Wednesday 6 December 2017

6 December

आज 6 दिसंबर है, बहुत से लोग है जो आज शौर्य दिवस मनाते है और बहुत से लोग शोक दिवस, दोनों की अपनी अपनी वजहें है, पर मुद्दा कॉमन है बाबरी मस्जिद, इसलिये दोनों गुट एक दूसरे के विरोध में है, खूब लिखते है, ये जानते हुए भी कि जो बीत चुका वो बीत चुका, और जो नहीं होगा वो नहीं होगा । उसे भूलकर आगे बढ़ने में ही सबकी भलाई है, पर लोगों के सर पर एक सनक सवार है, धर्म की सनक । ये ऐसी सनक है जो बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं देती, बाबरी - गोधरा तो बस नमूने भर है, आये रोज इसके हत्थे चढ़ते लोगों की तो गिनती ही नहीं है ।

उस तरह के तमाम लोगों की तरह मैं भी दोनों दिवस मनाता हूँ, मेरे लिये भी आज का दिन शौर्य या शोक दिवस है, पर मेरी वजह अलग है, मैं शोक दिवस मनाता हूँ, क्योंकि आज के दिन भारतीय संविधान के शिल्पकार, बराबरी और जाति उन्मूलन के अगुआ, महान विद्वान बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर जी आज ही के दिन हमें छोड़कर इस दुनिया से चले गए थे, इसलिये मेरे लिये शोक दिवस है ।
मैं शौर्य दिवस मनाता हूँ क्योंकि आज ही के दिन अपने शौर्य से दुश्मनों को पराजित करने वाले और जीवित परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले भारत के एकमात्र सपूत कर्नल होशियार सिंह ने भी आज ही के दिन इस दुनिया को विदा कहा था ।

इसलिये दोनों सपूतों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और बाबरी वालों के लिये सद्बुद्धि की कामना करता हूँ
जय भीम !
जय हिंद !

Sunday 26 November 2017

AAP का 5वां जन्मदिन #5YearsOfAAPRevolution

आज से 5 साल पहले आज 26 November के दिन आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ था, चूँकि जन्म के दिन देश का संविधान लागू हुआ था, इसलिये उसी संविधान की हमने घुट्टी ( घोषणा पत्र ) दी, और उसी की पहली लाइन " हम भारत के लोग ... " से बच्चे का नामकरण किया, " #AamAadmiParty "
बच्चे पालन पोषण और मजबूती के लिये " स्वराज " की डोज़ दी गयी, देशभर के लोगों ने बच्चे का ख्याल रखा और अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया, लुढ़कते लुढ़कते सालभर में ये बच्चा चलना सीखा, फिर दौड़ना शुरू किया, छोटे छोटे अड़ंगे लगाए गए पर सबके आशीर्वाद और प्यार से सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुये दौड़ रहा था कि 49 दिन बाद बीजेपी और कांग्रेस ने मिलकर इसे गिरा दिया, हिम्मत करके फिर खड़ा हुआ और देशभर में घूमकर पंजाब होते हुये आगे बढ़कर 4 लोकसभा सीटों के साथ लोकसभा में पहुँचा । लोकसभा के बाद फिर संभला, इस बार अड़ंगा लगाने वालों की पहचान करना सीख गया था इसलिये अड़ंगा लगाने वालों को धूल चटाते हुये और इस बार दिल्ली के लोगों के प्यार और विश्वास ने 70 में 67 सीट देकर रामलीला मैदान होते हुये दिल्ली विधानसभा में पहुँचा । दिल्ली में सबको खुश रखा तो पंजाब के लोगों ने भी उसी प्यार के साथ बुलाया और वहाँ के अकाली दल के शोषण को खत्म कर 20 सीटों के साथ पंजाबियों ने बड़े सम्मान के साथ विधानसभा में मुख्य विपक्ष बनाकर बैठाया और गोआ में भी प्यार सम्मान मिला, जिसकी बदौलत हम जल्द ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करने वाले है ।

इस तरह आज 5 साल बाद इस छोटे से बच्चे ने उन बूढ़ों को बदलने पर मजबूर कर दिया तो स्वभाव से अकड़ू थे और हर किसी को मुँह नहीं लगाते थे । इस बच्चे की जिद की वजह से ही नेताओं की इज्जत कही जाने वाले पगड़ी लाल बत्ती को नीचे उतारना पड़ा । इन 5 सालों में इस बच्चे ने हर उस आदमी को बदल दिया जो ये कहता था कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता, आज सब उस बच्चे की ओर प्यार से देखकर यही कहते है, " अगर नियत अच्छी हो तो इस देश का भी बहुत कुछ हो सकता है ।"

हमें इस बच्चे को प्यार से पालना है, अगर गलती करे तो पहले इसे समझाना है, फिर भी न समझे तो सख्ती से पेश आना पड़ेगा । इसे हर हाल में सहेज कर रखना है, यही हमारा भविष्य है । लेकिन अगर कोई इस बच्चे की तरफ गन्दी नजर डालेगा तो उस आँख को ही खत्म कर देंगे

Thursday 28 September 2017

भगतसिंह की शिक्षा, व्यवस्था में फैले जुल्म और अन्याय के खिलाफ बागी तैयार करती है

कुछ साथी लगातार सवाल कर रहे है कि सरकार भगतसिंह को और भगतसिंह के लिखे हुये को पाठ्यक्रम में शामिल क्यों नहीं करती ? इसके पीछे वो तर्क देते है कि भगतसिंह की स्वीकार्यता गाँधी, पटेल, सुभाषचंद्र बोस, नेहरू, इंदिरा, जयप्रकाश नारायण के बराबर या ज्यादा ही रही है तो लोगों को पता लगने देना चाहिये कि भगतसिंह कौन थे और उनके विचार क्या थे ?


साथियों, आपके इस सुझाव से 100% सहमत हूँ । अकेला मैं ही नहीं देश की अधिकांश आबादी सहमत होगी । आज भगतसिंह का नाम तो बड़ा बन गया है पर उनके विचार बड़े नहीं बन पाए । इसका परिणाम ये हुआ कि भगतसिंह के विरोधी विचारों वाले लोग भी भगतसिंह के नाम पर ठेकेदारी करने लग गए ।
‌भगतसिंह का एक लेख था, " मैं नास्तिक क्यों ? " जिसमें उन्होंने बताया कि वो नास्तिक क्यों बने, कैसे बने, ईश्वरीय सत्ता को क्यो नकारा, ईश्वर के नाम पर कैसे लोगों को बहकाया जाता है, कैसे धर्म के नाम पर मानसिक विकार उत्पन्न किये जाते है, अध्यात्म, धर्म से होते हुये कैसे एक धंधा बन गया है आदि आदि । उपरोक्त सवालों के जवाब उन्होंने आज से करीब 90 साल पहले दे दिए थे पर आज भी धर्म की समस्या ज्यों की त्यों मुँह बाये खड़ी है या यूँ कहूँ कि उससे ज्यादा विकृत अवस्था में है । और आज जो भगतसिंह के नाम पर संगठन बने है वो उनकी इस शिक्षा को पढ़े बिना हर वो काम कर रहे है जो भगतसिंह ने करने को मना किया था, इसमें सबसे बड़ा नाम भगतसिंह क्रांति सेना का है जो धर्म की राजनीति का बढ़ चढ़कर समर्थन करती है ।

वहीं दूसरी ओर मान लो यदि आज स्कूली पाठ्यक्रम में "मैं नास्तिक क्यों ?" पढ़ाया जाए तो सबसे बड़ा सवाल खड़ा होगा अल सुबह होने वाली ईश्वरीय/सरस्वती वंदना पर । इस ब्राह्मणवादी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने वाली सबसे महत्वपूर्ण कड़ी को ही जब छात्र नकार देगा तो धार्मिक दुकानें हिलना लाजिमी है ।

