Wednesday 13 April 2016

जलियाँवाला बाग के बलिदान की कीमत समझो

बैसाखी पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनायें । आपका आने वाला साल खुशियों भरा हो ।
आज से 97 साल पहले बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में आज़ादी के दीवानों ने एक सभा रखी थी । सभा का उद्देश्य भारत प्रतिरक्षा कानून ( रॉलट एक्ट ) का विरोध कर इस काले कानून को हटाने का था । यह कानून आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक लगाने के लिए लाया गया था, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को और अधिक अधिकार दिए गए थे जिससे वह प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी, नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ़्तार कर सकती थी, उन पर विशेष ट्रिब्यूनलों और बंद कमरों में बिना जवाबदेही दिए हुए मुकदमा चला सकती थी, आदि । इसके विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर में लोग गिरफ्तारियां दे रहे थे।
 चूँकि इन प्रदर्शनों की वजह से पुरे शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था पर 13 अप्रैल को बैसाखी का त्यौहार था इसलिये जलियाँवाला बाग के पास ही मेला लगा था । मेला देखने और शहर घूमने आए लोग भी  सभा की खबर सुन कर जलियाँवाला बाग में पहुंचने लगे । इस दौरान सभा में उम्मीद से बहुत ज्यादा लोग आ गये थे । सभा शुरू हुई और नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल ( रेजीनॉल्ड ) डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा । पर जनरल
डायर के आदेश पर सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं । जलियांवाला बाग तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। निकलने का कोई और रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया । और बाकि लोग गोलियों से भून दिए गए । जलियांवाला बाग लाशों से भर गया । समय पर चिकित्सा सेवा नहीं मिलने से घायलों की भी जान नहीं बचाई जा सकी । लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया।
अकेले कुए से 120 शव निकाले गये । अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था । जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी ।
ये भारतीय आज़ादी आंदोलन का वो ऐतिहासिक दिन था जिसके बाद भारतियों में आज़ादी की भावना आकार लेने लगी । इसी हत्याकांड से भगतसिंह, उधमसिंह जैसे वीरों के दिल में अंग्रेजी सत्ता के विरोध में ज्वाला भड़क उठी ।
जलियाँवाला बाग तो एक छोटा सा पड़ाव था आज़ादी प्राप्ति के दौरान, ऐसे और भी कई संघर्षो से हमें आज़ादी मिली । हमारे पुर्वजों ने अपनी जान देकर आज़ादी ली थी इसलिये इसे सहेजें, इस आज़ादी का मूल्य समझो । यूँ ही चंद धर्म, क्षेत्र, जाति और भाषा के ठेकेदारों के कहने से बंटो मत, एक हो जाओ । एकता में ही शक्ति है । उन छद्म लोगों से बचो जो "मुँह में विश्वगुरु भारत और बगल में साम्प्रदायिकता का छुरा" लिये घूमते हैं । ये लोग सत्ता के मोह में भारत का विरोध करने वालों के साथ मिलकर कश्मीर में सरक़ार बना लेते हैं पर बाकि भारत में जनता को उनके मुख्य मुद्दों जैसे गरीबी, पीने का पानी, भुखमरी, रहने, रोजगार, चिकित्सा, बिजली, प्राथमिक सुविधाएँ आदि से ध्यान भटकाने के लिये छद्म राष्ट्रवाद का सहारा लेते हैं क्योंकि उनको डर है कि कहीं कोई उनसे वो सवाल न पुछ ले जिनके नाम पर गला फाड़-फाड़ कर वोट माँगे थे । वो डरते हैं 15 लाख के वादे के सवाल से, 1 बदले 10 सिर लाने से, मामूली कुछ हजार के ऋण से आत्महत्या करने वाले किसान की विधवा के सवालों से, भ्रष्टाचार के सवाल से ।आज फिर केंद्र की सरक़ार रोलट एक्ट का प्रयोग कर रही है, असहनशीलता, असंवेदनशीलता, धार्मिक उन्माद की वजह से आपातकाल जैसे हालात हो गए हैं । इसलिये ऐसे ढोंगियों से बचो और अपने पुरखों के बलिदान को याद रखते हुये मजबूत देश और जागरूक नागरिक समाज के निर्माण में सहयोग दें ।
जय हिन्द ।

Monday 11 April 2016

लातूर का फ़ितूर

लातूर ( महारष्ट्र ) में पानी के स्रोतो पर धारा 144 लगी है, 8 - 10 किसान रोजाना आत्महत्या कर लेते हैं, पूरा विदर्भ आपातकाल में जी रहा है, पीने को पानी महीने में एक बार मिल रहा है । उत्तर भारतियों की तरह बाथ टब में नहाने, कार वाश या लोन में पानी छिड़काने वाली हालत अब विदर्भ की नही रही । साफ साफ शब्दों में कहूँ तो महाराष्ट्र में अब जीने का अधिकार भी छीन सा गया है । हर तरफ लोग परेशान हैं पर आईपीएल को पानी मिल रहा है क्योंकि उनको खेलने का अधिकार है पर आपको जीने का नहीं ।
एक बड़े से राष्ट्र के अंदर एक छोटा सा महाराष्ट्र है और उसमें भी 10 - 15 छोटे मोटे लातूर - फतुर टाइप के जिले । तो अब ये असंवेदनशील भीड़ आपके इन छोटे मोटे पचड़ों में पड़े या आईपीएल, भारत माता जैसे बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करे जिसमें आम लोगों के हक़ आसानी से मारे जा सके ।

सवाल है मानव कल्याण का, जो अब उठता या हम उठाते नहीं दिख रहे ? तो क्या हम सब मर / सो गए हैं जो कुछ नहीं कर पा रहे ? नहीं हम जिंदा है और जागे हुये भी पर हम कहीं ओर उलझे हुये हैं । मानव कल्याण अब हमारा मुद्दा नहीं रहा । अब हमें किसी के जीने या मरने पर बात करने का वक्त नही रहा । एक दिन ये हमारे साथ भी होगा पर तब बाकि लोगों के पास भी ऐसे बेकार के मुद्दों के लिये वक्त नहीं रहेगा । तब हम उस भीड़ को कोसेंगे जो आज हमने तैयार की है, एक असंवेदनशील भीड़, लेकिन कोई फायदा नहीं होगा । हम अपने चारों तरफ नरमुंडों का ऐसा हुजूम इकट्ठा किये जा रहे हैं जिनमें इंसानी लक्षण न के बराबर हैं । जानवरों की तरह व्यवहार करने वाला इंसानी हुजूम, जिनमें समझ नाम की चीज बिल्कुल नहीं है ।

तो आप सोचिये जिंदा है कि परलोक गमन कर गये

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...