का CBI में नियम है !"

Ex jt. director CBI ने भी ट्वीट किया कि "This has been a norm in CBI that whenever a secretary or similar ranked officer is raided, CM is taken into confidence"



हालाँकि केजरीवाल ने कारवाई करने के तरीके पर चाहे जितने सवाल उठाये हो पर कारवाई को बीच में किसी भी तरह से बाधित नहीं किया । केजरीवाल ने इस बीच शाम को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें सीबीआई की दलीलों को झूठा करार देते हुये उन्होंने केंद्र सरकार पर निम्न आरोप लगाये -

-ये कह रहे हैं कि मेरे शब्द खराब हैं. मैं तो हिसार के पास गांव से हूं. मेरे शब्द खराब हो सकते हैं. आपके तो कर्म फूटे हैं.
-सीबीआई और टूटपुंजियों से दूसरे लोग डर जाएंगे, अरविंद केजरीवाल नहीं डरने वाला.
-मैं मोदीजी से कहना चाहता हूं कि जब तक सांस है मैं देश की सेवा करूंगा.
-अगर ये राजेंद्र कुमार के दफ्तर ठेकेदारी में भ्रष्टाचार उजागर करने आए तो वो जानते होंगे कि ठेके एक आदमी नहीं देता.
-ठेके की फाइल पर मंत्री भी साइन करता है तो उनके ठिकानों पर क्यों नहीं रेड मारी.
-जो भी शीला सरकार में मंत्री थे उनके घर और दफ्तर पर रेड क्यों नहीं मारी गई?
-अगर 2007-14 तक के मामलों की जांच कर रहे थे तो मुख्यमंत्री के दफ्तर में कौन सी फाइल ढूंढ़ रहे थे.
-वैट डिपार्टमेंट पर भी रेड नहीं मारी. जिन ठेकों की बात कर रहे हैं, उनपर छापे नहीं मारे गए. मुख्यमंत्री के दफ्तर में रेड मारी गई.
-मेरे प्रिंसिपल सेक्रेटरी के कुछ पुराने मामलों के बारे में कहा जा रहा है कि शिक्षा सचिव रहने के दौरान अगर गलत ठेके दिए तो आज सीबीआई को शिक्षा विभाग के दफ्तर पर भी छापे मारने चाहिए.

सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली पर आरोप लगाया कि  'सीबीआई आज मेरे दफ्तर में कौन सी फाइलें ढूंढ रही है, मैं आपको बताता हूं. ये कोई भ्रष्टाचार की फाइल नहीं ढूंढ़ रहे. ये जो फाइलें ढूंढ़ रहे हैं वो DDCA की हैं. वो अरुण जेटली को बचाना चाहते हैं. जेटली कई वर्षों से DDCA के चेयरमैन हैं. हमने DDCA में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच बिठाई. अभी मेरे पास जांच की रिपोर्ट आई है. ये वही ढूंढ़ रहे हैं.'

अब आगे क्या होगा वो तो बाद में पता चलेगा पर हाल फिलहाल केजरीवाल ने राजनैतिक बढ़त ले ली है। इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर कभी चटखारे लिये गये जिनमें कुछ चुनिंदा यहाँ हैं -

Prajapati Mithun लिखते हैं -

पिछले PM को इन्होंने गूंगा ,बहरा, रोबोट,मौनमोहन पता नहीं क्या क्या उपाधियों से नवाज़ा था।
केजरीवाल को ही AK47 ,भगोड़ा,बीमारू,मफलर मैन और भी नामों से नवाजा।
आज सिर्फ कायर और मनोरोगी सिर्फ दो ही शब्द से असहिष्णु हो गए..?

Aam Aadmi लिखते हैं -

भाई केजरीवाल, आज तूने जो मोदी को जवाब दिया है उससे इतना तो पक्का हो गया कि असली आम आदमी का नेता तू ही है ।

Ramesh Raliya लिखते हैं -

Despite Indian constitution, सीबीआई स्वंतत्र संस्था हैं, पिछली बार (before 2014) कांग्रेस के नेताओ से सुना था, अभी बीजेपी के नेताओ से पता चल रहा है।

ख़बरबाज़ी (@khabarbaazi) लिखते हैं -

सच ये भी है जितनी तत्परता पुलिस और CBI 'आप' से जुड़े लोगो को लेकर दिखाती है, अगर सभी मामलों में दिखाए,तो भारत अपराधशू्न्य देश हो जाए।

Shirish Kunder (@ShirishKunder) लिखते हैं -

At 0:57, Venkaiah Naidu can't resist laughing at his own joke when he says, "We don't monitor CBI"

SANJAY HEGDE (@sanjayuvacha)  लिखते हैं -

If the UPA made the CBI a caged parrot, NDA has made it a pet Rottweiler to be selectively unleashed.

