Thursday 1 January 2015

pk, एक आईना

pk देखी,  अच्छी फ़िल्म है और तर्क़ के आधार पर हर धर्म में फैले पाखण्डों पर चोट की है निर्देशक राजकुमार हिरानी ने । पहले पहल तो मन नही था देखने का पर जब बाबा रामदेव और हिंदूवादी संगठनों का विरोध और केंद्र में सत्तासीन बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि इसमें isi और अंडरवर्ल्ड का पैसा लगा हुआ है और भारतीय संस्कृति का उपहास है ये फ़िल्म । तो देखना जरूरी हो गया था और आज जाकर देख ही ली लेकिन सामान्य कॉमेडी और तार्किक रूप से हर धर्म पर चोट और हर धर्म के पाखण्डियों को नंगा किया है जो गलत भी नही है, इससे ज्यादा कुछ नही लगा इसमें जिसपर इतना बवाल हो। पर सन्देश अच्छा है फ़िल्म का और हाँ ये हिंदुस्तान में बनी अब तक की अच्छी फिल्मों में से एक है । फ़िल्म का नायक pk एक दूसरे ग्रह से आया हुआ एक एलियन है और उसका दुनिया को देखने का तरीका अलग है । अब थोड़ा आगे का लेख pk की नजर से ही -
ये दुनिया कई तरह से बँटी हुई है जैसे देश, भाषा, धर्म, खान-पान, रहन-सहन इत्यादि । इनमें धर्म को छोड़कर कुछ भी ऐसा नही है जो पृथ्वी के दोनों छोरों पर समान मिले । इसलिये ये भी कह सकते हैं कि धर्म, विश्व के दो बिल्कुल जुदा लोगों को जोड़ने का काम भी करता है और बिल्कुल समान लोगों को बाँटने का काम भी करता है । जिस धार्मिक पुस्तक को पढ़ोगे, उसमें यही मिलेगा कि धर्म का उद्देश्य लोगों को जोड़ना है । पर धर्मगुरुओं ने ( या यूँ कहिये कि पाखण्डी बाबाओं ने ) धर्म को कुछ अलग ही ढंग से परिभाषित कर रखा है । इनके अनुसार धर्म का उद्देश्य है लोगों को तोड़ना ।
यानि कि मूल धर्म से इतर उसी नाम का एक अलग धर्म चला रहे हैं ये लोग ।
अब फिर आते हैं हमारी सोच पर -
इन धर्मों में फैले पाखण्डों के खिलाफ बोलने वाले लोग उस धर्म के दुश्मन करार दिये जाते हैं । यही काम कर रही है pk और इस फ़िल्म के साथ भी वही हुआ जो अब तक होता आया है यानि कि धर्म विशेष की दुश्मन घोषित । और इस बार इस फ़िल्म को दूश्मन घोषित किया है हिन्दू धर्मगुरुओं ने । क्योंकि इसमें अंत में एक हिंदू बाबा से सवाल किये जाते हैं तो हिन्दू गुस्से में हैं, ये कोई कारण नही है और विरोध का दूसरा कारण है भगवान शिव का गेटअप पहने एक कलाकार की बेइज्जती । ये भी कोई कारण नहीं हुआ विरोध का क्योंकि ऐसे कई कलाकार देखें हैं जो परदे पर तो राम का रोल करते हैं जबकि पर्दे के पीछे नशा भी करते हैं और लड़कियों से छेड़छाड़ भी ।
ऐसा नही है ये हो हल्ला सिर्फ हिन्दू पण्डों द्वारा ही किया जाता है, मौलवी, चर्च के बिशप सभी इसी श्रेणी में आते हैं ।
मौलवियों के पाखंड पर बनी ईरानी फ़िल्म The Lizard, पाकिस्तानी फ़िल्म बोल या खुदा के लिये के मेसेज को आगे बढ़ाने के लिए हिंदुस्तान में भी ओह माय गॉड और pk जैसी फिल्में बननी शुरू हुई है, जो एक सराहनीय कदम है ।
और यहाँ (pkफ़िल्म से) जो यक्ष प्रश्न खड़ा है वो है कि विश्व के सबसे प्राचीन धर्म की नींव क्या इतनी कमजोर है जो सिर्फ एक फ़िल्म से हिल जाये ?
लेकिन जैसा कि अभी का माहौल है उससे तो यही लगता है कि pk ने वो कर दिखाया है जो अभी तक असंभव था यानि कि पाखण्डियों की खिलाफत । हालांकि इन पाखण्डियों पर  कई बार प्रहार किया गया है पर इन्होंने ने अपने पाँव इतनी गहराई से जमा रखें हैं कि वो नाकाफी साबित हुआ है । हाँ अकेली इस फ़िल्म से ज्यादा उम्मीद रखना बेमानी होगी पर हाँ इसने हिंदुस्तान में शुरुआत की है ( पड़ोसी मुल्क पाक में बोल और शोएब मंसूर की खुदा के लिए भी इसी श्रेणी में गिन सकते हो ) और वो भी ऐसे समय में जब सभी धर्म एक दूसरे से खतरे में हैं । हिन्दू को मुस्लिम से, मुस्लिम को बौद्ध से, बौद्ध को ईसाई से, ईसाई को हिन्दू से यानि कि सब धर्म खतरे में हैं और यदि आप मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि में जाओगे तो वहाँ दानपेटीयाँ रुपयों से ऐसे अटी मिलेगी कि देखने वाला गर कमजोर दिल का हो तो जान चली जाये ।
जैसा की इस फ़िल्म के अंत में एक सीन है जिसमें फ़िल्म का हीरो pk स्टेशन पर अपने दोस्त को लेने जाता है पर वहाँ हुए बम विस्फोट में उसका दोस्त मारा जाता है और फिर एक चैनल खबर दिखाता है कि " इस विस्फोट की जिम्मेदारी x ग्रुप ने ली है और कहा कि हम अपने धर्म की रक्षा के लिए और भी धमाके करेंगे ।"
अब सवाल ये उठता है कि क्या इस तरह धमाकों से क्या उनका धर्म सुरक्षित हो जायेगा ? और इस बात की क्या गारंटी है कि उस धमाके में सिर्फ वही लोग मारे गए हैं जो उनके दुश्मन हैं । दोनों सवालों का जवाब धर्म के नाम पर लड़ने वाले दशहतगर्दों के पास नहीं हैं ।
और भी कई अच्छे सवाल किये हैं फ़िल्म में जैसे

