Monday 19 January 2015

किरन बेदी जी को एक IAC कार्यकर्त्ता का पत्र 

किरण बेदी जी, 
नमस्कार, मैं IAC ( India Against Corruption ) का एक अनाम कार्यकर्त्ता, आपसे काफी समय से कुछ कहना चाहता था पर किसी कारणवश कह नहीं पाया । पर आज जब आप बीजेपी में शामिल होकर राजनीती में आ ही गई हैं तो अब खुद को लिखने से नहीं रोक पाया । बातें मैं तब से शुरू करना चाहता हूँ जब आप आंदोलन के लिये लोगों को तैयार कर रही थी । और मैंने उसमें सिर्फ आपके नाम की वजह से भाग लेने का निश्चय किया था ।
अप्रैल 2011 में शुरू हुये जनलोकपाल आंदोलन से पहले तक सिर्फ आपका नाम ही सुना था वो भी इसलिये क्योंकि आप देश की पहली महिला IPS थी । लेकिन सबसे पहले आपको देखा था जनलोकपाल आंदोलन के मंच पर । आप जिस तरह से रामलीला मैदान में भाषण के जरिये हम वालंटियर्स में जोश भरती थी उससे हम में नई ताक़त आ जाती थी जिससे हम भ्रष्टाचारियों के खिलाफ और ज्यादा मुखर होके जनता को जगाते थे और जनलोकपाल के बारे में बताते थे । जनलोकपाल आंदोलन के दौरान हम आपकी इतनी इज्जत करते थे कि अन्ना जी के बाद आपको ही सबकुछ मानते थे पर जब आप सिर्फ कुछ देर सुबह और कुछ देर शाम को आती और भाषण दे के अपनी इनोवा गाड़ी से वापस चल जाती थी तो बुरा तो बहुत लगता था लेकिन आपकी इतनी बड़ी पर्सनालिटी थी कि सोचते थे आप तो पुरे दिन आगे की रणनीति बनाती होंगी ऑफिस में और अन्ना जी यहाँ अनसन करते हैं । 

लेकिन जब अगस्त में फिर से जनलोकपाल आंदोलन शुरू हुआ तो पता चला कि रणनीति तो स्टेज के पीछे बने रूम में बनती है । तो मन में सवाल आया कि आप क्या यहाँ सिर्फ भाषण देने ही आती हो ? फिर जब अनसन चल रहा था तो नोट किया कि पूरा दिन कुमार विश्वास तो माइक संभाले जनता का मनोरंजन करते हुए जनलोकपाल को समझाते है और बाकि अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय, प्रशांत भूषण,स्वामी अग्निवेश इत्यादि आगे की रणनीति बनाते हैं, कि कैसे आंदोलन को आगे ले जाना है और कैसे जनता का समर्थन बनाये रखना है और साथ ही सरकार पर लगातार विरोध-प्रदर्शनों से दबाव बनाना है । लेकिन आप किसी सेलिब्रिटी की भाँति सिर्फ कुछ घण्टे भाषण देकर चली जाती हैं । 
तो महसूस हुआ कि ये पूरा आंदोलन तो अन्नाजी और अरविन्द पर टिका हुआ है । 
जब अरविन्द जी और आप पर कांग्रेस द्वारा आरोप लगाये जा रहे थे तब दिल मानने को तैयार नही था । यही सोचता था कि आपको बदनाम करने के लिए ये सब झूठ फैलाये गये हैं । फिर किसी साथी वालंटियर ने आपके बारे में करण थापर की 4 अगस्त 2007 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट दिखायी, जो आपके सर्विस रिकॉर्ड को लेकर थी, जिसमें निम्न सवाल उठाये गये थे : 

1. आपको अभी तक न तो प्रशंसनीय सेवाओं के लिये भारतीय पुलिस पद मिला और न ही उत्कृष्ट पुलिस सेवाओं के लिये राष्ट्रपति का वीरता पुरस्कार। ऐसा माना जाता है कि निश्चित समय तक सेवा पूर्ण करने के बाद ये सामान्यत: दिये जाने वाले पुरस्कार है,क्या आपका इन पुरस्कारों से वंचित रहना यह सिध्द नही करता है कि आपका रिकार्ड न तो अधिक प्रशंसनीय है और न ही उत्कृष्ट ? 