बकौल पत्रकार Ajit Anjum (@ajitanjum) -

CBI doesn’t take orders from govt: BJP - Dec2015 Govt using CBI as a 'private militia': BJP - Nov 2013 वक्त बदला,राय बदली



Thursday 10 December 2015

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' - जनता का पागल कवि

न तो मैं सबल हूं,
न तो मैं निर्बल हूं,
मैं कवि हूं।
मैं ही अकबर हूं,
मैं ही बीरबल हूं।

उपरोक्त पंक्तियों को चरितार्थ करने वाले जनकवि रमाशंकर यादव 'विद्रोही' का जन्म 3 दिसंबर 1957 को ऐरी फिरोजपुर ( जिला सुल्तानपुर) में रामनारायण यादव व श्रीमती करमा देवी के घर हुआ । जनता का ये प्रखर कवि ‘विद्रोही’ के नाम से विख्यात था ।
कुछ समय नोकरी करने के बाद 1980 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में हिन्दी से एम. ए. करने आ गए। 1983 के छात्र आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने के चलते कैंपस से निकल दिए गए। 1985 में उनपर मुक़दमा चला। तबसे उन्होंने आन्दोलन की राह से पीछे पलटकर नहीं देखा ।
विद्रोही जी छात्रों के हर न्यायपूर्ण आंदोलन में तख्ती उठाए, नारे लगाते, कविताएं सुनाते, सड़क पर आखिरी साँस तक साथ रहे । जे़ एन. यू. में रहते करीब 3 दशक तक विद्रोही जी दिल्ली की सडकों पर, बैरिकेडों और पुलिस घेराबन्दियों को तोड़ते हुये हर तरह के शोषण विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द की । दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों, चाहे उनके विरोधी विचारधारा के हो, के बीच उनकी कविताएँ ख़ासी लोकप्रिय रही हैं ।

वे कहते थे, "जेएनयू मेरी कर्मस्थली है। मैंने यहाँ के हॉस्टलों में, पहाड़ियों और जंगलों में अपने दिन गुज़ारे हैं।
"
इस क्रांतिकारी कवि का अंत भी क्रांतिकारी रहा, अपनी आखिरी साँस भी विद्रोही जी ने सरकार द्वारा नॉन नेट फैलोशिप बन्द करने के विरोध में आयोजित प्रदर्शन के दौरान ही ली ।




( Photo : JNU छात्रसंघ कार्यालय में अंतिम दर्शनार्थ हेतु जमा छात्र )
( अंतिम यात्रा की ओर )

बकौल गिरिराज वैद " वे बिना किसी आय के स्रोत के छात्रों के सहयोग से किसी तरह कैंपस के अंदर जीवन बसर करते रहे हैं। अगस्त 2010 में जेएनयू प्रशासन ने अभद्र और आपत्तिजनक भाषा के प्रयोग के आरोप में तीन वर्ष के लिए परिसर में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। जेएनयू के छात्र समूह ने प्रशासन के इस रवैए का पुरज़ोर विरोध किया। तीन दशकों से घर समझने वाले जेएनयू परिसर से बेदखली उनके लिए मर्मांतक पीड़ा से कम नहीं थी । कुछ लोगो कहते है की वो आधे पागल थे, हाँ जितना उनके बारे में सुना है, वो ऐसे ही थे, ऐसे पागल जिनके जाने की सुनते ही हजारो आँखे बरस पड़ी ।"


उनके बारे में समर अनार्य एक किस्सा बताते हैं -
"जनकवि विद्रोही को इस ठण्ड में सुबह 7 बजे बिना जूतों के जाते देख जेनयू की ही ईरानी-फिलिस्तीनी कामरेड Shadi Farrokhyani ने पूछा कि जूते क्या हुए ?
विद्रोही दा का जवाब था- उस दिन प्रदर्शन में फेंक के पुलिस को मार दिया।"