* एक सीन है जिसमें pk पुतला बनाने वाले से कहता है " आपने भगवान को बनाया है या आपको भगवान ने ?"तो जवाब मिलता है " जरा धीरे बोल, धंधा मन्दा करवायेगा क्या ?"
* और एक अन्य सीन है जिसमें जब pk समझाता है कि डर ही अंधविश्वास को जन्म देता है तो लोग कहते हैं कि धर्म ऐसा विश्वास है जिसपर बहस नहीं की जा सकती । क्यों ? 
* सबसे अच्छा सीन तो फ़िल्म के खत्म होने से पहले का है जब pk अपने ग्रह पर वापस जाता है तो हमसे जो एक बात सीखकर जाता है वो है " झूठ बोलना " यानि हमारे यहाँ सीखने को सिर्फ झूठ बचा है ।
जब दुनिया में हर चीज पर बहस होती है तो धर्म पर क्यों नहीं । क्या सिर्फ इसलिये कि कुछ सवालों के जवाब इन पाखण्डियों के पास नहीं हैं या फिर धार्मिक पुस्तकों में लिखा है वही अंतिम सत्य है, इसलिये ।

और अंत में जब आप pk देखने के बाद धर्म पर बहस करने की हिम्मत जुटा लो तो समझिये pk देखकर समय और रूपये बिगाड़े नहीं हैं ।

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