Sunday 25 January 2015

गिरगिट की क्या मजाल, जो नौटंकीबाज़ मोदी को हरा दे !

आजकल मोदी जनता में कितने लोकप्रिय हैं इसकी बानगी आजकल चल पड़ी कुछ कहावतों और मुहावरों से पता चलता है, कुछ नई है और कुछ पुरानी हैं -
1. मोदी जी का वादा, U-Turn लेंगे ज्यादा 

पलटने मने U-Turn लेने में तो इस मोदी सरकार ने शायद पिछली सभी सरकारों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है । उन सभी मुद्दों पर सरकार मुकर गयी जो उन्होंने वोट माँगते समय जनता से किये थे । इनमें कुछ यहाँ दिए जा रहे हैं -
* जो पार्टी धारा 370 के विरोध में बनी थी और वो उसी से पलट जाये तो फिर उस पार्टी और उसके नेताओं में विचारधारा की तो क्या बात करनी । जब जनसंघ प्रमुख श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 के विरोध में अनसन किया था और फिर जेल हुई, जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी थी । तत्पश्चात इसी मुद्दे को लेकर ये पार्टी 1950 से चली है आजतक, पर अब आगे नहीं ( बीजेपी 1950 से 1977 तक जनसंघ थी फिर जनता पार्टी में विलय हो गया जनता पार्टी में टूटकर जनसंघ नेताओं ने 1980 में बीजेपी बनाई थी

* मोदी के सत्ता में आने के बाद रेलवे में 100 फीसदी विदेशी निवेश, रक्षा में 49 फीसदी से लेकर कुछ मामलों में 100 फीसदी विदेशी निवेश, बीमा में 49 फीसदी विदेशी निवेश का फैसला हो गया है पर जब विपक्ष में थे तब रक्षा और बीमा में FDI में कांग्रेस ने 49% का प्रस्ताव रखा तो मोदी ने FDI का विरोध किया था जबकि खुद सत्ता में आते ही 49% के साथ मंजूरी देने को तैयार है पर अब कांग्रेस विरोध में है ।
* जब मोदी विपक्ष में थे तो बोलते थे "एक बार सत्ता दे दो, 100 दिन में कालाधन ले आऊँगा, नहीं ला पाया तो फाँसी दे देना और जो भी इसमें नाम होंगे उनको जनता में बताऊँगा" और सरकार बनते ही कहा कि कालाधन लाना नहीं आ पायेगा और जो नाम मिले हैं उनको जनता में नहीं बता सकता ।
* रिटेल में एफडीआई पर मोदी सरकार ने बड़ा यू-टर्न लिया है। पहले इसका विरोध करने वाली बीजेपी ने यू-टर्न लेते हुये  ब्रैंड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई के यूपीए सरकार के निर्णय को बरकरार रखा है। खास बात यह है कि बीजेपी ने मल्टी ब्रैंड रिटेल में विदेशी निवेश का चुनाव पहले जमकर विरोध किया था और अब इसे ही बरकरार रहने दिया है।

2. बदलापुर बॉय मोदी

जब विपक्ष में थे तो कहते थे देश को कांग्रेस मुक्त बनाना है और जब सत्ता में पूर्ण बहुमत ( 282 सीट) से आये तो इनमे 116 तो पूर्व कांग्रेसी थे यानि कांग्रेस मुक्त भारत तो गया तेल लेने । रही बात स्वच्छ मंत्रिमण्डल की तो एक तिहाई यानि 33% मंत्री दागी हैं और पिछली सरकार जितना बड़ा ही मंत्रिमंडल मतलब 67 मंत्रियों वाला मंत्रिमण्डल । कुल 67 में से 22 मंत्रीयों के खिलाफ केस चल रहे हैं जो कि पिछली UPA सरकार से भी ज्यादा हैं । बोला था दागियों को मंत्रीमंडल में जगह नही दूँगा और मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस के सिद्धांत पर काम करूँगा पर कर रहे हैं इसका उल्टा मतलब मिनिमम गवर्नेंस, मैक्सिमम गवर्नमेंट
कुल मिलाकर रंग बदलने में गिरगिट की क्या औकात जो मोदी को हराये ।
3. ( खून चूसने में ) कहाँ मोदी, कहाँ जोंक (कहाँ गंगू तैली, कहाँ रजा भोज )
जब मोदी विपक्ष में था तब 5% रेल किराया बढ़ाया गया था तो बड़ा हो हल्ला किया था और जब खुद की सरकार आयी तो आते ही सीधा 14.5% रेल किराया बढ़ा दिया और अब दूसरी बार और बढ़ाने की फ़िराक़ में हैं । पेट्रोल 1 रुपया या कुछ पैसे सस्ते होने पर अपने भाग्य से जोड़ना और 4-5 रुपये महंगे होने पर OPEC को जिम्मेदार बताना, और गरीब का भोजन दाल तो इतनी महँगी हो गयी हैं जितनी UPA में भी नहीं थी ।

नरेंद्र मोदी सरकार ने 1 जून 2016 से सेवा कर 14 फीसदी करने का निर्णय लिया है.  आगामी 1 जून से नयी सेवा कर लागू हो जाने के बाद आम लोगों के लिए रेस्तरां और मोबाइल फोन सहित ब्यूटी पार्लर और हवाई यात्रा भी महंगी होगी.
4. मोदी बाँटे रेवड़ी तो अपनों को ही देवें
जब अडानी को 5 बड़ी प्राइवेट बैंकों ने लोन देने से मना कर दिया था तो मोदी के कहने पर सरकारी बैंक स्टेट बैंक ने 6200 करोड़ का कर्ज बिना समय गंवाए मंजूर हो गया वो भी जनता का पैसा । भारत के किसी बैंक की तरफ से ये अब तक सबसे बड़ा कर्ज है जो किसी भारतीय कंपनी को दिया जा रहा है ! गौरतलब है, अडानी पर पहले से ही 72,000 करोड़ रुपए की उधारी है। अडानी पीएम मोदी के साथ जी 20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने बिजनेस डेलीगेट्स के समूह में आस्ट्रेलिया दौर पर भी गये थे ।
5. खाऊँगा और खाने दूँगा

राजनीति में सालभर पहले तक नैतिकता और शुचिता के नाम पर कांग्रेस को कोसने के बाद अब उसी का सरेआम जनाजा निकाल रहे हैं, सिर्फ 1 साल में ही सत्ता के मद में ऐसे चूर हुये कि एक के बाद एक-एक करके 4 प्रमुख नेत्रियों पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगे हुये हैं पर उनको हटाने के बजाय उनका बचाव और किया जा रहा है । साथ ही ये ऐलान भी कि " ये बीजेपी की सरकार हैं, इसमें भ्रष्टाचार जैसे छोटे मोटे मुद्दों पर इस्तीफे नहीं होंगे ।"

6. तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें भाषण दूँगा

*सरकारी नौकरी : केंद्र के सरकारी विभागों में एक साल तक कोई नई नियुक्ति नहीं होगी। अगर कोई पद एक साल से खाली पड़ा है, तो उसे भी नहीं भरा जाएगा। वित्त मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों को इस आशय का निर्देश भेजा है। निर्देश तत्काल प्रभावी हो गया है ।
* योजना मॉडल : देश में जब भी किसी योजना को लागू करना हो गाने लग जाता है गुजरात मॉडल-गुजरात मॉडल । भैया गुजरात मॉडल गुजरात में ही ठीक है, पुरे देश में नहीं चलेगा ।
* GST ( वस्तु एवम् सेवा कर ) : देशभर में एक कॉमन मार्केट तैयार करने के लिए लाया जा रहे जीएसटी बिल का 10 साल तक विरोध करने के बाद अब इनको इससे देश की GDP 2% तक दिख रही है । तो क्या इन 10 सालों तक देश में 2% GDP में नुकसान की जिम्मेदार बीजेपी नहीं है । 


