Thursday 6 April 2017

अलवर हत्याकांड के बाद किसानों के नाम पत्र

नमस्कार किसान भाईयों,

मैं जितेन्द्र पूनिया, गाँव किशनपुरा, तहसील फतेहपुर शेखावाटी, जिला सीकर, राजस्थान से हूँ । 15 लोगों के साझा परिवार में रहता हूँ और परिवार का पैतृक व्यवसाय खेती बाड़ी के साथ साथ 2 गाय, 2 भैंस ओर 4 बकरी से पशुपालन भी करते है । मेरे से पहले वाली 2 पीढ़ी में सब घरवाले सरकारी नौकरी करते है और अब वाली में भी । पिताजी शिक्षा विभाग में जिला अधिकारी है, कुल मिलाकर पैसे भी ठीक ठाक है पर आज तक हमने खेत खाली नहीं छोड़ा, हर बार खेती करते है, जिसमें नौकरी से छुट्टियां ले लेकर सब घरवाले हाथ बंटाने आते है, फिर चाहे वो कितना भी बड़ा अधिकारी हो या पैसेवाला । हालाँकि खेती में होना जाना कुछ नहीं है, खाने के लिये गेहूँ तक हर साल खरीदने पड़ते है पर किसान है तो खेती करना हमारा कर्म भी है और जिम्मेदारी भी ।

आज ये पत्र आपको इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि जब कोई नहीं बोल रहा है तो मेरा बोलना  बेहद ही जरूरी हो जाता है । आप अब किसान से हिंदू या मुस्लिम हो गये है । बड़े बुजुर्गों की कही बातें मुझे आज फिलोसॉफी की किताब की तरह लगने लगी है । वो कहते थे कि बेटा, हम किसान है । ये धर्म, जात- पात  सब ब्राह्मण और मुल्लों का बनाया हुआ है । ये हमारे लिये नहीं है । हमारे लिये हमारे खेत और पशु है । ये है तो हम है, ये नहीं है तो कुछ नहीं । धर्म या तो इस दुनिया मे होता नहीं और अगर है तो वो एक ही है, इंसानियत । अगर इंसान को इंसान समझते हो, तो तुम इंसान हो नहीं तो तुम में और इन पशुओं में कोई फ़र्क़ नहीं है । कर्म के बजाय अगर धर्म को खुद का मालिक समझोगे तो जैसे मालिक पशुओं को किधर भी हांक देता है वैसे ही धर्म भी आपको किधर भी हांक देगा । अगर किसी काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति की वजह से हम गलत काम करने से डरते है तब तक तो उस शक्ति को मानना ठीक है पर अगर हम इंसान को इंसान समझना भूल जायें तो उस काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति का खत्म हो जाना बेहतर है । हमें यदि किसी शक्ति को पूजना है तो प्रकृति ( सूर्य, जल, हवा, जमीन और आकाश ) को पूजें, जो हमें पालती है ।

आज ये बुजुर्गों की कही बातें क्यों बता रहा हूँ उसका कारण भी लगे हाथ आपसे साझा कर ही लेता हूँ । अलवर के बहरोड़ में एक किसान जो दूध के धंधे के लिये मेले से कुछ गायें खरीद कर ले जा रहा था जिसकी धर्म के नाम पर सरेआम हत्या कर दी गयी । और कहीं से कोई भी आवाज नहीं आयी । जो कुछ आई भी वो हत्यारों के पक्ष में थी । लेकिन जब कोई किसान ही इसपर नहीं बोला तो फिर बोलने की जरूरत नहीं रह जाती क्योंकि कोई भी लड़ाई अपने दम पर ही लड़ी जाती है ।

मैं एक किसान होने के नाते तो इस घटना का विरोध करता ही हूँ पर साथ ही देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते शर्म भी महसूस करता हूँ कि हमारे मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी संसद में सरेआम झूठ बोलते है कि ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं । अब बताओ आप क्या करोगे ? कुछ नहीं, बस तमाशा देखिये । रही बात उस किसान या डेयरी चलाने वाले की, तो उसको तो एक दिन मरना ही था, मुस्लिम जो था । ये तो अच्छा हुआ कि जिस गाय की आजतक सेवा की, कम से कम उसके नाम पर तो मरा, वरना कल को फालतू में बैंक के कर्जे से मरता तो कोई पूछता भी नहीं, खैर उसके घरवालों को दुःख सहने की हिम्मत मिले ।

