Wednesday 14 January 2015

मोदी जी ... किसकी जमीन, किसका विकास ?

जमीन, हर किसी की जरूरत है किसी को रहने के लिये, तो किसी को खेती के लिये, किसी को चलने के लिये तो किसी को उद्योग के लिये । यानि कि जमीन है तो जहां है, पर वही जमीन कईयों का पेट भरे तो उनके लिये तो ये माँ से बढ़कर है । पर कोई आपकी मर्जी के खिलाफ आपसे वो जमीन हड़प ले तो आप पर क्या गुजरेगी ?
ये सवाल इसलिये कि आज से या यूँ कहिये अभी से, सरकार आपकी जमीन पर कब्ज़ा कर सकती है और आपको इसका विरोध का अधिकार भी नहीं होगा, इसी के साथ 70% जमीन मालिकों की सहमति का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया है नये कानून में ।
और तो और आपको बिना किसी बहस के जो मुआवजा दिया जायेगा वो लेना पड़ेगा और साथ में ये भी कि अगर मुआवज़ा प्रभावित व्यक्ति के खाते में नहीं भी गया है और सरकार ने अदालत में या किसी और निर्मित खाते में मुआवज़े का फंड जमा करा दिया है, तो उसे 'मुआवजा दिया गया' माना जा सकता है। माने जमीन आपकी है पर मर्जी सरकार की चलेगी, और ये सब हुआ है भूमि अधिग्रहण कानून-2014 लागू होने के बाद ।
अब आपको लग रहा है कि बहुते नाइंसाफी है ये तो, है तो है, पर सरकार के आगे किसका जोर । अब ज्यादा फिलोसोफी या संविधान का ज्ञान मत बघेरना कि ये लोकतन्त्र है मियाँ, जहाँ जनता का, जनता पर, जनता द्वारा शासन होता है, आपको महँगा पड़ सकता है क्योंकि इस नये कानून में विरोध करने पर सजा का प्रावधान भी है ।
इस बिल में जमीन अधिग्रहण में किये गये पांच बदलाव इस प्रकार हैं-
• नए संशोधन में भारत की रक्षा ज़रूरतों को ज़मीन अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है।
• गांव में बिजली, सड़क बनाने, सिंचाई, राजमार्ग बनाने के लिए भी सरकार सीधे अधिग्रहण करेगी।
• गरीबों के लिए सस्ते आवास की योजना के लिए सरकार सीधे ज़मीन का अधिग्रहण करेगी।
• हाईवे के नज़दीक बनने वाले औद्योगिक गलियारों के लिए ज़मीन लेने की अड़चनें दूर कर दी गई हैं।
• पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की योजनाओं के लिए भी ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान किया गया है।
अब सवाल ये उठता है कि इनके अलावा सरकार जमीन लेगी भी क्यों ? और लेगी तो वो उपरोक्त 5 प्रावधानों के तहत लेकर दूसरे काम में लेगी ।
सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के ज़मीन अधिग्रहण के मामले में रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज़ में कई और अहम बदलाव भी किये हैं, जो निम्न हैं -
• ज़मीन लेने के बाद कंपनियों के ऊपर से उस ज़मीन पर पांच साल के भीतर उस पर काम शुरू करने की पाबंदी हटा ली गई है। पहले कानून में व्यवस्था थी कि पांच साल के भीतर काम शुरू न होने पर मूल मालिक ज़मीन पर दावा पेश कर सकते हैं।
• सरकार ने रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज के तहत मुआवज़े की परिभाषा को बदला है। पुराने अधिग्रहणों में अगर मुआवज़ा प्रभावित व्यक्ति के खाते में नहीं भी गया है और सरकार ने अदालत में या किसी और निर्मित खाते में मुआवज़े का फंड जमा करा दिया है, तो उसे 'मुआवजा दिया गया' माना जा सकता है।
• ये प्रावधान भी हटा लिया गया है जिसमें अगर किसी ज़मीन के अधिग्रहण को कागज़ों पर 5 साल हो गए हैं और भौतिक रूप से सरकार के पास कब्जा नहीं है और मुआवज़ा नहीं दिया गया, तो मूल मालिक ज़मीन
को वापस मांग सकता है।
सरकार ने अब इसमें यह प्रावधान जोड़ दिया है कि अगर मामला अदालत में चला गया है तो मुकदमेबाज़ी के वक्त को 5 साल की मियाद में नहीं जोड़ा जाएगा।