भगतसिंह ने छात्रों और युवाओं को सम्बोधित करते हुए 2 पत्र लिखे, जिसमें पहला था 1928 में कीर्ति में छपा " विद्यार्थी और राजनीति ", जिसमें वो कहते है "जिन नौजवानों को कल देश की बागडोर हाथ में लेनी है, उन्हें आज अक्ल के अन्धे बनाने की कोशिश की जा रही है। इससे जो परिणाम निकलेगा वह हमें खुद ही समझ लेना चाहिए। यह हम मानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, उन्हें अपना पूरा ध्यान उस ओर लगा देना चाहिए लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं?यदि नहीं तो हम उस शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं, जो सिर्फ क्लर्की करने के लिए ही हासिल की जाये। ऐसी शिक्षा की जरूरत ही क्या है? कुछ ज्यादा चालाक आदमी यह कहते हैं- “काका तुम पोलिटिक्स के अनुसार पढ़ो और सोचो जरूर, लेकिन कोई व्यावहारिक हिस्सा न लो। तुम अधिक योग्य होकर देश के लिए फायदेमन्द साबित होगे।”
बात बड़ी सुन्दर लगती है, लेकिन हम इसे भी रद्द करते हैं,क्योंकि यह भी सिर्फ ऊपरी बात है। "


और दूसरा लेख ( सन्देश ) था 1929 में पंजाब छात्रसंघ में पढ़कर सुनाया गया, जिसकी अध्यक्षता सुभाष चन्द्र बोस ने की थी, वो लिखते है कि
" इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने इससे भी अधिक महत्वपूर्ण काम है। आनेवाले लाहौर अधिवेशन में कांग्रे़स देश की आज़ादी की लड़ाई के लिए जबरदस्त लड़ाई की घोषणा करने वाली है। राष्ट्रीय इतिहास के इन कठिन क्षणों में नौजवानों के कन्धों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ेगी। यह सच है कि स्वतन्त्रता के इस युद्ध में अग्रिम मोर्चों पर विद्यार्थियों ने मौत से टक्कर ली है। क्या परीक्षा की इस घड़ी में वे उसी प्रकार की दृढ़ता और आत्मविश्वास का परिचय देने से हिचकिचाएँगे? नौजवानों को क्रांति का यह सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्टरी कारखानों के क्षेत्रों में, गंदी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाएगा। पंजाब वैसे ही राजनीतिक तौर पर पिछड़ा हुआ माना जाता है। इसकी भी जिम्मेदारी युवा वर्ग पर ही है। आज वे देश के प्रति अपनी असीम श्रद्धा और शहीद यतीन्द्रनाथ दास के महान बलिदान से प्रेरणा लेकर यह सिद्ध कर दें कि स्वतन्त्रता के इस संघर्ष में वे दृढ़ता से टक्कर ले सकते हैं। "


अब वापस लौटते है भगतसिंह को पाठ्यक्रम में शामिल करने के मुद्दे पर, इसके लिये हमें सबसे पहले भगतसिंह के विद्यार्थियों के नाम लिखे उपरोक्त तीनों पत्र पढ़ने बहुत जरूरी है । इन पत्रों को पढ़ने के बाद एक चीज साफ साफ समझ आती है, वो है जुल्म न सहने और हक़ की लड़ाई का संदेश । अब आप सोचिये कि भगतसिंह को यदि पाठ्यक्रम में शामिल किया तो
- ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ खड़े होंगे
- छात्र अपने अधिकार जान जाएंगे
- राजनीतिक रूप से परिपक्व हो जायेंगे
- हुक्मरानों से सवाल करेंगे
और यदि ये सब हुआ तो जाहिर सी बात शोषक वर्ग की जड़ें हिल जायेगी और जल्द ही उनकी सत्ता के खिलाफ जनक्रांति हो जायेगी जिसमें सत्ता जनता के हाथों में होगी और शोषक या तो मार दिए जाएंगे या काल कोठरी में भेज दिए जाएंगे, उनकी पूँजी लोकहित में राष्ट्रीय संपदा घोषित कर दी जायेगी ।
तो अब आप ही बताइये कि कौन अपने जमे जमाये साम्राज्यों के खिलाफ किसी को खड़ा होने देना चाहेगा ?  इसलिये हमें ये उम्मीद करनी छोड़ देनी चाहिये कि सत्तासीन भगतसिंह की बातें आमजन तक पहुँचने देंगे, क्योंकि भगतसिंह की शिक्षा, व्यवस्था में फैले जुल्म और अन्याय के खिलाफ बागी तैयार करती है ।

Saturday 9 September 2017

फौज

बादशाह बोला शाह से

"तैयार करो एक ऐसी फौज,
जो ...
हम कहे तो चले,
हम कहे तो रुके,
हम कहें तो बोले,
हम कहे तो खामोश,
हम कहें तो मारे,
हम कहें तो बख्शे"

शाह ने फरमाया

"हुजूर,
गुस्ताखी के लिये मुआफी,
पर ..
एक दिक्कत है,
फौज में होंगे लोग,
और
लोग वैसा ही करे जैसा हम कहे
ये जरूरी नहीं,
क्योंकि...
वाे सोच सकते है,
इसलिये फौज में जानवर रखो, इंसान नहीं "

शाह ने आगे फरमाया

"जानवर भरने से अच्छा,
इन्ही लोगों में भर दो - भूख/गरीबी/डर और अंधविश्वास
और मिला दो थौङा सा जाति, धर्म का बारूद,
फिर शोषण का दु:ख और मौत का भय होगा,
फिर दिलों में बदले की आग और इन्सानियत की राख होगी"

( यह कविता आज पाश के जन्मदिन पर लिखी थी । इसमें पहले 2 पैरा मेरे लिखे है और अंतिम पैरा साथी सुमित ने लिखा है )

Wednesday 9 August 2017

RSS के गाँधी गान की पड़ताल

आज भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल बाद भी आरएसएस के स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी और अन्य संघ नेताओं को गाँधी जी की मजबूरी में तारीफ करनी पड़ रही है तो ये कहीं न कहीं उनका प्रताप ही है । गाँधी जी का राष्ट्रवाद आज के संघी राष्ट्रवाद की तरह दिखावटी या सतही राष्ट्रवाद नहीं था । तब देश के हर क्षेत्र, धर्म, जाति, वर्ग के लोगों ने गाँधीजी के साथ आज़ादी की लड़ाई में "करो या मरो" का प्रण लिया था, संघ के नेताओं की तरह मैदान छोड़कर भागे नहीं थे । 

ये इतिहास का वो काला सच है जिसको आज छिपाने का प्रयास किया जाता है । आरएसएस के दूसरे प्रमुख एम एस गोलवलकर ने 24 मार्च, 1936 को आरएसएस प्रचारक कृष्णराव वाडेकर को एक चिठ्ठी लिखी, जिसमें लिखा  "क्षणिक उत्साह और भावनात्मक उद्वेलन से पैदा हुये कार्यक्रमों से संघ को दूर रहना चाहिये । इस तरह से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिश 'सतही राष्ट्रवाद' है । अभी आप धूले जलगांव इलाके में संघ की शाखा स्थापित करने पर ध्यान दीजिये ।"
इनके प्रणेता सावरकर ने तो बाकायदा अंग्रेजों से वादा किया था कि वो कालापानी से छूटने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ किसी भी राजनीतिक क्रियाकलापों में शामिल नहीं होंगे । आगे चलकर बंगाल में सावरकर की हिन्दू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर न सिर्फ सरकार बनाई बल्कि उपमुख्यमंत्री समेत कई पद लेकर सत्ता सुख भी भोगा । तब मुख्यमंत्री पद पर मुस्लिम लीग की तरफ से फजल-उल-हक और उपमुख्यमंत्री पद पर हिंदू महासभा की तरफ से श्यामा प्रसाद मुखर्जी आसीन हुए ।
तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 6 जुलाई, 1942 को गवर्नर को आधिकारिक तौर पर लिखा था- "सवाल ये है कि बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन का सामना कैसे किया जाये? प्रशासन को इस तरह से चलाया जाये कि कांग्रेस की भरसक कोशिश के बाद भी ये आंदोलन बंगाल में अपनी जड़ें न जमा पाये, असफल हो जाये ... भारतीयों को ब्रिटिशर्स पर यकीन करना होगा ।"
भले ही लाख गालियाँ दे ले पर गाँधीजी ने जो किया उसी की वजह से तब आज़ादी मिली थी । और जो आज देशभक्ति की बड़ी बड़ी बातें कर रहे है न तब वो और उनके नेता अंग्रेजों की चमचागिरी या उनसे माफी मांग रहे थे । देश के 2 टुकड़े कराने में भी इसी संघ का पूरा-पूरा योगदान था, 2 नेशन थ्योरी सिर्फ मुस्लिम लीग की नहीं थी, आरएसएस और हिन्दू महासभा का भी वही स्टैंड था जो जिन्ना का था ।
सबसे पहले सावरकर ने 1923 में प्रकाशित अपनी किताब हिंदुत्व में हिंदू राष्ट्र का सिद्धांत रखा । जो बाद में 30 दिसंबर 1937 को हिन्दू महासभा के अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा " यहाँ 2 देश होने चाहिये,  हिंदुओ का हिंदुस्तान और मुस्लिमो का अलग"
इसी को आधार बनाकर मुस्लिम लीग के जिन्ना ने लाहौर अधिवेशन ( मार्च 1940, फजल-उल-हक की अध्यक्षता में ) में अलग पाकिस्तान की माँग की ।
जो आगे चलकर देश के टुकड़े कराने का कारण बनी और कई लाखों लोग मारे गए और बेघर हो गये । और आज वही पाकिस्तान की वजह से देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा रक्षा क्षेत्र में बर्बाद हो रहा है और कश्मीर में न जाने कितने जवान शहीद हो चुके है ।
बाद में इसी हिंदू महासभा के नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को गोली मारकर गाँधी जी की हत्या कर दी, उपरांत आरएसएस को आतंकी संगठन बताकर उन्हीं सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्रतिबंध लगा दिया जिन्हें ये आज अपना बनाने पर तुले है । क्या ये पटेल को गवारा होता ? आप सोचिये