2. दूसरा प्रश्न, क्या यह सच है कि 4 भिन्न-भिन्न अवसरों पर आप अपने कार्यकाल को पूरा करने में असफल रही और कम से कम दो बार आपने बिना अनुमति के अपना पद छोड़ दिया जो कर्तव्य के प्रति विमुख होने के समान है? (उन्होने गोआ में पुलिस अधीक्षक के रूप में, मिजोरम में पुलिस उप 
महानिरीक्षक (रेंज) रहते हुये, पुलिस महानिरीक्षक (तिहाड़ जेल)और पुलिस महानिरीक्षक चण्डीगढ़ के रूप में अपना कार्यकाल पूरा नही किया। पद जो उन्होने बिना अनुमति के ही छोड़ दिये थे वे थे 1983 में गोआ में तथा 1992 में मिजोरम में। प्रमुख समाचार पत्र ''सण्डे ऑब्जर्वर'' से 27 सितंबर 1992 को बात करते हुये उन्होने मिजोरम के बारे में कहा था कि ''मैं बिना पूछे वहाँ से आ गई''। 25 जनवरी 1984 को गोआ के पुलिस महानिरीक्षक श्री राजेन्द्र मोहन को लिखा गया उनका पत्र यह साबित करता है कि वह बिना स्वीकृति के ही अवकाश पर चली गई।) 

3. आइये अब आपकी महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थापना के दौरान आपके आचरण का भी परीक्षण कर लेते हैं। क्या यह सच नही है कि मिजोरम में डी.आई.जी. (रेंज) के पद रहते हुये वहाँ के राज्यपाल ने प्रेस को गोपनीय सूचनाएं देने के कारण अप्रसन्नता प्रकट करते हुये आपको औपचारिक नोटिस दिया था ? 

4. क्या यह सच है कि राष्ट्रपति वैंकटरमन ने जब  मिजोरम का दौरा किया तो उस दौरे को भंग करने की आपकी योजना पर राज्यपाल सतर्क हो गये और गुप्तचर ब्यूरो को सूचना दी कि विशिष्ट सूचनाओं और सुरक्षा के लिये आप पर भरोसा नही किया जा सकता ? फिर से, कहा जाता है कि यह भी आपके सर्विस रिकार्ड का एक भाग है। 

5. आइये अब चण्डीगढ़ चलते है, जहाँ आप 41 दिनों तक पुलिस महानिरीक्षक रही। क्या यह सच नही है कि प्रशासकीय सलाहकार ने आपको वहाँ से हटाने के लिये गृह मंत्रालय को इस आधार पर पत्र लिखा कि ''आपका चण्डीगढ़ में रहना जनहित में नही है? (उनकी अधिकृत जीवनी ''आई डेअर'' में दावा किया गया है कि श्रीमती बेदी को चण्डीगढ़ शहर से बाहर पदस्थ करने को कहा गया। यद्यपि, 18 मई 1999 को समाचार एजेन्सी यू.एन.आई. ने लिखा ''केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आज एकाएक निर्णय लेते हुये चण्डीगढ़ की पुलिस महानिरीक्षक किरण बेदी को तत्काल प्रभाव से स्थानान्तरित कर दिया।'' ) 

6. आप पर कनिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सरकार के खिलाफ भड़काने का आरोप है क्योंकि आप एक बार जारी किये गये कुछ निलंबन आदेशों से असहमत थी। प्रेस ने लिखा है कि ''आप विद्रोह के बीज बो रही थी ?'' 

7. वर्ष 1988 में हुई वकीलों की हड़ताल में आप प्रमुख भूमिका में थी। यहाँ तक कि आपकी अधिकृत जीवनी में स्वीकार किया गया है कि मामले की जाँच करने वाले वाधवा कमीशन ने ''किरण को दोषी बताया''। प्रेस ने दावा किया कि वाधवा कमीशन ने आपको एक आदतन झूॅठा बताया ?'' 

8. श्रीमती बेदी, अब मैं आपके सामने यह कहता हॅूं कि ''एक उत्कृष्ट रिकार्ड से काफी दूर'' आपका सर्विस रिकार्ड इस बात का पर्याप्त कारण है कि क्यों आपको दिल्ली का पुलिस कमिश्नर नही बनाया गया ? 

9. वास्तव में, यदि आपका सर्विस रिकार्ड इतना ही अच्छा था, तो लेफ्टीनेंट गवर्नवर तेजिन्दर खन्ना जिनके पहले कार्यकाल के दौरान आप उनकी विशेष सचिव थी, वे आपको पुलिस कमिश्नर बनाने पर जोर क्यों नही देते ? उन्होने ऐसा नही किया क्योंकि वे भी आपको इस पद के योग्य नही समझते है। 

10. अंत में, आपने कहा था कि डडवाल की नियुक्ति गलत थी क्योंकि न सिर्फ आपके  गुणों की अनदेखी की गई बल्कि आपकी वरिष्ठता को भी नजरअंदाज किया गया। किन्तु जिस पद को वांछित गुणों के कारण आप धारण करने की योग्यता नही रखती क्या वह पद आपको सिर्फ वरिष्ठता के आधार पर मिलना चाहिये ? 

