Saturday 2 November 2013

Kejriwal's interview by Sagarika Ghose (CNN-IBN)

Aam Aadmi Party (AAP)
national convener Arvind Kejriwal
has become the first Indian
politician to give a Twitter
interview. Unlike any other Indian
politician, Kejriwal readily
answered questions from CNN-IBN Deputy Editor Sagarika Ghose on
the micro-blogging site Twitter.
During the interview, Kejriwal said
that his party won't give free
electricity to any one if it comes to
power in Delhi. "We are not giving
free power to anyone," Kejriwal
tweeted.
CNN-IBN Deputy Editor Sagarika
Ghose asked him 10 questions on
Twitter:
Sagarika Ghose: How will you make
up Delhi's power deficit? Will you
buy power? Who will pay?

Arvind Kejriwal: Delhi is a power
surplus state now, not power
deficit anymore.

Sagarika Ghose: Will you give free
power to the poor? Nationalise
electricity? Bring back DESU?

Arvind Kejriwal: We are not giving
free power to anyone.

Sagarika Ghose: New AC buses
heavily subsidised by Centre under
JNNURM. If a hostile Centre stops
this subsidy what will you do?

Arvind Kejriwal: Does this mean we
should dismiss all non-Congress
state governments or should state
governments be servile to Centre?

Sagarika Ghose: What will you do
on cycle rickshaws, street vendors?
Regularise them? Ban them?

Arvind Kejriwal: We will organise
them properly.

Sagarika Ghose: What will you do
on Land/Lal Dora issues? Demolish
or regularise illegal slum colonies?

Arvind Kejriwal: Lal dora issue is
quite serious for villagers. Lal dora
limits ought to be revisited in
consultation with villagers

Sagarika Ghose: Will a JLP Bill not
create a daroga raj, inspector raj,
massive army of babu-cops, more
red tape, delays?

Arvind Kejriwal: JLP is only about
creating an independent CBI at
Centre and similar independent
body at state level

Sagarika Ghose: Where do you
stand on welfare spend? You
support FSB, MNREGA? More
spending?

Arvind Kejriwal: We need to create
an honest delivery system for the
poor. People should be directly
involved in designing and
implementation of schemes

Sagarika Ghose: Your party is a
year old - are you confident your
MLAs won't be bought over for
crores in event of hung house?

Arvind Kejriwal: Our MLAs are
completely with the party. In any
case, under present anti-defection
law, it is almost impossible.

Sagarika Ghose: How will you fast
track police reforms? Will you
implement SC recommendations on
police reforms in Delhi?

Arvind Kejriwal: Delhi Police under
Centre's control.

Sagarika Ghose: Does the entire
party support Prashant's well
known views on J&K?

Arvind Kejriwal: No. The party does
not support his views
Twitter users seemed appreciative
of this democracy on social media.

Sagarika Ghose tweeted after interview (@sagarikaghose):

'Fabulous! @ArvindKejriwal only
politician who responded to my 10
quesns, when @BeWithRG and
@narendramodi just ignored! A
new type of neta:) (sic)' Arvind
responded, "Will you ask Sheila?"
The tweet may not become a vote,
but Kejriwal may have tweeted his
way into his young fans' hearts. Is
Rahul Gandhi, the 'youth icon',
listening ?

Link of Kejriwal's interview
http://t.co/xtZLFiIr9p

Sunday 6 October 2013

धरती पुत्र चौ. महेन्द्र सिंह टिकैत : किसानों की आन, बान और शान

किसान मसीहा " चौ महेन्द्र सिंह टिकैत " के जन्म दिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएं ।
चौधरी साहब का जन्म 6 अक्तुबर 1935
सिसौली गांव, मुज्जफरनगर में हुआ था ।
वो किसानो के मसिहा के रुप में जाने जाते थे ।


