Friday 27 February 2015

बहादुर केसर ताई को सलाम

ये सच्ची कहानी है राजस्थान के सीकर जिले में फतेहपुर तहसील के एक छोटे से गांव किसनपुरा की  जहां केसर ताई अपने संयुक्त परिवार (सास, ससुर,जेठ, देवर और उनके बच्चे ) में 14 लोगों के साथ साथ रहती है । पति सरकारी नोकरी में है तो ड्यूटी पर रहते हैं जिससे शनि और रविवार को ही घर पर आ पाते हैं और बेटा जयपुर में कोचिंग ले रहा है ।
ये तो हुआ केसर ताई का परिचय अब शुरू करते हैं कहानी -
दोपहर को गैस वाले से नया सिलिंडर लिया और उस पर रेगुलेटर सेट कर चाय बनाने के लिए जैसे ही जलाया सिलिंडर ने आग पकड़ ली । खुद केसर ताई और उनकी देवरानी दोनों रसोई में फँस गई क्योंकि सिलिंडर दरवाजे से सटकर था । तो दोनों ने जलते हुये गेट से बाहर निकलने की कोशिश की लेकिन लपटें बहुत ऊँची थी, तो निकल नहीं पा रही थी तो केसर ताई ने हिम्मत करके सिलिंडर को धक्का दिया और दौड़कर बाहर आ गयी लेकिन उनकी देवरानी अंदर ही रह गयी, निकल नहीं पायी तो ताई ने हो हल्ला मचाया कि शायद कोई सहायता करने आ जाये लेकिन बूढ़े सास, ससुर  और 5 छोटे बच्चों के सिवा आस पास कोई नहीं था । अब आग बढ़ रही थी तो देवरानी को बोला कि हिम्मत जुटा के बाहर की तरफ दौड़ो लेकिन वो तो घबराहट की वजह से न हिल पा रही थी न ही बोल पा रही थी । कुछ होता न देख ताई खुद ही बचाने के लिये दौड़ी और सिलिंडर, जिसकी लपटें घर के ऊपर से निकल रही थी और 2 मीटर के रेडियस में फैली हुई थी, को हाथों से पकड़ा और बाहर खिंचने की कोशिश की लेकिन चूल्हा अंदर अटक गया जिससे सिलिंडर बाहर नहीं निकल सका । फिर हिम्मत जुटाकर आग में ही अंदर जाकर चूल्हे और सिलिंडर को बाहर फेंक दिया, इससे थोड़ी जगह बन गयी दरवाजे पर और देवरानी को बाहर ले आई, पर खतरा अब भी बाकि था, यदि सिलिंडर फट गया तो उनके सास-ससुर और बच्चों को वो लग सकता था, इसलिए वो एक जूट की बोरी से सिलिंडर को पकड़ा और घर से दूर खिंचकर ले गई । लेकिन  रसोई में लगी आग फैल रही थी तो दौड़कर पानी डालकर आग बुझाई ।

तो इस तरह केसर ताई की बहादुरी से 10 लोगों की जान बच गयी ।

जब आग पूरी तरह बुझ गयी तो लोगों ने पूछा कि आपको डर नहीं लगा ?
आप एक औरत होकर इतनी हिम्मत कैसे जुटा पाई ? 
आप खुद जल जाती तो ?
आपके बच्चों का क्या होता ?

तो केसर ताई बोली " डर तो लगा लेकिन अंदर मेरी देवरानी फंसी हुई थी । आस पास कोई मर्द था नहीं ये शायद हमारी खुशकिस्मती भी थी"

खुशकिस्मती थी ? कैसे ?

" यदि मर्द होते तो वो मुझे मेरी देवरानी को बचाने अंदर नहीं जाने देते । वो ये बोल कर रोक लेते कि वो तो जलेगी ही तुम जाओगी तो तुम भी जलोगी । लेकिन मैंने सोचा कि मेरे बच्चे तो अब बड़े हो गए और मैं भी अब 50 के आस पास हूँ लेकिन मेरी देवरानी अभी तो छोटी है, उसके 5 और 8 साल के दो छोटे बच्चे हैं, वो बिन माँ के कैसे रह पाते । मैं जलूँ या वो एक ही बात है, और कोशिश करें तो दोनों ही बच सकते हैं और देख अब दोनों जिन्दा हैं ।

बचाने के दौरान उनके हाथ और मुँह भी जल गये लेकिन खुश है कि उसकी वजह से 10 लोग जिन्दा हैं ।

सलाम है केसर ताई की बहादुरी को ।

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...