इन आरोपों को तो आप भी नहीं नकार सकती क्योंकि सर्विस रिकॉर्ड तो सबके सामने है । सर्विस रिकॉर्ड के अलावा भी कई और विवाद थे जो बाद में पता चले थे । जो इस प्रकार हैं : 

1.  एक विदेशी कैदी को चिकित्सा सेवा उपलब्ध न कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आपकी आलोचना की थी और आपके खिलाफ अदालत की अवमानना के मामले की शुरुआत की थी। 

2.  जब आप मिजोरम में पोस्टेड थी तब अपनी बेटी को दिल्ली के लेडी हार्डिंग कॉलेज में एमबीबीएस कॉलेज में गलत तरीके से एम.बी.बी.एस. कोर्स में प्रवेश दिलाने का आरोप लगा। एडमिशन दिलवाने के लिए मिजोरम कोटे का इस्तेमाल किया। जिसमें आपने सफाई दी थी कि आप मिजोरम में सेवारत हैं, इसलिए आपकी बेटी भी उत्तर पूर्व की है। इसलिए कोटा लेने से कानूनी तौर पर नहीं रोका जा सकता। इसके बाद मिजोरम में आपके खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़क पर आ गया। कुछ दिन बाद आपकी बेटी ने एमबीबीएस का कोर्स भी छोड़ दिया। 

3. आप पर विभिन्न संगठनों के आयोजन में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किए जाने पर बिजनेस क्लास का हवाई किराया लेती थीं और कम किराये वाली इकोनॉमी क्लास में सफर करती थीं। 

ये बातें तो हुई आप पर लगे आरोपों की जो शत् - प्रतिशत सही हैं । अब आगे बात करते हैं जनलोकपाल आंदोलन के राजनीतिकरण की, जिसमें जितना योगदान कांग्रेस के लिए स्वामी अग्निवेश और मुक्ति शमिन कागजी ने दिया उतना ही बीजेपी के लिये आपने और जनरल वीके सिंह ने दिया ।अब इस आंदोलन के राजनीतिकरण की कहानी शुरू हुई अगस्त 2011 के अनसन के खत्म होने और सरकार से बातचीत का दौर शुरू होने के बाद । जो इस प्रकार आगे बढ़ा : 

अगस्त 2011 आंदोलन के खत्म होने के बाद जब स्वामी अग्निवेश के बारे में एक वीडियो द्वारा पता चला कि वो कांग्रेस सरकार में मंत्री कपिल सिब्बल से मिले हुये हैं और उनको फोन पर आंदोलन की सारी बात बताते हैं और उसके बाद जब अप्रैल 2012 में मुक्ति शमिन कागजी भी कोर कमेटी की बैठक की रिकॉर्डिंग कांग्रेस लीडरशिप को भेज रहे थे । इन दोनों गद्दारों की वजह से बहुत धक्का लगा था हम सभी वालंटियर्स को । तब अन्ना जी और अरविन्द जी के अलावा किसी पर विश्वास नही बचा था, बाकियों को देखकर लगता था कि कहीं ये भी कांग्रेस या बीजेपी से मिले हुए तो नहीं हैं न । 

