Friday 27 July 2018

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि


डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 में Madras Institute of Technology से एरोस्पेस इंजीनियरिंग में पढ़ाई की । इंजीनियर बनने के बाद डॉ. कलाम का Defence Research and Development Organisation  (DRDO) में सिलेक्शन हो गया । वहाँ सेवा करने के पश्चात Indian Space Research Organisation (ISRO) में भी इन्होंने सेवा दी ।
इन्होंने DRDO में रहते हुए देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये मिसाइलों का निर्माण किया जिनकी वजह से इन्हें " मिसाइल मैन " नाम दिया गया ।

फिर 1998 में पोखरण में किये गए परमाणु परीक्षण में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा । 25 जुलाई 2002 को डॉ. कलाम देश के 11वें राष्ट्रपति चुने गए । इस पद पर इन्होंने 25 जुलाई 2007 तक सेवा दी । इस दौरान डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति भवन को आम लोगों का भवन बनाया ।
27 जुलाई 2015 को Indian Institute of Management, Shillong में लेक्चरर के दौरान Cardiac Arrest की वजह से 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया । एक शिक्षक के लिये अंतिम पल भी यदि पढ़ाते हुए बीते तो यह उसके लिये सौभाग्य की बात है ।
डॉ. कलाम को जीवन मे 40 यूनिवर्सिटी की तरफ से 7 डॉक्टरेट की मानद उपाधियां दी गयी । इसके अलावा इन्हें निम्न सम्मान भी प्राप्त हुए :-
1. 1997 में भारत रत्न से सम्मानित ।
2. 1981 में पद्म भूषण अवार्ड ।
3. 1982 में अन्ना यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया ।
4. 1990 में पद्म विभूषण अवार्ड ।
5. 1999 में डॉ. कलाम भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार बने ।
6. 1962 में"भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़े ।
7. 2002 में राष्ट्रपति बने ।
इसके अलावा डॉ. कलाम ने बहुत सारी किताबें भी लिखी, जो निम्न है -
1. India 2020: A Vision for the New Millennium
2. A Manifesto for Change: A Sequel to India 2020,
3. Wings of Fire: An Autobiography
4. The Luminous Sparks
5. Mission India, Inspiring Thoughts
6. Indomitable Spirit,
7.Envisioning an Empowered Nation
8. You Are Born To Blossom : Take My Journey Beyond
9. Turning Points: A journey through challenges
10. Target 3 Billion
11. My Journey : Transforming Dreams into Actions
12. Forge your Future : Candid, Forthright, Inspiring
13. Reignited: Scientific Pathways to a Brighter Future
14. Transcendence: My Spiritual Experiences with Pramukh Swamiji
15. Advantage India: From Challenge to Opportunity
पूर्व प्रथम नागरिक, भारत रत्न, पद्म विभूषण, वैज्ञानिक,  मिसाइलमैन, शिक्षक, बच्चों के प्रिय नेता डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन #RIPkalam