उनका स्मरण करते समय एक छवि है,  हाथ में हुक्का गुडगुडाता एक देहाती किसान और  उनका जुझारुपन, अक्खड़ता और ठेठ गंवई अंदाज, और स्वाभिमान ऐसा कि खोजे न मिले,ऐसी शख्सियत थे चौधरी साहब ।
अक्खड़ दिखाई देने वाले इस व्यक्ति में मिलनसारिता कूट-कूट कर भरी हुई थी। व्यवहारिक इतनी कि यदि आप एक
बार बिना परिचय के भी मिलने चले जाएं तो उसके
मुरीद हो जाएं। टिकैत को नेतृत्व के गुण
तो विरासत में मिले थे लेकिन अद्भुत संघर्ष
की क्षमता ने उन्हें उस मुकाम पर पंहुचा दिया,
जहां किसान उन्हें 'बाबा' और 'भगवान'
का दर्जा दिया करते थे। चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत को एक जुझारु किसान
नेता के तौर पर पूरी दुनिया जानती है लेकिन यह
व्यक्ति एक दिन में या किसी की कृपा से
'किसानों का मसीहा' नहीं बन गया बल्कि सच
तो यह है कि कभी इस शख्सीयत ने धूप-छांव,
भूख-प्यास, लाठी-जेल की परवाह नहीं की। अगर
अपने कदमों को किसान संघर्ष के लिए बाहर
निकाल दिया तो फिर कभी पीठ नहीं दिखाई लेकिन
यदि लगा कि इससे
किसानों या साथियों का नुकसान
हो जाएगा तो कभी मूछ का सवाल भी नहीं बनाया।
1935 में जन्में चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत
को आठ साल की उम्र में तब बालियान खाप
का मुखिया बनाया गया था जब वह महज आठ
साल के थे। ये गद्दी उन्हें अपने पिता के निधन के
बाद विरासत में
मिली थी क्योंकि तेरहवीं शताब्दी से इस खाप
की चौधराहट टिकैत खानदान के पास
ही चलती चली आ रही थी। टिकैत जाटों के
रघुवंशी गौत्र से ताल्लुक रखते थे लेकिन बालियान
खाप में सभी बिरादरियां शामिल थीं। टिकैत ने
बचपन से ही खाप व्यवस्था को समझा और
'जाति' से ऊपर 'किसान' को स्थापित करने में जुट
गए। उनकी प्रशासकीय और न्यायिक सूझ गजब
की थी। वह हमेशा दूसरी खापों से गूढ़ संबंध रखते
और एक दिन 17 अक्टूबर 1986 को किसानों के
हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन
'भारतीय किसान यूनियन' की स्थापना कर ली।
यह वह समय था जब चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद किसान राजनीति में एक शून्य
पैदा हो गया था। किसानों की हालत यह
थी कि डरा-सहमा किसान जब खाद, पानी,
बिजली की समस्याओं को लेकर जब
सरकारी दफ्तरों में जाता था तब उसे दुत्कार कर
भगा दिया जाता था। अजित सिंह चौधरी चरणसिंह
के बारिस तो थे लेकिन आम किसान उन्हें
चौधरी साहब की वजह से
ही अपना मानता था क्योंकि एलीट क्लास के
अजित किसानों से उनके अपने जैसा व्यवहार
नहीं कर पाते थे। 
हांलाकि बीकेयू उन दिनों लोकल
संगठन था लेकिन सूबे के किसानों की समस्याएं
एक जैसी थीं। टिकैत ने जब देखा कि गांवों में
बिजली न मिलने से किसान परेशान है, उसकी फसलें
सूख रहीं हैं, चीनी मिलें उनके गन्ने को औने-पौने
दामों में खरीदती हैं तो उन्होंने
किसानों की समस्याओं को लेकर 27
जनवरी 1987 को मुजफ्फरनगर के शामली कस्बे
में स्थित करमूखेड़ी बिजलीघर को घेर लिया और
हजारों किसानों के साथ समस्या निदान के लिए
वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस-प्रशासन ने तीन दिन
तक कोशिश की कि किसान किसी तरह वहां से उठ
जाएं लेकिन जब किसान टिकैत के नेतृत्व में
वहां डटे रहे तो पुलिस ने उन पर
सीधी गोलियां चला दीं। इस गोलबारी में दो किसान
जयपाल और अकबर अली ने मौके पर ही दम तोड़
दिया। टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने गोलीबारी में
मारे गए दोनों युवकों के शव पुलिस को घटनास्थल
से नहीं उठाने दिए।
इतना ही नहीं टिकैत आंदोलन में
शहीद हुए किसानों के अस्थिकलश गंगा में
प्रवाहित करने खुद शुक्रताल के लिए रवाना हुए
तो उनके पीछे
इतना बड़ा किसानों का कारवां था कि उनके रास्ते
में एक भी खाकी वर्दी वाला दिखाई नहीं दिया।
अस्थि कलश यात्रा में टिकैत के पीछे चलती भीड़
की संख्या का अंदाजा लगाना तो मुश्किल
था लेकिन जितना मैने देखा उसके मुताबिक
यात्रा का एक सिरा शुक्रताल पंहुच चुका था लेकिन
दूसरा सिरा मुजफ्फरनगर में था। इसके बाद टिकैत
का जुझारुपन किसानों को इतना भाया कि इस
आंदोलन के बाद से उनके मुंह से निकले शब्द
किसानों के लिए ब्रह्मवाक्य बन गए।
टिकैत ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी किसानों को एकजुट कर दिया और सभी खापें एक मंच पर आ गईं।
टिकैत के शब्द भले ही ब्रह्मवाक्य बन चुके थे
लेकिन उन्होंने हमेशा किसी भी आंदोलन को शुरु
करने या खत्म करने के लिए मंच पर
सभी खापों और सभी बिरादरियों के
पंचों को बिठाया और उनकी रायशुमारी पर आगे
का फैंसला लिया। ये उनके नेतृत्व का गुण
था कि वह 'शक्तिशाली' होने के बाद
भी लोकतांत्रिक परंपराओं का हमेशा निर्वहन करते थे।
दो किसानों की मौत के बाद टिकैत ने आंदोलन बंद
नहीं किया बल्कि 1 अप्रैल 1987 को उन्होंने
वहां किसानों की सर्वखाप महापंचायत बुलाई और
उसमें फैंसला लिया कि शामली तहसील या जिले में
उनकी मांगों पर कोई विचार नहीं हो रहा इसलिए
कमिश्नरी घेरी जाए। लाखों किसानों की इस
महापंचायत में फैसला लेने के बाद 27
जनवरी को मेरठ कमिश्नरी पर डेरा डाल दिया।
लाखों किसानों ने मेरठ कमिश्नरी घेर ली और
वहीं पर किसानों ने खाने के लिए
भट्टियां सुलगा दीं। नित्य कर्मों के लिए
कमिश्नरी का मैदान सुनिश्चित कर लिया ।
35 सूत्रीय मांगों को लेकर यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चौबीस दिन चला ।
आंदोलन में भाग लेने आए कई किसान ठंड लगने से मर गए लेकिन टिकैत के नेतृत्व में किसान टस से मस नहीं हुए। पुलिस- प्रशासन ने उन्हें उकसाने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्होंने अहिंसा का रास्ता नहीं छोड़ा।
चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत अब महात्मा टिकैत के
नाम से पुकारे जाने लगे थे। शासन-प्रशासन
हतप्रभ था कि इतने दिन तक इतने किसान भयंकर सर्दी के मौसम में खुले आसमान के नीचे कैसे डटे हुए हैं।
चौबीस दिन बाद टिकैत ने सरकार को गूंगी-
बहरी कहते हुए यह आंदोलन खुद यह कह कर
खत्म कर दिया कि कमिश्नरी में उनकी सुनवाई
संभव नहीं तो वह लखनऊ और दिल्ली में दस्तक
देंगे। इसके बाद रेल रोको-रास्ता रोको आंदोलन में
पुलिस ने गोलियां चला दीं तो टिकैत दल-बल सहित
6 मार्च 1988 को रजबपुरा पंहुच गए और एक
सौ दस दिन तक किसानों के साथ तब तक धरने
पर बैठे रहे जब तक गूंगी-बहरी सरकार के कानों में
जूं नहीं रेंगी। रजबपुरा के बाद टिकैत ने देश भर के
किसान नेताओं और किसानों के अराजनीतिक
संगठनों से संपर्क किया और उनके साथ एक बैठक
में फैंसला लेने के बाद 25 अक्टूबर को वोट क्लब
पंहुच गए। लाखों किसानों ने वोट क्लब को घेर
लिया। उन्हें हटाने के लिए पुलिस ने काफी यत्न
किए। पानी की बौछारों और लाठियों के सहारे उन्हें
उत्तेजित करने की भी कोशिश की गई लेकिन टिकैत
और उनके नेतृत्व में किसान यह जान चुके थे
कि उनका हथियार अहिंसा है। सात दिन चले धरने
में केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के आग्रह और
आश्वासन के बाद टिकैत ने वोट क्लब से
किसानों का धरना उठा लिया।
मेरठ कमिश्नरी, रजबपुरा और वोट क्लब
की रैलियों में टिकैत की मुट्ठी में
लाखों किसानों को देख राजनीतिक दिग्गज उनसे
नजदीकियां बनाने का जतन करने लगे। नब्बे के
दशक में यूपी और हरियाणा से उन्हें राज्यसभा में
पद ग्रहण करने का न्यौता भी मिला लेकिन
बाबा ने स्वीकार नहीं किया। पूर्व
प्रधानमंत्री देवगौड़ा से टिकैत
की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं रही।
कभी उपप्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय देवीलाल ने
भी टिकैत को किसान हित के लिए राजनीति में
कूदने की सलाह दी थी। टिकैत ने राजनेताओं से
नजदीकियां तो रखीं लेकिन कभी प्रत्यक्ष रूप से
कोई लाभ नहीं लिया और न संघर्ष
का रास्ता छोड़ा। हांलाकि उनके बेटे राकेश टिकैत ने
भारतीय किसान यूनियन की राजनीतिक बिंग
बनाकर चुनाव भी लड़े लेकिन पुत्रमोह में टिकैत ने
बस इतना किया कि वह अपने पुत्र की राजनीतिक
हसरतों पर खामोश रहे। सापेक्ष रूप से
कभी राजनीतिक गतिविधियों का साथ नहीं दिया।
संघर्ष की राह को हमेशा कायम रखा। वोट क्लब
के बाद भी उन्होंने दर्जनों बड़े आंदोलन किए और
कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन वह न
कभी याचक बने और न स्वाभिमान से
समझौता किया।
उनकी खुद्दारी को इसी से
समझा जा सकता है कि जब 8 मार्च 2011 
को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें
सरकारी खर्चे पर दिल्ली में बेहतर इलाज
की पेशकश की तो वह गंभीर अवस्था में भी ठहाके
लगा कर हंस दिए। उन्होंने प्रधानमंत्री से सिर्फ
इतना कहा कि उनकी हालत गंभीर है; पता नहीं कब
क्या हो जाए, ऐसे में यदि उनके जीते जी केंद्र
सरकार किसानों की भलाई में कुछ ऐसा ठोस कर दे
जिससे वह आखिरी वक्त में कुछ राहत महसूस कर
सकें और उन्हें दिल से धन्यवाद दे
सके
......15 मई 2011 को किसानो के इस मसीहा ने अंतिम सांस ली ......आज ये किसान नेता हमारे बीच
नहीं है और समस्याएं भी वही हैं.........काश!
वह अपने जीवन में किसानों को खुशहाल देख पाता।
काश! उसे अपने अंतिम दिनों में टप्पल और
भट्टा पारसौल जैसी लोमहर्षक घटनाएं न देखने
को मिलतीं.................ऐसे में समझ में नहीं आ
रहा कि उस महान दिवंगत आत्मा की शांति के लिए
प्रार्थना कैसे करूं।
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Tuesday 1 October 2013

