Sunday 23 August 2015

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ?????

देश की सबसे बड़ी समस्या ( कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ??? ) को लेकर एक गहन वार्तालाप मोदी और बाहुबली के बीच ; जो हम आपको डिटेल में बता रहे हैं :
बाहुबली : नमस्कार सर,  कैसे हो ?
मोदी      : बस अच्छा हूँ, तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था ।
B : सॉरी सर । थोडा लेट हो गया
M : अरे कोई नहीं, चलो आओ पहले फोटो खिंचवा लेते हैं

( फोटो के बाद सब जर्नलिस्ट्स बाहर चले जाते हैं )
M : अब एक सेल्फ़ी हो जाये
B : क्यों सर ? मीडिया ने ले तो ली फोटो
M : अरे तुम भोले हो, तभी तो बीच लड़ाई में लोगों को बचाने लग गये थे और वो तुम्हारा भाई आगे निकल गया था तुमसे । अब समझे कि नहीं ?
B : सर उसका सेल्फ़ी से क्या लेना देना ?
M : अरे भाई, मुझे भी तो ट्वीट करना है ना
B : ओह्ह्ह्ह, अब समझा । हाँ सर क्यों नहीं । सर एक तो आप जहाँ भी जाते हैं, सेल्फिआ जाते हैं
M : अरे तू नहीं समझेगा, युवाओं के देश में युवा बनके रहना पड़ता है
B : हाँ वो तो है सर
M : चल अब मुद्दे की बात पे आते हैं ? चल भाई, अब तू ही बता दे कि कटप्पा ने तुझे क्यों मारा ?
B : बता दूँगा पर ...
M : पर क्या बाहुबली ?
B :5 शर्त है सर
M : 5 शर्तें ??? 

B : हाँ सर 5
M : मंजूर हैं बोलो ?
B : पहली कि फ़िल्म रिलीज़ से पहले किसी को बताओगे नहीं
M : नहीं बताऊँगा
B : दूसरी ये कि आप मेरी फ़िल्म की तारीफ करोगे
M : ठीक है पर बाहर जाके मेरी भी तारीफ करनी होगी
B : ठीक है सर, और तीसरी शर्त ये कि वो 15 लाख कब दोगे ? ये बताओ
M : मैंने बोला न तू बहुत भोला है, दिल्ली चुनावों में अमित शाह ने बताया तो था कि ये चुनावी जुमला था । नहीं आएंगे, भूल जा और अगली शर्त बता
B : चौथी ये है कि आप मुझे 10 kg दाल दिलवा दीजिये कहीं से
M : तू भी न कैसी - कैसी शर्तें रखता है, चल दिया पर 10 से ज्यादा नहीं । इतना भी अडाणी से कह के एडजस्ट करवा रहा हूँ
B : धन्यवाद सर
M : हाँ ठीक है, ठीक है । अंतिम शर्त है बताओ जल्दी ?
B : सर आप तो PM हैं, आपके पास क्या नहीं है, आप जिसको चाहो अमीर बना सकते हो, चाहो तो किसी की भी जिंदगी बदल सकते हो, आप तो भाग्य विधाता हो । आप कितने दयावान हो इसका पता तो इससे चलता है कि जब आपकी गाड़ी के नीचे कुत्ता भी आ जाये तो आप 2 दिन तक सो नहीं पाते हैं । आप महान हो ।

M : बेटा ऐसा है, भाषणबाजी में तुम मेरे सामने कहीं नहीं टिकोगे, चाहे तेरी फ़िल्म 1000 करोड़ ही क्यों न कमाले । एक्टिंग में भी तेरे से 2 कदम आगे ही हूँ । पहेलियाँ मत बुझाओ, और अब शर्त क्या है, वो बोलो ?