Wednesday 25 July 2018

Bandit Queen : फूलनदेवी


आपको फूलन देवी याद है ? नहीं न !
चलिये मैं बताता हूँ । उसके बारे में सबसे प्रचलित शब्द है "बैंडिट क्वीन" या चंबल की रानी ।
यह कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसने ताजिंदगी संघर्ष किया, और उस संघर्ष में जीती भी । पर आज ही की तारीख को 17 साल पहले एक जंग हार गई,  25 जुलाई 2001 को शेरसिंह राणा नाम के स्वयंभू उच्च जाति के रक्षक ने इनकी गोली मारकर हत्या कर दी ।
चलिये अब आपको थोड़ा पीछे ले चलता हूँ, 10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के 'घूरा का पुरवा' गांव में फूलन का जन्म हुआ था । लाख विरोध के बावजूद 11 साल की उम्र में फूलन देवी को गांव से बाहर भेजने के लिए उसके चाचा मायादिन ने फूलन की शादी एक अधेड़ आदमी पुट्टी लाल से करवा दी । और 11 साल की छोटी सी उम्र में फूलन ब्याहकर फूलन देवी बन चुकी थी । यहीं से फूलन के संघर्ष के दिन शुरू हो गए थे । शादी के समय फूलन नाबालिग थी पर पति ने अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिये अबला फूलन की जिंदगी नर्क बना दी । ससुराल में फूलन से उसका पति रोज बलात्कार करता, इससे फूलन बीमार पड़ गयी और अपने पीहर लौट आई । यहां उसने अपने परिवार के साथ मजदूरी करना शुरू कर दिया। यहीं से फूलन के विद्रोही स्वभाव का पहला नजारा देखने को मिला । एक बार एक आदमी ने फूलन को मकान बनाने में की गई मजदूरी का मेहनताना देने से मना कर दिया, तो उसने रात को उस आदमी के मकान को ही कचरे के ढेर में बदल दिया ।
पीछे से उसके पति ने दूसरी शादी कर ली तो फूलन ने भी सामाजिक तानों से परेशान होकर डाकु बाबू गुज्जर के गिरोह में शामिल हो गयी । गिरोह के सरदार बाबू गुज्जर और दूसरे डाकू विक्रम मल्लाह दोनों फूलन को पसंद करते थे पर फूलन विक्रम मल्लाह को पसंद करती थी । इस बात पर उन दोनों में तनातनी हुई जिसमें विक्रम मल्लाह, बाबू गुज्जर को मारकर गिरोह का सरदार बन गया और फूलन ने विक्रम के साथ एक बार फिर से गृहस्थ जीवन की शुरुआत की ।
फूलन अपने घावों को भूलने वालों में से नहीं थी, इसलिये उसने फैसला किया कि उसका जीवन नारकीय बनाने वाले अपने पहले पति से बदला लेगी और चल पड़ी अपने गिरोह के साथ अपने पुराने ससुराल । वहाँ पहुँचकर उसने अपने पुराने पति से मिले घावों का बदला लिया ।
इसी दौरान ठाकुर गिरोह के सरगना श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर, जो बाबू गुज्जर से हमदर्दी रखते थे, इस बात से नाराज थे कि कैसे कोई छोटी जाति का आदमी उस गिरोह का सरदार बन गया । ठाकुर गिरोह के नजर में इस पूरे वाकये की जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ फूलन थी ।
इसी बीच एक दिन ठाकुर गिरोह ने मौका पाकर रात को सोते हुए विक्रम मल्‍लाह को मारकर फूलन को उठा कर बेहमई गाँव ले जाया गया ।
वहाँ कुसुम ठाकुर नामक औरत ने उसके कपड़े फाड़े और गाँव के आदमियों के सामने नंगा छोड़ दिया । ठाकुर गिरोह उसे नग्न अवस्था में रस्सियों से बांधकर पूरे बेहमई गांव में नंगा घुमाया । उसके बाद सबसे पहले ठाकुर गिरोह के सरगना श्रीराम ठाकुर ने उसके साथ बलात्कार किया । फिर बारी-बारी से गांव के लोगों ने उसकी इज्जत लूटी, उसे बालों से पकड़कर खींचा, लाठियों से पीटा । करीब दो सप्‍ताह से अधिक समय तक फूलन को नग्‍न अवस्‍था में बेहमई में बंधक बनाकर रखा । इस दौरान उसके साथ रोज तब तक सामूहिक बलात्कार किया जाता जब तक वह बेहोश नहीं हो जाती । वहाँ से छूटने के बाद फूलन न्याय के लिए दर-दर भटकती रही लेकिन कहीं से न्याय न मिलने पर फूलन ने बंदूक उठाने का फैसला किया और वो डकैत बन गई ।