बुजुर्ग - Free Encyclopedia

अंतराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर सभी को बधाई और सभी बुजुर्गों के लिए शुभकामनायें और उनसे अनुरोध है कि वो सब पर अपना आशीर्वाद बनाये रखें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें ।

बुजुर्ग शब्द दिमाग में आते ही उम्र व विचारों से परिपक्व व्यक्ति की छवि सामने आती है । बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा निर्देश करते हैं  । वरिष्ठ नागरिक हमारे गौरव हैं, वे पूज्यनीय हैं उनका सम्मान किया जाना चाहिए। बेकार पुरानी चीज समझ उन्हें घर के कोने में रख देना अपमानित करना है। यदि ऐसा करते हैं तो आने वाली हमारी संतानें वैसा ही व्यवहार करेंगी ।

आपके लिए मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगा कि "उम्र कोई सीमा नही है बल्कि ये तो एक आंकड़ा है ज्ञान का, जिन्दगी के तजुर्बे का, अनुभव का, खट्टी-मिठ्ठी यादों का ।"
या फिर आज के ज़माने के हिसाब से परिभाषित करूं तो  "बुजुर्ग समाज का ऐसा ओपन ऑफलाइन इनसाइक्लोपीडिया हैं जो बिना कोई दिक्कत के घर पर ही 24*7 सर्विस देते हैं ।"

