Wednesday 22 April 2015

गजेन्द्र भाई, आपकी मौत के जिम्मेदार हम हैं

" नरेंद्र मोदी मुर्दाबाद "
" वसुंधरा राजे मुर्दाबाद "
" जमीन कब्जाओ बिल वापस लो
" भारत माता की जय "
" भारत माता की जय "

जैसे ही ये शब्द सुनें मैंने ऊपर पेड़ की तरफ देखा, वहाँ एक राजस्थानी गले में फंदा डाले भारत माता के जयकारे लगा रहा था, समय हुआ था 1.38 और कुछ देर नारे लगाने के बाद 1.39 पर उन्होंने फाँसी वाला सफेद गमछा गले में डाल लिया फिर अचानक पैर फिसला और उन्हें फाँसी लग गयी । शायद वो आत्महत्या नहीं करना चाहते थे, सिर्फ विरोध प्रकट कर अपनी और ध्यान आकर्षित कर रहे थे, जो कि उनका लिखा नोट " मुझे घर जाने का उपाय बतायें " भी यहीं इंगित करता है ( उनकी फ़ोटो भी देख सकते हैं जानने के लिये )  हम लोग वहीं सन्न रह गये, दिमाग चल ही नहीं रहा था ।
इस बीच कुछ वालंटियर्स ने मंच पर मौजूद लोगों को सुचना दी और मंच से कुमार विस्वास ने पुलिस वालों से उन्हें नीचे उतारने की अपील की लेकिन उनके कान पर कोई जूं नहीं रेंगी । मंच से कुमार विस्वास बार - बार पुलिसकर्मियों से उनको बचाने के लिये आगे आने की अपील करते रहे पर जब कोई नहीं आया तो उन्होंने AAP कार्यकताओं से उनको नीचे उतारने की अपील की । इस बीच भूपेन्द्र भाई सहित कुछ 2 - 3 साथी ऊपर चढ़े और उन्होंने उसके गले से फंदा निकाला लेकिन वो लोग गजेन्द्र भाई को संभाल नहीं सके और वो उनके हाथ से फिसल के नीचे आ गिरे । हालांकि हम लोगों ने निचे बिछाने वाली दरी तान रखी थी जिससे अगर वो गिरे तो चोट नहीं लगे, लेकिन जब वो गिरे तो लोगों के हाथो में पकड़ी दरी फट गयी और उनके सर में चोट लग गयी । तब तक 1.44 बज चुके थे, हमने उनको संभाला तो उनकी साँसे चल रही थी तो हमारे कुछ साथी उसको लेकर RM लोहिया हॉस्पिटल के लिये निकल गये । जो कि सिर्फ 3 KM की दूरी पर था, और 15-16 मिनट बाद वहाँ पहुँच गए थे और वहाँ पहुँचते ही डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और इस बीच आस - पास कोई भी पुलिस वाला नहीं फटका, न तो वहाँ मौजूद कोई पुलिसवाला उनको बचाने आया न ही उनको हॉस्पिटल ले जाने को आगे आया । इस पुरे प्रकरण को सिर्फ आम आदमी पार्टी ( AAP ) के कार्यकर्ताओं ने ही अपने लेवल पर हैंडल किया । लगभग 2.10 बजे तक जंतर - मंतर पर मौजूद साथियों तक ये खबर पहुँच चुकी थी । और तब मंच पर अरविन्द का भाषण चल रहा था । अग़र तब अरविन्द मंच नही सँभालते और कुछ नही बोलते तो शायद कार्यकर्ता भड़क जाते । अरविन्द ने हालात को संभाले हुए सबको शांत करया।
जब वो किसान नीचे गिरा तब उसकी साँसे चल रही थी मने जिंदा था तो उनको हॉस्पिटल रवाना कर दिया गया और सभा को जारी रखने का निर्णय लिया गया । और सोमनाथ भारती को हॉस्पिटल पहुँचने का आदेश दिया गया और यही वो वजह थी जिससे वहाँ विरोध दर्ज करवा रहे शिक्षकों ने भी अपना विरोध जारी रखा और जहाँ तक मेरा मानना है कि अगर किसी को थोड़ी सी भी भनक होती गजेन्द्र भाई की मौत की तब न तो आम आदमी पार्टी सभा जारी रखती और न ही वहाँ वो शिक्षक अपना विरोध जारी रखते । बाकि जो आरोप हैं वो सब राजनैतिक पार्टीयाँ  और मीडिया अपनी TRP बढ़ाने के लिये लगा रही है ।
ये सारी बात तो हुई गजेन्द्र भाई द्वारा आत्महत्या की कोशिश करने के बाद भी आम आदमी पार्टी द्वारा सभा जारी रखने तक की । अब आगे बताता हूँ कि मैं इस सबमें कसूरवार क्यों हूँ ?
जब सुबह हम लोग बाबरपुर विधानसभा के साथियों के साथ जंतर - मंतर पहुँचे तो कौतूहलवश मैं सीधा सभा स्थल पर गया और देखा कि वहाँ लोगों में जबरदस्त माहौल था और सभी साथी बहुत उत्साहित थे । इस बीच राजस्थानी पगड़ी पहने और दाड़ी - मूँछ वाला एक आदमी, जिसके एक हाथ में एक डंडा था जिसके एक सिरे पर झाड़ू बंधी हुई थी और दूसरे हाथ में AAP का एक झंडा हाथ में लिये हुए था, मेरे पास से गुजरा और पेड़ तरफ बढ़ा और चढ़ने लगा । मुझे ये भाईसाहब बड़े ही उत्साही कार्यकर्ता लगे । फिर नीम के पेड़ पर चढ़ गये और ऊपर जाके एक कटी हुई डाली पर बैठ गये और नीचे खड़े हम लोगों की तरफ उन्होंने झाड़ू लहराई । मैंने भी जवाब में हाथ हिलाया । उनका पेड़ पर चढ़ना मुझे बिल्कुल भी नहीं अखरा क्योंकि आज तक हमारी जितनी भी सभायें हुई थी तो उसमें लोग पार्टी नेताओं को सुनने के लिए वहाँ लगे पेड़ों पर चढ़ जाते थे । और इसके बाद जब मुझे कुछ मित्र मिले तो उनसे मिलने के लिए उस पेड़ के सामने एक भवन में चला गया और इस दौरान राजस्थान से आये बाकि साथियों से भी मिला और मिलने के बाद फिर मंच पर मौजूद वक्ताओं को सुनने के लिये उस पेड़ के सामने आया । फिर अरविन्द जी 1.30 बजे मंच पर आ गये थे और कुमार विस्वास ने माइक संभाल लिया और फिर 1.38 बजे गजेन्द्र भाई नारे लगाने लगे और इसके बाद ऊपर लिखा हुआ वाकया घटित हुआ ।

