Wednesday 21 September 2016

कलेक्टर

फोन बजा तो मैं दौड़कर लपका, देखा हरिराम का फोन है, उठाते ही उधर से आवाज आई, " भाई रामपत, राकेश कलेक्टर बन गया, अभी उसका फोन आया था, बहुत खुश था वो " बोलते बोलते गला रूँध सा गया था उसका, शायद ज्यादा खुशी में अपने जज्बात काबू नहीं रख पा रहा था । मैंने कहा "शाम को आता हूँ, मिलके जश्न मनायेंगे " और फोन काट दिया ।
एकाएक मेरी नजरों में पुराने दिन आ गये । जब राकेश  जन्मा तो उसकी माँ की मौत हो गयी थी । क्योंकि आस पास कोई अस्पताल तो था नहीं, घर में ही दाई को बुलाया गया पर ज्यादा खून बहने से लता भाभी की मौत हो गयी । हरी भाई ने जैसे तैसे करके पाला और पढ़ाया लिखाया । माँ की कमी कभी भी महसूस नहीं होने दी । दिन रात मेहनत करता अपने छोटे से खेत में । एक बरसात वाली फसल होती थी, बाकि समय में मजदूरी करता था । कितनी मेहनत से पढ़ाया था हरिराम ने राकेश को । जब राकेश 12वीं में था और गाँव में बिजली नहीं थी तो हरिराम दिन में दूसरे गाँव जाकर बेटरी चार्ज करके लाता और उसके खाने पीने से लेकर सुबह जल्दी उठाकर चाय बनाता था । जब परिणाम आया तो राकेश ने 12वीं बोर्ड में जिलेभर में प्रथम स्थान प्राप्त किया । फिर स्नातक के लिये शहर की नामी कॉलेज में दाखिला मिल गया था । उसने मेहनत की और यूनिवर्सिटी भी टॉप किया । फिर उसने ias बनने की इच्छा प्रकट की तो हरिराम ने उसे दिल्ली भेज दिया कोचिंग के लिये । कुछ पैसे मैंने दिये और कुछ इसके पास थे, इस तरह कोचिंग की फीस का इंतजाम हो गया । हरिराम घर से कमजोर था पर उसने राकेश की पढ़ाई के आड़े पैसों की तंगी कभी नहीं आने दी । बाकि खुद का खर्चा राकेश वहाँ ट्यूशन देकर निकाल लेता था । इतने में रानी, मेरी बेटी, ने आवाज दी तो सपने से बाहर आया ।

आज सुबह जल्दी उठ गया था, नहा धोकर तैयार हुआ तो रानी की अम्मा ने पूछ लिया " आज नए कपड़े पहन के कहाँ जाने की तैयारी हो रही है ? "
मैंने कहा " शहर जा रहा हूँ । हफ्ते भर पहले जो कलेक्टर का रिजल्ट आया था न, उसमें अपने समाज के कई होनहारों का भी नाम था तो उन्हें सम्मानित करने का कार्यक्रम है । उसमें अपने हरिराम के बेटे राकेश का भी नाम है ।"
" ठीक है जाइये पर समय पर आ जाना वापस, रामपत भैया के वहाँ जाकर हमें भूल ही जाते हो, 2 - 2 दिन तक नहीं आते हो "
" अरे भागवान, उसके साथ रहता हूँ तो सुकून सा मिलता है, और उसे भी । बेटा तो दूर रहता है तो बेचारा अकेला घर में ऊब जाता है । हम बतिया लेते हैं तो उसका भी मन हल्का हो जाता है ।"
" हाँ, हाँ, हम तो आपको परेशान ही करते हैं, सारी शांति तो रामपत भैया के यहीं मिलती है आपको "
" तुम तो नाराज हो गयी, हमारे कहने का मतलब वो नहीं था ..."
" ठीक है, ठीक है, जो भी मतलब था तुम्हारा ... घर में राशन नहीं है लेते आना और जल्दी आना । ये भी याद रखना कि तुम्हारे घर पर भी बीवी बच्चे हैं "

मैंने सोचा थोडा जल्दी ही चलता हूँ, कुछ बड़े लोगों से मिल भी लूँगा, बाद में तो मुझ जैसे छोटे आदमी से मिलने का वक़्त कहाँ होगा । इसलिये तड़के 9 बजे ही पहुँच गया ।  समाज की धर्मशाला में पहुँचा तो देखा काफी चहल - पहल है,  बड़ा शामियाना सजा है, हजारों लोग आये हुये है जिनमें समाज के नेता, समाजसेवी, शिक्षक, उद्योगपति आदि शामिल हैं । मैं भी अपने जानकारों से मिला फिर इतने में हरिराम भी आ गया । उसके लिये आज आगे की सीट बुक थी तो वो मुझे भी आगे ले गया पर व्यवस्थापको ने कहा कि जिनके पास #पास हैं, वही आगे बैठ सकता है तो मैंने कहा " कोई बात नहीं, मैं पीछे बैठ जाऊँगा । राकेश को तो रोज ही देखते है, अपना ही बच्चा है "
रामपत ने भी अपना पास फेंकते हुये कहा " चलो पीछे साथ ही बैठेंगे, पास तो आज है कल नहीं, पर हम तो बरसों के साथी है, चलो "

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