नितिन पमनानी ने विद्रोही के जीवन संघर्ष पर आधारित एक शॉर्टफिल्म I Am Your Poet (मैं तुम्हारा कवि हूँ )  हिंदी और भोजपुरी में बनाया है। मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का गोल्डन कौंच पुरस्कार जीता।

विद्रोही मानते थे कि क्रांतिकारी मरते नहीं, जैसे वो अपनी एक कविता में कहते हैं -
“मरने को चे ग्वेरा भी मर गए
और चंद्रशेखर भी
लेकिन वास्तव में कोई नहीं मरा है
सब जिंदा हैं
जब मैं जिंदा हूँ
इस अकाल में
मुझे क्या कम मारा गया है
इस कलिकाल में
अनेकों बार मुझे मारा गया है
अनेकों बार घोषित किया गया है
राष्ट्रीय अखबारों में पत्रिकाओं में
कथाओं में, कहानियों में
कि विद्रोही मर गया।
तो क्या मैं सचमुच मर गया!
नहीं मैं जिंदा हूँ
और गा रहा हूं…… "

अलविदा कामरेड "विद्रोही"
लाल सलाम

उनकी कुछ रचनायें...
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1- पत्थर के भगवान
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तुम्हारे मान लेने से
पत्थर भगवान हो जाता है,
लेकिन तुम्हारे मान लेने से
पत्थर पैसा नहीं हो जाता।
तुम्हारा भगवान पत्ते की गाय है,
जिससे तुम खेल तो सकते हो,
लेकिन दूध नहीं पा सकते।
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2- आसमान में धान
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मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले!
आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो
दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा।
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3-

मैं भी मरूंगा
और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे
लेकिन मैं चाहता हूं
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें
फिर भारत भाग्य विधाता मरें
फिर साधू के काका मरें
यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें
फिर मैं मरूं- आराम से
उधर चल कर वसंत ऋतु में
जब दानों में दूध और आमों में बौर आ जाता है
या फिर तब जब महुवा चूने लगता है
या फिर तब जब वनबेला फूलती है
नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके
और मित्र सब करें दिल्लगी
कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था
कि सारे बड़े-बड़े लोगों को मारकर तब मरा॥



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4-औरते
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'कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थी
ऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है
और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थीं
ऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ है
मैं कवि हूँ, कर्त्ता हूँ
क्या जल्दी है
मैं एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथ
औरतों की अदालत में तलब करूँगा
और बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूँगा
मैं उन दावों को भी मंसूख कर दूंगा
जो श्रीमानों ने औरतों और बच्चों के खिलाफ पेश किए हैं
मैं उन डिक्रियों को भी निरस्त कर दूंगा
जिन्हें लेकर फ़ौजें और तुलबा चलते हैं
मैं उन वसीयतों को खारिज कर दूंगा
जो दुर्बलों ने भुजबलों के नाम की होंगी.
मैं उन औरतों को
जो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैं
फिर से ज़िंदा करूँगा और उनके बयानात
दोबारा कलमबंद करूँगा
कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?
कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया?
कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई?
क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ
जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में
ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं
और जब बाहर निकली तो वह नहीं उसकी लाश निकली
जो खुले में पसर गयी है माँ मेदिनी की तरह
औरत की लाश धरती माता की तरह होती है
जो खुले में फैल जाती है थानों से लेकर अदालतों तक
मैं देख रहा हूँ कि जुल्म के सारे सबूतों को मिटाया जा रहा है
चंदन चर्चित मस्तक को उठाए हुए पुरोहित और तमगों से लैस
सीना फुलाए हुए सिपाही महाराज की जय बोल रहे हैं.
वे महाराज जो मर चुके हैं
महारानियाँ जो अपने सती होने का इंतजाम कर रही हैं
और जब महारानियाँ नहीं रहेंगी तो नौकरानियाँ क्या करेंगी?
इसलिए वे भी तैयारियाँ कर रही हैं.
मुझे महारानियों से ज़्यादा चिंता नौकरानियों की होती है
जिनके पति ज़िंदा हैं और रो रहे हैं
कितना ख़राब लगता है एक औरत को अपने रोते हुए पति को छोड़कर मरना
जबकि मर्दों को रोती हुई स्त्री को मारना भी बुरा नहीं लगता
औरतें रोती जाती हैं, मरद मारते जाते हैं
औरतें रोती हैं, मरद और मारते हैं
औरतें ख़ूब ज़ोर से रोती हैं
मरद इतनी जोर से मारते हैं कि वे मर जाती हैं
इतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,
मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी
जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी
और यह मैं नहीं होने दूँगा ।।
.
5 - दुनिया
.