Thursday 8 June 2017

देर आये, दुरुस्त आये

तमाम दिनों की तरह उस दिन भी किसानों को लेकर खबरें नहीं थी, और जो थी उनमें वो खलनायक थे, नायकत्व का भाव कहीं था ही नहीं । फिर 2 किसानों के मरने की अचानक ब्रेकिंग न्यूज़ दिखी ।
कुछ देर बार ज़िला कलेक्टर जी बोल रहे थे मरने वाले किसान नहीं, असामाजिक तत्व थे ।

फिर MP के गृहमंत्री का बयान आया कि वो पुलिस की गोली से नहीं मरे बल्कि कुछ असामाजिक तत्वों की गोलियों से मरे ।
इसके बाद एक घोषणा हुई कि मृतकों को पैसा और नौकरी दी जायेगी ।
लेकिन जिस खबर का इंतजार कर रहा था वो कहीं भी नहीं दिखी, इंतजार था उनकी माँगे माने जाने का पर वो इंतजार ही रहा । खैर ये कोई पहली बार नहीं हो रहा था, इसलिये आदतन ज्यादा दुःख नहीं हुआ । पर दुःख तब हुआ जब कुछ सरकार समर्थित लोगों, उनके सोशल मीडिया पर ये झूठी खबरें फैलाई गई कि जो आंदोलनरत है वो किसान नहीं, असामाजिक तत्व है, कांग्रेसी है । इसके पीछे तर्क दिया गया कि किसान जीन्स कबसे पहनने लगे । एकाएक कुछ दिन पहले जंतर मंतर पर बैठे तमिल किसानों के साथ हुई वो मुलाकात और उनके अहिंसक तरीके आँखों मे घूमने लगे । तब भी उन किसानों को मजाक बनाया गया था कि वो किसान नहीं बल्कि NGO वाले है, बिसलेरी का पानी पीते है, रेस्टॉरेंट से मंगाया खाना खाते है । और कम्युनिस्ट है । तब भी इनका उद्देश्य किसानों को किसान न बताकर असामाजिक तत्व बताना था और अब भी यही है । पर क्या मैं जान सकता हूँ कि वहाँ जंतर-मंतर पर मोदी जी "प्याऊ" लगाकर बैठे थे क्या ? या कौनसा आरएसएस ने "लंगर" लगाया था ? ऐसे ही अब MP के कौनसा नियम है कि किसान केवल फटी हुई धोती-कुर्ता ही पहनेगा ?
सरकार, किसान वही तो मांग रहे जिसका वादा आपने लोकसभा चुनाव में किया था । इसमें क्या जींस, क्या बिसलेरी बोतल, क्या होटल का खाना और क्या कांग्रेस, aap, वामपंथी ! बहाने मत बनाओ, वादा पूरा कीजिये

अब बात करते है कि किसानों को आंदोलन की जरूरत ही क्यों पड़ी आखिरकार ? यह जानने के लिये आपके सामने कुछ तथ्य रख रहा हूँ :-

- 1996 से लेकर अब तक केंद्र की सरकारों ने उद्योगपतियों और व्यापारियों का 6 लाख करोड़ का कर्ज माफ किया है जबकि किसानों का कुल कर्ज 78 हज़ार करोड़ है ।

- "1970 और 2015 के बीच गेहूं का खरीद मूल्य सिर्फ 19 गुना बढ़ा है, जबकि इसी अवधि में सरकारी कर्मचारी की आमदनी 120 से 150 गुना, कॉलेज टीचर्स की 150 से 170 गुना, और स्कूल टीचर्स की 280 से 320 गुना बढ़ गयी है. फिर कर्मचारियों को कुल 108 भत्ते मिलते हैं जबकि किसान को एक भी भत्ता नहीं मिलता है । मैच किसान के खिलाफ फिक्स है" - देवेंदर शर्मा

- किसान को अगर एक कुशल मजदूर मानकर उसकी दैनिक मजदूरी 622/- रुपये प्रतिदिन के हिसाब से सालभर की मजदूरी ही ₹ 2,27,030  रुपए बनती हैं, एक परिवार में 3 वयस्क किसान भी माने तो सालाना श्रम की कीमत ₹6,81,090 बैठती है । जबकि कमाई राष्ट्रीय आय के हिसाब से देखें तो मजदूर से भी 1/3 बैठती है ।

- 2012-13 के नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार, पंजाब के किसानों की औसत मासिक आमदनी 18,059 रुपये थी, इसके बाद हरियाणा के किसानों की मासिक आमदनी 14, 434 रुपये थी, इनमें सबसे कम बिहार के किसानों की मासिक आमदनी थी 3,588 रुपये । इस सर्वे के अनुसार, भारत के किसानों की औसत मासिक आमदनी होती है, मात्र 6,426 रुपये और दैनिक होती है 211 रुपये

- दूसरा आंकड़ा आर्थिक सर्वे 2016 का है, जिसका ज़िक्र देवेंद्र शर्मा ने अपने लेख में किया है. यह आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे की तरह पूरे देश का नहीं है, सिर्फ 17 राज्यों का है, जिसके अनुसार किसानों की मासिक आमदनी मात्र 1700 रुपये हैं । प्रति वर्ष 20,000 रुपये. दोनों में तुलना ठीक नहीं रहेगी, मगर अंदाज़ा मिलता है जो बहुत ख़तरनाक है. नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार, 2012-13 में किसान की मासिक आमदनी 6, 426 रुपये थी. 2016 के आर्थिक सर्वे के अनुसार, 1700 रुपये हो गई ।

- 2012 से 2017 के बीच किसानों की मासिक आमदनी में 4,726 रुपये की कमी आई है । तब किस आधार पर दावा किया जा रहा है कि पांच साल बाद आमदनी दुगनी हो जाएगी ।

- 2016 के हिसाब से 1700, अगर 2022 में 34,00 रुपये हो भी गई, तो क्या ये बहुत होगा ?