आप तो समाज और परिवार के वो गुरु होते हैं जहाँ बिना किताब के ही जिन्दगी जीना सिखा देते हैं ।जो लोग आजकल एकल परिवार को प्राथमिकता देते हैं और बुजुर्गों को साथ रखने में शर्म महसूस करते हैं उनको इतना ही कहना चाहता हूँ कि  किताबी ज्ञान से जिन्दगी नहीं जी जाती है इसलिए बुजुर्गों की उपयोगिता को नकारे नहीं बल्कि  बढ़ावा दें । इनकी इज्जत करें और संयुक्त परिवार को बढ़ावा दें ।ये तो ज्ञान का वो घड़ा है जिसकी जरुरत तब तक रहेगी जब तक ये धरती रहेगी ।ये खत्म तो ये दुनिया ख़त्म ।
आप लोगों ने हमे संस्कार दिये, सभ्यता दी, जीवन जीने की कला सिखायी, और सबसे जरुरी बात सम्मान के साथ रहना और मेहनत कश जीवन जीना सिखाया बिना किसी स्वार्थ के ।

हमने भगवान नही देखे पर उनके बारे में सुना यही है कि वो निस्वार्थ सेवा करते हैं भक्तों की और ये सब हमने आप में देखा है इसलिये हमारे तो आप ही भगवान हुए । आपने हमेशा समाज और परिवार को सिर्फ दिया माँगा कुछ नही । आपने हमें एक नई कला सिखायी - ' आर्ट ऑफ़ गिविंग (Art Of Giving)'. इसलिए हमारा भी फर्ज बनता है कि जेसे आपने हमें बिन मांगे पूरी दुनिया दी उसी तरह हम भी आपको बिना माँगे दुनिया की हर ख़ुशी दें ।

(Photo : श्री पन्नाराम जी पूनिया, मेरे दादाजी )

Saturday 28 September 2013

शहीद-ए-आज़म भगतसिंह और भारतीय अवाम

" शहीद-ए-आजम कॉमरेड भगतसिंह जी " के 106 वें जन्म दिवस पर आप सभी को बधाई और खासकर युवाओं को, क्यूकि भगत सिंह जी युवाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और उनके  आदर्श भी और बेशक मेरे भी आदर्श हैं ।
आज प्रत्येक भारतीय चाहता है कि एक बार फिर से भगत सिंह आये,,,और
अन्याय, शोषण और भ्रष्ट व्यवस्था  के खिलाफ जादू की छड़ी घुमाये और इनसे छुटकारा दिला दे ।
हम सोचते हैं कि आज इस देश की हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि भगत सिंह जेसा चमत्कारिक योद्धा ही अब इस देश की सड़ी व्यवस्था को बदल सकता है, पर क्या हम तैयार हैं इस बदलाव के लिये ?
आइये कुछ सवालों पर नज़र डालते हैं ---
- क्या हम आज सच में बदलना चाहते हैं ?
- क्या हममें से कोई भगत सिंह बनने को तैयार है ?
- क्या हम चाहते हैं कि भगत सिंह हमारे घर में पैदा हो ?
उपरोक्त सभी सवालों का एकमात्र जवाब है " नहीं "

तो फिर केसे बदलेगा हमारा भारत ?

इसका हम सबको एक ही उपाय नज़र आता है कि भगत सिंह फिर जन्मे, लेकिन अपने नही पड़ोस के घर में ।
भगत सिंह बार-बार नही आने वाले हैं यहाँ, हमें ही भगत सिंह बनना होगा । जब तक ये पड़ोसी के घर भगत सिंह के जन्म वाली सोच नही बदलेंगे तब तक कुछ नही बदलने वाला है; न भ्रष्टाचार, न गरीबों का शोषण और न ही ये सड़ी व्यवस्था, कुछ नहीं बदलने वाला है ।

सोचिये ये व्यवस्था इतनी क्यू सड़ चुकी हैं ?

क्यूकि हमने इसे बिगाड़ा है,अपने कुछ स्वार्थों को पूरा करने के लिए और इसे बिगाड़ने के लिये कोई दुसरे नही आये हैं । इसलिये जब इसे बिगाड़ा भी हमने है तो जाहिर सी बात है सुधारना भी हमें ही होगा । भगतसिंह क्यू सुधारे ?
माना कि आज के समय में किसी के पास इतना समय तो है नहीं इसलिये हमे खुद को ही बदलने से शुरुआत करनी पड़ेगी, सबको 'पार्ट टाइम' भगत सिंह बनके अपने घर को साफ करना होगा और फिर थोड़ा और समय निकालके आस-पड़ोस के लोगों को भी जागृत करना होगा । इस तरह हम भगत सिंह भी बन जायेंगे और और ये व्यवस्था भी सुधर जाएगी और साथ ही साथ भगतसिंह जी को सच्ची श्रधांजली भी मिल जाएगी ।

हमेशा याद रखें कि 'हर एक सुधार एक छोटे स्तर से शुरु होता है और फिर ये बड़ा आन्दोलन बनता है ।' इसलिए भगत सिंह जी को दिल में जिन्दा रखें और उनके कहे अनुसार शोषण और अन्याय के खिलाफ आवाज उठायें ।
वन्दे मातरम् ।
जय हिन्द ।

Monday 9 September 2013

दंगे और राजनीति : एक व्यंग्य

आज उतर प्रदेश के  मुजफरनगर जिले में अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार ने अपनी उपलब्धियों में एक और तमगा जोड़ा है, वो है नया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड -
" मात्र 18 महीने में 104 दंगे { सबसे तेज 100 दंगे } "
आज ज्यादातर न्यूज़ चैनल्स और अखबारों में एक ही खबर छाई रही -
" BREAK'ing news : इतने कम समय में इतने दंगे करवा के UP मुख्यमंत्री अखिलेश ने कायम किया नया कीर्तिमान (सबसे कम समय में 100 सांप्रदायिक दंगे ) ।"

