Friday 16 January 2015

बैड लोन : घोटाला, जाे दिखते हुये भी अनदेखा है

आपने कभी बैंक से लोन लिया है कभी ? और उसको ना चूका पाये हो तो बैंक क्या करता है आपके साथ ? आपने सिक्यूरिटी में बैंक के पास जो चीज गिरवी रखी है, उसको नीलाम करके अपना पैसा वसूलती है । और यदि यही पूरी कहानी किसी कंपनी के साथ हो तो ? आप सोच रहे होंगे कि जो आपके साथ हुआ वही सब उस कंपनी के साथ भी होगा । तो आप यहाँ बिल्कुल गलत हैं । क्योंकि बैंक इस तरह के लोन को बैड लोन की श्रेणी में डाल देती है और उसको वसूल नहीं करती है । अब आप सोच रहे होंगे की ये बैड लोन क्या बला है जो सिर्फ कंपनियों पर होती है पर एक आम आदमी पर नहीं ।
बैड लोन एक तरह से है तो घोटाला पर सरकार, बैंकों और उद्योगपतियों ने मिलकर इसको नाम दिया है " बैड लोन " माने बैंकों द्वारा किसी कंपनी को दिया हुआ वो लोन जो अब उस कंपनी द्वारा नहीं चुकाया जायेगा और बैंक भी चुपचाप बैठ जायेगी । और तो और इस बैड लोन की  रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर उन डिफॉल्टर कंपनियों को ये बैंक फिर से हजारों करोड़ का लोन दे देते हैं जो फिर उसी पहले वाले डूबत खाते में चला जाता हैं ।
औद्योगिक घरानों द्वारा बैड लोन और रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर चल रही लूट कितनी बड़ी है आप सुनेंगे तो आपके कान फट जायेंगे । ये लूट है तकरीबन ₹600,000,000,000,000 ( 6 लाख करोड़ ) की है । आपको सरल भाषा में समझाऊँ तो देश के दो साल के रक्षा बजट के बराबर है ये रकम । या फिर यूँ कि देश के कूल विदेशी कर्जे ₹2,600,000,000,000,000 ( 426 अरब डॉलर ) का पाँचवा हिस्सा (1/5 वां) है ये घोटाला ।
अब ये तो बात हुई इस घोटाले की कीमत की, अब आगे बताते हैं कि इस बैड लोन को बड़े बिज़नेस हॉउसेज द्वारा अंजाम कैसे दिया जाता है ?
कोई भी बड़ा औद्योगिक घराना जब नई कंपनी शुरू करता है तो वो बैंक से लोन लेता है और जब कंपनी फेल हो जाती है तो उसका मालिक खुद को दिवालिया घोषित कर लेता है और बैंक को लोन चुकाने से मना कर देता है और इस पुरे लोन को बैंक जब वसूल नहीं कर पाती है तो इसे बैड लोन की श्रेणी में डाल कर फ़ाइल बन्द कर देती है ।
2013 तक की मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी बैंकों के बैड लोन का आंकड़ा 2 लाख 43 हज़ार करोड़ था. इस बैड लोन की रिस्ट्रक्चरिंग लोन ( बैड लोन को वसूलने के खातिर दिवालिया हो चुकी कंपनी को उबारने के लिए दिया गया लोन ) के नाम पर बैंकों ने 3 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपये और बांट दिए और वो भी उसी डूबत खाते में गये ।
अब आपको देश के टॉप 10 बैड लोन डिफ़ॉल्टर्स के नाम बताते हैं -
1. टॉप पर हैं यूबी ग्रुप के मालिक विजय माल्या, जिनपर किंगफिशर एयरलाइंस के 2673 करोड़ रुपये बकाया है ।
2. अगला बड़ा नाम है गुजरात की विनसम डायमंड्स एंड ज्वैलरी लिमिटेड का, जिनपर सन् 1986 से 2660 करोड़ रुपये बकाया हैं ।
3. इसके बाद है गुजरात की इलेक्ट्रोथर्म इंडिया लिमिटेड है जो 1985 में रजिस्टर्ड हुई, पर बैंकों का 2211 करोड़ रुपये का कर्ज़ है ।
