Monday 15 August 2016

ओलंपिक का पदक

रविवार की सुबह थी, सेंट्रल पार्क घूमने वालों से अटा पड़ा था । एक कोने में लगी कई सारी कुर्सियों पर बहुत सारे लोगों का समूह बैठा, ओलंपिक में देश के पड़े पदक के अकाल पर गर्मा गर्म बहस चल रही थी । सब लोग अपना अपना ज्ञान उढेल रहे थे । इस समूह में कोई डॉक्टर था, कोई इंजीनियर, कोई CA, कोई बड़ा वकील, कोई IAS, तो कोई बड़े मंदिर का पुजारी, तो कोई बड़ा बिज़नस मैन, पका पकाया कॉमरेड, कोई एक्टिविस्ट इनके बीच में जो सबसे ज्यादा बोल रहे थे वो थे शहर के नामी बुद्धिजीवी, सब लोगों को एक ही चिंता खाये जा रही थी कि इंडिया पदक क्यों नहीं जीत रहा ? हम भी टहलते टहलते बड़े लोगों की बड़ी बातें सुनने पहुँच गये, ये सोचकर कि कुछ ज्ञान की 4 बातें सीखने को ही मिलेगी । वहाँ चली बातों के दौर में हम भी शामिल हो लिये

 राजेश जी ( बिज़नस मैन ) : क्या करें साहब इन नाकारा खिलाडियों का, "बोहनी" तक नहीं हुई है अभी तक ओलिंपिक में इंडिया की, सवा सौ करोड़ में पदक लाने वाले सवा लोग भी नहीं है

मनीष जी  ( इंजीनियर साहब ) - ये जो पदक नहीं जीत पा रहे है न अपने लड़के, उसके पीछे सबसे बड़ी वजह है टेक्निक की कमी । यदि सभी खिलाड़ियों को खेलने सही टेक्निक ही नहीं पता, हमारे और विदेशी खिलाडियों में जमीन आसमान का फ़र्क़ है ।

सम्राट जी ( डॉक्टर साहब ) : सहमत हूँ, टेक्निक तो है ही पर साथ फिजिकल फिटनेस भी एक कमी है भारतीय खिलाड़ियों की, आप ही देखिये न आधे खिलाड़ी तो ओलिंपिक लायक फिजिकल फिटनेस भी नहीं रखते । अपनी जिमनास्टिक वाली दीपा को ही देख लो, फाइनल के लिये क्वालीफाई करने के बाद तो बेचारी को फेडरेशन ने डॉक्टर उपलब्ध करवाया है

आकाश जी ( एक्टिविस्ट ) : सही बात, सुना है वहाँ रियो में जो डॉक्टर है वो किसी फेडरेशन के बड़े अधिकारी का बेटा होने की वजह से भेजा गया है, जनाब के पास खिलाडियों के हर मर्ज का एक ही इलाज है, क्रोसिन

( सब ठहाका लगाते है )

एकता जी ( वकील साहब ) : सही बात, समय पर सुविधाएँ तो सरकार देती नहीं है, फिर इनको पदक और चाहिये । आधे पैसे नेता खा जाते है, आधे फेडरेशन वाले, खिलाडियों के लिये खाने को बचता है तो अधपका दलिया, सड़े फल, बेकार क्वालिटी का इंफ्रास्ट्रक्टर और साजो सामान । फिर भी ये बच्चे वहाँ से पदक लाते है तो ये बड़ी ही बात है ।

राशिद जी ( कॉमरेड ) : इंडिया का खेल बजट अब भी 1550 करोड़ ही है, जबकि चीन का 25000 करोड़, वहाँ हर कस्बे में स्पोर्ट्स स्कूल है, जबकि अपने यहाँ जो थे वो ही बंद हो रहे है । इससे पदक वाले खिलाड़ी तैयार नहीं होंगे, ओलंपिक क्वालीफ़ायर ही मिलेंगे, सिर्फ क्वालीफ़ायर

आकाश जी ( एक्टिविस्ट ) : कुछ उम्मीद है तो सिर्फ लड़कियों से, अपने लड़कों में दम ना रहा, आप भी देख लो न, दीपा, साइना, pv संधू, विनेश । एक भी नाम है क्या आपके दिमाग में कि ये लड़का पदक लायेगा ही । लड़कियों को चूल्हे चौके से बाहर आने तो दो, नहीं आने दोगे तो जैसे गर्भ से बाहर आई है वैसे ही यहाँ से भी बाहर आ जायेगी

उत्कर्ष जी ( पुजारी ) : क्या करेगी लड़कियां बाहर निकलके ? मुँह काला ही करवायेगी घर वालों का । देखते नहीं आजकल टीवी देख देखके दिनों - दिन बिगड़ी जा रही है । और ये खेलना कूदना छोटी जात वालों का काम है, हम ऊँची जात वालों का नहीं, समझें

