Sunday 1 September 2013

भारतीय लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिये पाँचवें स्तम्भ की सख्त जरूरत

असल मायनों में लोकतंत्र के 4 स्तम्भ माने गये है 

पहला विधायिका,  जिसमें कानून बनाने वाले के बजाय कानून तोड़ने वाले ज्यादा है ।

दूसरा कार्यपालिका, जिसमें काम करने के बजाय अटकाने वाले ज्यादा है

तीसरा न्यायपालिका, जिसमें सिर्फ फैसले मिलते है न्याय नहीं ।

और चौथा मीडिया, जो सरकार की आलोचना की जगह चापलूसी में  ज्यादा व्यस्त रहती है ।

कुल मिलाकर चारों स्तम्भ लोकतंत्र को मजबूत करने के बजाय कमजोर कर रहे है । मेरा मानना है कि आज इन चारों स्तम्भो की जवाबदेही तय करने के लिये एक और मजबूत स्तम्भ की जरूरत है जो की बनेगा जिम्मेदार और जागरूक नागरिकों से । आज इस स्तंम्भ को बहुत ही मजबूती से खड़े होने की आवश्यकता है  । इस पाँचवे स्तम्भ का हिस्सा वो लोग है :

- जो नेता को भाग्यविधाता मानने के बजाय उनसे हर बात पर सवाल करता हो और अपने टैक्स के पैसे का हिसाब माँगने में बिलकुल भी ना घबराता हो

-  जो नौकरशाह को नौकर और खुद को मालिक समझते हुये भ्रष्ट तंत्र को उजागर करे

-  जिसे तारीख के बजाय न्याय मिले

- जो किसी जमात की कही सुनी बातों को मानने के बजाय तर्क के साथ तथ्य परखकर अपने आज़ाद विचार बनाता हो 

- जो धर्म, भाषा, क्षेत्र, ऊँच - नीच आदि के बजाय इंसानियत और बराबरी में विश्वास रखता हो



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