• सरकार ने कानूनी की अनदेखी करने और कानून तोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए रखी गए प्रावधान भी ढीले किए हैं। नए बदलाव के मुताबिक किसी अफसर पर कार्रवाई के लिए अब संबंधित विभाग की अनुमति लेना ज़रूरी होगा।
गतवर्ष  नवंबर में SEZ के नाम पर किसानों से ली गई ज़मीन के बारे में CAG की एक रिपोर्ट ( रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीले अक्षर पर क्लिक करें ) संसद में पेश की गयी थी, जिसमें बताया गया था कि SEZ के तहत 45000 हेक्टेयर से ज्यादा ज़मीन किसानों से ली गई, लेकिन 38 फीसदी यानि 17000 हेक्टेयर जमीन पर कोई काम शुरू ही नहीं हुआ जबकि कई साल बीत गये। इसमें ज्यादातर ज़मीन सार्वजनिक हित के नाम पर ली गई और प्राइवेट कंपनियों ने उसके बदले बैंक से 82000 करोड़ के लोन भी ले लिए।
ये पूरा खेल सिर्फ उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से रचा गया है जिसमें मोदी जी के कहे अनुसार हम इस जमीन से आपका और देश का विकास करेंगे । यहाँ कारखाने लगायेंगे, शहर बसायेंगे, सड़कें बनायेंगे जिससे  विकास होगा, आपका जीवन स्तर सुधरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफा होगा इत्यादि । ये सिर्फ और सिर्फ धोखें है, इसके सिवाय कुछ नहीं ।
रही बात विकास की तो जिस जगह ये सब सुविधाएं हो जायेगी वहां वो किसान अपना पेट कैसे पालेगा ? क्योंकि उसकी जमीन पर तो कोई स्मार्ट सिटी या SEZ होगा जहाँ वो मजदूरी करेगा लेकिन उस स्तर की सुविधाओं वाली जिंदगी जीने जितना नहीं कमा पायेगा ।
मोदी जी कहते हैं इससे विकास होगा । सवाल है किसका ?
मोदी जी के इस प्रिय विकास को हम एक साधारण से उदहारण से समझाता हूँ -
( दिल्ली-जयपुर (NH-8) टोल वसूली केस से हम इसे आसानी से समझ सकते हैं )
दिल्ली से जयपुर के बीच जो रोड है उसको 4 से 6 लेन  बनाने के लिए पहले जमीन ली गई, फिर उस पर रोड बनाने का ठेका मिलने के बाद, बिना पूरा बनाये, उसको बनाने वाली अंबानी की कंपनी को टोल वसूलने की आज़ादी दे दी जो अब तक भी बदस्तूर जारी है ( ध्यान देने योग्य बात ये है कि रोड अब भी आधी से ज्यादा बनी नहीं है ), जिसकी कोई साल - दो साल पहले सूबे की  राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने भी टोल टैक्स बन्द करने को मंत्रालय को सिफारिश की थी, पर बन्द नहीं हुआ है । आप अपनी गाड़ी में अपने पैसोँ से भराये पेट्रोल/डीजल के साथ उस रोड पर चढ़ने के बाद दिल्ली पहुँचने तक आपको करीब 250 रूपये टोल के चुकाने होंगे । अब इस रोड को बिज़नस के उद्देश्य से बनाया गया था तो दोनों तरफ की जमीन को भी कंपनियों के हवाले कर दिया है । अब उस रोड पर पड़ने वाले लोगों से जब मैंने बात की तो किसी ने भी ये नहीं कहा कि उसका विकास हुआ है । वो बताते हैं कि उन्हें रोजगार की उम्मीद थी और वो भी सभी को नसीब नहीं हुआ क्योंकि हमसे सस्ते मजदूर उनको नेपाल,बिहार,बंगाल,यूपी से मिल जाते हैं । और न तो यहाँ कोई सरकारी यूनिवर्सिटी खुली है, न ही कोई बड़ा हॉस्पिटल ( प्राइवेट तो खूब हैं लेकिन उनके बुते से बाहर हैं वे )
ये मोदी सरकार उद्योगपतियों द्वारा चलाई जा रही है, जिसमें किसान, मजदूर और गरीबों के लिए कोई योजना नहीं है । अब तो सरकार लोकतान्त्रिक से इतर पुँजितांत्रिक हो गयी है । ये भूमि अधिग्रहण कानून -2014 आपको, आप ही की जमीन पर गुलाम बनाने की कुटिल चाल है, जो अंग्रेजों द्वारा 1896 में बनाये गए कानून की कॉपी है ।
जय जवान, जय किसान
Photo courtesy : Mr Rajesh Kashyap

1 comment:

  1. NH-8 की रिपोर्ट का लिंक

    http://aajtak.intoday.in/story/how-toll-tax-on-highway-is-licence-to-loot-1-793275.html

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