Wednesday 28 October 2015

Global United Panchayat

GUP यानि कि Global United Panchayat.  GUP ( गप्प ) का एक दूसरा मतलब भी है राजस्थानी में बातें करना अर्थात सभी साथियों से दूनिया को एक गाँव मानते हुये विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करना । GUP एक ऐसा ग्रुप है जो सारी दूनिया को एक गाँव मानता है और देशों को वार्ड, मोहल्ला इत्यादि, यह पन्चायत मानव व प्रकृति हितैषी चिन्तन रखते हुए कार्य करेगी । किसी भी काम करने के 2 तरीके होते हैं, पहला Part to Whole और दूसरा Whole to Part. इसमें पहला तरीका कर्म का तो दूसरा चिंतन का है और GUP दोनों को कार्य करेगा । हमारा मानना है कि आज के युग में हम इतने करीब आ चुके हैं कि सेकंडों में पूरी दूनिया के लोगों से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं इसलिये सभी के व्यूज एक साथ एक ही स्थान पर जानने के लिये GUP नामक एक मंच बनाया गया । आज सभी देश एक दूसरे पर निर्भर हैं, कुछ मामलों में ज्यादा तो कुछ में कम पर निर्भर हैं । इसलिये एक देश दूसरे देश से प्रभावित होता है फिर चाहे वो आर्थिक रूप से हो या सामाजिक रूप से या सांस्कृतिक रूप से या किसी और रूप में । इसलिए सभी मुद्दों को सभी से डिस्कस करने का रिटायर्ड इंजीनियर श्री हनुमान राम चौधरी द्वारा एक मंच तैयार किया गया, जिसे उन्होंने ने GUP नाम दिया ।


ग्लोबल युनाईटेड पन्चायत का दिनान्क 13 अक्तूबर 2015 से जोधपुर मे कार्यालय स्थापित किया गया है, जैसा कि आप को पूर्व मे अवगत कराया जा चुका है कि इसका ढान्चा 1000 व्यक्तियो से एक पन्चायत के रूप मे होगा । यह व्यक्ति विश्व भर से कही से ही हो सकते है। उक्त 1000 व्यक्ति एक गान्व घोषित करेगे फिलहाल प्रथम गान्व ग्रास यानि घास नाम से घोषित हो चुका है जिसका रजिस्ट्रेशन ओन लाईन चालू है जिसमे आप 9414346435 पर निम्नाकित सूचना मैसेज कर सकते है *****नाम/एस टी डी कोड/लोकसभा क्षेत्र





Saturday 24 October 2015

गेलसप्पां री टोळी

एक बार #केसर_ताई का छोरा जिद करण लाग्या कि
मन्ने गलसप्पो आदमी देखणो है, नीं मं रोटी कोनी खाऊँ ।

ताई - तेरे बाप न देखले, बिसुं बड्डो गेलसप्पो कोई कोनी

छोरा - बां न तो रोजीना देखूं, कोई और देखणो है

ताई - तो तेरे राजू काके न देखले

छोरा - आ तो वाही बात हूगी, अ तो छोटा - मोटा हीं, कोई ढंग को देखणो है

ताई - तो राहुल गाँधी न देखले

छोरा - ना, मन्ने घणे सारे बेवकूफ देखणे है

अब ताई सोची इते सारे गधे एकसाथ कहाँ से दिखाऊ छोरे न ?
तो ताई ने दिमाग भिड़ाया अर् बोली " चाल र छोरा, दिखाऊ तन्ने #गेलसप्पां_री_टोळी
" अर् छोरा हो लिया ताई क साथ, एक खुलो मैदान मं लेगी ।

उड़े लोगां न देख अर् छोरा बोल्या - माँ, अ हाथ में लाठी क्यों ले राखी है ? डांगर चराने वाले हैं के ?

ताई - ना बेटा, अ तो खुद डांगर हीं, अ के चरावंगा डंगरां न

छोरा - तो अ स एक ड्रेस मायं कियां ?

ताई - सब एक सा हीं न, आ अण सबकी स्कूल ह

छोरा - पर आ सबकी निकर तो म्हारी स्कूल की तरहां ह पण ऊपर चोळीयो धौळो क्यों ?

ताई - क्योंकि अ बेवकूफ हीं न

( अब तो आप भी समझ गये होंगे कि यहाँ किसकी बात चल रही है, कहने की क्या जरूरत है )

गलसप्पो - बेवकूफ
छोरा - लड़का
कोनी - नहीं
टोळी - समूह ( Group )
डांगर - जानवर
धौळो - सफेद
चोळीयो - शर्ट

Monday 5 October 2015

तुम बिल्कुल हम जैसे निकले, अब तक कहां छुपे थे भाई ?