अपने इस नये रिकॉर्ड के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए  अखिलेश ने कहा ' बीजेपी के अमित शाह को मोदी ने जब से उन्हें उप्र भाजपा का प्रभारी बनाया है तब से इस रिकॉर्ड को बनाने का ख्याल मन में था जिसे ' विहिप के 84 कोसी परिक्रमा ' के समय हमने इसे धरातल पर उतारने का असफल प्रयास किया था लेकिन तब हम सफल नही हो पाए थे, वरना हम इससे भी कम समय में ये कीर्तिमान बना सकते थे ।"
इसके आगे जोड़ते हुए कहते हैं कि " हमने उस असफलता से हार नही मानी और फिर से जुट गये इस पाक काम में । और हमने इस बार नये प्रयोग के साथ शहरों के बजाय गांवों में दंगे कराने का प्लान बनाया । जो पूर्णतया: सफल रहा और परिणाम आप सबके सामने है ।
पास ही बैठे अमित शाह की और इशारा करते हुए बोले " यदि इनका और इनकी पार्टी का सहयोग ना होता तो ये रिकॉर्ड एक सपना था, जो शायद ही कभी पूरा हो पाता ।"

अखिलेश के द्वारा इस तरह की तारीफ सुनते ही अखिलेश के गले लगते हुए , मुस्कुराते हुए बोले " ये हमारी नही इन दंगाइयों की जीत है और कौन कहता है कि गाँवो में जागरूकता नहीं है ।बिना जागरूकता के ये इतना बड़ा दंगा नामुमकिन था । ये सब मुलायम जी के समाजवाद का जीता जागता उदहारण है और गांवों की बढती हुई ताकत का एक नमूना ।"

केंद्र की मनमोहिनी सरकार पर पलटवार करते हुए इस बीजेपी नेता ने कहा कि हम आज उनके 1984 के सिख विरोधी दंगे, जो उनकी पार्टी द्वारा कराए गये गुजरात दंगों के सामने कुछ नही थे, फिर भी इसे हर बार दिग्विजय जी मुद्दा बना लेते थे, पर अब ये 100 दंगे, इन कांग्रेसियों का मुंह बंद करने के लिये काफी हैं । और फिर भी नही माने तो हम एक बार फिर 'राम मंदिर-बाबरी मस्जिद' मुद्दे को मुलायम के साथ मिलकर और व्यापक दंगे करवायेंगे ।"

इस दौरान सपा नेता आज़म खान बोले " ये हमारा लोकसभा चुनावों से पहले का शक्ति प्रदर्शन था , इससे बीजेपी को हिन्दुओं के  वोट मिलेंगे और हमें मुस्लिमों और यादवों का समर्थन मिलेगा ।यह एक ऐतिहासिक दंगा है जो भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा ।"
इस दौरान मंच पर मोजूद यादव चाचा ने कहा कि ये सब दंगे हमने बिना IAS अधिकारीयों के कराए है । इसमें शामिल सभी अधिकारी राज्य सेवा के थे, हमारे लिए ये दंगे केंद्र को जवाब देने के लिए काफी हैं ।

अंत में मुलायम ने बेटे की इस उपलब्धि पर भूरी-भूरी  तारीफ करते हुए कहा कि ' अखिलेश ने अगले 100 दंगे इस से भी कम समय में और लोकसभा चुनावों से पहले कराने का वादा किया है  और अन्य सांप्रदायिक ताकतों से और अधिक मेहनत से काम करने की अपील की है ।'

इस दौरान मुख्य विपक्षी दल बसपा की नेता ने कहा कि ' हमने भी भट्टा परसोल गाँव में दंगा करवाया था, जो कि साबित करता है कि हमारे कार्यकाल में आज से 4 साल पहले ही गाँवों में जागरूकता थी तथा इसका श्रेय खुद को दिया और बोली कि ये बाबासाहेब अम्बेडकर को श्रधांजलि बहुत पहले दे चुकी हैं  और साथ ही आरोप भी लगाया कि सपा सरकार के इन दंगों में दलितों की भूमिका न के बराबर रही जो की इनके जागरूकता के दावे की पोल खोलती है ।'

