Tuesday 19 January 2016

पोस्टमार्टम

जिस प्रकार मौत का रहस्य समझने के लिए मृत शरीर का पोस्टमार्टम करना पड़ता है उसी प्रकार किसी समाज के पतन के कारणों का विश्लेषण करने के लिए समाज के पढ़े लिखे लोगों के कामो को तर्क,तीक्ष्ण बुद्धि व् वैज्ञानिक ज्ञान से समझने की जरुरत है।आज अपने आप गर्व करने का दिखावा करने वाले लोगों की फ़ौज तो तैयार हो गई है लेकिन वास्तव में उनके पास गर्व करने लाइक कुछ होता नहीं है।
समाज का कोई एक महापुरुष वर्षों पहले समाज को उसकी दिशा बता देता है लेकिन हम उसकी जयंती-पुण्यतिथि पर दो-चार माला पहनाकर फोटो खींचकर अपना कर्तव्य पूरा करने का ढोंग रच देते है।साल के 363 दिनों तक हम उस महापुरुष को याद ही नहीं करते।बदलाव झुण्ड में फोटो सेशन करने से कभी नहीं आ सकते न रजाइयों में घुसकर सोशल मीडिया में एक दूसरे को नीचा दिखाने से खुद् को सफलता के चरम पर खड़ा कर सकते है।डॉ आंबेडकर चाहते थे कि जब मैं अकेला पढ़ा-लिखा पीड़ित समाज में इतना कुछ बदलाव ला सकता हूँ तो जब समाज में सैंकड़ों पढ़े लिखे लोग हो जायेंगे तो समाज के विकास का कारवां कभी नहीं रुकेगा।आज उसी समाज के पढ़े-लिखे लोगों को देखता हूँ तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ब्राह्मणवाद से त्रस्त अम्बेडकर ने उस समय बौद्ध धर्म अपना लिया लेकिन आज वो जिन्दा होते तो आत्महत्या करनी पड़ती।
आज पढ़े-लिखे लोग अपने समाज के संगठन बनाकर मनुवादियों से अंक हासिल करने के लिए अपने समाज को कुर्बान कर रहे है।आज पढ़े-लिखे लोग अपने आप को सभ्य दिखाने के लिए मनुवादियों के कर्म-कांडों में आकंठ डूब चुके है।जिन मंदिर व् रजवाड़ों के बंधन को तोड़ने के लिए पूर्वजों ने कुर्बानियां दी है उन्ही के पुनर्निर्माण में रात-दिन जुटे है।जिस शिक्षा के अधिकार के लिए सदियों लड़ाईयां लड़ी उसी शिक्षा को दरकिनार करके धर्म की चादर ओढ़ने में व्यस्त है।वैज्ञानिक ज्ञान व् तार्किककता को छोड़कर अंध-विश्वास में लिपटे नजर आ रहे है।
हमारे सपनो के घर को कुर्बान करके पत्थर मंदिरों के निर्माण में लगा रहे है।अपने बच्चों का भविष्य चौपट करके पाखंडियों के संगठनो को चंदा दे रहे है।सक्षम लोग अपने ही समाज के युवाओं की भीड़ को अपने वोट बैंक की ताकत के रूप में इस्तेमाल कर रहे है।महापुरुषों के संघर्ष की गाथाएं आज फिर मनुवादियों की चौखट पर माथा टेकने लग गई।महापुरुषों के सपने व् आत्मा फिर से मनुवादियों की कैद में है।
आज पोस्टमार्टम करने की हिम्मत किसी में बची नहीं है।जो सोचते है वो रजाई से बाहर नहीं निकल पाते।जो काबिल है उनकी आँखों पर पट्टी बंधी है।जो सक्षम है वो खुद स्वहित के लिए समाज का दुरूपयोग कर रहे है।
फिर कैसे उम्मीद करे कि अम्बेडकर पैदा हो रहा है ?
कैसे उम्मीद करे कि सर छोटूराम के सपने पुरे हो जायेंगे ?

( लेखक प्रेमाराम सियाग सम सामयिक मुद्दों पर तर्क सहित लिखते रहते हैं )

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