पाकिस्तान से फहमीदा रियाज की नज्म,
आज के हिंदुत्व पर :
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तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
अब तक कहां छुपे थे भाई ?
वह मूरखता, वह घामड़पन
जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई
भूत धरम का नाच रहा है
कायम हिन्दू राज करोगे ?
सारे उल्टे काज करोगे ?
अपना चमन नाराज करोगे ?
तुम भी बैठे करोगे सोचा,
पूरी है वैसी तैयारी,
कौन है हिन्दू कौन नहीं है
तुम भी करोगे फतवे जारी
वहां भी मुश्किल होगा जीना
दांतो आ जाएगा पसीना
जैसे-तैसे कटा करेगी
वहां भी सबकी सांस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा !
क्या हमने दुर्दशा बनायी
कुछ भी तुमको नज़र न आयी ?
भाड़ में जाये शिक्षा-विक्षा,
अब जाहिलपन के गुन गाना,
आगे गड्ढा है यह मत देखो
वापस लाओ गया जमाना
हम जिन पर रोया करते थे
तुम ने भी वह बात अब की है
बहुत मलाल है हमको, लेकिन
हा हा हा हा हो हो ही ही
कल दु:ख से सोचा करती थी
सोच के बहुत हँसी आज आयी
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
हम दो कौम नहीं थे भाई
मश्क करो तुम, आ जाएगा
उल्टे पांवों चलते जाना,
दूजा ध्यान न मन में आए
बस पीछे ही नज़र जमाना
एक जाप-सा करते जाओ,
बारम्बार यह ही दोहराओ
कितना वीर महान था भारत !
कैसा आलीशान था भारत !
फिर तुम लोग पहुंच जाओगे
बस परलोक पहुंच जाओगे !
हम तो हैं पहले से वहां पर,
तुम भी समय निकालते रहना,
अब जिस नरक में जाओ, वहां से
चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना !

#SaveHumanity

Thursday 1 October 2015

मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर रखना

दिल्ली से लगते दादरी में गाय के नाम फिर एक इंसान की जान चली गयी । ये कोई इस देश में पहली बार नहीं हुआ न ही आखिरी बार । सवाल यहाँ गाय का नहीं है, सवाल यहाँ सूअर का नहीं है, सवाल यहाँ रंजिस का नहीं है, सवाल यहाँ आस्था का भी नहीं है और इंसानियत का हो ही नहीं सकता क्योंकि सवाल यहाँ नफरत का है । जैसा कि मेरे FB मित्र Zaheen Saifi ने सटीक लिखा है

" सवाल गाय में आस्था का होता तो अल कबीर जैसे मीट प्लांट में आग लगाते, सवाल आस्था का होता तो ऋषि कपूर जैसो के घर मे घुसकर तोड़ फोड़ करते, सवाल आस्था का होता तो गौमांस खाने वाला किरण रिजिजू जैसा केन्द्रीय मंत्री तुम्हारी अपनी सरकार मे अब तक ना होता, सवाल आस्था का होता तो एक कथित हिंदूवादी सरकार देश को बीफ एक्सपोर्ट में नम्बर वन ना बनाती, सवाल आस्था का होता तो गाय सड़क पर कूड़ा कचरा खाती ना फिरती। पर यहा सवाल आस्था का नही नफरत का था। एक मुस्लिम से नफरत का ।
‪#‎international_shame "


एक सवाल और था  कि  नफरत किस आधार पर की जाये ? आधार बनाया गया गाय का मांस । क्योंकि मृतक का एक बेटा एयरफोर्स में है, इसलिए देशद्रोह का आरोप तो लगा नहीं सकते थे, जैसा कि आज तक लगाते आये हैं । और देश सेवा का जवाब हम ही क्यों दें, उनसे क्यों नहीं माँगा जाता जो आज तक नफरत ही फैलाते आये हैं और कभी भी अपने पेट के सिवाय मानवता या देश सेवा की तरफ ध्यान नहीं गया । क्यों हमें बेगुनाही उन लोगों के सामने साबित करते हैं ? आखिर क्यों ? और कब तक ?

