Wednesday 21 September 2016

क्योंकि मैं किसान हूँ

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बंजर को सिंचित बनाता हूँ,
सबको खिलाता हूँ,
पालनहार कहलाता हूँ,
अपना पेट काटकर सबका पेट भरता हूँ,
पर मैं भूखा सोता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं कचरा - मैला ढोता हूँ,
मैं हरिजन हूँ,
मैं गर्मी में, सर्दी में,
तपता हूँ, ठिठुरता हूँ,
मैं मजदूर हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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जब मण्डी में सेठ लगाता है बोली,
मेरी फसल की ओने पोने दामों में,
मैं टूटे मन से बेच आता हूँ,
फिर जब वही सामान दुकानों पर कंपनियों की पैकिंग में आता है,
तब मैं मोल भाव नहीं कर पाता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं दिन-रात जागता हूँ,
कड़ी धुप- बरसात में,
खुले आसमां तले रहता हूँ
नई कोंपल फूटने पर इतराता हूँ,
पानी को गिड़गिड़ाता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं भी बच्चों को पढ़ाना चाहता हूँ,
कुछ नया सिखाना चाहता हूँ,
उन्हें अफसर बनाना चाहता हूँ,
उनकी अच्छी जिंदगी का आशा करता हूँ,
पर स्कूलों की फीस सुनके थरथराता हूँ,
क्योंकि मैं किसान हूँ
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मैं लाला से कर्जा लेकर,
उम्मीदों की फसलें बोता हूँ,
अंत में फसल कटने पर,
फिर जाता हूँ उम्मीदों के खेतों में,
क्योंकि मैं किसान हूँ

क्योंकि मैं किसान हूँ

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जब फसल बर्बाद हो जाती है,
तब लाला बैंकों का कर्ज न चूका पाता हूँ,
बैंक घर भेजती है पुलिस,
जैसे मैं कोई गुनहगार हूँ,
अंत में झूल जाता हूँ सबसे प्रिय पेड़ की किसी डाली पर,
क्योंकि मैं किसान हूँ

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