B : 10 kg प्याज घर पहुँचा दो
.
.
.
M : चल निकल यहाँ से, बड़ा आया बताने वाला । ( सिक्यूरिटी ... सिक्यूरिटी ... ) ये अंदर कैसे आया ।बाहर निकालो इसको । और हाँ, आइंदा शक्ल दिखा दी बोलने लायक नहीं छोड़ूँगा तुझे .... 10 kg प्याज दे दो । बाप का माल समझा है क्या ? सुतिया कहीं का


( और इस तरह देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक समस्या का जायका प्याज ने बिगाड़ दिया । और समस्या का हल मिलते मिलते रह गया )

Wednesday 19 August 2015

लोकतंत्र की बोली

पिछले 2 दिन की खबरें पढ़के बड़ा अजीब लग रहा है, जैसे हम लोकतंत्र में नहीं बल्कि तानाशाही में जी रहे हैं । जैसे पहली खबर है बिहार को चुनावों से पहले मिले पैकेज की
मेरे पापा जब मैं पढ़ने के लिये अपनी जयपुर में कोचिंग आता हूँ तब मेरे खर्चे के लिये अपनी मेहनत से कमाये पैसे मुझे देते हैं तो पूछते हैं कि कितने दूँ ?
मै बोलता हूँ 7 बहुत है,
पापा बोलते हैं वो कपड़े लेने थे न ?
8 दे दो, इसमें चल जायेगा
9 दे दूँ, फिर मत बोलना कि कम पड़ गये । चाहे तो हजार और ले ले और शर्म आ रही है तो बाद में बोल देना अकाउंट में डलवा दूँगा ।
( ये तो हुई एक नॉर्मल बातचीत जो एक स्टूडेंट बेटे और उसके पिता के बीच का वार्तालाप है )
और यही तरीका मोदी का था बिहार वालों के सामने ... 60 दूँ, 70 दूँ, 90 दूँ । बोलो कितना दूँ ? ऐसे लग रहा था कि कोई लोकतन्त्र की बोली लगा रहा हो और हमारी भोली-भाली जनता ऐसे खुश हो रही जैसे वो अपनी जेब से दे रहा हो । बेवकूफों, ये हमारे टैक्स के पैसे से हमको भिखारी साबित करने पे तुला है । अरे PM है तो देश का काम सम्भालने के लिये है, हमें भिखारी बनाने के लिए नहीं है । वो हमारा पैसा था, जो हम पर ही खर्च होना है, तो इसमें इतने अहसान वाले तरीके से क्यों पूछ रहा है वो ।
एक बात और कहना चाहूँगा कि ये पैकेज अभी 
मिल जाये तब तो ठीक है फिर तो तभी मिलेगा जब बीजेपी जीतेगी वरना हार गए तो अमित शाह जी बोलेंगे कि " कालाधन की तरह ये भी एक चुनावी जुमला मात्र था ।"