NDTV की एक रिपोर्ट है, जिसको मै आपके साथ शेयर करना चाहता जो आपको बतायेगी कि उस समय मंच पर क्या चल रहा था जब ये सारा वाकया घटा ।आप भी देखिये कैसे AAP को बलि का बकरा बनाया जा रहा है मीडिया द्वारा । इस बीच मीडिया जिन लोगों को तालियाँ बजाते दिखा रही है वो लोग वहाँ विरोध करने आये शिक्षक थे, जो बिल्कुल उस पेड़ के नीचे ही थे ।
अंत में लानत भेजता हूँ पुलिस ( तमाशबीन बनने के लिये ), मीडिया ( पुलिस द्वारा सहायता न करने पर इन्हीं AAP नेताओं के कहने पर वालंटियर्स ने गजेन्द्र भाई को उतारा, इसके लिये तारीफ की जगह आलोचना करने के लिये ) और नेताओं ( बजाय समस्या को खत्म करने के, इसे आज तक सिर्फ वोट बैंक बनाकर रखने के लिये ) पर ।

गजेन्द्र भाई आपकी आत्मा को शांति मिले और ऊपरवाला आपके परिवार को इस दुःख की घड़ी से उबरने की शक्ति दे ।

Saturday 18 April 2015

Android Smartphone Codes, जो आपको स्मार्ट यूजर बना देंगे

आजकल सभी के पास स्मार्टफोन हैं लेकिन मैं यहां आपको कुछ चुनिंदा कोड न. दे रहा हूँ जो आपको भी स्मार्ट बना देंगे । ये कुछ कोड हैं जो एंड्रायड प्‍लेटफार्म को आपके लिए बहुत ही उपयोगी बनाते हैं, इनको डायल करने से आपके फोन से जुडी कई जानकारी आप सेकण्ड्स में पा सकते हो वो भी बिना सेटिंग्स में जाये । ये कोड कोई साधारण कोड नहीं है बल्‍कि एक तरह के शार्टकट कोड है जिनकी मदद से आप बस ये कोड डॉयल करके सीधे फोन से जुड़ी जानकारी प्राप्‍त कर सकते हैं। तो पेश हैं वो विभिन्न कोड्स, जिनसे आप अपने एंड्रॉयड फोन में कई चीजें जान सकते हैं -

👉  अगर आप अपने मोबाइल का रेडिएशन चेक करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपने मोबाइल से *#07# डायल करना होगा । आप जैसे ही यह नंबर डायल करेंगे आपके स्क्रीन पर रेडिएशन वैल्यू आ जायेगी। इंटरनेशनल एवं नेशनल मानक के मुताबिक मोबाइल फोन का रेडिएशन लेवल 1.6 वाट/किलो से अधिक नहीं होना चाहिए, इससे ज्यादा आया तो समझिये आप खतरे में हैं ।

👉  एंड्रॉयड मोबाइल का IMEI नंबर पता करना है, तो *#06# कोड डायल करें ।

👉  अपने एंड्रॉयड फोन की रैम के बारे में जानकारी पाने के लिए हैंडसेट में कोड *#*#3264#*#* डॉयल करें।

👉  फोन के सर्विस मेन्यू में जाना चाहते हैं, तो कोड *#0*# डायल करें ।

👉  एंड्रॉयड फोन का बैटरी स्‍टेट्स चेक करने के लिए *#0228# कोड डायल करें ।

👉  फोन को सर्विस मोड में करने के लिए कोड *#9090# डायॅल करें।

👉  फोन में बैटरी यूज या डिवाइस से संबंधित जानकारी चाहिए, तो कोड *#*#4636#*#* डायल  करें।

👉  अपने फोन कैमरा से जुड़ी जानकारी पाने के लिए एंड्रायड फोन से कोड  *#*#34971539#*#* डायल करें।

👉  सॉफ्टवेयर/हार्डवेयर की जानकारी के लिए कोड *#12580*369# डायल करें।

👉  फोन और बैटरी की सारी जानकारी देखने के लिए  कोड : *#*#4636#*#*

👉  फोन को फुल फार्मेट करने के लिए कोड : *2767*3855#

👉  जीटॉक सर्विस स्‍क्रीन में देखने के लिए कोड : *#*#8255#*#*

👉  कॉल को इंड करने के लिए कोड : *#*#7594#*#*

👉  फोन का बैकप लेने के लिए कोड : *#*#273283*255*663282*#*#*

👉  जीपीएस टे‍स्‍टिंग करने के लिए कोड : *#*#232331#*#*

👉  ब्‍लूटूथ टेस्‍ट करने के लिए कोड : *#*#232337#*#*

👉  वॉयरलेस लेन टेस्‍ट के लिए : *#*#232339#*#*

👉  बैकलाइट/वाइब्रेशन टेस्‍ट : *#*#0842#*#*

👉  टच स्‍क्रीन टेस्‍ट के लिए : *#*#2664#*#*

👉  फोन लॉक स्‍टेट्स चेक करने के लिए : *#7465625#

👉  सिस्‍टम डम्‍प मोड में रखने के लिए : *#9900#

👉  यूएसबी लॉगइन कंट्रोल करने के लिए : *#872564#

👉  HSDPA/HSUPA कंट्रोल मेनू : *#301279#

👉  सभी मीडिया फाइलों का बैकप लेने के लिए : *#*#273282*255*663282*#*#*

👉  फैक्‍ट्रीडेटा रीसेट करने के लिए : *2767*3855#

👉  फैक्‍ट्री डेटा रीसेट करने के लिए कोड : *#*#7780#*#*

तो आप भी काम में लीजिये और साथियों को भी बतायें जिससे आप और आपके साथी भी स्मार्ट यूजर बनें