फिर जब 25 जुलाई 2012 को अंतिम अनसन हुआ था, जिसमें अन्ना जी के बजाय अरविन्द, मनीष सिसोदिया और गोपाल राय जी अनसन पर थे, और उसमें जब बाबा रामदेव ( जो कि बीजेपी के नरेंद्र मोदी का खुला सपोर्ट कर रहे थे, जो व्यक्ति 2002 गुजरात दंगों के लिए कठघरे में खड़ा है, जिसके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में तमाम संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ी हैं, जिसके शासनकाल के दौरान राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई हो ) के आने की बात पर आपको छोड़कर बाकि सभी ने विरोध किया था पर आपकी जिद के आगे बाबा रामदेव आये थे । इससे हमारी नजरों में आपकी राय प्रो-बीजेपी पर्सन की बन गयी थी लेकिन पूर्णतया नही । और जब सरकार ने लोकपाल बिल पास नही किया तो देश के नामी 23 लोगों ने अन्ना जी ( जो कुछ दिन बाद अनसन पे थे ), अरविन्द, मनीष और गोपाल राय को अनसन तोड़कर देश को राजनैतिक विकल्प देने का सुझाव दिया था और अन्नाजी की रजामन्दी से लोगों की राय जानने की घोषणा आपने ही मंच से की थी और और अगले दिन 90% लोगों की हाँ के साथ अन्ना जी ने राजनैतिक विकल्प देने के आश्वासन के साथ अनसन खत्म किया था । और उसकी जिम्मेदारी अरविन्द जी को दी थी । फिर आपने खुद को राजनैतिक पार्टी से अलग कर लिया था । फिर जब 25 अगस्त को जब अरविन्द केजरीवाल ने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के घर पर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था तब आपने इसका विरोध किया था और आप उसमें शरीक भी नहीं हुई थी । जो तब बहुत अटपटा लगा था और हमारे साथियों की धारणा आप के प्रति लगभग बीजेपी एजेंट की बन रही थी । जैसा कि अग्निवेश और कागजी कांग्रेस को सपोर्ट कर रहे थे वैसे ही आप बीजेपी को सपोर्ट कर रही थी । 

यहाँ तक तो हम सभी असमन्जस में थे कि आप अभी तक अराजनैतिक हैं या फिर प्रो-बीजेपी । पर आगे के घटनाक्रम ने आपकी सच्चाई खोल के रख दी, जो इस प्रकार है :

जब हम वालंटियर्स की बनाई हुई आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो अरविन्द जी ने आपको एक बार फिर आकर हमें नेतृत्व देने की अपील की थी पर आपने इसे ठुकरा दिया था और जब AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में 28 सीट से अल्पमत की सरकार बनाई और अंततः अरविन्द जी मुख्यमन्त्री बने । और फिर जब आपने हमारी बनाई हुई पार्टी का विरोध किया और बीजेपी की तरफ से PM उम्मीदवार मोदी का समर्थन किया तो हमें लगने लगा था कि आप जनलोकपाल आंदोलन में बीजेपी की तरफ से प्लांट की गई थी । 
और आज जब आप बीजेपी में शामिल हो गयी हैं तो हमें भी यकीन हो गया है कि आपको बीजेपी ने ही जनलोकपाल आंदोलन में प्लांट किया था । यकीन दिलाने के लिए धन्यवाद । 
पर क्या बीजेपी-कांग्रेस से आपने राजनैतिक चंदे को लेकर जो सवाल किया था, क्या उसका जवाब आपको मिला ? नहीं । 
आपका 5 सितम्बर वाला पुराना ट्वीट जो शायद आपको याद नहीं होगा ।
It will be a shame on both main national parties if they unite to keep political funding out of RTI.Neither deserve our vote ! - Kiran Bedi @ thekiranbedi 
12:49 AM - 5 Sep 2013 

अंत में कुछ सवालों ( जिनके जवाब शायद आप देना पसन्द नही करेंगी ) के साथ खत्म करता हूँ -

1. आप जनलोकपाल के बजाय सरकारी लोकपाल पर क्या सिर्फ इसलिये राजी ख़ुशी मान गयी थी कि इसका फायदा तो बीजेपी उठा चुकी है लेकिन आगे इसका नुकसान बीजेपी को न उठाना पड़े ।
या फिर सिर्फ आम आदमी पार्टी से दुश्मनी निकालने के लिये । क्योंकि AAP अभी तक जनलोकपाल पर ही अड़ी थी । जब आपको सरकारी लोकपाल ही चाहिए था तो आप  दिसंबर 2011 में ही मान जाती ।

2.  इतने दिनों तक नाटक क्या सिर्फ बीजेपी के लिए कांग्रेस के खिलाफ माहौल तैयार करवाने के लिये किया था ?

3. जब आप और वीके सिंह जी को बीजेपी में ही जाना था तो फिर इतने दिन तक अन्ना हज़ारे जी के साथ दिखावा क्यों किया ? क्या सिर्फ केजरीवाल और हमें बदनाम करने के लिये ?

4. क्या आप जनलोकपाल पास कराने के लिये केंद्र में सत्तासीन आपकी पार्टी पर दबाव बनायेंगी ?

5. क्या आप अपनी पार्टी के राजनैतिक चंदे को rti के तहत लायेंगी ?

जवाब के इंतजार में ....

जय हिन्द ।

Courtesy : Karan Thapar's report in HT.

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