 एक मन्दिर के लाउडस्पीकर से पण्डे द्वारा बोला जाता है कि " इखलाक खाँ नाम के आदमी ने घर में गाय का मांस छुपाकर रखा है, उसने हमारी पवित्र गाय माता की हत्या की है, उसे इसकी सज़ा सभी हिंदुभाई मिलकर दें " और वो भीड़, जो कई सालों से इसी मौके के ताक़ में थी कि कब दंगा किया जाये और कब हम मुस्लिमों को मारे । और वो मौका पण्डे ( जो खुद एक दंगाई है ) ने आज उन दंगाइयों को दे दिया था । बस फिर क्या था, पूरा झुण्ड का झुण्ड उस बाप बेटे पर टूट पड़े, उस आदमी को सिलाई की मशीन और ईंटों की दे देकर मारा गया, घसीट घसीट कर मारा गया ।

वहाँ किस कदर लोगों के मन में नफरत थी उसका एक नमूना NDTV के पत्रकार रवीश कुमार के उस ब्लॉग में मिलता है, जो उन्होंने वहाँ से लौटकर लिखा था । बकौल रवीश
" मेरे साथ सेल्फी खिंचाने आया प्रशांत जल्दी ही तैश में आ गया। ख़ूबसूरत नौजवान और पेशे से इंजीनियर। प्रशांत ने छूटते ही कहा कि किसी को किसी की भावना से खेलने का हक नहीं है। हमारे सहयोगी रवीश रंजन ने टोकते हुए कहा कि मां बाप से तो लोग ठीक से बात नहीं करते और भावना के सवाल पर किसी को मार देते हैं। अच्छा लड़का लगा प्रशांत पर लगा कि उसे इस मौत पर कोई अफ़सोस नहीं है। उल्टा कहने लगा कि जब बंटवारा हो गया था कि हिन्दू यहां रहेंगे और मुस्लिम पाकिस्तान में तो गांधी और नेहरू ने मुसलमानों को भारत में क्यों रोका। इस बात से मैं सहम गया। ये वो बात है जिससे सांप्रदायिकता की कड़ाही में छौंक पड़ती है।
प्रशांत के साथ खूब गरमा गरम बहस हुई लेकिन मैं हार गया। हम जैसे लोग लगातार हार रहे हैं। प्रशांत को मैं नहीं समझा पाया। यही गुज़ारिश कर लौट आया कि एक बार अपने विचारों पर दोबारा सोचना। थोड़ी और किताबें पढ़ लो लेकिन वो निश्चित सा लगा कि जो जानता है वही सही है। वही अंतिम है। आख़िर प्रशांत को किसने ये सब बातें बताईं होंगी? क्या सोमवार रात की भीड़ से बहुत पहले इन नौजवानों के बीच कोई और आया होगा? इतिहास की आधू अधूरी किताबें और बातें लेकर? वो कौन लोग हैं जो प्रशांत जैसे नौजवानों को ऐसे लोगों के बहकावे में आने के लिए अकेला छोड़ गए? खुद किसी विदेशी विश्वविद्यालय में भारत के इतिहास पर अपनी फटीचर पीएचडी जमा करने और वाहवाही लूटने चले गए ।"


जो लोग इस देश में गायों को लेकर इतना रोना - धोना मचाये हुये हैं क्या उन लोगों ने कभी गाय पाली भी है ? पालते तो पता चलता कि इतनी गायें कूड़ा - करकट क्यों खा रही है । क्यों कट रही है । उनके महिमा मंडन अनुसार गाय, गौमूत्र, गोबर से ही इस देश का भला होता तो मजदूर किसान आत्महत्या नहीं करते दलालों ... डूब मरो ... अगली क्रांति तुम्हारे मंदिर - मस्जिदों के खिलाफ होगी ।

ये लेख गायों को काटने के पक्ष में नहीं लिख रहा हूँ बल्कि इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि ये प्रवृति अब सभी धर्मों में फ़ैल चुकी है,  दक्षिण एशिया ऐसे धार्मिक उन्मादों का अड्डा बना हुआ है । उदाहरण के लिये अफगानिस्तान में कुरान के पन्ने फाड़ने के नाम पर इसी तरह फरखुन्दा को पीट-पीटकर मारने और फिर जीवित जला देने का मामला हो या बांग्लादेश में कई ब्लॉगरों की हत्या का मामला हो या भारत में दाभोलकर, पंसारे, कुलबर्गी की निर्मम हत्या का मामला हो; धर्म ने हमारे साथ ये दिक्कत पैदा कर दी है कि हम जिंदगी जीना भूल गये हैं और बिगाड़ना सीख गये हैं । धर्म इंसानियत का दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा बन गया है ।




डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...