7. मोदी और पूँजीपतियों का यार ( करेला और नीम चढ़ा )
इसको 2 उदाहरणों से समझते हैं -
* Bjp शाषित राजस्थान, MP और महाराष्ट्र की सरकारों ने लेबर रिफार्म के नाम पर "सेंट्रल इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट - 1947" में बदलाव कर रही है जिसके तहत किसी भी फैक्ट्री मालिक को बिना सरकारी अनुमति लिए मजदूरों को निकालने तथा उस फैक्ट्री को बन्द करने का अधिकार होगा । पहले यह सीमा 100 मजदूरों वाली फैक्ट्री पर थी पर अब यह बढ़ाकर 300 मजदूरों तक कर दी है । यानि 300 मजदूरों वाली फैक्ट्री का मालिक कभी भी उन मजदूरों को निकाल सकता है या उस फैक्ट्री पर ही ताला लगा सकता है । इससे मजदूरों के सारे हक़ छीन लिये जायेंगे अर्थात् न तो वे अपनी वाजिब मांगों को लेकर हड़ताल कर सकते हैं न ही कोई अन्य तरह का विरोध । अकेले महाराष्ट्र में 41000 में से 39000 लगभग 95% फैक्ट्रीयां इसकी जद में आ जायेंगी ।
* सरकार बनते ही जिस हिन्दू धर्म की रक्षा के नाम पर जीत कर आये थे और जिस गाय की सौगंध खाते थे, जिसको राष्ट्रिय पशु घोषित करने की माँग करते थे वो सत्ता में आते ही ऐसे अंधे हुये जैसे इनका इन सब से कोई वास्ता ही नहीं था । सत्ता में आते ही अपने पहले ही बजट में वित्तमंत्री जेटली जी ने गौ - माँस का निर्यात बढ़ाने के लिये टैक्स 10% से 6% कर दिया साथ ही देश भर में और अधिक स्लॉटर हाउस ( गाय काटने के कारखाने ) की इजाजत दे दी ।
यानि कि देश और धर्म के नाम पर वोट लिया पर काम दोनों के खिलाफ किया ।
8. आधा मोदी आधा गाँधी ( आधा तीतर, आधा बटेर यानि बेमेल काम करना )
काम तो दंगे करवाना, धर्म बदलवाना, गोडसे की मूर्ति को मौन स्वीकृति देना, उद्योगपतियों की दलाली करना और नाम गाँधी का लेना, समाजवाद का ( सिर्फ ) बखान करना । जिस सरदार पटेल ने गाँधी जी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था उसी की गुजरात में मूर्ति बनवा कर खुद की पार्टी को एक चोरी का सरदार दिलाना ।
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान" भी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है । जो आदमी खुद अपनी बीवी को ब्याहने के बाद छोड़कर भाग गया और जिस पर एक लड़की की जासूसी करवाने का आरोप हो वो जब ऐसी बात करें तो उसकी गंभीरता को समझा जा सकता है । जो पार्टी लड़कियों के बारे में ये सोचती है कि वो दूसरे राज्यों से खरीद कर अपने कार्यकर्ताओं की शादी करवायेगी, उस पूरी पार्टी और उससे जुड़े संगठनो की सोच कितनी गन्दी है इसका अंदाज आप लगा सकते हैं ।
9. जिसकी सरकार उसकी जमीन ( जिसकी लाठी उसकी भैंस )
जब पिछली कांग्रेस सरकार पर इतने जनांदोलनों से दबाव बनाकर 1894 में बने भूमि अधिग्रहण कानून को बदलवाया था लेकिन मोदी ने आते ही लोगों की सामूहिक सहमति को सबसे पहले खत्म किया वो भी अध्यादेश द्वारा । अब तो सरकार जब चाहे आपको आपकी जमीन से रुखसत कर सकती है और आप विरोध भी नहीं कर सकते हो । पूरी रिपोर्ट के लिए क्लिक करें
10. उद्योगपति बड़े या जनता
पेट्रो उत्पादों की कीमत को बाजार के अधीन करने के बाद भी सरकार खुद श्रेय लेती है तो मतलब ये कि वो जनता को बेवकूफ बना रही है और मोदी जी इसमें सफल भी हुए हैं । सरकार बनने के बाद पेट्रोल कुछ रूपये सस्ता हुआ है पर उतना नहीं जितना अंतराष्ट्रिय बाजार में हुआ है, उसका बमुश्किल 20% ।
जब सत्ता में आने के बाद कच्चे तेल की कीमत अंतराष्ट्रिय मार्केट में 115 डॉलर/बैरल से गिरकर आज 48 डॉलर/ बैरल आ गई है यानि कि 67 डॉलर/बैरल टूट चुकी परन्तु भारतीय मार्केट में सिर्फ 20% की कमी आई है । जिन पेट्रो कंपनियों ने घाटा दिखाकर दाम कम नहीं किये हैं उनपर सरकार दबाव बनाकर दाम कम करवाये । सरकार का फर्ज है कि वो जनता के समर्थन में फैसले ले न कि कुछ गिने चुने उद्योगपतियों के ।


ये वो सरकार है जो आपसे 100 करोड़ रुपये की गैस सब्सिडी ख़त्म करवाने के लिए 250 करोड़ के विज्ञापन दे चुकी है। स्वच्छता अभियान का विज्ञापन बजट भी 250 करोड़ था लेकिन दिल्ली के सफाईकर्मियों की सालाना तनख़्वाह के लिए ज़रूरी 35 करोड़ इनके पास नहीं हैं। किसान टीवी पर सालाना सौ करोड़ का ख़र्च दे सकते हैं क्योंकि इस चैनल के सलाहकार समेत आधे कर्मचारी संघ के किसी न किसी अनुशांगिक संगठन से हैं, लेकिन किसानों की खाद सब्सिडी छीन ली।
इनके पास योगा डे के लिए 500 करोड़ हैं, रामदेव के पतंजलि को हरियाणा के स्कूलों में योग सिखाने के लिए सालाना 700 करोड़ हैं, मगर प्राथमिक शिक्षा के बजट में 20% कटौती की क्योंकि स्कूलों के लिए पैसे नहीं हैं।
इस सरकार के पास कार्पोरेट को 64 हज़ार हैं टैक्स छूट देने के लिए, लेकिन आत्महत्या कर रहे किसानों का क़र्ज़ चुकाने को 15000 तरोड़ नहीं हैं।
स्किल इॉडिया के लिए 200 करोड़ का विज्ञापन बजट है, मगर युवाओं की छात्रवृत्ति में 500 करोड़ की कटौती करती है।
सरकार घाटे में है। ओएनजीसी, स्टेट बैंक बेचने की तैयारी है। रेलवे की ज़मीनें बेचने का टेंडर कर दिया है। मगर अडानी के लिए 22000 करोड़ देने को हैं। ये राष्ट्रवादियों की सरकार है जो लालाओं के हाथ राष्ट्र बेचने निकली है।

11. बिन मुद्दों के फेंकता जाये
आज मोदी को PM बने 8 महीने हो गये हैं पर आजतक एक भी उपलब्धि अपने खाते में नहीं जुड़ा पाये सिवाय विदेश भ्रमण और वहाँ भाषण देने के । और तो और, मोदी तो इसमें भी चूक गये ।