Thursday 5 September 2013

संत आसाराम और हिन्दू समाज

आसाराम, संत का चोला ओढ़े एक ढोंगी (या अपराधी ), जो कि धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलाता है लेकिन आजकल जेल में हैं और मैं आपको इसके अलावा एक और मामला बताता हूँ , जिससे ये ढोंगी पहले भी जेल जा सकता था और इस नाबालिग लड़की की इज्जत बच सकती थी और वो मामला है आसाराम के आश्रम में हुई 2 बच्चो (नाम : दीपेश और अभिषेक,उम्र : 8 वर्ष ) की हत्या (दिनांक  5 जुलाई 2007 ) का । और हत्या के बाद लाश मिली थी जिनके गुदाद्वार पर चोट के निशान थे (पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मतलब की तब भी इसके आश्रम में ये सब होता था ) ।
और इस केस की जाँच के लिए गठित डी के त्रिवेदी कमीसन की रिपोर्ट 6 साल बाद 1 महीने पहले  रिपोर्ट पेश हुई है ।
उन बच्चों के माँ-बाप कई बार गुहार लगा चुके थे लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला ।
इतनी देरी से रिपोर्ट आने के कारण ही आशाराम की हिम्मत और बढ़ी और अब ये एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप में जेल में हैं ।
क्या उस वक्त कोई एक्शन लिया जाता तो फिर ये बाबा इतनी हिम्मत कर पाता ???  नही । शायद तब की गलती अब भी दोहराई जाती लेकिन सिर्फ सोशल मीडिया की वजह से इस बार मामला ठंडा नही हुआ और आख़िरकार गिरफ़्तारी हुई ।
मुझे तो शक है कि कहीं ये पूरा सेक्स रैकेट तो नही है न ।
गिरफ़्तारी तक तो ठीक था लेकिन बाद में जेल में इनका अलग से रहना, कैदियों का खाना न खाना, जाँच अधिकारी को रिश्वत का लालच देना, इनके बेटे द्वारा लोगों को भड़काना और जाँच अधिकारी को जान से मारने की धमकी दिलवाना इत्यादि कृत्य किये गये और फिर भी इनके साथी धर्म के ठेकेदार (आचरण और व्यवहार देख के मुझे यही शब्द उपयुक्त लगा) वी एच पी का कहना है कि " आसाराम जैसे
लोगो को पकड़ कर हिन्दू समाज को कमजोर
किया जां रहा है ..आश्चर्य.....मेरा तो मानना है कि आसुमल और विहिप मिलकर हिन्दुओं को बदनाम कर रही हैं " ।
आज जरुरत है कड़ी करवाई की । जिससे इन जेसे लोगो को सबक सिखाने की और लोगो को अंधविश्वास से दूर रखने की क्यूकि ये नही तो कल कोई और आ जायेगा इसका ही भाई फिर से लोगो को ठगने के लिए ।
अंत में बताना चाहूँगा कि ये और इसके जेसे ढोंगी बोलते है कि इनको भगवान ने भेजा है लेकिन ये झूठ बोलता है क्यूकि भगवान इतने निर्दयी नहीं हो सकते कि इन जेसे लोगो को हमारे उत्थान के लिए भेजे ।

Sunday 1 September 2013

FOOD SECURITY BILL

Food Security Bill :

Out of 125 Cr , Indian population 67% means 80 cr people will Be covered.
Expenditure will be 1 lac 25 thousand cr, (Rs1,25,000,000,000,00) Means around 10 thousand Cr per month

Means Rs 125/- per month per person
Means Rs 4/- per day per person

72 thousand Cr. Rs (72,000,000,000,00) extra for
transport , storage, Distribution.

72 thousand cr extra for Admin,
implimentation

72+72=144. Lac Cr Rs. (1,44,000,000,000,00)
(120% of scheme , comes Rs 5/-per day per person)

For doing charity of Rs 4 /- spending Rs 5/-
1.25 +1.44 = Means 2.69 lac crore Rs (2,69,000,000,000,00) (26900 Millions Rs)

Results ..

Fiscal deficit will increase
To cover that new taxes will be
Imposed , dearness index will go UP,
rises in salaries, pays & wages.

भारतीय लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिये पाँचवें स्तम्भ की सख्त जरूरत

असल मायनों में लोकतंत्र के 4 स्तम्भ माने गये है 

पहला विधायिका,  जिसमें कानून बनाने वाले के बजाय कानून तोड़ने वाले ज्यादा है ।

दूसरा कार्यपालिका, जिसमें काम करने के बजाय अटकाने वाले ज्यादा है

तीसरा न्यायपालिका, जिसमें सिर्फ फैसले मिलते है न्याय नहीं ।

और चौथा मीडिया, जो सरकार की आलोचना की जगह चापलूसी में  ज्यादा व्यस्त रहती है ।

कुल मिलाकर चारों स्तम्भ लोकतंत्र को मजबूत करने के बजाय कमजोर कर रहे है । मेरा मानना है कि आज इन चारों स्तम्भो की जवाबदेही तय करने के लिये एक और मजबूत स्तम्भ की जरूरत है जो की बनेगा जिम्मेदार और जागरूक नागरिकों से । आज इस स्तंम्भ को बहुत ही मजबूती से खड़े होने की आवश्यकता है  । इस पाँचवे स्तम्भ का हिस्सा वो लोग है :

- जो नेता को भाग्यविधाता मानने के बजाय उनसे हर बात पर सवाल करता हो और अपने टैक्स के पैसे का हिसाब माँगने में बिलकुल भी ना घबराता हो

-  जो नौकरशाह को नौकर और खुद को मालिक समझते हुये भ्रष्ट तंत्र को उजागर करे

-  जिसे तारीख के बजाय न्याय मिले

- जो किसी जमात की कही सुनी बातों को मानने के बजाय तर्क के साथ तथ्य परखकर अपने आज़ाद विचार बनाता हो 

- जो धर्म, भाषा, क्षेत्र, ऊँच - नीच आदि के बजाय इंसानियत और बराबरी में विश्वास रखता हो



Saturday 10 August 2013

वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है : हज़रत अली!!!

वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है : हज़रत अली!!! ( यह कथन पैगम्बर ए इस्लाम (स. अ.व.अ.) के उत्तराधिकारी और दामाद हज़रत अली(अ.स.)का है.!!!
आज जबकि लोग देशभक्ति पर सवाल खड़ा किया जा रहा है.तो उससे पहले यह जाना ज़रूरी हो जाता है की अगर कोई मुसलमानों वाले नाम का आदमी कुछ ग़लत कर रहा है तो वह उसका अपना अमल है न की इस्लाम की शिक्षा का असर,और वह इस्लाम का हिस्सा नहीं है.क्यूंकि पैग़म्बर के उत्तराधिकारी की नज़र में वह सम्पूर्ण मोमिन नहीं है, जो अपने वतन की मोहब्बत न रखता हो. और यही शिक्षा पैग़म्बरे ईस्लाम की भी है.सवाल यह उठता है की अगर कोई पैगम्बरे इस्लाम की शिक्षा को ना मानता हो तो क्या उसे मुसलमान कहना सही है?वह भी उसमसले में जिसे ईमान से जोड़ा गया हो ।
......पैग़म्बर(स.अ.व.अ.) की शिक्षा से एक बात साबित हो जाती है जो वतन की मोहब्बत में ज़रा सी भी कमी रखते हैं उनके मुसलमान होने पर हमेशा शक बना रहता है.मशहूर कथन है की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है,इस्लाम की शिक्षा के हिसाब से जिसने एक बेगुनाह का खून बहाया उसने गोया इंसानियत का खून बहाया जिसने इंसानियत का खून बहाया वहइंसान ही नहीं है,इस्लाम को मानने की बात तो बहुत दूर है. और इस बात की पुष्टि हो जाती है की आतंकवादी इस्लामको मानने वाला नहीं हो सकता पैदा किसी के भी घर में हुआ हो, नाम उसने कुछ भी रखलिया हो. वह अधर्मी ही है.वापस आते हैं वतन की मोहब्बत पर,मोहब्बत का तकाज़ा यह है कि आप महबूब के नापाक दुश्मनों से मोहब्बत नकरें,और सच्चे मुसलमान यही किया करते हैं ।
इस्लाम कि शिक्षा के हिसाब से वतन से मोहब्बत ईमान कि निशानी है और जब वतन हिन्दुस्तान जैसा हो तो यह ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्यूंकि कर्बला में जब हज़रत अली(अ.स.) के बेटे,पैगम्बरे इस्लाम(स.अ.व.अ.) के नवासे,सय्यादुस शोहदा,फातहे कर्बला इमाम हुसैन (अ.स.) को यज़ीद की फ़ौज ने रोका तो इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा ‘मुझे हिंद चले जाने दो ,मुझे वहां से मोहब्बत की खुशबू आती है,लेकिन तख़्त ओ ताज की हवास ने यज़ीद और उसकी फ़ौज को अँधा कर दिया था ,की बज़ाहिर मुसलमान होते हुए भी उन्होंने नबी के नवासे जिसकी मोहब्बत अल्लाह ने कुरान में वाजिब करार दी है को भूखा प्यासा शहीद कर दिया. न सिर्फ हुसैन (अ.स.) को बल्कि उनके भाइयों और साथियों,यहाँ तककी छ: महीने के हुसैन (अ.स.) के बेटे अली असगर(अ.स.) को भी गले में तीर मारकर शहीद कर दिया गया ।
आज जब मै इन आतंकवादियों के घटिया कारनामो को देखता हूँ कि कहीं दो महीने की बच्ची तो कहीं १ साल का बच्चाया और बेगुनाह लोग धमाके में मारे गए,तो मुझे कर्बला याद आती है और यह आतंकवादी मुझे आज के यज़ीद नज़र आते हैं.हो न हो यह नस्ले यज़ीद ही हैं.इनसे इंसानियत शर्मिंदा है….
एक बात तो साबित है कि इस्लाम देशभक्ति ही सिखाता है,इस कथन की रौशनी में अगर कोई वतन से मोहब्बत नहीं रखता तो उसका ईमान मुक़म्मल नही है.और आज के दौर में हिन्दुस्तान का मुसलमान इस बात को समझता है और देश से मोहब्बत करता है…हम सब हिन्दू-मुसलमान -सिख-ईसाईयों औरजितने भी मज़हब हिंदुस्तान में हैं उनसब के माने वालों को एक साथ खड़े होकर भारत के हर दुश्मन का मुकाबला करना चाहिए….

( एक मुस्लिम भाई कहानी, उसी की जुबानी )

Monday 20 May 2013

मुझे सिब्बल ऐंड कंपनी पर दया आती है: CAG विनोद राय

अपने कार्यकाल के दौरान 2G और
कोयला घोटालों का खुलासा कर यूपीए सरकार
की नींव हिलाने वाले नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक
( CAG) विनोद राय ने जाते-जाते भी सरकार के
मंत्रियों पर ताना कसा है। 2जी घोटाले में कोई
नुकसान न होने की सरकार की बात पर राय ने
कहा कि उन्हें कपिल सिब्बल ऐंड कंपनी पर
दया आती है। कैग के टीएन शेषन माने जाने वाले
विनोद राय मंगलवार यानी 22 मई 2013 को रिटायर हो रहे
हैं।
उन पर 'दया' आती हैः
विनोद राय ने हमारे
सहयोगी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को दिए
इंटरव्यू में 2जी घोटाले पर कपिल सिब्बल
की जीरो लॉस थिअरी पर पूछे गए सवाल पर
कहा कि उन्हें उन पर 'दया' आती है। उन्होंने कहा,
'मैंने इससे पहले यह कभी नहीं कहा, लेकिन मुझे
असल में उन पर तरस आता है। मैंने जेपीसी में
कहा था कि इसमें भारी नुकसान हुआ है, जिससे
इनकार नहीं किया जा सकता। नुकसान के आंकड़े पर
बहस हो सकती है। मैंने
कहा था कि आपकी अपनी एजेंसी सीबीआई ने
भी कहा है कि इसमें 30 हजार करोड़ रुपये
का नुकसान हुआ है। सीबीआई ने अपनी एफआईआर
में भी यह बात कही है। मैंने उनसे
पूछा था कि क्या आप 30 हजार करोड़ रुपये की बात
को वापस लेने जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो मैं
भी 1,76, 000 करोड़ के आंकड़े को वापस लेने के
लिए तैयार हूं। यही वजह है कि मुझे उन पर अफसोस
होता है। क्या वाकई कोई यकीन करेगा कि नुकसान
नहीं हुआ है?'
मनीष तिवारी को दिया था जवाबः 2जी की ऑडिट
रिपोर्ट में 'अनुमानित घाटा' टर्म इस्तेमाल करने पर
उठे सवालों पर उन्होंने कहा कि 'अनुमानित घाटा'
या 'अनुमानित लाभ' टर्म का इस्तेमाल सरकार
भी करती रही है। मैं आपको डायरेक्ट टैक्स कोड
(डीटीसी) बिल की कॉपी दे सकता हूं। यह सरकार
का बिल है, जिसमें इस टर्म का इस्तेमाल है। मैंने
जेपीसी में भी यह बात रखी थी। खासकर मनीष
तिवारी को बताया था कि आपके अपने बिल में
'अनुमानित इनकम' का कॉन्सेप्ट है। यह
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लिया गया ह।
दुनियाभर की ऑडिटिंग एजेंसियां इसका इस्तेमाल
करती हैं। उन्होंने तब कहा था,'हां, लेकिन यह
अनुमानित घाटे की बात नहीं करता है।' यह सही है
कि घाटे पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता। यह
डायरेक्ट टैक्स कोड बिल है।'

