Thursday 27 April 2017

UNO की असलीयत

सऊदी अरब के बारे में 2 बातें बताता हूँ आपको जो आपको सयुंक्त राष्ट्र संघ ( UNO ) के चाल चरित्र के बारे में बताती है :-

पहली - 2017 में UN वुमन राइट कमीशन का सदस्य बना

दूसरी - 2015 में सयुंक्त राष्ट्र मानवाधिकार पैनल का अध्यक्ष बना

अब उनके यहाँ की हक़ीक़त देखिये

पहली - खुद सऊदी अरब में पूरा शरीर ढकने, कार चलाने, पुरुष से अनुमति के बाद ट्रेवलिंग, पब्लिकली तैरने और एक्सरसाइज करने आदि की पाबंदियों के बीच अब देखेगा कि दुनिया की किसी महिला के साथ ज्यादती तो नहीं हो रही

दूसरी - जहाँ आज भी कैदियों को सरेआम फाँसी, शारीरिक उत्पीड़न, दूसरे देशों से आये कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार और महिलाओं पर बेहिसाब पाबन्दियों के बाद भी ये ध्यान रखेगा कि किसी के मानवाधिकार का हनन तो नही हो रहा !

अब आप ये सोच रहे होंगे कि आखिर ये सब हो कैसे गया ? वो भी UN में ! आखिर इसे वोट किसने किया ?  वोट करने वाले है यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के शागिर्द । जिनका सऊदी बहुत बड़ा बाजार है ।

अब भी आपको लगता है कि UN सबकुछ सही कर देगा तो आप गलतफहमी में हो, UN वही करता है जो अमेरिका चाहता है । हाँ आजकल चीन भी इसमें टांग अड़ाने लगा है पर दोनों देश अपने फायदे के लिये UN को इस्तेमाल करते है, दुनिया की भलाई के लिये नहीं ।

Thursday 20 April 2017

तमिल किसानों के साथ एक दिन

अभी कुछ दिन पहले 14 अप्रैल को जब जंतर मंतर पर तमिल किसानों से मिलने गये थे तब उन्होंने कुछ देर बात करने के बाद पूछा कहाँ से हो बेटा ?  मैं बोला राजस्थान से । तो अपने साथी किसान से बोले बड़ी दूर से मेहमान आये है, कुछ खाने - पीने को लाओ, हमारे बहुत मना करने के बाद भी एक केला पकड़ा दिया । मेरे पास उस समय बोलने को कुछ नहीं था, बस सोच रहा था कि हिंदुस्तान के सुदूर दक्षिण के किसान जो अकाल और भूख की वजह से दिल्ली में धरना दे रहे है लेकिन फिर हमसे खाने की पूछना नहीं भूले । मुझे तब लगा कि हम किसान भाषा, पहनावे से जरूर अलग है पर किसानीयत से एक है । कोई फर्क नहीं, बिल्कुल एक है । कमी है तो बस एकता की, एक हो जाये तो किस मोदी - मनमोहन - वाजपयी - गांधी की औकात जो हमसे हमारे हक़ छीन ले । पर वो लगातार हमारी जमीनें उधोगपतियों को दे रहे है, बैंकों में हमारे ही सेविंग्स से वो अपना बिज़नेस चला रहे है, और वही बैंक कुछ हजार रुपये समय पर न चुकाने की वजह से थाने में क्रिमिनल के साथ फोटो लगा देती है । और यही उधोगपति जब लोन के पैसे नहीं चुका पाते है तो हमारे सेविंग के बाकि बचे पैसे फिर से लोन दे देते है लेकिन यही बात जब एक किसान कहता है तो किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती । 
दिल्ली में चल रहे इस धरने को National South Indian Rivers Interlinking Farmer's Association के स्टेट प्रेजिडेंट पी. इयाक्कन्नु जी लीड कर रहे है ( जो नीचे फोटो में मेरे साथ है )।