जब ऑस्ट्रेलिया में PM की उपस्थिति में भारत का विवादित नक्शा दिखाया गया और वो कुछ नहीं बोले । हालाँकि मीडिया में हल्ले के बाद, बात सँभालने के लिए कुछ घण्टों बाद ऑस्ट्रेलिया ने माफ़ी माँगी पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी । हालाँकि एक उपलब्धि के रूप में "स्वच्छ भारत अभियान" जरूर जुड़ा पर उसको भी बीजेपी के नेताओं ने सिर्फ फोटो शूट अभियान बना कर छोड़ दिया ।
देश को सशक्त शासन देने की बात करने वाले मोदी जी से अपने लोग भी नहीं काबू में आ रहे हैं । जब से सत्ता में आये हैं, देश में अराजकता का माहौल हो गया है, हिन्दूवादी संगठन (RSS, बजरंग दल, VHP, धर्म जागरण मंच इत्यादि ) मुस्लिमों का धर्मपरिवर्तन करवा रहे हैं और कारण बता रहे हैं कि इस देश में रहने वाला हरेक नागरिक पहले हिन्दू था जो दूसरे धर्म में चला गया था, अब वापस हिन्दू बनाकर उनकी घरवापसी करवा रहे हैं । साथ ही हिंदुओं को 4,5 या 10 बच्चे पैदा करने की सलाह दी जा रही हैं इन हिंदूवादी संगठनों द्वारा । हिंदुओं को मुस्लिमों से, मुस्लिमों को ईसाईयों से, ईसाईयों को बौद्धों से खतरा बताकर डराया जा रहा है ।
जबकि दूसरी और AIMIM के नेता अकबरुद्दीन ओवेसी कहते हैं हर बच्चा जन्म के समय मुसलमान होता है । मोदी की मौन स्वीकृति से पुरे देश में धर्म के नाम पर द्वेष फ़ैलाने की कोशिश की जा रही है, जिससे आने वाले दिनों में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहाँ वोटों का आसानी से ध्रुवीकरण किया जा सके और बहुसंख्यक हिंदू वोटों को अपनी तरफ मोड़ा जा सके ।
सेतुसमुद्रम परियोजना का विरोध करने वाली बीजेपी अब उसी परियोजना को आगे बढ़ाने मे लगी है । जैसा कि नितिन गडकरी जी ने बताया " हमारा एजेंडा विकास का है ।" ये तो अच्छी बात है पर इतने साल छाती कुटा किया उसका क्या गडकरी जी ?
12. मुँह पे सेवा, बगल में धोखा
जब चुनाव प्रचार कर रहे थे तब भाषणों में कहते थे "56 इंच की छाती ठोक कर कहता हूँ हमारे देश के एक जवान के सिर के बदले 10 सिर काटकर लाऊंगा और भारत माँ के चरणों में अर्पित कर दूँगा ।" पर आज सत्ता में आये 8 महीने हो गये पर 10 सिर नहीं ला पाये उल्टे हमारे 110 सैनिक और शहीद हो गए । और आतंकवाद में कोई कमी नहीं आयी है उल्टा बढ़ और गया है । रेडियो पर मन की बात कार्यक्रम में देश को नशामुक्त बनाने की बात करते हैं पर इन्हीं के शाषित पंजाब में मन्त्रीमण्डल का महत्वपुर्ण मंत्री मजीठिया 6000 करोड़ का नशे का कारोबार पकड़ा जाता है । और तो और इस केस की जाँच कर रहे ED के अधिकारी का तबादला कर केस को कमजोर करने की कोशिश भी की लेकिन कामयाब नहीं हो पाये ।
13. घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध
26 जनवरी 2015 को देश के गणतंत्र दिवस पर अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा आ रहे हैं राष्ट्र अतिथि बनने के लिये ।और इनके स्वागत की ऐसी तैयारियाँ हो रही है जैसे ओबामा, ओबामा न हुए ब्रह्मा जी हो गए हैं । दिल्ली में नो-फ्लाई जोन उपलब्ध करवाया गया है और जब वो ताजमहल देखने जायेंगे तो उस दिन का सड़क मार्ग भी आम लोगों के लिए बन्द कर दिया जायेगा । राजपथ पर होने वाली परेड के आपके पास पास हैं लेकिन किसी पुलिसवाले ने आपको शक के आधार पर रोक लिया तो आपको कड़ी पूछताछ से गुजरना भी पड़ेगा ।
14. ऊँची दुकान फीका पकवान
जब से प्रचार शुरू किया तबसे बोल रहे थे महँगाई कम कर दूँगा, 5 साल देके तो देखो और जब जनता ने 5 साल दे दिये तो महँगाई कम तो कर नहीं पाया उल्टा गरीबों को मिलने वाली सस्ती दवाओं का मूल्य नियंत्रण हटाकर बाजार के हवाले कर दिया जिससे कैंसर की 8000 में मिलने वाली दवाई 1,00,000 की हो गयी ।
15. थोथा चना बाजे घना
जब विपक्ष में थे तो बोलते तो ऐसे थे कि 60 महीने का मौका दो, प्रधानमन्त्री बनकर नहीं प्रधानसेवक बनकर काम करूँगा । बोलते थे सोनिया अपने पीहर वाले दोनों नोसैनिकों को बचाना चाहती है लेकिन मैं अपने देशवाशियों के हत्यारों को सरेआम लटका दूँगा । ये भी नहीं हुआ तो कोई बात नहीं फिर कहते फिरते थे कि वाड्रा को जेल में डाल दूँगा यदि मैं सत्ता में आया तो । 8 महीने हो गये पर कोई कारवाई नहीं हुई और न ही इसपर कभी बोले आजतक । ये भी न हुआ, चलो कोई नही ईमानदार शासन दूँगा पर हुआ असल में इसके उलट । दिल्ली में स्थित देश के सबसे बड़े अस्पताल के एक ईमानदार अधिकारी को इसलिये हटा दिया क्योंकि बीजेपी के उपाध्यक्ष जे पी  नड्डा के करीबी को उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड कर दिया था । और फिर जेपी नड्डा के दबाव में केंद्रीय स्वास्थ्य। मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने उनका ट्रांसफर कर दिया ।
Title by Mohan Shrotriya, my FB friend

Monday 19 January 2015

किरन बेदी जी को एक IAC कार्यकर्त्ता का पत्र 

किरण बेदी जी, 
नमस्कार, मैं IAC ( India Against Corruption ) का एक अनाम कार्यकर्त्ता, आपसे काफी समय से कुछ कहना चाहता था पर किसी कारणवश कह नहीं पाया । पर आज जब आप बीजेपी में शामिल होकर राजनीती में आ ही गई हैं तो अब खुद को लिखने से नहीं रोक पाया । बातें मैं तब से शुरू करना चाहता हूँ जब आप आंदोलन के लिये लोगों को तैयार कर रही थी । और मैंने उसमें सिर्फ आपके नाम की वजह से भाग लेने का निश्चय किया था ।
अप्रैल 2011 में शुरू हुये जनलोकपाल आंदोलन से पहले तक सिर्फ आपका नाम ही सुना था वो भी इसलिये क्योंकि आप देश की पहली महिला IPS थी । लेकिन सबसे पहले आपको देखा था जनलोकपाल आंदोलन के मंच पर । आप जिस तरह से रामलीला मैदान में भाषण के जरिये हम वालंटियर्स में जोश भरती थी उससे हम में नई ताक़त आ जाती थी जिससे हम भ्रष्टाचारियों के खिलाफ और ज्यादा मुखर होके जनता को जगाते थे और जनलोकपाल के बारे में बताते थे । जनलोकपाल आंदोलन के दौरान हम आपकी इतनी इज्जत करते थे कि अन्ना जी के बाद आपको ही सबकुछ मानते थे पर जब आप सिर्फ कुछ देर सुबह और कुछ देर शाम को आती और भाषण दे के अपनी इनोवा गाड़ी से वापस चल जाती थी तो बुरा तो बहुत लगता था लेकिन आपकी इतनी बड़ी पर्सनालिटी थी कि सोचते थे आप तो पुरे दिन आगे की रणनीति बनाती होंगी ऑफिस में और अन्ना जी यहाँ अनसन करते हैं । 