जब भी किसी
गरीब आदमी का अपमान करती है
ये तुम्हारी दुनिया,
तो मेरा जी करता है
कि मैं इस दुनिया को
उठाकर पटक दूं।’- रमाशंकर यादव विद्रोही
.
6 - हक़
.
मेरा सर फोड़ दो ,
मेरी कमर तोड़ दो,
पर ये न कहो
कि अपना हक़ छोड़ दो
.
7 - कविता और लाठी
.
तुम मुझसे
हाले-दिल न पूछो ऐ दोस्त!
तुम मुझसे सीधे-सीधे तबियत की बात कहो।
और तबियत तो इस समय ये कह रही है कि
मौत के मुंह में लाठी ढकेल दूं,
या चींटी के मुह में आंटा गेर दूं।
और आप- आपका मुंह,
क्या चाहता है आली जनाब!
जाहिर है कि आप भूखे नहीं हैं,
आपको लाठी ही चाहिए,
तो क्या
आप मेरी कविता को सोंटा समझते है?
मेरी कविता वस्तुतः
लाठी ही है,
इसे लो और भांजो!
मगर ठहरो!
ये वो लाठी नहीं है जो
हर तरफ भंज जाती है,
ये सिर्फ उस तरफ भंजती है
जिधर मैं इसे प्रेरित करता हूं।
मसलन तुम इसे बड़ों के खिलाफ भांजोगे,
भंज जाएगी।
छोटों के खिलाफ भांजोगे,
न,
नहीं भंजेगी।
तुम इसे भगवान के खिलाफ भांजोगे,
भंज जाएगी।
लेकिन तुम इसे इंसान के खिलाफ भांजोगे,
न,
नहीं भंजेगी ।
कविता और लाठी में यही अंतर है।
.
8 - 'धरम'
.
मेरे गांव में लोहा लगते ही
टनटना उठता है सदियों पुराने पीतल का घंट,
चुप हो जाते हैं जातों के गीत,
खामोश हो जाती हैं आंगन बुहारती चूडि़यां,
अभी नहीं बना होता है धान, चावल,
हाथों से फिसल जाते हैं मूसल
और बेटे से छिपाया घी,
उधार का गुड़,
मेहमानों का अरवा,
चढ़ जाता है शंकर जी के लिंग पर।
एक शंख बजता है और
औढरदानी का बूढ़ा गण
एक डिबिया सिंदूर में
बना देता है
विधवाओं से लेकर कुंवारियों तक को सुहागन।
नहीं खत्म होता लुटिया भर गंगाजल,
बेबाक हो जाते हैं फटे हुए आंचल,
और कई गांठों में कसी हुई चवन्नियां।
मैं उनकी बात नहीं करता जो
पीपलों पर घडि़याल बजाते हैं
या बन जाते हैं नींव का पत्थर,
जिनकी हथेलियों पर टिका हुआ है
सदियों से ये लिंग,
ऐसे लिंग थापकों की माएं
खीर खाके बच्चे जनती हैं
और खड़ी कर देती है नरपुंगवों की पूरी ज़मात
मर्यादा पुरुषोत्तमों के वंशज
उजाड़ कर फेंक देते हैं शंबूकों का गांव
और जब नहीं चलता इससे भी काम
तो धर्म के मुताबिक
काट लेते हैं एकलव्यों का अंगूठा
और बना देते हैं उनके ही खिलाफ
तमाम झूठी दस्तखतें।
धर्म आखिर धर्म होता है
जो सूअरों को भगवान बना देता है,
चढ़ा देता है नागों के फन पर
गायों का थन,
धर्म की आज्ञा है कि लोग दबा रखें नाक
और महसूस करें कि भगवान गंदे में भी
गमकता है।
जिसने भी किया है संदेह
लग जाता है उसके पीछे जयंत वाला बाण,
और एक समझौते के तहत
हर अदालत बंद कर लेती है दरवाजा।
अदालतों के फैसले आदमी नहीं
पुरानी पोथियां करती हैं,
जिनमें दर्ज है पहले से ही
लंबे कुर्ते और छोटी-छोटी कमीजों
की दंड व्यवस्था।
तमाम छोटी-छोटी
थैलियों को उलटकर,
मेरे गांव में हर नवरात को
होता है महायज्ञ,
सुलग उठते हैं गोरु के गोबर से
निकाले दानों के साथ