ये बताते है कि दिल्ली की साउथ इंडियन कम्युनिटी अभी इनके खाने पीने का खर्चा उठा रही है । उनका शुक्रिया अदा करते हुऐ कहते है कि हमारे पास तो इतना पैसा भी नहीं था कि हफ्तेभर से ज्यादा यहाँ टिक पाते लेकिन इन लोगों की सहायता से पूरे तमिलनाडु के किसानों की लड़ाई लड़ना संभव हुआ है । आगे बताते है कि हम यहाँ हर जिले से करीब 2 या 3 किसान मौजूद है, शुरुआती जत्था करीब 90 किसानों का था जो बढ़ते घटते रहते है ।

आगे एक दूसरा किसान जो कि थोड़ी बहुत हिंदी जानता था, उससे पूछा कि अभी तक आपसे कोई मिलने आया है कि नहीं ? तो वो बोले "हमारे स्टेट मिनिस्टर राधाकृष्णन कुछ दिन पहले मिलने आये थे और धमकी देकर गए है कि अगर जंतर मंतर से ये धरना नहीं उठाया तो पीट पीटकर खाली करवा देंगे । एक रुपया नहीं देंगे तुम्हें ।" धरना शुरू होने के कुछ 4 हफ्ते बाद PM ऑफिस से जवाब आता है कि PM साहेब ने आप लोगों को मिलने का समय दे दिया है, कल मीटिंग है और जब मिलने जाते है तो PM साहेब ऑस्ट्रेलियाई PM को डेल्ही मेट्रो के दर्शन करवाने निकल जाते, क्योंकि उनको लगता है कि किसानों से ज्यादा जरूरी मेट्रो दिखाना है ।


कुछ लोगों को या फिर सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा समर्थकों को लगता है कि ये किसान दिल्ली में सिर्फ नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिये सबकुछ कर रहे है, तो उन लोगों की जानकारी के लिये बता दूं कि तमिलनाडु के किसानों की माँगे क्या है :

1. 2 साल से पड़ रहे सूखे की वजह से हुई बर्बादी की भरपाई के लिए दूसरे राज्यो की तर्ज पर 40000 करोड़ का विशेष पैकेज जारी हो।

2. अटल सरकार की योजना के मुताबिक नदियों को जोड़ने का कार्य प्रारंभ हो ताकि ऐसा सूखा दोबारा ना आये।

3. कावेरी से मिलने वाले पानी पर तत्काल फैसला हो

4. फसल की MSP  बढ़ाई जाये

अब भी जो लोग कह रहे है कि इन्हें दिल्ली में नहीं, वरन चेन्नई में राज्य सरकार के खिलाफ धरना देना चाहिये तो ये उनकी नासमझी होगी ।

क्या कुछ नहीं किया इन लोगों ने अपने हक़ के लिये, अपने मरहूम साथियों की खोपड़ी गले मे डालकर मार्च किया, चूहे मुँह में दबाकर प्रदर्शन किया, जमीन को थाली मानकर कंकड़ मिट्टी सहित खाना खाया, अपने कपड़े तक उतार दिये फिर भी इस लोकतंत्र के किसी भी स्तम्भ पर कोई असर पड़ा हो तो बताइये ?
न नेता ध्यान दे रहे, न अफसर दे रहे, न स्वतः संज्ञान लेने वाली कोर्ट को कुछ दिख रहा है और न ही देशभक्ति के नाम पर बेवकूफ बनाती मीडिया ध्यान दे रही । इन सबके इस निकम्मेपन का एक ही ईलाज है, पाँचवाँ स्तंभ, यानी हम और आप मतलब जनता । इनको रास्ते पर लाना है तो हमें जागरूक और जिम्मेदार बनना होगा । नहीं बने तो फिर हालत इससे भी बदतर होने वाली है, नोट कर लीजिये आज ही