Wednesday 15 April 2015

नेट न्यूट्रलिटी : हमारा अधिकार

 अगर कोई आप से कहे कि आप जो ये मोबाइल / कंप्यूटर यूज़ कर रहे हो, उस पर फिल्म देखने का एक्स्ट्रा चार्ज देना होगा ।
 अगर आप अपने बच्चे के लिए खिलौना खरीदने जायें और दुकानदार कहे कि सुबह और शाम के इतर रात को अगर इस खिलौने से खेलना है तो आपको एक्स्ट्रा चार्ज देना होगा ।
 अगर आप ने एक बैट ( या बॉल ) खरीदा और आपसे दुकानदार कहे कि इससे चौका या छक्का लगाने ( या खाने ) पर एक्स्ट्रा चार्ज देना होगा ।
 अगर आप डेरी से दूध ख़रीदने जायें और डेरी वाला आपसे कहे कि इसका दही जमाने पर आपको एक्स्ट्रा चार्ज देना होगा
 अगर आप सब्जीवाले से सब्जी ( कैरी, नींबू, लहसुन, मिर्च etc. ) खरीद रहे हो लेकिन वो कहे कि आपको इसका आचार डालने पर एक्स्ट्रा चार्ज देना होगा ।
जब आपने किसी वस्तु / सेवा के पैसे चूका दिए हैं तो फिर आप तय करेंगे कि उसका उपयोग कैसे करना है, न कि विक्रेता / सर्विस प्रोवाइडर । क्या आप इन सब सुविधाओं पर खुशी - खुशी एक्स्ट्रा चार्ज देने को तैयार हैं ?
नहीं ना । तो फिर इंटरनेट सेवाओं पर ये सब क्यों लागू हो ?

नेट न्यूट्रलिटी क्या बला है
नेट न्यूट्रलिटी का मतलब है कि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों और सरकार को इंटरनेट पर मौजूद सभी प्रकार के डेटा को एक जैसा ही समझकर उनके प्रकार, यूज़र, साइट, प्लेटफॉर्म या ऐप के अनुसार उनमें भेदभाव न करते हुए एक ही तरीके से एक जैसी कीमतें वसूल करनी चाहिए।

नेट न्यूट्रलिटी की जरूरत क्यों ?
भारतीय टेलीकॉम कंपनियों ने ट्राई से कहा है कि उन्हें विभिन्न ऐप और वेबसाईटों को ब्लॉक करने व उनसे शुल्क वसूलने की अनुमति मिलनी चाहिए। साथ ही उपभोक्ताओं से भी हर ऐप और वेबसाईट के लिए टेलीकॉम कंपनियों को अपनी सुविधानुसार शुल्क वसूलने की अनुमति मिले।
टेलीकॉम रेगुलेटरी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने नेट न्यूट्रलिटी के मुद्दे को लेकर कंसलटेशन पेपर जारी किया है, जिसपर 24 अप्रैल तक लोग अपनी राय दे सकते हैं। केंद्रीय संचार मंत्री ने कहा है कि इस मामले पर उन्होंने जो कमिटी बनाई है, वो नेट न्यूट्रलिटी और नेट सिक्योरिटी पर अपनी रिपोर्ट देगी। कमिटी को मई के दूसरे हफ्ते तक अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइड कंपनी एयरटेल ने सबसे पहले एयरटेल जीरो द्वारा VOIP के लिए अलग से चार्ज लगाने की घोषणा की है, जो कि ग्राहकों के मौजूदा डाटा पैक का हिस्सा नहीं होगा। यानी डाटा पैक से आप केवल इंटरनेट सर्फ कर हैं लेकिन व्हाट्सएप, लाइन, वाइबर, स्काइप जैसे मैसेंजर या फ्लिपकार्ट, अमेज़न जैसी विशेष वेबसाइटों के लिए आपको अलग से शुल्क देना होगा ।

नेट न्यूट्रलिटी का समर्थन करें
नेट न्यूट्रलिटी के समर्थन में #SavetheInternet नाम से अभियान चल रहा है, जिसका आप इस साईट www.savetheinternet.in पर जाकर समर्थन कर सकते हैं और साथ ही इसके लिए वोटिंग भी कर सकते हैं  ( वोटिंग करने का प्रोसेस जानने के लिये क्लिक करें ) इसके अलावा आप ऑनलाइन पेटिशन भी साइन कर सकते हैं । अभी तक 2,00,000 लोगों ने इस पेटिशन को साइन किया है, आप लोग भी समर्थन करें और स्वतंत्रता और समानता के अधिकार को जिंदा रखने में सहयोग करें ।
इस मुहीम को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाये

Wednesday 8 April 2015

लव स्टोरी, जो शुरू न हो पायी

" घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही,
रस्ते में है उसका घर ।
कल सुबह देखा तो बाल बनती वो,
खिड़की में आयी नज़र ।। "

ये आपके लिये महज एक गाना हो सकता पर मेरे लिये ये गाने से बढ़कर है कहीं । ये वो चन्द लाइनें हैं जो अजमेर में मेरी इंजीनियरिंग के दौरान पहली और अंतिम लव स्टोरी की प्रार्थना ( धार्मिक नजरिये से ) या संविधान ( संवैधानिक नजरिये से ) या राष्ट्रीय गीत ( जनतांत्रिक नजरिये से ) थी । ये गाना मैं उन दिनों लगभग 20 - 25 बार सुना करता था दिन में, हाँ इससे मेरे रूममेट जरूर बोर हो गये थे लेकिन मेरे लिए तो क्या था ये आप ऊपर जान सकते हैं ।
इस बीच आपको अपनी लव स्टोरी तो बताना भूल ही गया