सुबह अखबार में इंटरव्यू छपने के बाद मनीष
तिवारी ने विनोद राय को बहस की चुनौती दी। उन्होंने
ट्वीट किया कि विनोद राय इंटरव्यू के जरिए बात
रखने के बजाय आमने-सामने बैठकर बहस करें।
मैं चिदंबरम का आदमी कैसे?: पी. चिदंबरम पर
सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ाने (विनोद राय
की नियुक्ति करके) के आरोप पर विनोद राय ने हंसते
हुए चुटकी ली। उन्होंने कहा, 'आप यह कैसे कह सकते
हैं कि मैं चिदंबरम की पंसद था? महज इसलिए
क्योंकि मैंने उनके साथ काम किया था? अगर
सिंधुश्री खुल्लर की कैग के तौर पर नियुक्ति होती है
तो क्या आप उन्हें मोंटेक सिंह अहलूवालिया की पंसद
कहेंगे? इसी तरह एसके शर्मा की नियुक्ति पर
क्या उन्हें एंटनी का आदमी का जाएगा।
प्रक्रिया यह है कि जिसमें कैबिनेट सेक्रेटरी कुछ
नाम रखते हैं, जिस पर बाद में पीएम और वित्त
मंत्री विचार करते हैं। मेरा इंटरव्यू भी पीएम में
लिया था।'
आरपी सिंह के आरोपों से दुखी नहीं है?: अपने पूर्व
सहयोगी आरपी सिंह के दबाव में 'अनुमानित घाटे'
का आकलन करने के आरोपों की टीस विनोद राय के
दिल में अभी भी है। हालांकि उन्होंने आरपी सिंह
को अच्छा साथी बताया। उन्होंने कहा, 'मैने
आरपी सिंह के फेयरवेल में उनकी तारीफ की थी।
2जी का ऑडिट उन्होंने ही किया था। जेपीसी में जाने
से पहले वह मुझसे मिले थे और मैंने उनसे कहा था,
'आरपी बस एक बात याद रखो, तथ्य की गलती मत
करना। राय इधर-उधर हो सकती है, लेकिन फैक्ट्स
पर टिके रहना।' लेकिन उन्होंने वहां कुछ गलतियां कीं।
उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि हम घाटे
का हिसाब नहीं लगाते, जबकि मैंने जेपीसी में
उनकी एक रिपोर्ट रखी थी, जिसमें घाटे का हिसाब
लगाया गया था। उन्होंने कहा कि वह आरपी सिंह के
बयान से ठगा हुआ महसूस नहीं करते। आप ऐसा तब
महसूस करते हैं, जब आप एक शख्स पर
ही पूरा यकीन करते हैं। मैंने उनकी तारीफ
की क्योंकि उन्होंने अच्छा ऑडिट किया था। मैं उन्हें
कभी अनमोल कलीग नहीं कहा।'
बीजेपी से नजदीकी कैसे?: बीजेपी से नजदीकी के
आरोपों पर उन्होंने कहा,'पीएसी का चेयरमैन
हमेशा विपक्षी पार्टी से होता है। संविधान में है
कि कैग को पीएसी के साथ काम करना है। मीटिंग के
बाद मुझे पीएसी चेयरमैन को ब्रीफ करना होता है।
मेरे उनसे मुलाकातें होती हैं। यह घर पर भी होती हैं।
सिर्फ मुरली मनोहर जोशी ही नहीं, वह कोई
भी हो सकता है। यह मेरी ड्यूटी है कि चेयरमैन से
को ब्रीफ करूं। जब लोग खुद को फंसा पाते हैं तो इस
तरह के आरोप लगाते हैं। '
राजनीति में कभी नहीं आऊंगाः राजनीति में आने के
सवाल पर विनोद राय ने कहा, ' जब भी मुझसे
राजनीति में जाने का सवाल किया जाता है मैं न
हां कहता हूं न ना। यदि मैं कहूंगा कि मैं पॉलिटिक्स
में नहीं जाऊंगा आप यकीन नहीं करेंगे। अगर मैं
कहूंगा कि पॉलिटिक्स जॉइन करूंगा तो आप कहेंगे
'बोला था ना।' लेकिन मैं आज साफ कर
देना चाहता हूं कि मेरा जीवनभर राजनीति से लेना-
देना नहीं रहा है। 65 साल बाद मैं क्यों बदलूंगा ?
मुझे इससे क्या फायदा होगा ?

Courtesy - टाइम्स ऑफ इंडिया, नई दिल्ली

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...