Saturday 10 August 2013

वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है : हज़रत अली!!!

वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है : हज़रत अली!!! ( यह कथन पैगम्बर ए इस्लाम (स. अ.व.अ.) के उत्तराधिकारी और दामाद हज़रत अली(अ.स.)का है.!!!
आज जबकि लोग देशभक्ति पर सवाल खड़ा किया जा रहा है.तो उससे पहले यह जाना ज़रूरी हो जाता है की अगर कोई मुसलमानों वाले नाम का आदमी कुछ ग़लत कर रहा है तो वह उसका अपना अमल है न की इस्लाम की शिक्षा का असर,और वह इस्लाम का हिस्सा नहीं है.क्यूंकि पैग़म्बर के उत्तराधिकारी की नज़र में वह सम्पूर्ण मोमिन नहीं है, जो अपने वतन की मोहब्बत न रखता हो. और यही शिक्षा पैग़म्बरे ईस्लाम की भी है.सवाल यह उठता है की अगर कोई पैगम्बरे इस्लाम की शिक्षा को ना मानता हो तो क्या उसे मुसलमान कहना सही है?वह भी उसमसले में जिसे ईमान से जोड़ा गया हो ।
......पैग़म्बर(स.अ.व.अ.) की शिक्षा से एक बात साबित हो जाती है जो वतन की मोहब्बत में ज़रा सी भी कमी रखते हैं उनके मुसलमान होने पर हमेशा शक बना रहता है.मशहूर कथन है की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है,इस्लाम की शिक्षा के हिसाब से जिसने एक बेगुनाह का खून बहाया उसने गोया इंसानियत का खून बहाया जिसने इंसानियत का खून बहाया वहइंसान ही नहीं है,इस्लाम को मानने की बात तो बहुत दूर है. और इस बात की पुष्टि हो जाती है की आतंकवादी इस्लामको मानने वाला नहीं हो सकता पैदा किसी के भी घर में हुआ हो, नाम उसने कुछ भी रखलिया हो. वह अधर्मी ही है.वापस आते हैं वतन की मोहब्बत पर,मोहब्बत का तकाज़ा यह है कि आप महबूब के नापाक दुश्मनों से मोहब्बत नकरें,और सच्चे मुसलमान यही किया करते हैं ।
इस्लाम कि शिक्षा के हिसाब से वतन से मोहब्बत ईमान कि निशानी है और जब वतन हिन्दुस्तान जैसा हो तो यह ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्यूंकि कर्बला में जब हज़रत अली(अ.स.) के बेटे,पैगम्बरे इस्लाम(स.अ.व.अ.) के नवासे,सय्यादुस शोहदा,फातहे कर्बला इमाम हुसैन (अ.स.) को यज़ीद की फ़ौज ने रोका तो इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा ‘मुझे हिंद चले जाने दो ,मुझे वहां से मोहब्बत की खुशबू आती है,लेकिन तख़्त ओ ताज की हवास ने यज़ीद और उसकी फ़ौज को अँधा कर दिया था ,की बज़ाहिर मुसलमान होते हुए भी उन्होंने नबी के नवासे जिसकी मोहब्बत अल्लाह ने कुरान में वाजिब करार दी है को भूखा प्यासा शहीद कर दिया. न सिर्फ हुसैन (अ.स.) को बल्कि उनके भाइयों और साथियों,यहाँ तककी छ: महीने के हुसैन (अ.स.) के बेटे अली असगर(अ.स.) को भी गले में तीर मारकर शहीद कर दिया गया ।
आज जब मै इन आतंकवादियों के घटिया कारनामो को देखता हूँ कि कहीं दो महीने की बच्ची तो कहीं १ साल का बच्चाया और बेगुनाह लोग धमाके में मारे गए,तो मुझे कर्बला याद आती है और यह आतंकवादी मुझे आज के यज़ीद नज़र आते हैं.हो न हो यह नस्ले यज़ीद ही हैं.इनसे इंसानियत शर्मिंदा है….
एक बात तो साबित है कि इस्लाम देशभक्ति ही सिखाता है,इस कथन की रौशनी में अगर कोई वतन से मोहब्बत नहीं रखता तो उसका ईमान मुक़म्मल नही है.और आज के दौर में हिन्दुस्तान का मुसलमान इस बात को समझता है और देश से मोहब्बत करता है…हम सब हिन्दू-मुसलमान -सिख-ईसाईयों औरजितने भी मज़हब हिंदुस्तान में हैं उनसब के माने वालों को एक साथ खड़े होकर भारत के हर दुश्मन का मुकाबला करना चाहिए….

( एक मुस्लिम भाई कहानी, उसी की जुबानी )

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...