Monday 20 May 2013

मुझे सिब्बल ऐंड कंपनी पर दया आती है: CAG विनोद राय

अपने कार्यकाल के दौरान 2G और
कोयला घोटालों का खुलासा कर यूपीए सरकार
की नींव हिलाने वाले नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक
( CAG) विनोद राय ने जाते-जाते भी सरकार के
मंत्रियों पर ताना कसा है। 2जी घोटाले में कोई
नुकसान न होने की सरकार की बात पर राय ने
कहा कि उन्हें कपिल सिब्बल ऐंड कंपनी पर
दया आती है। कैग के टीएन शेषन माने जाने वाले
विनोद राय मंगलवार यानी 22 मई 2013 को रिटायर हो रहे
हैं।
उन पर 'दया' आती हैः
विनोद राय ने हमारे
सहयोगी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को दिए
इंटरव्यू में 2जी घोटाले पर कपिल सिब्बल
की जीरो लॉस थिअरी पर पूछे गए सवाल पर
कहा कि उन्हें उन पर 'दया' आती है। उन्होंने कहा,
'मैंने इससे पहले यह कभी नहीं कहा, लेकिन मुझे
असल में उन पर तरस आता है। मैंने जेपीसी में
कहा था कि इसमें भारी नुकसान हुआ है, जिससे
इनकार नहीं किया जा सकता। नुकसान के आंकड़े पर
बहस हो सकती है। मैंने
कहा था कि आपकी अपनी एजेंसी सीबीआई ने
भी कहा है कि इसमें 30 हजार करोड़ रुपये
का नुकसान हुआ है। सीबीआई ने अपनी एफआईआर
में भी यह बात कही है। मैंने उनसे
पूछा था कि क्या आप 30 हजार करोड़ रुपये की बात
को वापस लेने जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो मैं
भी 1,76, 000 करोड़ के आंकड़े को वापस लेने के
लिए तैयार हूं। यही वजह है कि मुझे उन पर अफसोस
होता है। क्या वाकई कोई यकीन करेगा कि नुकसान
नहीं हुआ है?'
मनीष तिवारी को दिया था जवाबः 2जी की ऑडिट
रिपोर्ट में 'अनुमानित घाटा' टर्म इस्तेमाल करने पर
उठे सवालों पर उन्होंने कहा कि 'अनुमानित घाटा'
या 'अनुमानित लाभ' टर्म का इस्तेमाल सरकार
भी करती रही है। मैं आपको डायरेक्ट टैक्स कोड
(डीटीसी) बिल की कॉपी दे सकता हूं। यह सरकार
का बिल है, जिसमें इस टर्म का इस्तेमाल है। मैंने
जेपीसी में भी यह बात रखी थी। खासकर मनीष
तिवारी को बताया था कि आपके अपने बिल में
'अनुमानित इनकम' का कॉन्सेप्ट है। यह
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लिया गया ह।
दुनियाभर की ऑडिटिंग एजेंसियां इसका इस्तेमाल
करती हैं। उन्होंने तब कहा था,'हां, लेकिन यह
अनुमानित घाटे की बात नहीं करता है।' यह सही है
कि घाटे पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता। यह
डायरेक्ट टैक्स कोड बिल है।'

सुबह अखबार में इंटरव्यू छपने के बाद मनीष
तिवारी ने विनोद राय को बहस की चुनौती दी। उन्होंने
ट्वीट किया कि विनोद राय इंटरव्यू के जरिए बात
रखने के बजाय आमने-सामने बैठकर बहस करें।
मैं चिदंबरम का आदमी कैसे?: पी. चिदंबरम पर
सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ाने (विनोद राय
की नियुक्ति करके) के आरोप पर विनोद राय ने हंसते
हुए चुटकी ली। उन्होंने कहा, 'आप यह कैसे कह सकते
हैं कि मैं चिदंबरम की पंसद था? महज इसलिए
क्योंकि मैंने उनके साथ काम किया था? अगर
सिंधुश्री खुल्लर की कैग के तौर पर नियुक्ति होती है
तो क्या आप उन्हें मोंटेक सिंह अहलूवालिया की पंसद
कहेंगे? इसी तरह एसके शर्मा की नियुक्ति पर
क्या उन्हें एंटनी का आदमी का जाएगा।
प्रक्रिया यह है कि जिसमें कैबिनेट सेक्रेटरी कुछ
नाम रखते हैं, जिस पर बाद में पीएम और वित्त
मंत्री विचार करते हैं। मेरा इंटरव्यू भी पीएम में
लिया था।'
आरपी सिंह के आरोपों से दुखी नहीं है?: अपने पूर्व
सहयोगी आरपी सिंह के दबाव में 'अनुमानित घाटे'
का आकलन करने के आरोपों की टीस विनोद राय के
दिल में अभी भी है। हालांकि उन्होंने आरपी सिंह
को अच्छा साथी बताया। उन्होंने कहा, 'मैने
आरपी सिंह के फेयरवेल में उनकी तारीफ की थी।
2जी का ऑडिट उन्होंने ही किया था। जेपीसी में जाने
से पहले वह मुझसे मिले थे और मैंने उनसे कहा था,
'आरपी बस एक बात याद रखो, तथ्य की गलती मत
करना। राय इधर-उधर हो सकती है, लेकिन फैक्ट्स
पर टिके रहना।' लेकिन उन्होंने वहां कुछ गलतियां कीं।
उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि हम घाटे
का हिसाब नहीं लगाते, जबकि मैंने जेपीसी में
उनकी एक रिपोर्ट रखी थी, जिसमें घाटे का हिसाब
लगाया गया था। उन्होंने कहा कि वह आरपी सिंह के
बयान से ठगा हुआ महसूस नहीं करते। आप ऐसा तब
महसूस करते हैं, जब आप एक शख्स पर
ही पूरा यकीन करते हैं। मैंने उनकी तारीफ
की क्योंकि उन्होंने अच्छा ऑडिट किया था। मैं उन्हें
कभी अनमोल कलीग नहीं कहा।'
बीजेपी से नजदीकी कैसे?: बीजेपी से नजदीकी के
आरोपों पर उन्होंने कहा,'पीएसी का चेयरमैन
हमेशा विपक्षी पार्टी से होता है। संविधान में है
कि कैग को पीएसी के साथ काम करना है। मीटिंग के
बाद मुझे पीएसी चेयरमैन को ब्रीफ करना होता है।
मेरे उनसे मुलाकातें होती हैं। यह घर पर भी होती हैं।
सिर्फ मुरली मनोहर जोशी ही नहीं, वह कोई
भी हो सकता है। यह मेरी ड्यूटी है कि चेयरमैन से
को ब्रीफ करूं। जब लोग खुद को फंसा पाते हैं तो इस
तरह के आरोप लगाते हैं। '
राजनीति में कभी नहीं आऊंगाः राजनीति में आने के
सवाल पर विनोद राय ने कहा, ' जब भी मुझसे
राजनीति में जाने का सवाल किया जाता है मैं न
हां कहता हूं न ना। यदि मैं कहूंगा कि मैं पॉलिटिक्स
में नहीं जाऊंगा आप यकीन नहीं करेंगे। अगर मैं
कहूंगा कि पॉलिटिक्स जॉइन करूंगा तो आप कहेंगे
'बोला था ना।' लेकिन मैं आज साफ कर
देना चाहता हूं कि मेरा जीवनभर राजनीति से लेना-
देना नहीं रहा है। 65 साल बाद मैं क्यों बदलूंगा ?
मुझे इससे क्या फायदा होगा ?

Courtesy - टाइम्स ऑफ इंडिया, नई दिल्ली

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