1st इयर के अंत में मैंने कैलाशपुरी ( क्रिश्चयनगंज ) में नया फ्लैट ( PN 67 ) किराये पर लिया था, जून का महीना था तो शाम को बाहर बैठते थे । सामने वाली लाइन में 2 घर छोड़ कोने में उसका घर था, शाम को उसकी कोचिंग थी तो वो 5.10 से 5.15 के बीच घर से निकलती थी और ये वो टाइम होता था जब उसको मैं देख सकता था 1 या 2 मिनट के लिये और कभी नहीं देख पाता तो मन आत्मग्लानि से भर जाता था और जब वो शाम को 6.45 से 6.55 के बीच वापस आती तो अपना फिर यही काम । बोले तो उसको देखना मेरी ड्यूटी बन गयी थी ।

नाम पता नहीं था, बस घर के बाहर मेहरा हाउस लिखा हुआ था तो मेरे लिए वो मिस मेहरा थी और रूममेट्स के लिए भाभी जी, हाँ इलेक्शन कॉमिशन की साईट पर जाके वोटर लिस्ट भी डाउनलोड की लेकिन वहाँ भी सिवाय उसके मम्मी - पापा के उसका नाम नहीं था । वो +2 में थी तो शायद 18 की हुई नहीं थी ।
नाम पता करता भी कैसे आस पड़ोस वाले तो वैसे भी लड़कों से बोलते नहीं हैं, पता नहीं क्यों ?  पर नहीं बोलते हैं । और उसकी दोस्तों से नाम पता करने की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि मुझमें लड़कियों से बात करने में एक झिझक थी जो अब भी है ।

ऐसा नही है कि उसको देखने का काम सिर्फ शाम तक ही सिमित था, सुबह भी ऐसा ही करता था । एक लड़का जो रात को देर से सोता और सुबह 10 बजे तक उठता था, वो लड़का अब मिस मेहरा की वजह से सुबह जल्दी उठने की कोशिस करने लगा ।  शुरू-शुरू में तो जब सुबह अलार्म बोलता था तो मन करता मोबाइल को जमीन पर दे मारूं लेकिन मिस मेहरा ने एक रूटीन सेट कर दिया था, सुबह जल्दी 7 बजे जागना और फिर मुँह धोकर बाहर को भागना, क्योंकि 7.05 से 7.10 के बीच सुबह स्कूल जाने का टाइम था और फिर दोपहर को 1.10 से 1.15  तक लौटना और उस कड़ी धुप में उसका इंतजार करना, यदि वो कभी 5-10 मिनट लेट हो जाती तो पसीने से पूरा शरीर तर बत्तर लेकिन देखे बिना नहीं रहना ।

शायर ग़ालिब ने कहा था " आदमी तो हम काम के थे, लेकिन इश्क़ ने निकम्मा बना दिया ग़ालिब " लेकिन यहाँ अपने मामले में ये शेर उल्टा था " आदमी तो हम किसी काम के न थे, लेकिन इश्क़ ने काम का बना दिया "

एक दो बार मिस मेहरा मुझे मन्दिर में दिखी तो इस अघोषित नास्तिक ने उसके चक्कर में मन्दिर जाना भी शुरू कर दिया, और तो कोई जाता नहीं था साथ वालों में तो मेरे से थोड़ी दूर रहने वाले दोस्त राजू को बुलाता था, क्योंकि वो थोड़ा धार्मिक प्रवृति का था । हाँ दोस्त बोलते थे कि वो भी मुझे लाइक करती है पर पता कैसे चले  इसका ।

हाँ एक बार जब वो शाम ट्यूशन जा रही थी तो उसने हमारे गेट के सामने लाकर स्कूटी को ब्रेक लगाया और एक पैर नीचे रख के धीरे से जानबूझकर स्कूटी नीचे गिरा दी, दोस्तों ने बोला कि जाओ तो हिम्मत करके जाने लगा इतने में उसके पापा आ गये तो नहीं जा पाया । दोस्तों ने बोला कि वो भी तेरे को लाइक करती है तभी तो स्कूटी गिराई थी जिससे तू उठवाने जाये और कुछ बात हो जाये । शायद मुझे भी यही लगा उस दिन तो कम से कम ।

मेरा एक रूममेट था वरुण, जो मेरे लिए उस टाइम मेरा लव गुरु था, उसकी देखरेख में मैंने आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन लड़कियों से झिझक की वजह से कभी बात नहीं कर पाया, डर था मन में कि कहीं वो ना न बोल दे या गुस्सा न हो जाये । एक डर और भी था कि कहीं मैं बोलूँ और भीड़ के सामने चांटा न मार दे लेकिन वरुण भाई ने ये बोल के डर दूर कर दिया हम उससे इजहार-ए-इश्क़ ही तो कर रहे हैं, नहीं पसन्द आया तो ना बोल देगी इससे ज्यादा क्या होगा । लेकिन ना बोल देगी इसने तो और ज्यादा डरा दिया । कहीं ना न बोल दे, ना बोल दिया तो उसको देख भी नहीं पाऊंगा । बस यूँ ही चलता रहा कुछ सप्ताह तक तो लेकिन गुरु देव वरुण ने बोला कि ऐसा कब तक चलेगा ?
जब तक वो मुझे नहीं बोल देती ?
वो तुझे क्यों बोलेगी ?
यार वो भी तो मेरे को लाइक करती होगी न ?
तुझे कैसे पता वो तेरे को लाइक करती है ?
क्योंकि उसने आजतक टोका भी तो नहीं ।
तेरे जैसे बेवकूफ हजारों हैं उसके आगे पीछे
लेकिन वो मेरे जैसे सच्चे आशिक़ थोड़ी न है
लेकिन उसको थोड़ी न पता है तेरे वाला ट्रू लव है
यार, वो अंधी थोड़ी न है, उसको दिखता नहीं क्या ?
क्या नहीं दिखता ?
यही कि कोई लड़का उसकी शक्ल और शरीर के अलावा उसकी बोल्डनेस और सादगी पर फिदा है, उससे ज्यादा सुंदर तो उसकी दोनों फ्रेंड हैं ।
भाई, लड़कियों को सभी लड़के एक से ही नजर आते हैं शुरू-शुरू में
तो क्या करूँ ?
बोल दे
डर लगता है मना कर देगी
तो अभी कौनसा वो तेरे से चिपकी रहती है
हाँ, ये बात भी सही है, तो ठीक है शाम को जब वो कोचिंग से वापस आती है तब थोङा अँधेरा भी रहता है तब बोलेंगे
अँधेरे में क्यों ?
वो चांटा मारेगी भी तो कोई देखेगा नहीं न
शाम को बोलेगा तो जरूर मारेगी
क्यों ?
शाम क्या पता किसी बात की टेंसन हो तो गुस्से में मार भी दे लेकिन सुबह उसका मूड फ्रेश रहेगा, तब आराम से बोलना
ठीक है 2 दिन बाद
कल क्यों नहीं
बोलने की थोड़ी प्रिपरेशन भी तो करनी पड़ेगी न
आज कर ले, वन नाईट स्टडी से एग्जाम दे आता है लेकिन लड़की को नहीं बोल सकता, क्या अजीब आदमी है तू ?
भाई तू बात को समझ तो सही
कुछ नहीं समझना कल सुबह तो कल सुबह
ठीक है तो फिर कल सुबह पक्का