तमाम हाथ,
नीम पर टांग दिया जाता है
लाल हिंडोल।
लेकिन भगवती को तो पसंद होती है
खाली तसलों की खनक,
बुझे हुए चूल्हे में ओढ़कर
फूटा हुआ तवा
मजे से सो रहती है,
खाली पतीलियों में डाल कर पांव
आंगन में सिसकती रहती हैं
टूटी चारपाइयां,
चैरे पे फूल आती हैं
लाल-लाल सोहारियां,
माया की माया,
दिखा देती है भरवाकर
बिना डोर के छलनी में पानी।
जिन्हें लाल सोहारियां नसीब हों
वे देवता होते हैं
और देवियां उनके घरों में पानी भरती हैं।
लग्न की रातों में
कुंआरियों के कंठ पर
चढ़ जाता है एक लाल पांव वाला
स्वर्णिम खड़ाऊं,
और एक मरा हुआ राजकुमार
बन जाता है सारे देश का दामाद
जिसको कानून के मुताबिक
दे दिया जाता है सीताओं की खरीद-फरोख़्त
का लाइसेंस।
सीताएं सफेद दाढि़यों में बांध दी जाती हैं
और धरम की किताबों में
घासें गर्भवती हो जाती हैं।
धरम देश से बड़ा है।
उससे भी बड़ा है धरम का निर्माता
जिसके कमजोर बाजुओं की रक्षा में
तराशकर गिरा देते हैं
पुरानी पोथियों में लिखे हुए हथियार
तमाम चट्टान तोड़ती छोटी-छोटी बाहें,
क्योंकि बाम्हन का बेटा
बूढ़े चमार के बलिदान पर जीता है।
भूसुरों के गांव में सारे बाशिंदे
किराएदार होते हैं
ऊसरों की तोड़ती आत्माएं
नरक में ढकेल दी जाती हैं
टूटती जमीनें गदरा कर दक्षिणा बन जाती हैं,
क्योंकि
जिनकी माताओं ने कभी पिसुआ ही नहीं पिया
उनके नाम भूपत, महीपत, श्रीपत नहीं हो सकते,
उनके नाम
सिर्फ बीपत हो सकते हैं।
धरम के मुताबिक उनको मिल सकता है
वैतरणी का रिजर्वेशन,
बशर्ते कि संकल्प दें अपनी बूढ़ी गाय
और खोज लाएं सवा रुपया कजऱ्,
ताकि गाय को घोड़ी बनाया जा सके।
किसान की गाय
पुरोहित की घोड़ी होती है।
और सबेरे ही सबेरे
जब ग्वालिनों के माल पर
बोलियां लगती हैं,
तमाम काले-काले पत्थर
दूध की बाल्टियों में छपकोरियां मारते हैं,
और तब तक रात को ही भींगी
जांघिए की उमस से
आंखें को तरोताजा करते हुए चरवाहे
खोल देते हैं ढोरों की मुद्धियां।
एक बाणी गाय का एक लोंदा गोबर
गांव को हल्दीघाटी बना देता है,
जिस पर टूट जाती हैं जाने
कितनी टोकरियां,
कच्ची रह जाती हैं ढेर सारी रोटियां,
जाने कब से चला आ रहा है
रोज का ये नया महाभारत
असल में हर महाभारत एक
नए महाभारत की गुंजाइश पे रुकता है,
जहां पर अंधों की जगह अवैधों की
जय बोल दी जाती है।
फाड़कर फेंक दी जाती हैं उन सब की
अर्जियां
जो विधाता का मेड़ तोड़ते हैं।
सुनता हूं एक आदमी का कान फांदकर
निकला था,
जिसके एवज में इसके बाप ने इसको कुछ हथियार दिए थे,
ये आदमी जेल की कोठरी के साथ
तैर गया था दरिया,
घोड़ों की पंूछे झाड़ते-झाड़ते
तराशकर गिरा दिया था राजवंशों का गौरव।
धर्म की भीख, ईमान की गरदन होती है मेरे दोस्त!
जिसको काट कर पोख्ता किए गए थे
सिंहासनों के पाए,
सदियां बीत जाती हैं,
सिंहासन टूट जाते हैं,
लेकिन बाकी रह जाती है खून की शिनाख़्त,
