Saturday 30 January 2016

जाने किसकी नजर लग गयी है अब ...

"जाने किसकी नजर लग गयी है अब...." ये कविता गाँधी जी और युवा साथी रोहित वेमुल्ला के संघर्ष समर्पित है ....
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सदियों पहले,
मेरे गाँव में फसलें ऊगा करती थी, प्यार, भाईचारे और सद्भाव की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो उगती हैं फसलें, घृणा, दुश्मनी और तकरार की ।

सदियों पहले,
निराई की थी झूठ और अत्याचार की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो फिर से उग आई हैं झाड़ियाँ ईर्ष्या और अहंकार की ।

सदियों पहले,
बुवाई की थी मानवता और सदाचार की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो उग आई है खरपतवार कदाचार की ।

सदियों पहले,
पकने वाली थी फसल मानवता की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो पड़ा अकाल तो उजड़ गयी खेती सौहार्द की ।

सदियों पहले,
लहलहाती थी फसलें सत्य और अहिंसा की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो हो गयी है बंजर मिट्टी हिन्दुस्तान की ।



सदियों पहले,
मेरे गाँव में फसलें ऊगा करती थी, प्यार, भाईचारे और सद्भाव की,
जाने किसकी नजर लग गयी है अब,
जो उगती हैं फसलें, घृणा, दुश्मनी और तकरार की ।

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