- देश के राष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कुछ समय पहले एक और ताज़ा आंकड़ा दिया जिसके अनुसार किसान की मासिक आय 1600 रुपये है ।
( उपरोक्त तथ्यों पर रविश कुमार की एक रिपोर्ट )
- फसलों की MSP तय करने मे और नीति आयोग में एक भी किसान नहीं । अधिकारी तय करते है । मौजाम्बिक के किसानो से 5 साल तक दाले MSP पर खरीदने का समझौता हुआ पर भारत मे MSP पर खरीद नहीं ।

- उद्योगपति फायदा उठाते है और किसान नुकसान जैसे चना, दाल की श्रेणी मे नहीं इसलिए स्टोक लिमिट भी नहीं । अडाणी ने चना दाल मे कमाया फिर अडानी के लिये मौजाम्बिक से मोदीजी और म्यामार से सुषमा जी अरहर दाल ले आई ।

- किसान आयोग सँवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है साथ ही बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट मे हल्पनामा भी दिया है कि स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू नहीं कर सकते ।

- सोयल हेल्थ कार्ड व बीमा व नीम कोटिंग यूरिया देकर 3 साल में 3 कदम उठाये पर इनसे किसानों के बजाय फायदे के नुकसान अधिक हुआ । जैसे बीमा कंपनियां ₹21500 हजार करोड़ रूपये लेकर उसका मात्र् 3.3% बाँटकर किसानों का हित करने का दावा कर रहे है ।

- FCI जल्दी ही खत्म अडाणी सैलो बनाकर स्टोक करेगा सरकारी अनुमति पँजाब मे काम शुरू

- बेयर, मोन्टेस्टो जैसे कंपनियों ने अच्छे बीज देने के नाम पर देशी बीज खत्म कर GM बीज लाये, जिसमें मिले अनाज में अंकुरण की क्षमता नहीं होने से बीजों के लिये पूर्णतया बाजार पर निर्भरता


- गेहूँ के भाव वैज्ञानिक देवेन्द्र शर्मा के अनुसार 1625 की जगह 7650 हो ।

- बाजार भाव देखने के लिये यहाँ click करें  http://news.raftaar.in/business/mandi-rates

- एक अलग पचड़ा और भी है जिसका अभी लोगों को ज्यादा पता नहीं है, नाम है World Trade Organization.
WTO की नीति गांव से शहर मजदूर भेजो जिससे बाजार को सस्ते मजदूर मिले और लागत में कमी आये जिससे पूंजीपतियों का मुनाफा और बढ़े । साथ ही खेती बँद होने से भारत अनाज आयात करे ।

- ऊपर दिए गए आँकड़ों से पता चलता है कि सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले राज्यों में सत्ता बीजेपी या NDA के पास है और सभी मे स्वामीनाथन आयोग की रिकमन्डेसन्स लागू करने का वादा करके सत्ता में आई है ।

- महँगाई दर तक पिछले तीन सालों में हर छह महिने में 3% बढ़ती रही मगर किसान की उपज पर एक भी पैसा नहीं बढ़ाया गया ! कुल मिलाकर आर्थिक मोर्चे पर किसान बेहद कमजोर हो गए ।

आंदोलन की नींव कहाँ से पड़ी ?

वर्तमान केंद्रसरकार ने लोकसभा चुनाव के वक्त हिन्दी वाले घोषणापत्र के पेज नंबर 26 पर किसानों से वादा किया था कि सरकार में आने के बाद ऐसे कदम उठाए जाएंगे कि जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े । यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लागत का 50 फीसदी लाभ हो ।

किसान आंदोलन शुरू कैसे  हुआ ?

आंदोलन की शुरुआत हुई महाराष्ट्र के अहमदनगर से, जहां महाराष्ट्र सरकार ने किसानों से कर्ज माफी का वादा किया, लेकिन वादा पूरा नहीं किया । लेकिन इन सब में आग में घी डाला UP सरकार की कर्ज माफी की घोषणा ने । छोटे-बड़े किसान संगठन, नेता इकट्ठा होकर 1 जून से किसान क्रांति मोर्चा के नाम से आंदोलन शुरू कर दिया गया जिसके अनुसार वो शहरों को सप्लाई होने वाली रोजमर्रा की चीजें बंद कर देंगे और इस बार खरीफ की फसल में केवल अपनी जरूरतभर की चीजें ही पैदा करेंगे । इस आंदोलन की खास बात यह रही कि इसका कोई चेहरा नहीं है, यह एक सामूहिक चेतना से बना आंदोलन है जो लगातार फैलता जा रहा है ।
आंदोलन में किसानों की प्रमुख मांगें है :-

1) कर्ज माफ किया जाए।
2) प्रोडक्शन कॉस्ट से 50% ज्यादा मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) मिले।
3) स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू हों।
4) बिना ब्याज के लोन मिले
6) माइक्रो इरीगेशन इक्विपमेंट्स के लिए फुल सब्सिडी मिले।
7)  60 साल और उससे ज्यादा उम्र के किसानों के लिए पेंशन स्कीम हो।
8) सरकारी डेयरी में दूध का रेट बढ़ाकर 50 रुपए/लीटर किया जाए ।

स्वामीनाथन आयोग क्या है ?

18 नवंबर, 2004 को प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन फॉर फॉर्मर्स का गठन किया गया, जिसने भूमि सुधार, किसानों की परेशानियां, सिंचाई, प्रोडक्टिविटी, क्रेडिट और इंश्योरेंस, फूड सिक्युरिटी, किसानों की अात्महत्या, प्रतिस्पर्धा, रोजगार, बायोरिसोर्स जैसे मुद्दों पर सुझाव दिए थे । स्वामीनाथन आयोग के प्रमुख सुझाव निम्न थे :-
- किसी फसल के प्रोडक्शन पर जितना खर्च आ रहा है, सरकार उससे डेढ़ गुना ज्यादा दाम दिलाए।
- सरप्लस और बेकार जमीनों को बांटा जाए।
- एग्रीकल्चर लैंड और जंगलों को नॉन-एग्रीकल्चर यूज के लिए कॉरपोरेट सेक्टर्स को देने पर रोक लगे।
- जंगलों में आदिवासियों और चरवाहों को जाने की इजाजत हो, साथ ही कॉमन रिसोर्स पर जाने की इजाजत भी मिले।
- नेशनल लैंड यूज एडवाइजरी सर्विस का गठन किया जाए, ताकि लैंड यूज का फैसला पर्यावरण-मौसम और मार्केटिंग फैक्टर्स को ध्यान में रखकर हो।
- एग्रीकल्चर लैंड की बिक्री को रेगुलेट करने के लिए मैकनिज्म बनाया जाए, जिसमें जमीन, प्रपोजल और खरीदार की कैटेगरी को ध्यान में रखा जाए।

अंत मे मुझे किसानों के मुद्दों पर मुखर राय रखने वाले हनुमान राम चौधरी की एक बात याद आती है, जिसमें उन्होंने कहा  "मँहगाई के विरोध किसान का भोलापन है, उत्पादक कहे कि मँहगाई न हो तो वो ईश्वर ही है ।"

जो लोग आज इस किसान आंदोलन का विरोध कर रहे है वो चाहते है कि इस देश के किसान खेतों में आँसू बहाते प्याज और बासी सूखी रोटी खाए और चुपचाप आने वाली मौत का खेत में इंतजार करे जबकि बच्चों को बॉर्डर पर मरने के लिये भेज दे । बाकी ये लोग मजे करे ।
इसलिये आवाज उठाओ अगर अपना अस्तित्व बचाना है तो

Monday 5 June 2017

हमामी नँगे

साहेब,
आप तो बहुत कमजोर निकले, सिर्फ एक चैनल के सवालों से घबरा गये ? एक चैनल भी पूरा कहाँ था, एक Ravish Kumar ही तो था । जनाब आपकी छाती नहीं, पेट 56 इंच का है इसलिये गिनती के कुछ सवालों से ही सांस फूलने लग गयी । मैं तो कहता हूँ आप भी रवीश के चैलेंज के जवाब में खुलेआम लालकारिये इंटरव्यू देने को, आखिर आपने काम किया है, तो डर कैसा ?
सामने आने की हिम्मत नहीं हो रही ?
होगी भी नहीं, जिस दिन एक इंटरव्यू रवीश को दे दिया न उस दिन जैसे आपकी कागजी जीडीपी नीचे आयी है न, वैसे ही आपका कार्यकाल नीचे न आ पड़े तो कहना !
वर्तमान परिदृश्य में आप अकेले नेता है जो बात करते है लोकतंत्र की और काम करते है तानाशाही का, मुझे आज तक ये नहीं समझ आया कि आप भाषणों में इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी के खिलाफ जिक्र करने के लिये इतनी बेशर्मी आखिर लाते कहाँ से है ? मुझे पता है आप और आपके चमचों पर मेरे इस पत्र का कोई असर नहीं पड़ने वाला फिर भी लिख रहा हूँ, क्योंकि लोकतंत्र में सरकार से सवाल करना लोगों हक़ है, ये चीज आपको जल्द से जल्द समझ लेनी चाहिये ।