14 फरवरी, 1981 को फूलन फिर अपने घावों को भरने बहमई गांव लौटी, और वहाँ उसे 2 ठाकुर मिले जिन्होंने उसके साथ बलात्कार किया था । उसने उन दोनों समेत 22 ठाकुरों को गांव के बीच में एक साथ खड़ा कर गोलियों से भून दिया ।
उस समय फूलन की उम्र करीब 18 साल की थी ।
इस पूरे प्रकरण के बाद से फूलन "बैंडिट क्वीन" के नाम से पूरे देश की मीडिया में छा गयी ।
ठाकुरों से उसकी दुश्मनी थी इसलिए उन्हें अपनी जान का ख़तरा हमेशा महसूस होता था । चंबल के बीहड़ों में पुलिस और ठाकुरों से बचते-बचते वह थक गईं थीं इसलिए तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से 1983 में फूलन देवी से सरेंडर करने की सलाह को फूलन ने मान लिया । पर आत्मसमर्पण को लेकर फूलन में मन में शक था कि यूपी पुलिस आत्मसमर्पण के बाद मेरी व मेरे साथियों की हत्या कर देगी इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण से पहले 3 प्रमुख शर्तें रखी -
1. मध्य प्रदेश सरकार के सामने हथियार डालेगी ।
2. उसे या उसके सभी साथियों को मृत्युदंड नहीं देने की थी ।
3. उसके गैंग के सभी लोगों को 8 साल से अधिक की सजा न दी जाए ।
सरकार की पहल पर भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी और फूलन में कई दौर की बात चली और सभी शर्तें मानने के बाद फूलन आत्मसमर्पण को राजी हो गई । मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले और उस समय उन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के मामले थे । उस समय फूलन की एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ जमा थी ।
फूलन को बिना सज़ा सुने 11 साल जेल में रहना पड़ा । मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया और 1994 में फूलन जेल से छूट गई । जेल से छूटने के बाद उम्मेद सिंह से फूलन ने शादी की और राजनीति में कदम रखा ।
1996 में फूलन देवी ने मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीतकर सांसद बनी । चम्बल में घूमने वाली फूलन अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले नम्बर 44 में रहने लगी । 1998 के आम चुनावों में हार गई पर 1 साल बाद 1999 में फिर वहीं से जीत गईं ।
25 जुलाई 2001 को शेरसिंह राणा नाम का बैंक चोर विक्की, शेखर, राजबीर, उमा कश्यप, उसके पति विजय कुमार कश्यप के साथ दो मारूति कारों से दिल्ली आया और फूलन के घर के बाहर फूलन के संसद से घर लौटने का इंतजार कर रहा था । फूलन के गाड़ी से उतरते ही राणा ने उनके सिर में गोली मारी जबकि विक्की ने उनके पेट में कई गोलियां उतार दी ।
पुलिस के आरोप-पत्र के मुताबिक, बाद में राणा ने जमीन पर गिर चुकी फूलन पर अंधाधुंध गोलियों की बरसात कर दी । और उस दिन फूलन अपने जिंदगी के संघर्ष से हार गई ।
फूलन किसी के लिये कानून की गुनाहगार थी तो कइयों का लिये जिंदगी की हर तकलीफ से लड़कर जीने का जज्बा । फूलन कुछ भी रही हो पर उसने कभी झुककर जीना नहीं सीखा । और उन लाखों बलात्कार पीड़िताओं के लिये एक सीख थी जो बलात्कार के बाद खुद को जमाने के सामने असहाय मान लेती है । जिंदगी में इतनी कठिनाइयों के बाद भी खुलकर जीने का सलीका किसी से सीख सकते है तो वो सिर्फ फूलन देवी ही है ।

