Tuesday 6 November 2012

लाडली

जब पैदा हुई घर में,शिकन सी माथे पर सज गई,.....
जब बड़ी हुई थोड़ी,घर की इज्ज़त बन गयी....
घिरते ही अँधेरा,पैरो में बेड़ियाँ पहना दी मुझे...
गाय भैंस की तरह,खूंटे संग बिठा दी मुझे.....

घर में जब रोटी कम थी,मेरा हिस्सा बाँट दिया,....
मेरे हिस्से का दूध तक,घर के कुत्ते ने पिया.....
कम्बल की गर्माहट बेटे को मिल पाती है,....
बेटी के हिस्से तो सिर्फ,फटी चादर आती है,....

हाथों में सजी मेहँदी,माथे पर सिन्दूर सजा,...
चली घर आँगन को छोड़,मिली बेटी होने की सज़ा....
चौखट,आँगन सब अपना,पर रहना दुश्वार हुआ,....
अपने कमरे में ही मेरा,मेहमानों सा सत्कार हुआ,....

नए घर में आकर,भला क्या नया हो जायेगा,...
सूना मन,सूना तन मेरा,नया ठिकाना पायेगा...
फिर इज्ज़त का नया टोकरा,सिर पर बाँध जाएगा,....
भीतर किसी कमरे में,मुझे सजाया जायेगा......

कहाँ यहीं तक बस,लड़की का जीवन टिकता है,....
रस्मो के नाम पर जोड़ा,मारुती के संग बिकता है,....
गाडी पर न हो डेंट कोई,गहने बिलकुल खालिस हो....
लड़की की दौलत का,दूल्हा इकलौता वारिस हो,....

कभी दहेज़,कभी साख,इनकी कीमत ज्यादा है,...
लड़की का जीवन क्या है,बिन बच्चे भी आधा है,...
कभी जलाकर,कभी सताकर,खबर बनायीं जाएगी,...
फिर माँ बाबा की लाडली,सुकून की नींद पाएगी,...................(चंचल शर्मा)


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