तो इस बार सरकारी तोते का पिंजरा आखिरकार खुल ही गया,  NDTV को सज़ा मिली है सवाल करने की, अपनी ड्यूटी करने की, लोगों को सच बताने की । मीडिया का काम विपक्ष का होता है न कि सरकारी प्रवक्ता का पर इन दिनों इस देश में उल्टी गंगा बह रही है, बोले तो नमामि गंगे के एकदम उलट हमामी नँगे, काम करने वालों को परेशान तो चमचागिरी करने वालों को ईनाम दिया जा रहा है । भारतीय मीडिया लोकतंत्र के खम्भे से शराब का खम्भा बनने की और तेजी से अग्रसर है । NDTV ही एकमात्र ऐसा चैनल है जो न तो बाकियों की तरह सुबह सुबह भविष्य बताने वालों को बैठाता है, न ही नोट में झूठी चिप डालता है, न रोज फालतू में trp के लिये दाऊद या पाकिस्तान को तहस नहस करता है, न ही फालतू के बॉलीवुड के ऊप्स मोमेंट्स को खबर बनाता है । इसे ही पत्रकारिता कहते है, बाकि चैनल जो करते है उसे चमचागिरी कहते है ।

NDTV को पिछले कुछ समय मे किस तरह परेशान किया गया, उसकी बानगी देखिये जरा :

सबसे पहले कथित संवेदनशील कन्टेंट मामले में एक दिन के लिए बैन

दूसरा ED द्वारा FEMA के नियमों का उल्लंघन करने को लेकर 2030 करोड़ रुपए का नोटिस जारी करना

तीसरा ICICI बैंक का कथित तौर पर 48 करोड़ के कर्जे का मामला, अव्वल तो बैंक ने इस मामले में सरकार से कोई जाँच की माँग ही नहीं की थी फिर भी मोदीजी का तोता खुद ही इस मामले में अपनी चोंच अड़ा रहा है

साहेब, हमारा विरोध NDTV पर पड़े छापे को लेकर नहीं है, औऱ Raid कीजिये पर हर बार निशाना NDTV ही क्यों ?

जनाब, पूरा देश आपके पिट्ठू चैनल्स की हक़ीक़त जानता है, क्या इन सवालों का जवाब भी मिलेगा कभी, जो नीचे साझा कर रहा हूँ :


क्या आपने कभी जानने की कोशिश की कि अर्नब गोस्वामी जो नया चैनल लाये है उसमें कितना पैसा, किसका लगा है और कितना धन काला या गोरा है ?

बीजेपी के समर्थन से MP बने और रक्षा सौदों के बिचौलिये राजीव चन्द्रशेखर का रिपब्लिक में पैसा लगाने का क्या उद्देश्य है ?

क्या आपने रजत शर्मा को पद्मभूषण इसलिये नहीं दिया कि वो आपके संगठन से आते है और खुल के आपकी आलोचना करने वालों के खिलाफ जमकर अभियान चलाते है ।

1 करोड़ की रिश्वत लेने के स्टिंग में आने के बाद तिहाड़ जेल की हवा खा आये सुधीर चौधरी आपके झूठे कसीदे पढ़ता है, और सरेआम झूठी खबरों से आये दिन मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिये देश को गुमराह करता है, ये कारवाई से सिर्फ इसलिये बचा है क्योंकि आपके विरोधियों के खिलाफ झूठी खबरें प्लांट करवाता है ।

क्या ज़ी मीडिया के मालिक सुभाष चंद्रा को आपकी पार्टी की सहायता से राज्यसभा नहीं भेजा गया ? वो भी विपक्ष के वोट खारिज करवा कर ? इस कृपा की वजह बताइये

इसी तरह आपकी 24 ×7 हाजिरी बजाने वाले चैनल्स को आपने कई अरबों की ऐड नहीं दी ? क्या ये उनका अहसान चुकाने के अनैतिक तरीका नहीं है ?

धन्यवाद,

जवाब के इंतजार में,
आपका
एक नागरिक 

Monday 1 May 2017

राजा महेंद्र प्रताप

राजा महेंद्र प्रताप नाम तो नहीं सुना होगा !
कैसे सुनेंगे जब इतिहास में किसी ने इन्हें जगह ही नहीं दी तो । चलिये फ्रंटियर या सीमांत गांधी का नाम तो सुना ही होगा, वहीं अफगानी जिसने भारत को आज़ाद करवाने में सहयोग दिया, लेकिन राजा महेंद्र प्रताप का नाम कितने लोग जानते हैं, एक भी नहीं, इनके बारे जितना लिखूँ कम पड़ेगा जैसे इस इंटरनेशनल क्रांतिकारी का सही मायनों में मूल्यांकन किया जाए तो गांधी और बोस के बराबर का है, महेंद्र प्रताप वो व्यक्ति है जिसने देश के भावी पीएम को चुनावों में धूल चटा दी, ये वो क्रांतिकारी है जिसने 28 साल पहले वो काम कर दिया, जो नेताजी बोस ने 1943 में आकर किया। ये वो व्यक्ति है, जिसे गांधी की तरह ही नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया और उन दोनों ही साल नोबेल पुरस्कार का ऐलान नहीं हुआ और पुरस्कार राशि स्पेशल फंड में बांट दी गई ।

चलो शुरू से शुरू करते है, महेन्द्र प्रताप का जन्म 1 दिसम्बर 1886 को हुआ । मुरसान के राजा घनष्यामसिंह के तीसरे पुत्र थे महेन्द्र प्रताप, जिन्हें बाद में हाथरस के राजा हरिनारायण सिंह ने पुत्र न होने की वजह से इन्हें गोद ले लिया और हाथरस राज्य के वृन्दावन स्थित विशाल महल में ही महेन्द्र प्रताप का षैशव काल बीता। बड़ी सुख सुविधाएँ मिली । फिर उनकी पढ़ाई मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज, अलीगढ़ में हुई, जो आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के तौर पर जाना जाता है। इन्होंने ने B.A. में अड्मिशन तो लिया पर पारिवारिक कारणों से अंतिम वर्ष की परीक्षा नहीं दे सके ।
इसके बाद 1902 में जिंद रियासत के राजा की राजकुमारी बलबीर कौर से संगरूर में बड़ी धूमधाम से विवाह हुआ। राजशाही ठाठ बाठ ऐसे कि जब कभी महेन्द्र प्रताप ससुराल जाते तो उन्हें 11 तोपों की सलामी दी जाती और उस समय के सभी बड़े अंग्रेज अफसर तक स्टेशन पर स्वागत करने आते ।
लेकिन महेंद्र प्रताप शुरू से ही आम शाही नवयुवकों की तरह नहीं थे। उनके पास मौका था कि वो भी राजाओं के बने संघ में शामिल होकर अंग्रेजों की दी जाने वाली सभी सुख सुविधाओं का आनंद उठाते और खुश रहते। लेकिन वो उनमें से नहीं थे, वो जन्म से ही बागी थे । 1905 के स्वदेशी आंदोलन से वो इतना प्रभावित हुए कि सबसे पहली बगावत 1906 में  अपने ससुर और जिंद के महाराजा के खिलाफ ही कर दी, उनकी इच्छा के विरुद्ध महेन्द्र प्रताप ने कलकत्ता ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लिया । उसके बाद 1909 में वृन्दावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केन्द्र था। इसके उद्धाटन समारोह में मदनमोहन मालवीय भी उपस्थित रहे । महेंद्र प्रताप ने अपने अधीन के पाँच गाँव, वृन्दावन का राजमहल और चल संपत्ति दान में देकर कॉलेज संचालन के लिये एक ट्रस्ट भी बनाया । इसी साल पुत्री रत्न भक्ति की प्राप्ति हुई ।
1911 में वृन्दावन में ही एक विशाल फल उद्यान, जो 80 एकड़ में था, को आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश को दान में दे दिया। जिसमें आर्य समाज गुरुकुल और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है ।
फिर साल 1913 में इन्हें पुत्र रत्न प्रेम प्रताप की प्राप्ति हुई ।
महेंद्र प्रताप देहरादून से 'निर्बल सेवक' नामक समाचार-पत्र भी निकालते थे, जिसमें जर्मनी के पक्ष में लिखे लेख के कारण उन पर 500 रुपये का दण्ड किया गया जिसे उन्होंने भर तो दिया लेकिन देश की आजादी की उनकी इच्छा और बढ़ गयी ।
प्रथम विश्वयुद्ध का लाभ उठाकर भारत को आजादी दिलवाने के उद्देश्य से वे जर्मनी गए, जहाँ जर्मन शासक काइजर से मुलाकात की और भारत की आज़ादी में सहायता का वचन लेकर आॅस्ट्रिया, हंगरी, बुल्गारिया और तुर्की होते हुए 6 सितंबर, 1915 को अफगानिस्तान पहुंच गये। राजधानी काबुल में उन्होंने वहां के बादशाह अमीर हबीबुल्ला खान से भेंट की । अफगानिस्तान में ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना के लिये सहमत हो गया । अंततः 29 अक्तूबर 1915 को अस्थाई "आजाद हिन्द सरकार" अस्तित्व मे आ गई । वहीं से अपने 28 वें जन्मदिन पर 1 दिसम्बर 1915 को काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की जिसके स्वयं राष्ट्रपति तथा  मौलाना बरकतुल्ला खाँ प्रधानमंत्री बने ।
तत्कालीन भारत सरकार के पधादिकारी : -
1 राजा महेंद्र प्रताप राष्ट्रपति
2 मौलाना बक्र तुला खां प्रधानमंत्री
3 मौलाना उबेदुल्ला खां ग्रहमंत्री एवं प्रचार मंत्री
4 मौलाना वशीर अहमद युद्ध मंत्री
5 चम्पक रसन पिलेई विदेश मंत्री
6 अली जकरिया   संचार मंत्री
7 अब्दुल बारी
8 अलाह नवाज
9 खुदा बख्स
10 मोहम्द अली
11 रहमत अली
12 जफर हसन
13 शमसेर सिंह
14 सरदार हरनाम सिंह
15 गुज्जर सिंह
16 अब्दुल अजीज