साथी पहलू खाँ के मरने से ज्यादा बड़ा सवाल ये है कि हम आज किधर जा रहे है ?  हम हमारी जड़ों से कितने दूर हो गये है ?  क्या अब भी हम हमारी जड़ों तक लौट सकते है ?  हाँ आज भी हम हमारी जड़ों तक लौट सकते है । अगर कुछ मूलभूत चीजें समझ लें तो । वो चीजें समझने के लिये कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है, बस एक बार बड़े बुजुर्गों की बातों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है और इस ब्राह्मणवाद ओर मुल्लावाद से बाहर आकर इनका पुरजोर विरोध करने की जरूरत है । गाय एक ऐसा पशु है जो हम किसानों को धर्म से जोड़ता है, इसलिये इसी पर बात करते है ।

आमतौर पर अगर हमारे घर मे कोई पशु उपयोगी नहीं रहता तो उसे दूसरे किसान या कसाई को बेच दिया जाता है, हालाँकि जिसको इतने दिन पाला, उसे बेचना आसान नहीं होता फिर भी यदि बेचेंगे नहीं तो वो हमें आर्थिक रूप से और अधिक कमजोर कर देता है इसलिये बेचना ही आखिरी उपाय है । सिर्फ वही पशु बेचा जाता है जिसका आउटपुट जीरो होता है जैसे बकरा, भैंसा, सांड क्योंकि इस वैज्ञानिक युग मे हल जोतने में ट्रेक्टर के आने से भैंसा और सांड किसी भी काम के नहीं रहे है इसलिये बकरों के साथ इन्हें भी बेच दिया जाने लगा है । इसी तरह अनुपयोगी जानवरों में दूध न देने वाली बकरी, गाय और भैंस भी आती है । बकरी ओर भैंस तो कसाई को बेच देते है पर आजकल गायों को काटने पर देश मे पाबंदी है इसलिये कसाई इन्हें खरीदते नहीं है और किसान बिना दूध देने वाली गायों को पालने में असमर्थ होने की वजह से खुले में छोड़ देता है जो कि आवारा पशुओं के रूप में शहरो में प्लास्टिक चबाती घूमती है या फिर झुण्ड में एक ही रात में कई महीनों की मेहनत से उगाई फसल को कुछ मिनटों में उजाड़ देती है । आज इन गायों की इस हालत के लिये सरकार और गायों के तथाकथित ठेकेदार जिम्मेदार है जो न तो इनको कटने देते है ना ही खुद पालते है । अगर किसी को गाय में ज्यादा ही आस्था है तो अपने घर पर रखे । आपकी इस आस्था का हल्ला किसान क्यों ढोये ? आज ज्यादातर गायों के हक़ की आवाज उठाने वालों को देखें तो इनमें वो ब्राह्मण बनिये ही सबसे अधिक मिलेंगे जिनकी कई पीढ़ियों तक ने गाय नहीं पाली हो ।

अंत मे सभी से एक ही बात कहूँगा कि गाय की वजह से किसी की भावनाएं आहत हो रही है तो गायों को न मारे और न ही खायें पर साथ ही एक निवेदन उन आहत भावनाओं वालों से भी है कि इन गायों की सार संभाल करें और हमारे खेत और सड़कों से दूर रखें । या तो घर के पास एक एक्स्ट्रा प्लॉट खरीद लें या फिर सब मिलकर गौशाला में रखें । फिर किसी की भावना आहत नहीं होगी ।
अगर इतना नहीं कर सकते तो फिर ये गौभक्ति दिखावा है और गरीब पशुपालकों और किसानों पर अत्याचार और शोषण का बहाना है, जो हम कतई नहीं सहेंगे ।

धन्यवाद

3 comments:

  1. Marmik, I appreciate your efforts

    ReplyDelete
  2. Good and eye opener blog for everyone. जितेंद्र भाई बहुत ही बढ़िया बात कही हे , मेरा भी यही कहना हे की गौ माता की रक्षा करनी हे तो घर मे रखो , लेकिन बहुत लोग नही रखते क्योंकि #खर्चा #रखरखाव कोन करे।। highway पे kitni गौ घूमती ह् , accident भी होते ह, मेरा और मेरे पिताजी भी मरते मरते बचे थे, और अगर सच मे ये सब रोकना हे तो जम्मू कश्मीर मे जा के रोको , वहा तो सरे आम होता हे , ये सब देख के पता चल रहा हे , देश आगे बढने की बजाये बहुत पीछे चला गया, धर्म से पहले इंसान हे , hindu मुसलमान सब एक हे, किसी धर्म को कोई मजा नहीँ आता की दूसरे धर्म की भावनाओं को दुःख पहुचाए, होते हे उनके कौम मे 2 -4 तो वैसे ही 2-4 हमारे कौम मे भी हे , ये बात याद रखना

    ReplyDelete

डॉ कलाम को श्रद्धांजलि

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam ) का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु के Rameswaram में हुआ । इन्होंने 1960 ...