अब सुबह 5 बजे उठे और नहा के सज संवर के तैयार हो गये, अभी 6 बजे थे कि अख़बार आ गया । सोचा पहले अख़बार पढ़ लेते हैं और अख़बार में मुख्य पृष्ठ पर 3 खबर थी
" लड़की ने आशिक को पुलिस के हवाले किया "
" मनचले को भीड़ ने पीटा"
" लड़की के घरवालों ने मनचले को धुना, कई दिन से कर रहा था परेशान "

खबर पढ़ के मेरा तो मन ही बैठ गया, दिमाग जाम हो गया, आँखों के सामने मेरी धुनाई, पुलिस स्टेशन और हॉस्पिटल के दृश्यों के सिवा कुछ नहीं आ रहा था और फिर घर वालों का डर अलग से, पुलिस वाले या लड़की तो छोड़ भी दे लेकिन घरवाले तो ऐसा तोड़ेंगे कि पुलिस की मार भी कम लगे उसके सामने ।

एक्शन ऑन द स्पॉट " प्रपोज का प्लान कैंसिल "

वरुण बोला क्यों ?
मैंने अख़बार उसकी तरफ बढ़ा दिया
अरे कुछ नहीं होगा यार ( खबर पढ़के बोला )
नहीं भाई, अपने बस की बात नहीं है
तू जाट का बेटा है, जो युद्ध में बड़े बड़े शूरवीरों को धूल चटा देता है
वो फील्ड अलग है भाई, इसको और उसको मिला नहीं सकते
तेरे 2 चाचा आर्मी में हैं, तेरे खून में बहादुरी है
रहने दे भाई, क्यों पीटाना चाहता है ?
तू कितना बहादुर और निडर है, उस लड़के से लड़ाई में तूने कैसे धोया था उसे
तो तू आज उसका हिसाब चुकता करने के मूड में है क्या ?
अरे नही, मैं हूँ न तेरे साथ
भाई और कभी, आज नहीं । मेरी फट रही है आज, रहने दे, नहीं हो पावेगा

और वो " और कभी " फिर कभी नहीं आया ।

मैंने सोचा वो बोल देगी लेकिन नहीं बोला, ऐसा क्यों होता है, हर बार लड़के ही बोलें, लड़कियां भी बोल सकती हैं, उनको किसने रोका है । माना मैं तो इस मामले में थोड़ा डरपोक हूँ लेकिन यहाँ तो वो भी ऐसी ही थी । उसके कुछ महीनों बाद हमने रूम बदल लिया था लेकिन उसके लिए दिल तब भी धड़क रहा था ।

कुछ दिन बाद उसकी अख़बार में एक फ़ोटो आयी उसके मम्मी पापा के साथ जो मैंने काटकर रख ली । ये फोटो ही उसकी पहली और आखिरी निशानी है मेरे पास

" आप " से ये उम्मीद न थी

किसी महापुरुष ने कहा था कि अच्छे लोग एक जगह नहीं टिक सकते क्योंकि उनमे लालच नहीं होता है लेकिन बुरे लोग एक जगह टिक जाते हैं क्योंकि उनको लालच एक जगह बांधे रखता है और यही बात आज के दौर में आम आदमी पार्टी पर सटीक लगती है । आज सर्वश्री प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, प्रो. आनन्द कुमार का रास्ता अलग और अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय का रास्ता अलग होने को है । एक ग्रुप उन आदर्श, विचारों के रास्ते पर चलना चाहता  हैं तो दूसरा ग्रुप व्यावहारिकता के रास्ते पर चलना चाहता हैं, पर इस आदर्श और व्यावहारिकता की लड़ाई में मेरे जैसे हजारों वालंटियर्स आज दौराहे पर खड़े हैं, कि जायें तो जायें किधर ?

इस यक्ष प्रश्न को समझने के लिये हमें थोड़ी देर के लिये फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा

अप्रैल 2011 में जब जनलोकपाल आंदोलन शुरू हुआ तब से अरविन्द और प्रशांत जी को देखता आ रहा हूँ, मुझे दोनों ही बहुत प्रेरित करते हैं और करते रहेंगे क्योंकि दोनों अपने अपने क्षेत्रों के धुरंधर हैं, पहला उस आदमी के लिये संघर्ष करता है जिसने सरकारी योजनायें सिर्फ नेताओं के लुभावने भाषणों में ही सुनी हैं लेकिन लाभ नहीं उठा पाया है और दूसरा उस न्यायिक व्यवस्था में एक आशा की लौ जलाता है जहाँ कई पीढीयाँ कोर्ट के चक्कर काटती हुई शमशान में राख हो गयी लेकिन उन्हें इंसाफ नसीब नहीं हुआ ।