सबसे पहले इस सरकार को संधी पत्र पर अफगान बादशाह ने हस्ताक्षर करके मान्यता प्रदान की
अफगान सरकार की तरफ से वहाँ के बादशाह हाबिबुला खां ने तो भारत की और से राजा महेंद्र प्रताप ने हस्ताक्षर किए । जर्मनी, अफगानिस्तान और तुर्की सहित इंग्लैण्ड से शत्रुता रखने वाले कुछ और देशों ने इसे मान्यता दे दी। अब यह सरकार अधिकाधिक रूप से अन्य देशों से भारत की स्वतंत्रता के लिये सहायता प्राप्त कर सकती थी । इसी सरकार के अंतर्गत "आजाद हिन्द फौज" का गठन भी किया गया जिसमेँ जर्मनी और तुर्की सरकार द्वारा बन्दी बनाये भारतीय सैनिक, सीमावर्ती पठानोँ और कबीलाईयोँ को लेकर छह हजार सैनिक भर्ती किये गये । आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजी अधिकार वाले भारतीय क्षेत्रोँ को आजाद कराने के लिये अंग्रेज सेना पर हमला बोल दिया पर  विश्व युद्ध में जर्मन-तुर्की गठजोड़ हारने लगा, इससे अंग्रेजों का हौसला बढ़ गया और उन्होंने पूरी ताकत से आजाद हिन्द फौज पर आक्रमण कर दिया, अंततः विफलता का सामना करना पडा । फिर लेनिन ने उनके क्रांतिकारों विचारों से प्रभावित होकर उन्हें रूस मिलने बुलाया और महेंद्र प्रताप को अपनी एक किताब उपहार में दी, जिसे वो पहले ही पढ़ चुके थे, टॉलस्टॉयवाद । वहाँ से 1925 में जापान पहुंच गये । जापान में उस समय प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस और आनंद मोहन सहाय भारत की आजादी के लिये प्रयत्न कर रहे थे। ओसाका में राजा महेन्द्र प्रताप की दोनों क्रांतिकारियों से भेंट हुई तथा भविष्य की योजनाओं पर विचार हुआ। उधर अंग्रेजों के दबाव में जापान सरकार ने महेंद्र प्रताप को जापान छोड़ देने को कहा। जापान से वे मौलाना बरकतुल्ला के साथ अमरीका पहुंच गये।







Thursday 27 April 2017

UNO की असलीयत

सऊदी अरब के बारे में 2 बातें बताता हूँ आपको जो आपको सयुंक्त राष्ट्र संघ ( UNO ) के चाल चरित्र के बारे में बताती है :-

पहली - 2017 में UN वुमन राइट कमीशन का सदस्य बना

दूसरी - 2015 में सयुंक्त राष्ट्र मानवाधिकार पैनल का अध्यक्ष बना

अब उनके यहाँ की हक़ीक़त देखिये

पहली - खुद सऊदी अरब में पूरा शरीर ढकने, कार चलाने, पुरुष से अनुमति के बाद ट्रेवलिंग, पब्लिकली तैरने और एक्सरसाइज करने आदि की पाबंदियों के बीच अब देखेगा कि दुनिया की किसी महिला के साथ ज्यादती तो नहीं हो रही

दूसरी - जहाँ आज भी कैदियों को सरेआम फाँसी, शारीरिक उत्पीड़न, दूसरे देशों से आये कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार और महिलाओं पर बेहिसाब पाबन्दियों के बाद भी ये ध्यान रखेगा कि किसी के मानवाधिकार का हनन तो नही हो रहा !

अब आप ये सोच रहे होंगे कि आखिर ये सब हो कैसे गया ? वो भी UN में ! आखिर इसे वोट किसने किया ?  वोट करने वाले है यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के शागिर्द । जिनका सऊदी बहुत बड़ा बाजार है ।

अब भी आपको लगता है कि UN सबकुछ सही कर देगा तो आप गलतफहमी में हो, UN वही करता है जो अमेरिका चाहता है । हाँ आजकल चीन भी इसमें टांग अड़ाने लगा है पर दोनों देश अपने फायदे के लिये UN को इस्तेमाल करते है, दुनिया की भलाई के लिये नहीं ।

Thursday 20 April 2017

तमिल किसानों के साथ एक दिन

अभी कुछ दिन पहले 14 अप्रैल को जब जंतर मंतर पर तमिल किसानों से मिलने गये थे तब उन्होंने कुछ देर बात करने के बाद पूछा कहाँ से हो बेटा ?  मैं बोला राजस्थान से । तो अपने साथी किसान से बोले बड़ी दूर से मेहमान आये है, कुछ खाने - पीने को लाओ, हमारे बहुत मना करने के बाद भी एक केला पकड़ा दिया । मेरे पास उस समय बोलने को कुछ नहीं था, बस सोच रहा था कि हिंदुस्तान के सुदूर दक्षिण के किसान जो अकाल और भूख की वजह से दिल्ली में धरना दे रहे है लेकिन फिर हमसे खाने की पूछना नहीं भूले । मुझे तब लगा कि हम किसान भाषा, पहनावे से जरूर अलग है पर किसानीयत से एक है । कोई फर्क नहीं, बिल्कुल एक है । कमी है तो बस एकता की, एक हो जाये तो किस मोदी - मनमोहन - वाजपयी - गांधी की औकात जो हमसे हमारे हक़ छीन ले । पर वो लगातार हमारी जमीनें उधोगपतियों को दे रहे है, बैंकों में हमारे ही सेविंग्स से वो अपना बिज़नेस चला रहे है, और वही बैंक कुछ हजार रुपये समय पर न चुकाने की वजह से थाने में क्रिमिनल के साथ फोटो लगा देती है । और यही उधोगपति जब लोन के पैसे नहीं चुका पाते है तो हमारे सेविंग के बाकि बचे पैसे फिर से लोन दे देते है लेकिन यही बात जब एक किसान कहता है तो किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती । 
दिल्ली में चल रहे इस धरने को National South Indian Rivers Interlinking Farmer's Association के स्टेट प्रेजिडेंट पी. इयाक्कन्नु जी लीड कर रहे है ( जो नीचे फोटो में मेरे साथ है )।