लेकिन जब अगस्त में फिर से जनलोकपाल आंदोलन शुरू हुआ तो पता चला कि रणनीति तो स्टेज के पीछे बने रूम में बनती है । तो मन में सवाल आया कि आप क्या यहाँ सिर्फ भाषण देने ही आती हो ? फिर जब अनसन चल रहा था तो नोट किया कि पूरा दिन कुमार विश्वास तो माइक संभाले जनता का मनोरंजन करते हुए जनलोकपाल को समझाते है और बाकि अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय, प्रशांत भूषण,स्वामी अग्निवेश इत्यादि आगे की रणनीति बनाते हैं, कि कैसे आंदोलन को आगे ले जाना है और कैसे जनता का समर्थन बनाये रखना है और साथ ही सरकार पर लगातार विरोध-प्रदर्शनों से दबाव बनाना है । लेकिन आप किसी सेलिब्रिटी की भाँति सिर्फ कुछ घण्टे भाषण देकर चली जाती हैं । 
तो महसूस हुआ कि ये पूरा आंदोलन तो अन्नाजी और अरविन्द पर टिका हुआ है । 
जब अरविन्द जी और आप पर कांग्रेस द्वारा आरोप लगाये जा रहे थे तब दिल मानने को तैयार नही था । यही सोचता था कि आपको बदनाम करने के लिए ये सब झूठ फैलाये गये हैं । फिर किसी साथी वालंटियर ने आपके बारे में करण थापर की 4 अगस्त 2007 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट दिखायी, जो आपके सर्विस रिकॉर्ड को लेकर थी, जिसमें निम्न सवाल उठाये गये थे : 

1. आपको अभी तक न तो प्रशंसनीय सेवाओं के लिये भारतीय पुलिस पद मिला और न ही उत्कृष्ट पुलिस सेवाओं के लिये राष्ट्रपति का वीरता पुरस्कार। ऐसा माना जाता है कि निश्चित समय तक सेवा पूर्ण करने के बाद ये सामान्यत: दिये जाने वाले पुरस्कार है,क्या आपका इन पुरस्कारों से वंचित रहना यह सिध्द नही करता है कि आपका रिकार्ड न तो अधिक प्रशंसनीय है और न ही उत्कृष्ट ? 

2. दूसरा प्रश्न, क्या यह सच है कि 4 भिन्न-भिन्न अवसरों पर आप अपने कार्यकाल को पूरा करने में असफल रही और कम से कम दो बार आपने बिना अनुमति के अपना पद छोड़ दिया जो कर्तव्य के प्रति विमुख होने के समान है? (उन्होने गोआ में पुलिस अधीक्षक के रूप में, मिजोरम में पुलिस उप 
महानिरीक्षक (रेंज) रहते हुये, पुलिस महानिरीक्षक (तिहाड़ जेल)और पुलिस महानिरीक्षक चण्डीगढ़ के रूप में अपना कार्यकाल पूरा नही किया। पद जो उन्होने बिना अनुमति के ही छोड़ दिये थे वे थे 1983 में गोआ में तथा 1992 में मिजोरम में। प्रमुख समाचार पत्र ''सण्डे ऑब्जर्वर'' से 27 सितंबर 1992 को बात करते हुये उन्होने मिजोरम के बारे में कहा था कि ''मैं बिना पूछे वहाँ से आ गई''। 25 जनवरी 1984 को गोआ के पुलिस महानिरीक्षक श्री राजेन्द्र मोहन को लिखा गया उनका पत्र यह साबित करता है कि वह बिना स्वीकृति के ही अवकाश पर चली गई।) 

3. आइये अब आपकी महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापना के दौरान आपके आचरण का भी परीक्षण कर लेते हैं। क्या यह सच नही है कि मिजोरम में डी.आई.जी. (रेंज) के पद रहते हुये वहाँ के राज्यपाल ने प्रेस को गोपनीय सूचनाएं देने के कारण अप्रसन्नता प्रकट करते हुये आपको औपचारिक नोटिस दिया था ? 

4. क्या यह सच है कि राष्ट्रपति वैंकटरमन ने जब  मिजोरम का दौरा किया तो उस दौरे को भंग करने की आपकी योजना पर राज्यपाल सतर्क हो गये और गुप्तचर ब्यूरो को सूचना दी कि विशिष्ट सूचनाओं और सुरक्षा के लिये आप पर भरोसा नही किया जा सकता ? फिर से, कहा जाता है कि यह भी आपके सर्विस रिकार्ड का एक भाग है। 

5. आइये अब चण्डीगढ़ चलते है, जहाँ आप 41 दिनों तक पुलिस महानिरीक्षक रही। क्या यह सच नही है कि प्रशासकीय सलाहकार ने आपको वहाँ से हटाने के लिये गृह मंत्रालय को इस आधार पर पत्र लिखा कि ''आपका चण्डीगढ़ में रहना जनहित में नही है? (उनकी अधिकृत जीवनी ''आई डेअर'' में दावा किया गया है कि श्रीमती बेदी को चण्डीगढ़ शहर से बाहर पदस्थ करने को कहा गया। यद्यपि, 18 मई 1999 को समाचार एजेन्सी यू.एन.आई. ने लिखा ''केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आज एकाएक निर्णय लेते हुये चण्डीगढ़ की पुलिस महानिरीक्षक किरण बेदी को तत्काल प्रभाव से स्थानान्तरित कर दिया।'' ) 

6. आप पर कनिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सरकार के खिलाफ भड़काने का आरोप है क्योंकि आप एक बार जारी किये गये कुछ निलंबन आदेशों से असहमत थी। प्रेस ने लिखा है कि ''आप विद्रोह के बीज बो रही थी ?'' 

7. वर्ष 1988 में हुई वकीलों की हड़ताल में आप प्रमुख भूमिका में थी। यहाँ तक कि आपकी अधिकृत जीवनी में स्वीकार किया गया है कि मामले की जाँच करने वाले वाधवा कमीशन ने ''किरण को दोषी बताया''। प्रेस ने दावा किया कि वाधवा कमीशन ने आपको एक आदतन झूॅठा बताया ?'' 

8. श्रीमती बेदी, अब मैं आपके सामने यह कहता हॅूं कि ''एक उत्कृष्ट रिकार्ड से काफी दूर'' आपका सर्विस रिकार्ड इस बात का पर्याप्त कारण है कि क्यों आपको दिल्ली का पुलिस कमिश्नर नही बनाया गया ? 

9. वास्तव में, यदि आपका सर्विस रिकार्ड इतना ही अच्छा था, तो लेफ्टीनेंट गवर्नवर तेजिन्दर खन्ना जिनके पहले कार्यकाल के दौरान आप उनकी विशेष सचिव थी, वे आपको पुलिस कमिश्नर बनाने पर जोर क्यों नही देते ? उन्होने ऐसा नही किया क्योंकि वे भी आपको इस पद के योग्य नही समझते है। 

10. अंत में, आपने कहा था कि डडवाल की नियुक्ति गलत थी क्योंकि न सिर्फ आपके  गुणों की अनदेखी की गई बल्कि आपकी वरिष्ठता को भी नजरअंदाज किया गया। किन्तु जिस पद को वांछित गुणों के कारण आप धारण करने की योग्यता नही रखती क्या वह पद आपको सिर्फ वरिष्ठता के आधार पर मिलना चाहिये ? 

इन आरोपों को तो आप भी नहीं नकार सकती क्योंकि सर्विस रिकॉर्ड तो सबके सामने है । सर्विस रिकॉर्ड के अलावा भी कई और विवाद थे जो बाद में पता चले थे । जो इस प्रकार हैं : 

1.  एक विदेशी कैदी को चिकित्सा सेवा उपलब्ध न कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आपकी आलोचना की थी और आपके खिलाफ अदालत की अवमानना के मामले की शुरुआत की थी। 

2.  जब आप मिजोरम में पोस्टेड थी तब अपनी बेटी को दिल्ली के लेडी हार्डिंग कॉलेज में एमबीबीएस कॉलेज में गलत तरीके से एम.बी.बी.एस. कोर्स में प्रवेश दिलाने का आरोप लगा। एडमिशन दिलवाने के लिए मिजोरम कोटे का इस्तेमाल किया। जिसमें आपने सफाई दी थी कि आप मिजोरम में सेवारत हैं, इसलिए आपकी बेटी भी उत्तर पूर्व की है। इसलिए कोटा लेने से कानूनी तौर पर नहीं रोका जा सकता। इसके बाद मिजोरम में आपके खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़क पर आ गया। कुछ दिन बाद आपकी बेटी ने एमबीबीएस का कोर्स भी छोड़ दिया। 