दूसरी खबर भी इन्हीं महोदय से जुड़ी है, जो है विदेशों में जाकर ये बोलना कि पिछली सरकारों ने हमारे लिये विरासत में खड्डे छोड़े हैं जो मैं भर रहा हूँ ।
जब पिछली सरकारों ने गड्ढे ही छोड़े थे तो ये देश विश्व की टॉप 10 अर्थव्यवस्था वाले देशों में कैसे शुमार हो गया ? चाँद पर जाने वाले चन्द देशों में कैसे आया ? 1971 में परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों में कैसे शामिल हुआ ? विश्व की बड़ी GDP वाले देशों में कैसे शामिल हुआ ?
प्रिय मोदीजी, ये सब आपके दिए लच्छेदार भाषणों से हासिल नहीं हुआ है । ये विदेशों में जाकर अपने देश की बेइज्जती करना बन्द करो । घर का मामला घर में सुलझाना ही उसके मालिक का फर्ज होता है जिसमें आप बुरी तरह से नाकाम तो रहे ही हो, उल्टा इसका प्रचार प्रसार भी कर रहे हो ।
तीसरी खबर थी जंतर मंतर पर 60 दिन से शांतिपूर्ण  प्रदर्शन कर रहे पूर्व सैनिकों पर लाठीचार्ज की, बजाय समस्या को हल करने के उल्टा बढ़ा रहे है । पिछली यूपीए सरकार ने वन रैंक, वन पेंशन के लिये 1000 करोड़ रूपये आवंटित कर दिये थे तो अब इसे लागू करने के लिये इतनी आना कानी क्यों ? और लाठीचार्ज क्यों ? वो भी उन लोगों पर जिसने आपके लिये अपनी सारी जवानी सीमा पर निकाल दी । दिल्ली में एक पूर्व सैनिक ने आपके बारे में जो कहा, वो लिख रहा हूँ " जब विपक्ष में थे तब बोलते थे कि PM करना नहीं चाहता, कमजोर है । मैं बनते ही लागू करूँगा । भाई .... ऐसा है तो ज्ञान मत दो, फेंको मत । बोलो कि नहीं सम्भल रहा, और वक़्त लगेगा "
चौथी खबर है इलाहबाद हाइकोर्ट का वो फैसला, जिसमें कहा गया है कि नेता, नोकरशाह और न्यायधीश अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ायें ।
सम्मानित न्यायालय का देर से सही पर ऐतिहासिक फैसला, जो तत्काल प्रभाव से पुरे देश में समान रूप से लागु हो । सरकारी स्कूलों की व्यवस्था सँभालने वाले नेता और नोकरशाहों के बेटे जब यहाँ पढ़ेंगे तो वे अपने आप इस व्यवस्था को बदलेंगे । और न बदलें तो इसको आगे भोगेंगे । मैं शुरू से लेकर 12वीं तक ( 3 साल छोड़कर, पास कोई स्कूल न होने से ) सरकारी स्कूल में पढ़ा हूँ और मेरी छोटी बहन 9वीं में है और आजतक सरकारी में ही पढ़ रही है । क्यों ? क्योंकि मेरे पापा खुद शिक्षा विभाग में अफसर थे तो वो हमेशा ही यही कहते थे कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक वो बनते हैं जो सरकारी नोकरी के लायक नहीं होते । जो एक सच्चाई भी है ।
पहली 3 झलकियाँ तो हुई आत्ममुग्धता और तानाशाही पूर्ण रवैये की, अब चौथी थी एक नई शुरुआत की और अंतिम खबर है दिल्ली में बिजली कम्पनियों द्वारा किये जा रहे ₹8000 करोड़ के घोटाले की, जिनके मालिक हैं अम्बानी और टाटा जैसे घराने ।
कुछ साल पहले एक आदमी ने इस घोटाले के खिलाफ आवाज उठाई थी और बोला था ये घोटाला पकड़ में जाये तो बिजली के बिल आधे हो सकते हैं । शीला दिक्सित और ये कंपनियां मिलकर दिल्ली वालों को लूट रही हैं । पर तब हर किसी ने उसको बेवकूफ कहा था क्योंकि हमारी बेवकूफ जनता को एक आम आदमी से ज्यादा अम्बानी, टाटा की झूठी बैलेंस शीट पर ज्यादा भरोसा था ।
ये बंदा आज दिल्ली का CM है, जिसने इस देश की राजनीति को कई मायनों में बदला है । आप उनसे कई मुद्दों पर असहमत हो सकते हो पर उन्होंने जनता को नेताओं से सवाल करना सिखाया है । उनके किये वादे याद करवाना सिखाया है । जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ अरविन्द केजरीवाल की । जो बात करता है नेताओं के हाथ में पॉवर के विकेंद्रीकरण की, जनता के राज यानि स्वराज की ।
मैं यहाँ किसी पार्टी की तरफदारी नहीं करने के लिये नहीं लिख रहा हूँ, अब बात मुद्दों की हो, जनता को अधिकार मिले, जनता को भिखारी न समझें, जनता की समस्या पर बोलने वालों को चुनों । आपकी पार्टी जनता के मुद्दों पर नहीं बोलती तो उसे बोलना सिखाओ ,,, पर देश की राजनीति के तौर तरीके बदलो ।

Wednesday 12 August 2015

मैं नास्तिक क्यों ?

( मेरे बहुत से मित्र पूछते हैं कि भाई तू नास्तिक क्यों है ? फिर अभी कुछ दिन पहले वृन्दावन में बालेन्दु स्वामी जी द्वारा आयोजित देहदान के एक कार्यक्रम में गया था, वहाँ सभी लोग नास्तिक ही आये थे, तो सबका सबसे एक ही सवाल था " सर, आप नास्तिक कैसे बने ? " और वहाँ एक दिन पहले " मैं नास्तिक क्यों ? " विषय पर चर्चा थी, तब मैं वहाँ झिझक और शर्मीले स्वभाव की वजह से बोल नहीं पाया था, तो सोचा सबके जवाब आज यहाँ लिख दूँ )