ये बताते है कि दिल्ली की साउथ इंडियन कम्युनिटी अभी इनके खाने पीने का खर्चा उठा रही है । उनका शुक्रिया अदा करते हुऐ कहते है कि हमारे पास तो इतना पैसा भी नहीं था कि हफ्तेभर से ज्यादा यहाँ टिक पाते लेकिन इन लोगों की सहायता से पूरे तमिलनाडु के किसानों की लड़ाई लड़ना संभव हुआ है । आगे बताते है कि हम यहाँ हर जिले से करीब 2 या 3 किसान मौजूद है, शुरुआती जत्था करीब 90 किसानों का था जो बढ़ते घटते रहते है ।

आगे एक दूसरा किसान जो कि थोड़ी बहुत हिंदी जानता था, उससे पूछा कि अभी तक आपसे कोई मिलने आया है कि नहीं ? तो वो बोले "हमारे स्टेट मिनिस्टर राधाकृष्णन कुछ दिन पहले मिलने आये थे और धमकी देकर गए है कि अगर जंतर मंतर से ये धरना नहीं उठाया तो पीट पीटकर खाली करवा देंगे । एक रुपया नहीं देंगे तुम्हें ।" धरना शुरू होने के कुछ 4 हफ्ते बाद PM ऑफिस से जवाब आता है कि PM साहेब ने आप लोगों को मिलने का समय दे दिया है, कल मीटिंग है और जब मिलने जाते है तो PM साहेब ऑस्ट्रेलियाई PM को डेल्ही मेट्रो के दर्शन करवाने निकल जाते, क्योंकि उनको लगता है कि किसानों से ज्यादा जरूरी मेट्रो दिखाना है ।


कुछ लोगों को या फिर सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा समर्थकों को लगता है कि ये किसान दिल्ली में सिर्फ नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिये सबकुछ कर रहे है, तो उन लोगों की जानकारी के लिये बता दूं कि तमिलनाडु के किसानों की माँगे क्या है :

1. 2 साल से पड़ रहे सूखे की वजह से हुई बर्बादी की भरपाई के लिए दूसरे राज्यो की तर्ज पर 40000 करोड़ का विशेष पैकेज जारी हो।

2. अटल सरकार की योजना के मुताबिक नदियों को जोड़ने का कार्य प्रारंभ हो ताकि ऐसा सूखा दोबारा ना आये।

3. कावेरी से मिलने वाले पानी पर तत्काल फैसला हो

4. फसल की MSP  बढ़ाई जाये

अब भी जो लोग कह रहे है कि इन्हें दिल्ली में नहीं, वरन चेन्नई में राज्य सरकार के खिलाफ धरना देना चाहिये तो ये उनकी नासमझी होगी ।

क्या कुछ नहीं किया इन लोगों ने अपने हक़ के लिये, अपने मरहूम साथियों की खोपड़ी गले मे डालकर मार्च किया, चूहे मुँह में दबाकर प्रदर्शन किया, जमीन को थाली मानकर कंकड़ मिट्टी सहित खाना खाया, अपने कपड़े तक उतार दिये फिर भी इस लोकतंत्र के किसी भी स्तम्भ पर कोई असर पड़ा हो तो बताइये ?
न नेता ध्यान दे रहे, न अफसर दे रहे, न स्वतः संज्ञान लेने वाली कोर्ट को कुछ दिख रहा है और न ही देशभक्ति के नाम पर बेवकूफ बनाती मीडिया ध्यान दे रही । इन सबके इस निकम्मेपन का एक ही ईलाज है, पाँचवाँ स्तंभ, यानी हम और आप मतलब जनता । इनको रास्ते पर लाना है तो हमें जागरूक और जिम्मेदार बनना होगा । नहीं बने तो फिर हालत इससे भी बदतर होने वाली है, नोट कर लीजिये आज ही


Thursday 6 April 2017

अलवर हत्याकांड के बाद किसानों के नाम पत्र

नमस्कार किसान भाईयों,

मैं जितेन्द्र पूनिया, गाँव किशनपुरा, तहसील फतेहपुर शेखावाटी, जिला सीकर, राजस्थान से हूँ । 15 लोगों के साझा परिवार में रहता हूँ और परिवार का पैतृक व्यवसाय खेती बाड़ी के साथ साथ 2 गाय, 2 भैंस ओर 4 बकरी से पशुपालन भी करते है । मेरे से पहले वाली 2 पीढ़ी में सब घरवाले सरकारी नौकरी करते है और अब वाली में भी । पिताजी शिक्षा विभाग में जिला अधिकारी है, कुल मिलाकर पैसे भी ठीक ठाक है पर आज तक हमने खेत खाली नहीं छोड़ा, हर बार खेती करते है, जिसमें नौकरी से छुट्टियां ले लेकर सब घरवाले हाथ बंटाने आते है, फिर चाहे वो कितना भी बड़ा अधिकारी हो या पैसेवाला । हालाँकि खेती में होना जाना कुछ नहीं है, खाने के लिये गेहूँ तक हर साल खरीदने पड़ते है पर किसान है तो खेती करना हमारा कर्म भी है और जिम्मेदारी भी ।

आज ये पत्र आपको इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि जब कोई नहीं बोल रहा है तो मेरा बोलना  बेहद ही जरूरी हो जाता है । आप अब किसान से हिंदू या मुस्लिम हो गये है । बड़े बुजुर्गों की कही बातें मुझे आज फिलोसॉफी की किताब की तरह लगने लगी है । वो कहते थे कि बेटा, हम किसान है । ये धर्म, जात- पात  सब ब्राह्मण और मुल्लों का बनाया हुआ है । ये हमारे लिये नहीं है । हमारे लिये हमारे खेत और पशु है । ये है तो हम है, ये नहीं है तो कुछ नहीं । धर्म या तो इस दुनिया मे होता नहीं और अगर है तो वो एक ही है, इंसानियत । अगर इंसान को इंसान समझते हो, तो तुम इंसान हो नहीं तो तुम में और इन पशुओं में कोई फ़र्क़ नहीं है । कर्म के बजाय अगर धर्म को खुद का मालिक समझोगे तो जैसे मालिक पशुओं को किधर भी हांक देता है वैसे ही धर्म भी आपको किधर भी हांक देगा । अगर किसी काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति की वजह से हम गलत काम करने से डरते है तब तक तो उस शक्ति को मानना ठीक है पर अगर हम इंसान को इंसान समझना भूल जायें तो उस काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति का खत्म हो जाना बेहतर है । हमें यदि किसी शक्ति को पूजना है तो प्रकृति ( सूर्य, जल, हवा, जमीन और आकाश ) को पूजें, जो हमें पालती है ।

आज ये बुजुर्गों की कही बातें क्यों बता रहा हूँ उसका कारण भी लगे हाथ आपसे साझा कर ही लेता हूँ । अलवर के बहरोड़ में एक किसान जो दूध के धंधे के लिये मेले से कुछ गायें खरीद कर ले जा रहा था जिसकी धर्म के नाम पर सरेआम हत्या कर दी गयी । और कहीं से कोई भी आवाज नहीं आयी । जो कुछ आई भी वो हत्यारों के पक्ष में थी । लेकिन जब कोई किसान ही इसपर नहीं बोला तो फिर बोलने की जरूरत नहीं रह जाती क्योंकि कोई भी लड़ाई अपने दम पर ही लड़ी जाती है ।

मैं एक किसान होने के नाते तो इस घटना का विरोध करता ही हूँ पर साथ ही देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते शर्म भी महसूस करता हूँ कि हमारे मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी संसद में सरेआम झूठ बोलते है कि ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं । अब बताओ आप क्या करोगे ? कुछ नहीं, बस तमाशा देखिये । रही बात उस किसान या डेयरी चलाने वाले की, तो उसको तो एक दिन मरना ही था, मुस्लिम जो था । ये तो अच्छा हुआ कि जिस गाय की आजतक सेवा की, कम से कम उसके नाम पर तो मरा, वरना कल को फालतू में बैंक के कर्जे से मरता तो कोई पूछता भी नहीं, खैर उसके घरवालों को दुःख सहने की हिम्मत मिले ।