जब अगस्त 2012 में अन्ना जी ने एक राजनैतिक विकल्प देने के साथ आंदोलन समाप्ति की घोषणा की तो उस विकल्प का संविधान बनाने का जिम्मा प्रसिद्ध समाजवादी श्री योगेन्द्र यादव को दिया गया और 26 नवंबर को जब पार्टी की विधिवत घोषणा की गई तो सर्वश्री अरविन्द केजरीवाल, योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण इस पार्टी के प्रमुख चेहरे बने । मुझ जैसे नौसिखिये को भी ये लगा कि अपने क्षेत्रों के 3 धुरंधर जब हमें नेतृत्व देने को तैयार हैं तो हमें भी भ्र्ष्टाचार की इस लड़ाई में जितना हो सके उतना सहयोग देना चाहिये और दिया भी । दिल्ली में दोनों बार हुये विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिये एक वालंटियर के रूप में सेवा दी और राजस्थान में हुये लोकसभा चुनावों में भी पूरी जी जान से सेवा दी । लोकसभा चुनाव में हम हार गये थे, हमारे लगभग 400 उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गयी थी लेकिन फिर भी डेढ़ साल पुरानी राजनैतिक पार्टी के तौर पर 4 सीट जीतकर अच्छी शुरुआत की थी ।
इसके बाद हमें जगह जगह यही सुनने को मिला कि प्रधानमन्त्री बनने चले थे भगोड़े कहीं के , ये अपमान का घूँट पीकर हमने जैसे तैसे 10 फरवरी,2015 की सुबह तक दिन काटे लेकिन हमारे लिए 10 फरवरी वो दिन था जब हम सीना ठोकके कह कह रहे थे सच्चाई हारती नहीं है, हाँ उसे जीतने में कुछ वक्त लग सकता है पर हारती नहीं है । वो दिन शायद आप के  वालंटियर्स का सबसे सुकून वाला दिन था ।

लेकिन उसके बाद जो हुआ वो सब उस सुकून को तार तार करने वाला था । पार्टी में दोनों ग्रुप एक दूसरे पर नीचा दिखाने के लिए अनर्गल आरोप लगाने लगे जैसे केजरीवाल ग्रुप कहने लगा कि YY, PB अरविन्द को हटाकर खुद पार्टी संयोजक बनना चाहते हैं और दूसरे खेमे का ये आरोप था कि पार्टी में स्वराज और लोकतन्त्र नहीं है । दोनों तरफ से जो आरोप लगे थे वो बेबुनियाद थे और इन सब के बीच में पीस रहे हैं सेवाभावी वालंटियर्स लेकिन असलियत क्या है ये बहुत कम वालंटियर्स जानते हैं, आज हम बताते हैं असलियत

आरोप और सच्चाई

आरोप - केजरीवाल को YY और PB संयोजक पद से हटाकर खुद काबिज होना चाहते हैं
सच्चाई - ये कोई मुद्दा ही नहीं है असलियत में, इसे तो सिर्फ बचाव के लिए बोला जा रहा है केजरीवाल खेमे द्वारा

आरोप - योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और शांति भूषण पार्टी को हराना चाहते थे
सच्चाई - ये आरोप सही है, क्योंकि शांति भूषण केजरीवाल से नाराज थे 12 mla को टिकट देने के मुद्दे पर और वो और उनके पुत्र प्रशांत भूषण पार्टी को हराना चाहते थे जिससे अरविन्द का दिमाग ठिकाने आये ( SB की भाषा में ), ये चाहते थे की पार्टी हारे लेकिन बुरी तरह से नहीं 20 - 25 सीट आ जाये जिससे पार्टी खत्म भी न हो और अरविन्द का दिमाग भी ठिकाने आ जाये । इसका एक अन्य सबूत है, मैं जिस असेंबली (रोहतास नगर ) में वालंटियरशिप कर रहा था उसमें YY और PB की जनसभा थी और उसमें दोनों ही नहीं आये थे ।

आरोप - पार्टी में अरविन्द की तानाशाही है और टिकट दूसरी पार्टियों से आये हुये लोगों को दिये गये हैं
सच्चाई - लोकसभा चुनावों में 400+ सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला अरविन्द के न चाहते हुये YY द्वारा लिया गया था, अरविन्द तो कुछ चुनिंदा सीटों पर ही लड़ना चाहते थे । और लोकसभा चुनाव में सभी ( YY और PB भी ) ने मिलकर टिकट बाँटे थे जिनमे बहुत से उम्मीदवार दूसरी पार्टियों से आये हुये थे

आरोप - पार्टी फण्ड में अनियमितता
सच्चाई - जिस 2 करोड़ के चंदे की बात YY और PB कर रहे हैं उसमें पार्टी की तरफ से कोई गलती नही की गयी थी, पार्टी जो चीजें देखती है वो पूरी तरह से सही थी जैसे कंपनी का रजिस्ट्रेशन न., पैन न. आदि

आरोप - 12 उम्मीदवार दागी थे
सच्चाई - सभी उम्मीदवारों की लोकपाल एडमिरल रामदास द्वारा जाँच करवाई गयी थी जिनमे दो के खिलाफ सबूत पाया गया जिसके बाद दोनों की टिकट बदल दी गयी । पालम से भावना गौड़ पर आरोप था कि उन्होंने मकान पर कब्जा किया हुआ है लेकिन वो उनके पिताजी के द्वारा किया हुआ था जो बाद में रजामन्दी से निपट गया था । हालाँकि भावना गौड़ ने अपने पिता से खुद को 10 साल पहले ही अलग कर लिया था

आरोप - महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड और जम्मू-कश्मीर में पार्टी के चुनाव लड़ने का मुद्दा
सच्चाई - YY चाहते थे कि यहाँ चुनाव लड़े जायें और अरविंद नहीं चाहते थे । अरविन्द का मत था कि हमारी इन राज्यों में अभी तक बूथ लेवल कमिटियाँ नहीं बनी है तो बिना सन्गठन के चुनाव नहीं लड़ा जाना चाहिये ।