गवाहियां बेमानी बन जाती हैं
और मेरा गांव सदियों की जोत से वंचित हो जाता है
क्योंकि कागजात बताते हैं कि
विवादित भूमि राम-जानकी की थी।
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9 - "हम गुलामी की अंतिम हदों तक लडेंगे"
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लेकिन इंसान की कुछ और बात् है
जो तुमको पता है, वो हमको पता है
यहाँ पर कहाँ बेपता बात् है
ये पुल हिल रहा है तो क्यों हिल रहा है
तुमको पता है हमको पता है सबको पता है कि क्यों हिल रहा है
मगर दोस्तों वो भी इंसान थे जिनकी छाती पर ये पुल जमाया गया
अब वही लापता है
न तुमको पता है न हमको पता है न किसीको पता है कि क्यों लापता हैं
तो इस ज़माने में जिनका जमाना है भाई
उन्हीके जमाने में रहते हैं हम
उन्ही की हैं साँसें उन्ही की हैं कहते ,
उन्ही के खातिर दिन रात बहते हैं हम
ये उन्ही का हुकुम है जो मैं कह रहा हूं
उनके सम्मान में मैं कलम तोड़ दूं
ये उन्हीं का हुकुम है मेरे लिये और सबके लिये
कि मैं हक छोड़ दूं
तो लोग हक छोड़ दें पर मैं क्यों छोड़ दूं
मैं तो हक की लड़ाई का हमवार हूं
मैं बताऊँ कि मेरी कमर तोड़ दो, मेरा सर फोड दो
पर ये न कहो कि हक छोड़ दो
तो आप से कह रहा हूं अपनी तरह
अपनी दिक्कत को सबसे जिरह कर रहा
मुझको लगता है कि मैं गुनहगार हूं
क्योंकि रहता हूं मैं कैदियों कि तरह
मुझको लगता है मेरा वतन जेल है
ये वतन छोड़ कर अब कहाँ जाऊँगा
अब कहाँ जाऊँगा जब वतन जेल है
जब सभी कैद हैं तब कहाँ जाऊँगा
मैं तो सब कैदियों से यही कह रहा
आओ उनके हुकुम की उदूली करें
पर सब पूछते हैं कि वो कौन हैं और कहाँ रहता है
मैं बताऊँ कि वो एक जल्लाद है
वो वही है जो कहता है हक छोड़ दो
तुम यहाँ से वहाँ तक कहीं देख लो
गाँव को देख लो शहर को देख लो
अपना घर देख लो अपने को देख लो
इस हक़ की लड़ाई में तुम किस तरफ हो
आपसे कह रहा हूं अपनी तरह
कि मैं तो सताए हुओं की तरफ हूं
और जो भी सताए हुओं की तरफ है
उसको समझता हूं कि अपनी तरफ है
पर उनकी तरफ इसकी उलटी तरफ है
उधर उनकी तरफ आप मत जाइए
जाइए पर अकेले में मत जाइए
ऐसे जायेंगे तो आप फंस जायेंगे
आइये अब हमारी तरफ आइये
आइये इस तरफ की सही राह है
और सही क्या है
हम कौन हैं क्या ये भी नहीं ज्ञात है
हम कमेरों कि भी क्या कोई जाति है
हम कमाने का खाने का परचार ले
अपना परचम लिये अपना मेला लिये
आखरी फैसले के लिये जायेंगे
अपनी महफिल लिये अपना डेरा लिये
उधर उस तरफ जालिमों की तरफ
उनसे कहने कि गर्दन झुकाओ, चलो
और गुनाहों को अपने कबूलो चलो
दोस्तों उस घड़ी के लिये अब चलो
और अभी से चलो उस खुशी के लिये
जिसकी खातिर लड़ाई ये छेडी गयी
जो शुरू से अभी तक चली आ रही
और चली जायेगी अन्त से अन्त तक
हम गुलामी की अंतिम हदों तक लडेंगे

Photo Courtesy : Tehelka

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...