Thursday 6 April 2017

अलवर हत्याकांड के बाद किसानों के नाम पत्र

नमस्कार किसान भाईयों,

मैं जितेन्द्र पूनिया, गाँव किशनपुरा, तहसील फतेहपुर शेखावाटी, जिला सीकर, राजस्थान से हूँ । 15 लोगों के साझा परिवार में रहता हूँ और परिवार का पैतृक व्यवसाय खेती बाड़ी के साथ साथ 2 गाय, 2 भैंस ओर 4 बकरी से पशुपालन भी करते है । मेरे से पहले वाली 2 पीढ़ी में सब घरवाले सरकारी नौकरी करते है और अब वाली में भी । पिताजी शिक्षा विभाग में जिला अधिकारी है, कुल मिलाकर पैसे भी ठीक ठाक है पर आज तक हमने खेत खाली नहीं छोड़ा, हर बार खेती करते है, जिसमें नौकरी से छुट्टियां ले लेकर सब घरवाले हाथ बंटाने आते है, फिर चाहे वो कितना भी बड़ा अधिकारी हो या पैसेवाला । हालाँकि खेती में होना जाना कुछ नहीं है, खाने के लिये गेहूँ तक हर साल खरीदने पड़ते है पर किसान है तो खेती करना हमारा कर्म भी है और जिम्मेदारी भी ।

आज ये पत्र आपको इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि जब कोई नहीं बोल रहा है तो मेरा बोलना  बेहद ही जरूरी हो जाता है । आप अब किसान से हिंदू या मुस्लिम हो गये है । बड़े बुजुर्गों की कही बातें मुझे आज फिलोसॉफी की किताब की तरह लगने लगी है । वो कहते थे कि बेटा, हम किसान है । ये धर्म, जात- पात  सब ब्राह्मण और मुल्लों का बनाया हुआ है । ये हमारे लिये नहीं है । हमारे लिये हमारे खेत और पशु है । ये है तो हम है, ये नहीं है तो कुछ नहीं । धर्म या तो इस दुनिया मे होता नहीं और अगर है तो वो एक ही है, इंसानियत । अगर इंसान को इंसान समझते हो, तो तुम इंसान हो नहीं तो तुम में और इन पशुओं में कोई फ़र्क़ नहीं है । कर्म के बजाय अगर धर्म को खुद का मालिक समझोगे तो जैसे मालिक पशुओं को किधर भी हांक देता है वैसे ही धर्म भी आपको किधर भी हांक देगा । अगर किसी काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति की वजह से हम गलत काम करने से डरते है तब तक तो उस शक्ति को मानना ठीक है पर अगर हम इंसान को इंसान समझना भूल जायें तो उस काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति का खत्म हो जाना बेहतर है । हमें यदि किसी शक्ति को पूजना है तो प्रकृति ( सूर्य, जल, हवा, जमीन और आकाश ) को पूजें, जो हमें पालती है ।

आज ये बुजुर्गों की कही बातें क्यों बता रहा हूँ उसका कारण भी लगे हाथ आपसे साझा कर ही लेता हूँ । अलवर के बहरोड़ में एक किसान जो दूध के धंधे के लिये मेले से कुछ गायें खरीद कर ले जा रहा था जिसकी धर्म के नाम पर सरेआम हत्या कर दी गयी । और कहीं से कोई भी आवाज नहीं आयी । जो कुछ आई भी वो हत्यारों के पक्ष में थी । लेकिन जब कोई किसान ही इसपर नहीं बोला तो फिर बोलने की जरूरत नहीं रह जाती क्योंकि कोई भी लड़ाई अपने दम पर ही लड़ी जाती है ।

मैं एक किसान होने के नाते तो इस घटना का विरोध करता ही हूँ पर साथ ही देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते शर्म भी महसूस करता हूँ कि हमारे मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी संसद में सरेआम झूठ बोलते है कि ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं । अब बताओ आप क्या करोगे ? कुछ नहीं, बस तमाशा देखिये । रही बात उस किसान या डेयरी चलाने वाले की, तो उसको तो एक दिन मरना ही था, मुस्लिम जो था । ये तो अच्छा हुआ कि जिस गाय की आजतक सेवा की, कम से कम उसके नाम पर तो मरा, वरना कल को फालतू में बैंक के कर्जे से मरता तो कोई पूछता भी नहीं, खैर उसके घरवालों को दुःख सहने की हिम्मत मिले ।