3. आप पर विभिन्न संगठनों के आयोजन में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किए जाने पर बिजनेस क्लास का हवाई किराया लेती थीं और कम किराये वाली इकोनॉमी क्लास में सफर करती थीं। 

ये बातें तो हुई आप पर लगे आरोपों की जो शत् - प्रतिशत सही हैं । अब आगे बात करते हैं जनलोकपाल आंदोलन के राजनीतिकरण की, जिसमें जितना योगदान कांग्रेस के लिए स्वामी अग्निवेश और मुक्ति शमिन कागजी ने दिया उतना ही बीजेपी के लिये आपने और जनरल वीके सिंह ने दिया ।अब इस आंदोलन के राजनीतिकरण की कहानी शुरू हुई अगस्त 2011 के अनसन के खत्म होने और सरकार से बातचीत का दौर शुरू होने के बाद । जो इस प्रकार आगे बढ़ा : 

अगस्त 2011 आंदोलन के खत्म होने के बाद जब स्वामी अग्निवेश के बारे में एक वीडियो द्वारा पता चला कि वो कांग्रेस सरकार में मंत्री कपिल सिब्बल से मिले हुये हैं और उनको फोन पर आंदोलन की सारी बात बताते हैं और उसके बाद जब अप्रैल 2012 में मुक्ति शमिन कागजी भी कोर कमेटी की बैठक की रिकॉर्डिंग कांग्रेस लीडरशिप को भेज रहे थे । इन दोनों गद्दारों की वजह से बहुत धक्का लगा था हम सभी वालंटियर्स को । तब अन्ना जी और अरविन्द जी के अलावा किसी पर विश्वास नही बचा था, बाकियों को देखकर लगता था कि कहीं ये भी कांग्रेस या बीजेपी से मिले हुए तो नहीं हैं न । 

फिर जब 25 जुलाई 2012 को अंतिम अनसन हुआ था, जिसमें अन्ना जी के बजाय अरविन्द, मनीष सिसोदिया और गोपाल राय जी अनसन पर थे, और उसमें जब बाबा रामदेव ( जो कि बीजेपी के नरेंद्र मोदी का खुला सपोर्ट कर रहे थे, जो व्यक्ति 2002 गुजरात दंगों के लिए कठघरे में खड़ा है, जिसके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में तमाम संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ी हैं, जिसके शासनकाल के दौरान राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई हो ) के आने की बात पर आपको छोड़कर बाकि सभी ने विरोध किया था पर आपकी जिद के आगे बाबा रामदेव आये थे । इससे हमारी नजरों में आपकी राय प्रो-बीजेपी पर्सन की बन गयी थी लेकिन पूर्णतया नही । और जब सरकार ने लोकपाल बिल पास नही किया तो देश के नामी 23 लोगों ने अन्ना जी ( जो कुछ दिन बाद अनसन पे थे ), अरविन्द, मनीष और गोपाल राय को अनसन तोड़कर देश को राजनैतिक विकल्प देने का सुझाव दिया था और अन्नाजी की रजामन्दी से लोगों की राय जानने की घोषणा आपने ही मंच से की थी और और अगले दिन 90% लोगों की हाँ के साथ अन्ना जी ने राजनैतिक विकल्प देने के आश्वासन के साथ अनसन खत्म किया था । और उसकी जिम्मेदारी अरविन्द जी को दी थी । फिर आपने खुद को राजनैतिक पार्टी से अलग कर लिया था । फिर जब 25 अगस्त को जब अरविन्द केजरीवाल ने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के घर पर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था तब आपने इसका विरोध किया था और आप उसमें शरीक भी नहीं हुई थी । जो तब बहुत अटपटा लगा था और हमारे साथियों की धारणा आप के प्रति लगभग बीजेपी एजेंट की बन रही थी । जैसा कि अग्निवेश और कागजी कांग्रेस को सपोर्ट कर रहे थे वैसे ही आप बीजेपी को सपोर्ट कर रही थी । 

यहाँ तक तो हम सभी असमन्जस में थे कि आप अभी तक अराजनैतिक हैं या फिर प्रो-बीजेपी । पर आगे के घटनाक्रम ने आपकी सच्चाई खोल के रख दी, जो इस प्रकार है :

जब हम वालंटियर्स की बनाई हुई आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो अरविन्द जी ने आपको एक बार फिर आकर हमें नेतृत्व देने की अपील की थी पर आपने इसे ठुकरा दिया था और जब AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में 28 सीट से अल्पमत की सरकार बनाई और अंततः अरविन्द जी मुख्यमन्त्री बने । और फिर जब आपने हमारी बनाई हुई पार्टी का विरोध किया और बीजेपी की तरफ से PM उम्मीदवार मोदी का समर्थन किया तो हमें लगने लगा था कि आप जनलोकपाल आंदोलन में बीजेपी की तरफ से प्लांट की गई थी । 
और आज जब आप बीजेपी में शामिल हो गयी हैं तो हमें भी यकीन हो गया है कि आपको बीजेपी ने ही जनलोकपाल आंदोलन में प्लांट किया था । यकीन दिलाने के लिए धन्यवाद । 
पर क्या बीजेपी-कांग्रेस से आपने राजनैतिक चंदे को लेकर जो सवाल किया था, क्या उसका जवाब आपको मिला ? नहीं । 
आपका 5 सितम्बर वाला पुराना ट्वीट जो शायद आपको याद नहीं होगा ।
It will be a shame on both main national parties if they unite to keep political funding out of RTI.Neither deserve our vote ! - Kiran Bedi @ thekiranbedi 
12:49 AM - 5 Sep 2013 

अंत में कुछ सवालों ( जिनके जवाब शायद आप देना पसन्द नही करेंगी ) के साथ खत्म करता हूँ -

1. आप जनलोकपाल के बजाय सरकारी लोकपाल पर क्या सिर्फ इसलिये राजी ख़ुशी मान गयी थी कि इसका फायदा तो बीजेपी उठा चुकी है लेकिन आगे इसका नुकसान बीजेपी को न उठाना पड़े ।
या फिर सिर्फ आम आदमी पार्टी से दुश्मनी निकालने के लिये । क्योंकि AAP अभी तक जनलोकपाल पर ही अड़ी थी । जब आपको सरकारी लोकपाल ही चाहिए था तो आप  दिसंबर 2011 में ही मान जाती ।

2.  इतने दिनों तक नाटक क्या सिर्फ बीजेपी के लिए कांग्रेस के खिलाफ माहौल तैयार करवाने के लिये किया था ?

3. जब आप और वीके सिंह जी को बीजेपी में ही जाना था तो फिर इतने दिन तक अन्ना हज़ारे जी के साथ दिखावा क्यों किया ? क्या सिर्फ केजरीवाल और हमें बदनाम करने के लिये ?

4. क्या आप जनलोकपाल पास कराने के लिये केंद्र में सत्तासीन आपकी पार्टी पर दबाव बनायेंगी ?

5. क्या आप अपनी पार्टी के राजनैतिक चंदे को rti के तहत लायेंगी ?

जवाब के इंतजार में ....

जय हिन्द ।

Courtesy : Karan Thapar's report in HT.