Monday 15 January 2018

पद्मावती के जौहर से सुलगता देश

हफ्ते भर पहले खबर आई कि CM वसुंधरा राजे सिंधिया ने राजस्थान में पद्मावत को रिलीज करने पर प्रतिबंध लगा दिया । फिर इसका अनुसरण करते हुए गुजरात CM विजय रुपाणी ने गुजरात मे और शिवराज सिंह चौहान ने MP में इसे प्रतिबंधित कर दिया ।
मेरे मन में फिल्म को लेकर "क्यों ?" की शक्ल में बहुत से सवाल उठ रहे है कि
* आखिर "क्यों" इस फिल्म को प्रतिबंधित किया जा रहा है ?
* आखिर "क्यों" किसी को उसकी बात कहने से रोका जा रहा है जबकि अभिव्यक्ति की आजादी मूल अधिकार है
* आखिर "क्यों" देशभर के राजपूत एक काल्पनिक पात्र के लिये वास्तविकता से लड़ने को उतावले हो रहे है
* आखिर "क्यों" करणी सेना पद्मावती की रिलीज को रोकने पर अड़ा है ।

उपरोक्त तमाम "क्यों ?" के जवाब बारी - बारी से आपके सामने रख रहा हूँ, पहले "क्यों" जवाब है कि यह फ़िल्म राजपूतों की भावनाएं आहत कर रही है इसलिए इसे बैन किया जाना चाहिए । जबकि तमाम इतिहासकारों के मुताबिक पद्मिनी ( पद्मावती ) नाम की रानी जरूर हुई थी पर बाकी सभी बातें काल्पनिक है, जिनकी ऐतिहासिकता शत प्रतिशत संदिग्ध है । मलिक मोहम्मद जायसी रचित पद्मावत नामक महाकाव्य में लिखे ऐतिहासिक तथ्य हर तरह अप्रासंगिक है । इस संदर्भ में सर्वाधिक उद्धृत तथा प्रमाणभूत मत महामहोपाध्याय रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा का मत माना गया है। ओझा जी ने पद्मावत की कथा के संदर्भ में स्पष्ट लिखा है कि "इतिहास के अभाव में लोगों ने पद्मावत को ऐतिहासिक पुस्तक मान लिया, परंतु वास्तव में वह आजकल के ऐतिहासिक उपन्यासों की सी कविताबद्ध कथा है, जिसका कलेवर इन ऐतिहासिक बातों पर रचा गया है कि रतनसेन (रत्नसिंह) चित्तौड़ का राजा, पद्मिनी या पद्मावती उसकी राणी और अलाउद्दीन दिल्ली का सुल्तान था, जिसने रतनसेन (रत्नसिंह) से लड़कर चित्तौड़ का किला छीना था। बहुधा अन्य सब बातें कथा को रोचक बनाने के लिए कल्पित खड़ी की गई है; क्योंकि रत्नसिंह एक बरस भी राज्य करने नहीं पाया, ऐसी दशा में योगी बन कर उस की सिंहलद्वीप (लंका) तक जाना और वहाँ की राजकुमारी को ब्याह लाना कैसे संभव हो सकता है। उसके समय सिंहलद्वीप का राजा गंधर्वसेन नहीं किन्तु राजा कीर्तिनिश्शंक देव पराक्रमबाहु (चौथा) या भुवनेक बाहु (तीसरा) होना चाहिए। सिंहलद्वीप में गंधर्वसेन नाम का कोई राजा ही नहीं हुआ। उस समय तक कुंभलनेर (कुंभलगढ़) आबाद भी नहीं हुआ था, तो देवपाल वहाँ का राजा कैसे माना जाय ? अलाउद्दीन 8 वर्ष तक चित्तौड़ के लिए लड़ने के बाद निराश होकर दिल्ली को नहीं लौटा किंतु अनुमान 6 महीने लड़ कर उसने चित्तौड़ ले लिया था, वह एक ही बार चित्तौड़ पर चढ़ा था, इसलिए दूसरी बार आने की कथा कल्पित ही है।"


जबकि इतिहास पर एक नजर डालें तो उसमें हजारों राजपूत राजाओं ने अपना राजपाट बचाने के लिये अपनी बहन - बेटियां मुगल / मुस्लिम शासकों से ब्याही है । अगर अकेले राजस्थान की बात करें तो 15वीं सदी से लेकर 20वीं तक का इतिहास खंगाला जाये तो हजारों नाम मिलेंगे, जिनमें राजस्थान के प्रमुख रजवाड़े जोधपुर, आमेर ( जयपुर ) , अजमेर , चितौड़, बीकानेर आदि से दर्जनों बहन / बेटियों को ब्याहा गया है । और इन शादियों में अकेली राजकुमारी ही नहीं भेजी जाती, बल्कि उनके साथ तमाम तरह की महिला नौकर भी भेजी जाती, जो कि एक तरह से राजकुमारी के साथ राजा को भेंट स्वरूप भेजी जाती थी । इसके अलावा इतिहास खंगाले तो पता चलता है कि अकबर का जोधपुर की राजकुमारी जोधा से विवाह हुआ था, ततपश्चात उसी जोधपुर राजघराने ने अपनी बेटियां फिर से मुगलों से ब्याही थी जिनमें जहांगीर की पहली बीबी उसकी माँ जोधा की भतीजी थी तो जहांगीर की दूसरी बीबी जोधा के भतीजे की बेटी थी ।

चलिए, एक बरगी मान भी लिया जाए कि पद्मावती असल मे हुई थी, और उसके लिये 2 साल युद्ध चला हो तो अब जब इतने अनगिनत उदाहरण इतिहास में भरे पड़े है तो फिर राजपूत समाज द्वारा विरोध क्यों किया जा रहा है ?