साथी पहलू खाँ के मरने से ज्यादा बड़ा सवाल ये है कि हम आज किधर जा रहे है ?  हम हमारी जड़ों से कितने दूर हो गये है ?  क्या अब भी हम हमारी जड़ों तक लौट सकते है ?  हाँ आज भी हम हमारी जड़ों तक लौट सकते है । अगर कुछ मूलभूत चीजें समझ लें तो । वो चीजें समझने के लिये कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है, बस एक बार बड़े बुजुर्गों की बातों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है और इस ब्राह्मणवाद ओर मुल्लावाद से बाहर आकर इनका पुरजोर विरोध करने की जरूरत है । गाय एक ऐसा पशु है जो हम किसानों को धर्म से जोड़ता है, इसलिये इसी पर बात करते है ।

आमतौर पर अगर हमारे घर मे कोई पशु उपयोगी नहीं रहता तो उसे दूसरे किसान या कसाई को बेच दिया जाता है, हालाँकि जिसको इतने दिन पाला, उसे बेचना आसान नहीं होता फिर भी यदि बेचेंगे नहीं तो वो हमें आर्थिक रूप से और अधिक कमजोर कर देता है इसलिये बेचना ही आखिरी उपाय है । सिर्फ वही पशु बेचा जाता है जिसका आउटपुट जीरो होता है जैसे बकरा, भैंसा, सांड क्योंकि इस वैज्ञानिक युग मे हल जोतने में ट्रेक्टर के आने से भैंसा और सांड किसी भी काम के नहीं रहे है इसलिये बकरों के साथ इन्हें भी बेच दिया जाने लगा है । इसी तरह अनुपयोगी जानवरों में दूध न देने वाली बकरी, गाय और भैंस भी आती है । बकरी ओर भैंस तो कसाई को बेच देते है पर आजकल गायों को काटने पर देश मे पाबंदी है इसलिये कसाई इन्हें खरीदते नहीं है और किसान बिना दूध देने वाली गायों को पालने में असमर्थ होने की वजह से खुले में छोड़ देता है जो कि आवारा पशुओं के रूप में शहरो में प्लास्टिक चबाती घूमती है या फिर झुण्ड में एक ही रात में कई महीनों की मेहनत से उगाई फसल को कुछ मिनटों में उजाड़ देती है । आज इन गायों की इस हालत के लिये सरकार और गायों के तथाकथित ठेकेदार जिम्मेदार है जो न तो इनको कटने देते है ना ही खुद पालते है । अगर किसी को गाय में ज्यादा ही आस्था है तो अपने घर पर रखे । आपकी इस आस्था का हल्ला किसान क्यों ढोये ? आज ज्यादातर गायों के हक़ की आवाज उठाने वालों को देखें तो इनमें वो ब्राह्मण बनिये ही सबसे अधिक मिलेंगे जिनकी कई पीढ़ियों तक ने गाय नहीं पाली हो ।

अंत मे सभी से एक ही बात कहूँगा कि गाय की वजह से किसी की भावनाएं आहत हो रही है तो गायों को न मारे और न ही खायें पर साथ ही एक निवेदन उन आहत भावनाओं वालों से भी है कि इन गायों की सार संभाल करें और हमारे खेत और सड़कों से दूर रखें । या तो घर के पास एक एक्स्ट्रा प्लॉट खरीद लें या फिर सब मिलकर गौशाला में रखें । फिर किसी की भावना आहत नहीं होगी ।
अगर इतना नहीं कर सकते तो फिर ये गौभक्ति दिखावा है और गरीब पशुपालकों और किसानों पर अत्याचार और शोषण का बहाना है, जो हम कतई नहीं सहेंगे ।

धन्यवाद

Wednesday 11 January 2017

फौज सवालों से परे क्यों ?

जो लोग सरकार या आर्मी ऑफिसियल की #जवानों_को_अच्छे_खाने वाली बात पर आँख बंदकर विश्वास कर रहे है वो वही लोग है जिनको घरवाले बोलते थे कि वो जन्मे नहीं है, उनको तो #परी_रानी_माँ_की_गोद में छोड़ के गयी, पर विश्वास कर लेते थे । खैर ये व्यंग्य था पर अगर आपको यकीन न हो तो अपने आस पास कोई जवान छुट्टी पर आ रखा हो उससे पूछ लीजिये । मेरे घर में तो हर तरह के जवान ( आर्मी, bsf, एयरफोर्स, नेवी, itbp आदि ) भरे पड़े है इसलिये ठोक के बोलता हूँ, खाना और सुविधा के नाम पर जवान ठगे जाते है और अफसर मौज उड़ाते है । ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ है, इससे पहले भी एक फौजी ने बांग्लादेश बॉर्डर को लेकर जो सच बोला था वो तो बेहद ही चोंकाने वाला था, जिसमें अफसरों पर पैसे लेकर बॉर्डर पार कराने जैसे संगीन आरोप भी लगे थे । शायद तब हमारी देशभक्ति हिलोरे इसलिये न मारी होगी क्योंकि वो सैनिक मुस्लिम था, पर ये तो हिन्दू भी है फिर इसे क्यों गाली दी जा रही है । नीचे हमारी देशक्ति के 2 सबुत भर दे रहा हूँ ....



आप को कुछ आसान से उदाहरण से समझाता हूँ, जैसे पहले पहल
आप कैंटीन का ही ले लो, ज्यादातर सामान अफसर बीवियाँ उठा ले जाती है और बाकि हम लोगों के लिये बचता है । जब पूरा सामान कैंटीन में आता है तो फिर हम जब भी जाते है तब साबुन, सर्फ, शैम्पू, बिस्किट ही क्यों मिलते है, बाकि सामान कहाँ और कौन ले जाता है ।

दूसरी बात आपको बताता हूँ NCC की, मैं 3 साल आर्मी कैडेट रहा हूँ, लास्ट दिन अच्छे खाने के अलावा कभी नहीं मिला, आपको मिला हो तो बताएं । कैंप में आपको कितनी गोली चलाने को मिली ? क्या कैंप पुरे 10 दिन चला भी कि नहीं ? यहाँ भी बजट गायब कर दिया जाता है, जहाँ पब्लिक इन्वॉल्वमेंट ज्यादा रहता है तो सोचिये अंदर क्या खेल चलता होगा ? मेरे एक चाचा के शब्दों में कहूँ तो यूँ कि " हर देश की आर्मी, वहाँ की सबसे बड़ी घोटालेबाज और भ्रष्ट होती है ।"
हम तो ये बात ऐसे भी उठाते रहते है पर तब आपकी देशभक्ति कुलांचे मारती है और बुनियादी सवालों को दबा देती है, पर अब तो शर्म करो, कम से कम अब तो आवाज उठाओ । और सवाल न उठाने की जिस परंपरा को आप फलीभूत करने में लगे है, ये उसी का परिणाम है कि आज वो अपने हक़ की आवाज उठाकर भी कोर्ट मार्शल का सामना करेगा ही । क्यों किसी डिपार्टमेंट को सवालों से दूर रखें ? क्या आपके टैक्स का पैसा वहाँ नहीं लगा है ? लगा होने के बाद भी आप सवाल नहीं उठाते तो समझिये या तो आप ऊँचे दर्जे के बेवकूफ है या फिर आपको इस बात की खबर ही नहीं है कि आप इनकम टैक्स के अलावा भी सैकड़ो तरह के टैक्स देते है । इन दोनों के अलावा एक खास श्रेणी उन भक्तों की भी है जो सवाल उठाने वाले से सवाल करके चुप करवा देते है । ये वो लोग है जो आपको गुलामी के करेले पर भक्ति की चाशनी लगाकर आपको जबरदस्ती निगलाने का काम करते है, इसलिये इनकी संगत से हो सके जितना बचो ।
अंत में तेजबहादुर जी की बहादुरी को सलाम, पता है इनपर अब कारवाई होगी फिर भी इन्होंने हिम्मत की है, उसकी देश की हर आर्मी फैमिली दाद और धन्यवाद देती है ।

नोट : जवानों से थोड़ा घुमा फिराकर पूछना, क्योंकि सारी देशभक्ति इनमें ही भरी होती है, अफसरों में नहीं । इसलिये आपको वहाँ आसानी से जवाब नहीं मिलने वाला, थोड़ा सा इमोशनल करना और सच्चाई बाहर

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...