आरोप - NE की 28 मार्च की मीटिंग में बाहरी बाउंसर मौजूद थे, जिन्होंने मारपिट और धक्का मुक्की की
सच्चाई - NE में बाहर से बुलाया हुआ कोई भी बाउंसर नहीं था, सभी पार्टी वालंटियर्स ही थे, जो सभी मीटिंग्स में व्यवस्था बनाये रखने के लिये लगाये जाते हैं । मीटिंग में कोई भी मारपीट की घटना नहीं हुयी थी ।

आरोप - पार्टी में आंतरिक लोकतन्त्र और स्वराज नहीं है
सच्चाई - हाँ, इस आरोप में सच्चाई है, कुछ उदा. हैं, जैसे
* जब कभी भी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ किसी ने कुछ बोला तो बजाय उसको सुनने के, पार्टी से बाहर कर दिया गया जैसे प्रो. आनन्द कुमार ।
* 28 मार्च को हुई बैठक में YY और PB को अपनी बात रखने का मौका न दिया जाना ।
* 28 की बैठक बाद जिसने भी YY और PB का समर्थन किया उसको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जो आंतरिक लोकतन्त्र की हत्या है ।
* इस बैठक के बाद की जो कारवाई पार्टी वालंटियर्स पर हुई हैं वो जरूर इस बात की पुष्टि करती हैं ।

जिस तरह से अरविन्द ने इस मुद्दे को हैंडल किया है उससे लगता है कि ये मुद्दा इतना बड़ा था नहीं जितना कि बना दिया गया है, बातचीत से सुलझ सकता था लेकिन नहीं सुलझाया गया क्योंकि दोनों पक्षों द्वारा इसे अहम की लड़ाई बना लिया गया ।
              अब यही प्रार्थना है पार्टी प्रमुखों से कि इस बीच किसी पार्टी के वालंटियर के सपनों की मौत न हो जाये । सबसे बुरा होता है किसी के सपनों का मर जाना ।
अंत में इतना ही कहूँगा कि कहीं इस व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ते लड़ते हम ही न बदल जाये और एक बार फिर बदलाव की बात हास्यापद न हो जाने जाये ,,, जय हिन्द

Thursday 2 April 2015

धार्मिक कट्टरपंथ, दक्षिण एशिया में शांति का दुश्मन

अभी न्यूज़ देखी कि हिंदूवादी संगठनों ने कन्नड़ विद्वान और हम्पी यूनिवर्सिटी के पूर्व वाईस चांसलर डॉ. MM कलबुर्गी (78 ) की सुबह 8 बजे उनके घर पर गोली मारकर हत्या कर दी गयी । उनको 2 गोली मारी गयी; एक सिर में पर दूसरी छाती पर । वो मूर्ति पूजा के विरोधी थे । उनको आरएसएस, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद से कई दिनों से जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थी । पिछले कुछ महीनों में हिंदू संगठनों द्वारा की गयी ये तीसरी हत्या है । मन उदास सा हो गया, सोचने लगा
-क्या हो गया है इन लोगों को ?
-क्यों ये इंसानियत के दुश्मन बने हुये हैं ?
-क्यों ये अपने उस ईश्वर, जिसके बारे में ये बोलते हैं कि उसने ये दुनिया बनाई है,अर्थात दूनिया बनाने वाले की रक्षा के लिये खून के प्यासे हो गये हैं ?
-क्या धार्मिक होना इंसान होने से बड़ा हो गया है ?
-आप जिस हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्म को मानने का दम्भ भरते हो लेकिन उसकी मुख्य शिक्षा 'अहिंसा' को ही भूल जाते हो तो फिर आप धर्मिक कैसे हुये और आप कौनसे भगवान और धर्म की रक्षा की बात कर रहे हो ?

बांग्लादेश में ये धार्मिक कट्टरपंथ की कोई पहली घटना नहीं है, यहाँ तो पूरा का पूरा इतिहास ही ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है ।