मैं नास्तिक क्यों ? इससे पहले एक सवाल और है जो मैं करना चाहूँगा खुद से और आप लोगों से, " मैं/हम  आस्तिक क्यों ? " शायद इसका जवाब सभी के पास है, वो है क्योंकि हम उस धर्म को मानने वाले माता-पिता या पालनहार की सन्तान हैं । पर क्या आप माँ के पेट से ईश्वर, अल्लाह या जीसस के मंत्र जपते हुये पैदा हुये थे ? या pk की भाषा में कोई धार्मिक ठप्पा लेके पैदा हुये थे ? आपने पहली बार मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे या गिरजाघर को देखते ही वहाँ उस धर्म की प्रार्थना शुरू कर दी थी ?
यदि आपके सभी जवाब "नहीं" में है तो फिर आप आस्तिक कैसे हुये ? आप तो जन्मजात नास्तिक हुये । पहले तो हमें ये सोच बदलनी होगी कि हम जन्मजात आस्तिक होते हैं क्योंकि इंसान पैदा ही  नास्तिक होता है फिर उसे आस्तिक बनाया जाता है ।

ये बात तो हुई किसी के अज्ञानतावश धर्म धारण करने की; जिसमें इंसानी बच्चे की समझ इतनी विकसित नहीं हो पाती कि वो इसपर कुछ सवाल कर सके । इसलिये वो अपने चारों तरफ के वातावरण को देखके यही सीखता है कि धर्म तो होना ही चाहिए, जहाँ उनके बनाये कुछ भगवान हों, जिनकी प्रार्थना करके उनको खुश करना पड़ता है ।

इस दूनिया में 2 तरह के लोग होते हैं, पहले जो  नास्तिक से आस्तिक बन जाते और अपने धर्म के प्रति निष्ठा रखते हैं, हर बुरी बात का हर हालत में समर्थन करते हैं और ये मानते हैं कि एक शक्ति है, जो ये सृष्टी चला रही है और हम सब उसके बनाये मोहरे हैं । और उसको न मानने वाले उस धर्म के दुश्मन हैं । और दूसरे होते हैं वो जो नास्तिक से आस्तिक बन तो जाते हैं पर अपनी सभी इन्द्रियों को खुली रखते हैं, वो धर्म से सवाल करते है, तर्क करते है, व्यावहारिकता की कसौटी पर जाँचते हैं, यथार्थवादी होते हैं । इसलिये ये जल्द ही उस धर्म के दुश्मन घोषित कर दिये जाते हैं । और इस तरह वो फिर से अपने मूल यानि कि नास्तिकता की और अग्रसर होते हैं ।

यहाँ नास्तिकता का मतलब उस ईश्वरीय शक्ति का विरोध करना ही नहीं है, नास्तिकता का मतलब है सदैव खोज में रहना, निरन्तर चिंतन और नये विचार । जबसे आपने खोज, चिंतन और विचार करना छोड़ दिया तबसे आप पूर्ण रूप से नास्तिक भी नहीं रहे ।

मैं नास्तिक क्यों बना इसके पीछे मेरे जीवन में घटी कुछ घटनाओं का भी हाथ रहा है, जो मैं आगे विस्तार से लिखूँगा पर मेरी कुछ शर्तें थी अपनी जिंदगी जीनें की, जिनमें धर्म किसी भी साँचे में फिट नहीं बैठा । मैं  कर्म और समय को सत्य मानता हूँ ।  तर्क में विश्वास  करता हूँ पर धर्म तो तर्क के शुरू होते ही खत्म हो जाता है ।   मैं चाहता हूँ कि पंक्ति के अंतिम बन्दे को उसके अधिकार मिले जो धर्म नहीं दिला सकता है । साथ ही  लालच और डर नहीं है तो आस्तिक होने का सवाल ही नहीं होता । लेकिन नास्तिक का मतलब ये भी नही कि आप धर्म को नकार के अपना एक अलग धर्म बना लो, मेरे हिसाब से नास्तिकता का मतलब है निरन्तर चिंतन, नये विचार और जीव मात्र की बिना लालच के सेवा । इसलिये नास्तिक बोल सकते हैं आप मुझे

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...