Monday 5 November 2012

Dr. Kumar Vishwas's poetry - Pagli Ladki

मावस क काली रात म दल का दरवाजा खुलता है, जब ददक काली रात मगमआंसू के संग घुलता है, जब पछवाड़े केकमरे म हम िनपट अकेले होते ह, जब घड़याँ टक-टक चलती ह,सबसोतेह, हम रोते ह, जब बार-बार दोहरानेसे सार याद चुक जाती ह, जब ऊँच-नीच समझाने म माथे क नस दुःख जाती है, तब एक पगली लड़क के बन जीना गार लगता है, औरउस पगली लड़क के बनमरना भी भार लगता है।

जब पोथे खाली होते है, जब हफ़सवाली होते ह, जब गज़ल रास नह आती, अफ़सानेगाली होतेह, जब बासी फक धूप समेटेदनजद ढलजता है, जब सूरज का लकर छत से गिलय म देर से जाता है, जब जद घर जाने क इछा मनह मनघुट जाती है, जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है, जब बेमनसे खाना खाने पर माँगुसा हो जाती है, जब लाखमनकरने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है, जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचार लगता है, तब एक पगली लड़क के बन जीना गार लगता है, औरउस पगली लड़क के बनमरना भी भार लगता है।

जब कमरे म सनाटेक आवाज़ सुनाई देती है, जब दपण मआंख के नीचे झाई दखाई देती है, जब बड़क भाभी कहती ह, कुछ सेहत का भी यान करो, या िलखतेहो दनभर, कुछ सपन का भी समान करो, जब बाबा वाली बैठक म कुछ रते वाले आते ह, जब बाबा हम बुलाते है,हम जाते म घबराते ह, जब साड़ पहनेएक लड़क का फोटो लाया जाता है, जब भाभी हममनाती ह, फोटो दखलाया जाता है, जब सारे घर का समझाना हमको फनकार लगता है, तब एक पगली लड़क के बन जीना गार लगता है, औरउस पगली लड़क के बनमरना भी भार लगता है।

दद कहती ह उस पगली लडक क कुछ औकात नहं, उसकेदल मभैया तेरे जैसे यारेजबातनहं, वो पगली लड़क मेर खाितर नौ दन भूखी रहती है, चुप चुपसारेतकरती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है, जो पगली लडक कहती है, म यारतुह सेकरती हूँ, लेकनमहूँ मजबूर बहुत, अमा-बाबा सेडरती हूँ, उस पगली लड़क पर अपना कुछ भी अिधकार नहं बाबा, सब कथा-कहानी-कसे ह, कुछ भी तो सार नहंबाबा, बस उस पगली लडक केसंग जीना फुलवार लगता है, औरउस पगली लड़क के बनमरना भी भार लगता है |||


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