Friday 16 January 2015

बैड लोन : घोटाला, जाे दिखते हुये भी अनदेखा है

आपने कभी बैंक से लोन लिया है कभी ? और उसको ना चूका पाये हो तो बैंक क्या करता है आपके साथ ? आपने सिक्यूरिटी में बैंक के पास जो चीज गिरवी रखी है, उसको नीलाम करके अपना पैसा वसूलती है । और यदि यही पूरी कहानी किसी कंपनी के साथ हो तो ? आप सोच रहे होंगे कि जो आपके साथ हुआ वही सब उस कंपनी के साथ भी होगा । तो आप यहाँ बिल्कुल गलत हैं । क्योंकि बैंक इस तरह के लोन को बैड लोन की श्रेणी में डाल देती है और उसको वसूल नहीं करती है । अब आप सोच रहे होंगे की ये बैड लोन क्या बला है जो सिर्फ कंपनियों पर होती है पर एक आम आदमी पर नहीं ।
बैड लोन एक तरह से है तो घोटाला पर सरकार, बैंकों और उद्योगपतियों ने मिलकर इसको नाम दिया है " बैड लोन " माने बैंकों द्वारा किसी कंपनी को दिया हुआ वो लोन जो अब उस कंपनी द्वारा नहीं चुकाया जायेगा और बैंक भी चुपचाप बैठ जायेगी । और तो और इस बैड लोन की  रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर उन डिफॉल्टर कंपनियों को ये बैंक फिर से हजारों करोड़ का लोन दे देते हैं जो फिर उसी पहले वाले डूबत खाते में चला जाता हैं ।
औद्योगिक घरानों द्वारा बैड लोन और रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर चल रही लूट कितनी बड़ी है आप सुनेंगे तो आपके कान फट जायेंगे । ये लूट है तकरीबन ₹600,000,000,000,000 ( 6 लाख करोड़ ) की है । आपको सरल भाषा में समझाऊँ तो देश के दो साल के रक्षा बजट के बराबर है ये रकम । या फिर यूँ कि देश के कूल विदेशी कर्जे ₹2,600,000,000,000,000 ( 426 अरब डॉलर ) का पाँचवा हिस्सा (1/5 वां) है ये घोटाला ।
अब ये तो बात हुई इस घोटाले की कीमत की, अब आगे बताते हैं कि इस बैड लोन को बड़े बिज़नेस हॉउसेज द्वारा अंजाम कैसे दिया जाता है ?
कोई भी बड़ा औद्योगिक घराना जब नई कंपनी शुरू करता है तो वो बैंक से लोन लेता है और जब कंपनी फेल हो जाती है तो उसका मालिक खुद को दिवालिया घोषित कर लेता है और बैंक को लोन चुकाने से मना कर देता है और इस पुरे लोन को बैंक जब वसूल नहीं कर पाती है तो इसे बैड लोन की श्रेणी में डाल कर फ़ाइल बन्द कर देती है ।
2013 तक की मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी बैंकों के बैड लोन का आंकड़ा 2 लाख 43 हज़ार करोड़ था. इस बैड लोन की रिस्ट्रक्चरिंग लोन ( बैड लोन को वसूलने के खातिर दिवालिया हो चुकी कंपनी को उबारने के लिए दिया गया लोन ) के नाम पर बैंकों ने 3 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपये और बांट दिए और वो भी उसी डूबत खाते में गये ।
अब आपको देश के टॉप 10 बैड लोन डिफ़ॉल्टर्स के नाम बताते हैं -
1. टॉप पर हैं यूबी ग्रुप के मालिक विजय माल्या, जिनपर किंगफिशर एयरलाइंस के 2673 करोड़ रुपये बकाया है ।
2. अगला बड़ा नाम है गुजरात की विनसम डायमंड्स एंड ज्वैलरी लिमिटेड का, जिनपर सन् 1986 से 2660 करोड़ रुपये बकाया हैं ।
3. इसके बाद है गुजरात की इलेक्ट्रोथर्म इंडिया लिमिटेड है जो 1985 में रजिस्टर्ड हुई, पर बैंकों का 2211 करोड़ रुपये का कर्ज़ है ।
4. ज़ूम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड पर बैंकों का 1810 करोड़ रुपये का कुल कर्जा है ।
5. संदेसारा ग्रुप की स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड जो 1985 में रजिस्टर्ड हुई, पर बैंकों का 1732 करोड़ रुपये का कर्ज़ा है ।
6. अगला नाम है कभी टेक्सटाइल किंग कहे जाने वाले एस कुमार्स नेशनवाइड लिमिटेड का । एस कुमार्स नेशनवाइड लिमिटेड पर बैंकों का 1692 करोड़ का कर्ज़ है ।
7. फ्लोरियाना ग्रुप की सूर्या विनायक इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड पर 1446 करोड़ रुपये का कर्ज़ है ।
8. कॉर्पोरेट इस्पात अलॉयज़ पर 1360 करोड़ का कर्ज़ है । कॉर्पोरेट इस्पात अलॉयज़ के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में विद्यासागर बनारसी दास गर्ग, रविंद्र जायसवाल, मनोज जायसवाल, अभिषेक जायसवाल और प्रकाश जायसवाल के नाम शामिल हैं ।
9. फॉरएवर प्रेसियस ज्वैलरी एंड डायमंड्स लिमिटेड, ये कंपनी 1996 में रजिस्टर्ड हुई और इस कंपनी के हरीशभाई मेहता और सत्यप्रकाश तंवर डायरेक्टर हैं. इसपर 1254 करोड़ रुपये का कर्जा है ।
10. 2006 में शुरू हुई सन्देसारा ग्रुप की ही स्टर्लिंग ऑयल रिसोर्सेज कंपनी का । जिसपर 1197 करोड़ का कर्ज़ चढ़ा हुआ है ।
बैड लोन मामले में सरकार और RBI भी एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं । फाइनेंस मिनिस्ट्री का कहना है कि पब्लिक सेक्टर बैंक (PSB) देश की  इकनॉमिक ग्रोथ बढ़ाने के सरकार के निर्देश का पालन कर रहे थे। इसलिए उन्हें बैड लोन के लिए कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। रिजर्व बैंक सरकार की इस दलील से सहमत नहीं है। उसने पिछले हफ्ते अपने जवाब में कहा कि सरकारी बैंकों की क्रेडिट मैनेजमेंट स्किल अच्छी नहीं है। अगर सरकार के कहने पर भी पब्लिक सेक्टर बैंक लोन दे रहे थे, तो उन्हें इसमें समझदारी बरतनी चाहिए थी। उन्हें सिर्फ उन्हीं कंपनियों को लोन देना चाहिए था, जो पैसे के बदले पर्याप्त एसेट्स गिरवी रख रही थीं।
अब आगे क्या हो सकता है इसका
रिस्ट्रक्चरिंग के बाद भी बैंकों को अपना पैसा वापस नहीं मिल रहा है। इसलिए वह लोन को एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (एआरसी) को बेच रहे हैं। एआरसी इन लोन्स को भारी डिस्काउंट पर खरीदती हैं। ये क्रेडिटर्स को रिस्ट्रक्चरिंग में मदद करती हैं और उनसे लोन्स की वसूली करती हैं।
पिछले तीन साल में गलत कर्ज मंजूरी और जालसाजी से बैंकों को ₹2274300000000 रुपए का चूना लग चुका है। मतलब यह कि हर दिन बैंकों का 20.76 करोड़ रुपए डूब जाता है।
अब इन बैंकों को उबारने के लिए लोगों का पैसा  खुद के पास कैश ज्यादा न रखकर सीधा बैंकों में पहुँचाया जाये जिससे इन बैंको की हालत कुछ सुधरे ।
साभार : टॉप टेन डिफ़ॉल्टर्स के नाम गिरिजेश मिश्रा ( इंडिया न्यूज़ के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर ) की रिपोर्ट से लिए गए हैं ।

Wednesday 14 January 2015

मोदी जी ... किसकी जमीन, किसका विकास ?