साथी पहलू खाँ के मरने से ज्यादा बड़ा सवाल ये है कि हम आज किधर जा रहे है ?  हम हमारी जड़ों से कितने दूर हो गये है ?  क्या अब भी हम हमारी जड़ों तक लौट सकते है ?  हाँ आज भी हम हमारी जड़ों तक लौट सकते है । अगर कुछ मूलभूत चीजें समझ लें तो । वो चीजें समझने के लिये कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है, बस एक बार बड़े बुजुर्गों की बातों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है और इस ब्राह्मणवाद ओर मुल्लावाद से बाहर आकर इनका पुरजोर विरोध करने की जरूरत है । गाय एक ऐसा पशु है जो हम किसानों को धर्म से जोड़ता है, इसलिये इसी पर बात करते है ।

आमतौर पर अगर हमारे घर मे कोई पशु उपयोगी नहीं रहता तो उसे दूसरे किसान या कसाई को बेच दिया जाता है, हालाँकि जिसको इतने दिन पाला, उसे बेचना आसान नहीं होता फिर भी यदि बेचेंगे नहीं तो वो हमें आर्थिक रूप से और अधिक कमजोर कर देता है इसलिये बेचना ही आखिरी उपाय है । सिर्फ वही पशु बेचा जाता है जिसका आउटपुट जीरो होता है जैसे बकरा, भैंसा, सांड क्योंकि इस वैज्ञानिक युग मे हल जोतने में ट्रेक्टर के आने से भैंसा और सांड किसी भी काम के नहीं रहे है इसलिये बकरों के साथ इन्हें भी बेच दिया जाने लगा है । इसी तरह अनुपयोगी जानवरों में दूध न देने वाली बकरी, गाय और भैंस भी आती है । बकरी ओर भैंस तो कसाई को बेच देते है पर आजकल गायों को काटने पर देश मे पाबंदी है इसलिये कसाई इन्हें खरीदते नहीं है और किसान बिना दूध देने वाली गायों को पालने में असमर्थ होने की वजह से खुले में छोड़ देता है जो कि आवारा पशुओं के रूप में शहरो में प्लास्टिक चबाती घूमती है या फिर झुण्ड में एक ही रात में कई महीनों की मेहनत से उगाई फसल को कुछ मिनटों में उजाड़ देती है । आज इन गायों की इस हालत के लिये सरकार और गायों के तथाकथित ठेकेदार जिम्मेदार है जो न तो इनको कटने देते है ना ही खुद पालते है । अगर किसी को गाय में ज्यादा ही आस्था है तो अपने घर पर रखे । आपकी इस आस्था का हल्ला किसान क्यों ढोये ? आज ज्यादातर गायों के हक़ की आवाज उठाने वालों को देखें तो इनमें वो ब्राह्मण बनिये ही सबसे अधिक मिलेंगे जिनकी कई पीढ़ियों तक ने गाय नहीं पाली हो ।

अंत मे सभी से एक ही बात कहूँगा कि गाय की वजह से किसी की भावनाएं आहत हो रही है तो गायों को न मारे और न ही खायें पर साथ ही एक निवेदन उन आहत भावनाओं वालों से भी है कि इन गायों की सार संभाल करें और हमारे खेत और सड़कों से दूर रखें । या तो घर के पास एक एक्स्ट्रा प्लॉट खरीद लें या फिर सब मिलकर गौशाला में रखें । फिर किसी की भावना आहत नहीं होगी ।
अगर इतना नहीं कर सकते तो फिर ये गौभक्ति दिखावा है और गरीब पशुपालकों और किसानों पर अत्याचार और शोषण का बहाना है, जो हम कतई नहीं सहेंगे ।

धन्यवाद

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...