बीते 12 मई (मंगलवार) सुबह साढ़े 8 बजे बांग्लादेश में  एथिस्ट ब्लॉगर अनंत बिजोय दास की गला काटकर हत्या कर दी गयी । अनंत 'मुक्त मन' ब्लॉग में लिखा करते थे। इसके फाउंडर बांग्लादेश मूल के अमेरिकी नागरिक अविजित रॉय हैं जिन्हें इसी साल फरवरी में मौत के घाट उतार दिया गया था । बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों में सेकुलर ब्लॉगर को कत्ल करने की ये तीसरी घटना है ।
इससे पहले 30 मार्च को वशिकुर रहमान की उनके घर से कुछ 500 मीटर की दुरी पर चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई थी । अभी कुछ महीने पहले 26 फरवरी की रात को एथिस्ट ब्लॉगर अविजित रॉय जब ढाका यूनिवर्सिटी में आयोजित पुस्तक मेले से रात को अपनी पत्नी के साथ जब वापस घर आ रहे थे तो उनकी चाकू मारकर हत्या कर दी गयी थी और इसमें उनकी बीवी ( साथी ब्लॉगर ) भी बुरी तरह से घायल हो गई थी । थोड़ा उससे 2 साल पहले ऐसे ही दो और ब्लॉगर रजीब हैदर और मोहिनुद्दीन की ढाका में हत्या कर दी गयी थी ।
वहीं इससे एक दशक पहले प्रसिद्ध लेखक प्रो. हुमांयू आजाद पर 2004 में पुस्तक मेले से लौटते वक्त हमला किया गया था ।
बांग्लादेश की एक और लेखिका हैं, डॉ. तसलीमा नसरीन, जो कि महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं ; को तो बांग्लादेश ने देश निकाला दे दिया था जिसके बाद वो स्वीडन और बाद में भारत में आकर रहने को मजबूर हुई । इनके खिलाफ भी बांग्लादेशी धर्म गुरुओं ने कई फतवे जारी किये जिनमें इनको जान से मारने का भी फतवा था । अब भी महिला अधिकारों के लिए सतत् संघर्षशील हैं और वर्तमान में कोलकाता में निर्वासित जीवन बिता रही हैं । हालाँकि इन्होंने भारत सरकार के समक्ष नागरिकता की अर्जी लगा दी है पर इसपर अभी तक कोई फैसला नहीं आ पाया है ।
अकेला बांग्लादेश ही क्यों ? सभी दक्षिण एशियाई देशों का यही हाल है । यहाँ अपने हिन्दुस्तान को ही ले लो
पिछले साल 20 अगस्त 2013 पुणे में MANS ( महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ) के संस्थापक अध्यक्ष 'पद्मश्री'(मृत्यु पश्चात्)  डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की सुबह सैर करते समय अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी । सरकार ने उनको कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई जबकि उनको सन् 1983 से जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थी । डॉ. दाभोलकर, जो कि गाँवों में फैले अंधविश्वासों को मिटाने के लिए सन् 1980 से कार्यरत थे, ने 3000 गाँवो में जाके समाज में फैले अंधविश्वासों को मिटाने के लिये सभायें की । इससे उन गाँवों में फैले विभिन्न धर्मों के ठेकेदारों की दुकानें बन्द होने को आ गयी जो अंततः डॉ. दाभोलकर की हत्या पर आकर रुकी ।
सलमान रुश्दी, जिनके लिखे एक उपन्यास पर पूरी मुस्लिम कायनात उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गयी । जान से मारने की धमकियाँ मिलने लगी और इनके खिलाफ कई फतवे जारी हो गये । और हद तो तब हो गयी जब इस्लाम के सर्वोच्च गुरु कहे जाने वाले आयतुल्ला खुमैनी ने हत्या का फतवा जारी कर दिया और मारने वाले को साथ में ईनाम देने की घोषणा की गई । इनपर कई बार जानलेवा हमले हुये लेकिन हर बार वो बच गये । तदनोपरांत रुश्दी को लगभग 10 साल छुपकर काटने पड़े लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारे और लगातार लेखन जारी रखें हुये है ।
इसके अलावा कुछ महीने पहले तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन को RSS, VHP जैसे हिंदूवादी संगठनों के विरोध और जान से मारने की धमकी के बीच ये घोषणा करनी पड़ी कि " लेखक मुरुगन की मृत्यु हो गयी है, आगे से लेखन बंद "
और पडोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो मुस्लिम कट्टरपंथी किसी को भी ईशनिंदा कानून से मौत की सजा सुना देते हैं ।
कुछ साल पहले एक नासमझ बच्चे ने कुरान का एक पेज जला दिया था जिसके बाद उसको मौत की सज़ा सुना दी थी । जबकि धर्म भी ये मानता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं ।
खैबर पख़्तूनवा प्रांत की स्वात घाटी में बीबीसी के लिए महिला और शिक्षा विषयों पर ब्लॉग लिख कर चर्चा में आयी मलाला यूसुफ़ज़ई को 9 अक्टूबर 2012 को स्कूल बस में तालिबानी आतंकियों ने सिर में 3 गोलियाँ मार दी थी । हालाँकि इसके बाद वो जिन्दा बच गयी थी और 2014 में सबसे कम उम्र की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ( बचपन बचाओ आंदोलन के कैलाश सत्यार्थी के साथ ) भी बनी ।
मलाला की तरह ही एक और लड़की, हिना खान, ने भी महिला शिक्षा की आवाज उठायी तो तालिबान ने इनके परिवार को भी धमकी दी जिसकी वजह से इनको परिवार समेत स्वात घाटी को छोड़कर इस्लामाबाद आना पड़ा लेकिन अभी उनको जान से मारने की धमकियां लगातार मिल रही हैं ।
पाक के थोडा ऊपर ही अफगानिस्तान है जो कट्टरपंथ की दुनिया में भी बाकियों से ऊँचा ही है ।
मुस्लिम कट्टरपंथ में एक कुप्रथा है "बाद" जिसमें किसी की हत्या के हर्जाने के तौर पीड़ित परिवार को एक कुँवारी लड़की देनी पड़ती है ।
बीबी आइशा का दोष इतना था कि इनके परिवार में चाचा ने एक व्यक्ति को मार दिया था तो मुआवजे के तौर पर इनकी 14 साल की उम्र में एक तालिबानी से शादी कर दी गयी । जब वो इस कुप्रथा के विरोध में अपने ससुराल से भाग गयी तो बीबी की नाक और कान काट दिये थे । जो की बाद में टाइम पत्रिका (2010) के मुखपृष्ठ पर भी आई थी ।
फारखुन्दा, यही नाम था उस मुस्लिम धर्म शिक्षिका का जिसको पहले तो लोगों ने पीटा फिर एक पूल से निचे फेंका और इतने में भी जी नहीं भरा तो अधमरी हालत में ही आग के हवाले कर दिया । इससे भी जी नहीं भरा तो जली हुई लाश को नदी में फेंक दिया ।
कसूर क्या था उसका, यहीं न कि उसने एक जाहिल मुल्ले से बहस की इस्लाम पर और उसको इस्लाम सिखाने की कोशिश की । जब मुल्ला अपने तर्क़ों में हार गया तो कुतर्क ( कुरान को जलाने का इल्जाम ) से भीड़ को भड़का के मरवा दिया, 
अभी इसी 19 मार्च को की ही तो घटना है ये, ज्यादा दिन नहीं बीतें हैं इसे ।
आज के समय को देखकर लगता नहीं कि ये सिलसिला यहीं रुकने वाला है, आने वाले समय में तो इसके और विकट होने की संभावना है
हम जितना धार्मिक कट्टरपंथ से बच सकते है बचें, क्योंकि ना हिन्दू बुरा है ना मुसलमान बुरा है जो जुल्म पे उत्तर जाये वो इंसान बुरा है ।
किसी शायर ने कहा था कि 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना' लेकिन जैसा कि हम देख रहे हैं उससे तो ये नहीं लगता है, बल्कि इससे उल्टा ज्यादा प्रासंगिक है

  " मजहब ही सिखाता है आपस में बैर रखना "

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...