जमीन, हर किसी की जरूरत है किसी को रहने के लिये, तो किसी को खेती के लिये, किसी को चलने के लिये तो किसी को उद्योग के लिये । यानि कि जमीन है तो जहां है, पर वही जमीन कईयों का पेट भरे तो उनके लिये तो ये माँ से बढ़कर है । पर कोई आपकी मर्जी के खिलाफ आपसे वो जमीन हड़प ले तो आप पर क्या गुजरेगी ?
ये सवाल इसलिये कि आज से या यूँ कहिये अभी से, सरकार आपकी जमीन पर कब्ज़ा कर सकती है और आपको इसका विरोध का अधिकार भी नहीं होगा, इसी के साथ 70% जमीन मालिकों की सहमति का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया है नये कानून में ।
और तो और आपको बिना किसी बहस के जो मुआवजा दिया जायेगा वो लेना पड़ेगा और साथ में ये भी कि अगर मुआवज़ा प्रभावित व्यक्ति के खाते में नहीं भी गया है और सरकार ने अदालत में या किसी और निर्मित खाते में मुआवज़े का फंड जमा करा दिया है, तो उसे 'मुआवजा दिया गया' माना जा सकता है। माने जमीन आपकी है पर मर्जी सरकार की चलेगी, और ये सब हुआ है भूमि अधिग्रहण कानून-2014 लागू होने के बाद ।
अब आपको लग रहा है कि बहुते नाइंसाफी है ये तो, है तो है, पर सरकार के आगे किसका जोर । अब ज्यादा फिलोसोफी या संविधान का ज्ञान मत बघेरना कि ये लोकतन्त्र है मियाँ, जहाँ जनता का, जनता पर, जनता द्वारा शासन होता है, आपको महँगा पड़ सकता है क्योंकि इस नये कानून में विरोध करने पर सजा का प्रावधान भी है ।
इस बिल में जमीन अधिग्रहण में किये गये पांच बदलाव इस प्रकार हैं-
• नए संशोधन में भारत की रक्षा ज़रूरतों को ज़मीन अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है।
• गांव में बिजली, सड़क बनाने, सिंचाई, राजमार्ग बनाने के लिए भी सरकार सीधे अधिग्रहण करेगी।
• गरीबों के लिए सस्ते आवास की योजना के लिए सरकार सीधे ज़मीन का अधिग्रहण करेगी।
• हाईवे के नज़दीक बनने वाले औद्योगिक गलियारों के लिए ज़मीन लेने की अड़चनें दूर कर दी गई हैं।
• पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की योजनाओं के लिए भी ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान किया गया है।
अब सवाल ये उठता है कि इनके अलावा सरकार जमीन लेगी भी क्यों ? और लेगी तो वो उपरोक्त 5 प्रावधानों के तहत लेकर दूसरे काम में लेगी ।
सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के ज़मीन अधिग्रहण के मामले में रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज़ में कई और अहम बदलाव भी किये हैं, जो निम्न हैं -
• ज़मीन लेने के बाद कंपनियों के ऊपर से उस ज़मीन पर पांच साल के भीतर उस पर काम शुरू करने की पाबंदी हटा ली गई है। पहले कानून में व्यवस्था थी कि पांच साल के भीतर काम शुरू न होने पर मूल मालिक ज़मीन पर दावा पेश कर सकते हैं।
• सरकार ने रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज के तहत मुआवज़े की परिभाषा को बदला है। पुराने अधिग्रहणों में अगर मुआवज़ा प्रभावित व्यक्ति के खाते में नहीं भी गया है और सरकार ने अदालत में या किसी और निर्मित खाते में मुआवज़े का फंड जमा करा दिया है, तो उसे 'मुआवजा दिया गया' माना जा सकता है।
• ये प्रावधान भी हटा लिया गया है जिसमें अगर किसी ज़मीन के अधिग्रहण को कागज़ों पर 5 साल हो गए हैं और भौतिक रूप से सरकार के पास कब्जा नहीं है और मुआवज़ा नहीं दिया गया, तो मूल मालिक ज़मीन
को वापस मांग सकता है।
सरकार ने अब इसमें यह प्रावधान जोड़ दिया है कि अगर मामला अदालत में चला गया है तो मुकदमेबाज़ी के वक्त को 5 साल की मियाद में नहीं जोड़ा जाएगा।
• सरकार ने कानूनी की अनदेखी करने और कानून तोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए रखी गए प्रावधान भी ढीले किए हैं। नए बदलाव के मुताबिक किसी अफसर पर कार्रवाई के लिए अब संबंधित विभाग की अनुमति लेना ज़रूरी होगा।
गतवर्ष  नवंबर में SEZ के नाम पर किसानों से ली गई ज़मीन के बारे में CAG की एक रिपोर्ट ( रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीले अक्षर पर क्लिक करें ) संसद में पेश की गयी थी, जिसमें बताया गया था कि SEZ के तहत 45000 हेक्टेयर से ज्यादा ज़मीन किसानों से ली गई, लेकिन 38 फीसदी यानि 17000 हेक्टेयर जमीन पर कोई काम शुरू ही नहीं हुआ जबकि कई साल बीत गये। इसमें ज्यादातर ज़मीन सार्वजनिक हित के नाम पर ली गई और प्राइवेट कंपनियों ने उसके बदले बैंक से 82000 करोड़ के लोन भी ले लिए।
ये पूरा खेल सिर्फ उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से रचा गया है जिसमें मोदी जी के कहे अनुसार हम इस जमीन से आपका और देश का विकास करेंगे । यहाँ कारखाने लगायेंगे, शहर बसायेंगे, सड़कें बनायेंगे जिससे  विकास होगा, आपका जीवन स्तर सुधरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफा होगा इत्यादि । ये सिर्फ और सिर्फ धोखें है, इसके सिवाय कुछ नहीं ।
रही बात विकास की तो जिस जगह ये सब सुविधाएं हो जायेगी वहां वो किसान अपना पेट कैसे पालेगा ? क्योंकि उसकी जमीन पर तो कोई स्मार्ट सिटी या SEZ होगा जहाँ वो मजदूरी करेगा लेकिन उस स्तर की सुविधाओं वाली जिंदगी जीने जितना नहीं कमा पायेगा ।
मोदी जी कहते हैं इससे विकास होगा । सवाल है किसका ?
मोदी जी के इस प्रिय विकास को हम एक साधारण से उदहारण से समझाता हूँ -
( दिल्ली-जयपुर (NH-8) टोल वसूली केस से हम इसे आसानी से समझ सकते हैं )
दिल्ली से जयपुर के बीच जो रोड है उसको 4 से 6 लेन  बनाने के लिए पहले जमीन ली गई, फिर उस पर रोड बनाने का ठेका मिलने के बाद, बिना पूरा बनाये, उसको बनाने वाली अंबानी की कंपनी को टोल वसूलने की आज़ादी दे दी जो अब तक भी बदस्तूर जारी है ( ध्यान देने योग्य बात ये है कि रोड अब भी आधी से ज्यादा बनी नहीं है ), जिसकी कोई साल - दो साल पहले सूबे की  राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने भी टोल टैक्स बन्द करने को मंत्रालय को सिफारिश की थी, पर बन्द नहीं हुआ है । आप अपनी गाड़ी में अपने पैसोँ से भराये पेट्रोल/डीजल के साथ उस रोड पर चढ़ने के बाद दिल्ली पहुँचने तक आपको करीब 250 रूपये टोल के चुकाने होंगे । अब इस रोड को बिज़नस के उद्देश्य से बनाया गया था तो दोनों तरफ की जमीन को भी कंपनियों के हवाले कर दिया है । अब उस रोड पर पड़ने वाले लोगों से जब मैंने बात की तो किसी ने भी ये नहीं कहा कि उसका विकास हुआ है । वो बताते हैं कि उन्हें रोजगार की उम्मीद थी और वो भी सभी को नसीब नहीं हुआ क्योंकि हमसे सस्ते मजदूर उनको नेपाल,बिहार,बंगाल,यूपी से मिल जाते हैं । और न तो यहाँ कोई सरकारी यूनिवर्सिटी खुली है, न ही कोई बड़ा हॉस्पिटल ( प्राइवेट तो खूब हैं लेकिन उनके बुते से बाहर हैं वे )
ये मोदी सरकार उद्योगपतियों द्वारा चलाई जा रही है, जिसमें किसान, मजदूर और गरीबों के लिए कोई योजना नहीं है । अब तो सरकार लोकतान्त्रिक से इतर पुँजितांत्रिक हो गयी है । ये भूमि अधिग्रहण कानून -2014 आपको, आप ही की जमीन पर गुलाम बनाने की कुटिल चाल है, जो अंग्रेजों द्वारा 1896 में बनाये गए कानून की कॉपी है ।
जय जवान, जय किसान
Photo courtesy : Mr Rajesh Kashyap