अब आते है अभिव्यक्ति की आज़ादी पर, जिसपर पिछले कुछ सालों में जोर जबरदस्ती से प्रहार किए गए है । उदाहरण के तौर पर डॉ. दाभोलकर, गोविंद पंसारे, प्रो. कुलबर्गी, गौरी लंकेश के नाम प्रमुख है जिनकी हत्या तक कर दी गयी । इन सब पर कोई एक्शन न होना यह दर्शाता है कि ये तमाम हत्याएं सरकार की शह पर हुई है ।

इस फ़िल्म का मुखर विरोध करने वाली करणी सेना का मुखिया, सुखबीर सिंह गोगामेड़ी, खुद एक स्टिंग में यह कहता पाया गया है कि पैसे ले-देकर हम इसे खत्म कर सकते है, विरोध तो सिर्फ दिखावा है ।
आपको बता दूं कि ये वही सुखदेव सिंह गोगामेड़ी है जिसपर कई आपराधिक केस चल रहे है और चुरू और हनुमानगढ़ जिले का छंटा हुआ बदमाश है, जो चुनाव भी लड़ चुका है और कुछ साल पहले ही अचानक से करणी सेना का प्रदेश अध्यक्ष बन गया था । अब सवाल ये उठता है कि क्या राजपूत समाज के पास नेतृत्व की इतनी कमी है जो एक अपराधी पूरे समाज की दशा और दिशा तय कर रहा है ।

ये सब बातें तो हुई पद्मावती ( अब पद्मावत ) को लेकर, पर इन सबके इतर एक मनोवैज्ञानिक पहलू और भी है जिसकी पड़ताल हमें करनी चाहिये, वो है कि आखिर क्यों लोग देशभक्ति/संस्कृति के नाम पर परोसे जा रहे झूठ पर आसानी से यकीन कर लेते है और बिना सच जाने ही मार-काट, हिंसक प्रदर्शन पर उतारू हो जाते है ?

इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है अशिक्षा, तर्कविहीन समाज का । ये दंगा फसाद फैलाने वाले आम लोग नही है, ये किसी संगठन/विचारधारा विशेष के लोग है जो देशभक्ति/संस्कृति के नाम पर बवण्डर खड़ा करते है । चूँकि भारत का पिछले 300 सालों का इतिहास धार्मिक और सामाजिक वैमनष्य का रहा है, ज्यादातर लोग धार्मिक तौर पर असहिष्णु है इसलिये धर्म के नाम पर आसानी से भड़क जाते है ।
अगर कुछ विशेष उदाहरण छोड़ दिए जाएं तो आम आदमी मार - काट और हिंसक प्रदर्शन करने को इतनी आसानी से उतारू नही होता है । हां, अपनी प्रतिक्रियाएं जरूर दर्ज करवाता है ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हिटलर ने गोएबल्स नामक व्यक्ति को अपना प्रचारमंत्री ( जैसे PM नरेंद्र मोदी के लिए अमेरिकन APCO ) नियुक्त किया था जिसकी सीधी सी थ्योरी थी कि एक झूठ को अगर 100 बार बोला जाए तो लोग उसे सच मानने लग जाते है क्योंकि आम आदमी जीवन के संघर्षों में इस कदर उलझा रहता है कि उसके पास सच जानने जितना समय नहीं बचता है और वो अंततः उस भेड़चाल का हिस्सा बन जाता है ।
अगर इस भेड़चाल को रोकना है तो गलत और भ्रामक सूचनाएं फैलाने वाले तत्त्वों को रोकना होगा और समाज को शिक्षित कर उसे अधिक से अधिक तर्कशील बनाना होगा ।

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...