4. ज़ूम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड पर बैंकों का 1810 करोड़ रुपये का कुल कर्जा है ।
5. संदेसारा ग्रुप की स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड जो 1985 में रजिस्टर्ड हुई, पर बैंकों का 1732 करोड़ रुपये का कर्ज़ा है ।
6. अगला नाम है कभी टेक्सटाइल किंग कहे जाने वाले एस कुमार्स नेशनवाइड लिमिटेड का । एस कुमार्स नेशनवाइड लिमिटेड पर बैंकों का 1692 करोड़ का कर्ज़ है ।
7. फ्लोरियाना ग्रुप की सूर्या विनायक इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड पर 1446 करोड़ रुपये का कर्ज़ है ।
8. कॉर्पोरेट इस्पात अलॉयज़ पर 1360 करोड़ का कर्ज़ है । कॉर्पोरेट इस्पात अलॉयज़ के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में विद्यासागर बनारसी दास गर्ग, रविंद्र जायसवाल, मनोज जायसवाल, अभिषेक जायसवाल और प्रकाश जायसवाल के नाम शामिल हैं ।
9. फॉरएवर प्रेसियस ज्वैलरी एंड डायमंड्स लिमिटेड, ये कंपनी 1996 में रजिस्टर्ड हुई और इस कंपनी के हरीशभाई मेहता और सत्यप्रकाश तंवर डायरेक्टर हैं. इसपर 1254 करोड़ रुपये का कर्जा है ।
10. 2006 में शुरू हुई सन्देसारा ग्रुप की ही स्टर्लिंग ऑयल रिसोर्सेज कंपनी का । जिसपर 1197 करोड़ का कर्ज़ चढ़ा हुआ है ।
बैड लोन मामले में सरकार और RBI भी एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं । फाइनेंस मिनिस्ट्री का कहना है कि पब्लिक सेक्टर बैंक (PSB) देश की  इकनॉमिक ग्रोथ बढ़ाने के सरकार के निर्देश का पालन कर रहे थे। इसलिए उन्हें बैड लोन के लिए कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। रिजर्व बैंक सरकार की इस दलील से सहमत नहीं है। उसने पिछले हफ्ते अपने जवाब में कहा कि सरकारी बैंकों की क्रेडिट मैनेजमेंट स्किल अच्छी नहीं है। अगर सरकार के कहने पर भी पब्लिक सेक्टर बैंक लोन दे रहे थे, तो उन्हें इसमें समझदारी बरतनी चाहिए थी। उन्हें सिर्फ उन्हीं कंपनियों को लोन देना चाहिए था, जो पैसे के बदले पर्याप्त एसेट्स गिरवी रख रही थीं।
अब आगे क्या हो सकता है इसका
रिस्ट्रक्चरिंग के बाद भी बैंकों को अपना पैसा वापस नहीं मिल रहा है। इसलिए वह लोन को एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (एआरसी) को बेच रहे हैं। एआरसी इन लोन्स को भारी डिस्काउंट पर खरीदती हैं। ये क्रेडिटर्स को रिस्ट्रक्चरिंग में मदद करती हैं और उनसे लोन्स की वसूली करती हैं।
पिछले तीन साल में गलत कर्ज मंजूरी और जालसाजी से बैंकों को ₹2274300000000 रुपए का चूना लग चुका है। मतलब यह कि हर दिन बैंकों का 20.76 करोड़ रुपए डूब जाता है।
अब इन बैंकों को उबारने के लिए लोगों का पैसा  खुद के पास कैश ज्यादा न रखकर सीधा बैंकों में पहुँचाया जाये जिससे इन बैंको की हालत कुछ सुधरे ।
साभार : टॉप टेन डिफ़ॉल्टर्स के नाम गिरिजेश मिश्रा ( इंडिया न्यूज़ के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर ) की रिपोर्ट से लिए गए हैं ।

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