Thursday 1 January 2015

pk, एक आईना

pk देखी,  अच्छी फ़िल्म है और तर्क़ के आधार पर हर धर्म में फैले पाखण्डों पर चोट की है निर्देशक राजकुमार हिरानी ने । पहले पहल तो मन नही था देखने का पर जब बाबा रामदेव और हिंदूवादी संगठनों का विरोध और केंद्र में सत्तासीन बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि इसमें isi और अंडरवर्ल्ड का पैसा लगा हुआ है और भारतीय संस्कृति का उपहास है ये फ़िल्म । तो देखना जरूरी हो गया था और आज जाकर देख ही ली लेकिन सामान्य कॉमेडी और तार्किक रूप से हर धर्म पर चोट और हर धर्म के पाखण्डियों को नंगा किया है जो गलत भी नही है, इससे ज्यादा कुछ नही लगा इसमें जिसपर इतना बवाल हो। पर सन्देश अच्छा है फ़िल्म का और हाँ ये हिंदुस्तान में बनी अब तक की अच्छी फिल्मों में से एक है । फ़िल्म का नायक pk एक दूसरे ग्रह से आया हुआ एक एलियन है और उसका दुनिया को देखने का तरीका अलग है । अब थोड़ा आगे का लेख pk की नजर से ही -
ये दुनिया कई तरह से बँटी हुई है जैसे देश, भाषा, धर्म, खान-पान, रहन-सहन इत्यादि । इनमें धर्म को छोड़कर कुछ भी ऐसा नही है जो पृथ्वी के दोनों छोरों पर समान मिले । इसलिये ये भी कह सकते हैं कि धर्म, विश्व के दो बिल्कुल जुदा लोगों को जोड़ने का काम भी करता है और बिल्कुल समान लोगों को बाँटने का काम भी करता है । जिस धार्मिक पुस्तक को पढ़ोगे, उसमें यही मिलेगा कि धर्म का उद्देश्य लोगों को जोड़ना है । पर धर्मगुरुओं ने ( या यूँ कहिये कि पाखण्डी बाबाओं ने ) धर्म को कुछ अलग ही ढंग से परिभाषित कर रखा है । इनके अनुसार धर्म का उद्देश्य है लोगों को तोड़ना ।
यानि कि मूल धर्म से इतर उसी नाम का एक अलग धर्म चला रहे हैं ये लोग ।
अब फिर आते हैं हमारी सोच पर -
इन धर्मों में फैले पाखण्डों के खिलाफ बोलने वाले लोग उस धर्म के दुश्मन करार दिये जाते हैं । यही काम कर रही है pk और इस फ़िल्म के साथ भी वही हुआ जो अब तक होता आया है यानि कि धर्म विशेष की दुश्मन घोषित । और इस बार इस फ़िल्म को दूश्मन घोषित किया है हिन्दू धर्मगुरुओं ने । क्योंकि इसमें अंत में एक हिंदू बाबा से सवाल किये जाते हैं तो हिन्दू गुस्से में हैं, ये कोई कारण नही है और विरोध का दूसरा कारण है भगवान शिव का गेटअप पहने एक कलाकार की बेइज्जती । ये भी कोई कारण नहीं हुआ विरोध का क्योंकि ऐसे कई कलाकार देखें हैं जो परदे पर तो राम का रोल करते हैं जबकि पर्दे के पीछे नशा भी करते हैं और लड़कियों से छेड़छाड़ भी ।
ऐसा नही है ये हो हल्ला सिर्फ हिन्दू पण्डों द्वारा ही किया जाता है, मौलवी, चर्च के बिशप सभी इसी श्रेणी में आते हैं ।
मौलवियों के पाखंड पर बनी ईरानी फ़िल्म The Lizard, पाकिस्तानी फ़िल्म बोल या खुदा के लिये के मेसेज को आगे बढ़ाने के लिए हिंदुस्तान में भी ओह माय गॉड और pk जैसी फिल्में बननी शुरू हुई है, जो एक सराहनीय कदम है ।
और यहाँ (pkफ़िल्म से) जो यक्ष प्रश्न खड़ा है वो है कि विश्व के सबसे प्राचीन धर्म की नींव क्या इतनी कमजोर है जो सिर्फ एक फ़िल्म से हिल जाये ?
लेकिन जैसा कि अभी का माहौल है उससे तो यही लगता है कि pk ने वो कर दिखाया है जो अभी तक असंभव था यानि कि पाखण्डियों की खिलाफत । हालांकि इन पाखण्डियों पर  कई बार प्रहार किया गया है पर इन्होंने ने अपने पाँव इतनी गहराई से जमा रखें हैं कि वो नाकाफी साबित हुआ है । हाँ अकेली इस फ़िल्म से ज्यादा उम्मीद रखना बेमानी होगी पर हाँ इसने हिंदुस्तान में शुरुआत की है ( पड़ोसी मुल्क पाक में बोल और शोएब मंसूर की खुदा के लिए भी इसी श्रेणी में गिन सकते हो ) और वो भी ऐसे समय में जब सभी धर्म एक दूसरे से खतरे में हैं । हिन्दू को मुस्लिम से, मुस्लिम को बौद्ध से, बौद्ध को ईसाई से, ईसाई को हिन्दू से यानि कि सब धर्म खतरे में हैं और यदि आप मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि में जाओगे तो वहाँ दानपेटीयाँ रुपयों से ऐसे अटी मिलेगी कि देखने वाला गर कमजोर दिल का हो तो जान चली जाये ।
जैसा की इस फ़िल्म के अंत में एक सीन है जिसमें फ़िल्म का हीरो pk स्टेशन पर अपने दोस्त को लेने जाता है पर वहाँ हुए बम विस्फोट में उसका दोस्त मारा जाता है और फिर एक चैनल खबर दिखाता है कि " इस विस्फोट की जिम्मेदारी x ग्रुप ने ली है और कहा कि हम अपने धर्म की रक्षा के लिए और भी धमाके करेंगे ।"
अब सवाल ये उठता है कि क्या इस तरह धमाकों से क्या उनका धर्म सुरक्षित हो जायेगा ? और इस बात की क्या गारंटी है कि उस धमाके में सिर्फ वही लोग मारे गए हैं जो उनके दुश्मन हैं । दोनों सवालों का जवाब धर्म के नाम पर लड़ने वाले दशहतगर्दों के पास नहीं हैं ।
और भी कई अच्छे सवाल किये हैं फ़िल्म में जैसे

* एक सीन है जिसमें pk पुतला बनाने वाले से कहता है " आपने भगवान को बनाया है या आपको भगवान ने ?"तो जवाब मिलता है " जरा धीरे बोल, धंधा मन्दा करवायेगा क्या ?"
* और एक अन्य सीन है जिसमें जब pk समझाता है कि डर ही अंधविश्वास को जन्म देता है तो लोग कहते हैं कि धर्म ऐसा विश्वास है जिसपर बहस नहीं की जा सकती । क्यों ? 
* सबसे अच्छा सीन तो फ़िल्म के खत्म होने से पहले का है जब pk अपने ग्रह पर वापस जाता है तो हमसे जो एक बात सीखकर जाता है वो है " झूठ बोलना " यानि हमारे यहाँ सीखने को सिर्फ झूठ बचा है ।
जब दुनिया में हर चीज पर बहस होती है तो धर्म पर क्यों नहीं । क्या सिर्फ इसलिये कि कुछ सवालों के जवाब इन पाखण्डियों के पास नहीं हैं या फिर धार्मिक पुस्तकों में लिखा है वही अंतिम सत्य है, इसलिये ।

और अंत में जब आप pk देखने के बाद धर्म पर बहस करने की हिम्मत जुटा लो तो समझिये pk देखकर समय और रूपये बिगाड़े नहीं हैं ।

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...