राजेश जी ( बिज़नस मैन साहब ) : ये सभी खिलाड़ी obc के ही तो है, क्या उखाड़ लिया इन लौंडो ने ? देश का नाम डुबो दिये, एक पदक जीतने की औकात नहीं है, क्यों देश का पैसा बर्बाद कर रहे है जब खेलना नहीं आता तो, घर बैठ जाये, हमारे टैक्स का पैसा मिट्टी में मिलाने पर तुली है ये सरकार भी । इतने पैसे से तो देश में कितना विकास हो जाता पता नहीं

विजय जी ( बुद्धिजीवी जी ) - आप लोग जो आये दिन रोना रोते हो न कि देश में आरक्षण की वजह से प्रतिभाएं आगे नहीं आ पाती, खेलों में कोई आरक्षण नहीं है फिर भी आपके बच्चे कहाँ है ? ये जो आप लोग ज्यादा बिलबिलाते हो न, वो सिर्फ नीची जात वालों के ऊपर आने का डर है

सुमित जी ( CA साहब ) : देखिये आप ये गलत इल्जाम लगा रहे है, हमने कभी नहीं कहा ऐसा, पर आरक्षण की वजह से प्रतिभायें तो बिछड़ जाती ही है, ये तो आपको भी मानना पड़ेगा

एकता जी ( वकील साहब ) : अरे भई, जब सेल्फी लेने और ब्राजील घूमने के लिये ही इन्हें भेजा था, तो मुझे भी भेज देते, ब्राजील घूमने की इच्छा मेरी भी है

( सब ठहाके लगाते है )

विजय जी ( बुद्धिजीवी साहब ) : आरक्षण की वजह से ही उन लोगों को ऊपर लाया जा सकता है, समाज की मुख्यधारा में, यहाँ हमारे बीच । हम में से किसी को भी गवारा नहीं कि हमारे बीच कोई हमसे कम औकात का बैठे, है क्या किसी को ? आप लोगों सामाजिक सत्ता खोने का डर है इसलिये आप लोग .....
( बीच में बात काटते हुये )

मनीष जी ( इंजीनियर साहब ) : अरे साहब,आज तो आप  ओलंपिक पर बोलिये न, ये बड़ा मुद्दा है अभी के लिये

तभी कॉमरेड राशिद बोले पूनिया जी आप भी बोलिये न कुछ, आये है तबसे हमारी ही सुन रहे है

अरे नहीं आप लोगों को सुनना ही बड़ी बात है, हम आप लोगों के बीच बोलने लायक नहीं है, और वैसे भी हम जरा तीखे बोलते है, हमारा बोला लोगों को हजम नहीं होता है इसलिये रहने दीजिये

CA सुमित जी : अरे, ये क्या बात हुई ? हमारा हाजमा अच्छा है, हम पचा लेंगे और नहीं पचा तो 2 पेग लगाने के बाद पच जायेगी ( सब हँसते है )

ठीक है फिर, हमारा तो ये मानना है कि डॉक्टर साहब अपने बेटे को डॉक्टर, वकील साहब अपने बेटे को वकील, बिजनेसमैन महोदय अपने बेटे को बिजनेसमैन बनाना चाहते है, IAS साहब अपने बेटे को विदेश में सेटल करवा रहे है तो फिर खेलेगा कौन ? खिलाड़ी आएंगे कहाँ से ? सबको पदक चाहिये पर पदक जीतने वाले बच्चे अपने नहीं, पड़ोसी के हो, अपने बच्चे तो आराम से जिए बस, कौन इन लफड़ों में पड़े, और अगर बच्चे तैयार भी हो तो आप लोग इन्हें जाने नहीं देते, और CA साहब आप चलो ठीक है कि बिट्टू को खेलने दिया पर फुटबॉल छुड़वा के क्रिकेट एकेडमी भेजने की क्या जरूरत थी ? उसका इंट्रेस्ट तो फुटबॉल में था । सोचिये कल को ध्यानचंद से उसके पिताजी हॉकी के बजाय जिमनास्टिक खेलने को कहते तो क्या वो भारत को कभी गोल्ड मैडल दिला पाता । क्यों बुद्धिजीवी जी, आपने भी तो आपके बेटे यश के साथ यही किया न, स्टेट लेवल पर गोल्ड मेडलिस्ट था, पर आपने IIT के लिये खेल छुड़वा दिया बेचारे का, बात करते हो ।

सब चुप थे, ऐसे लगा जैसे पार्क सुना हो गया हो, इस सन्नाटे के बीच मैंने भी विदा लेने में ही भलाई समझी ।

7 comments:

  1. very nice
    so sweet
    i like it poonia ji

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  2. पुनिया जी आपने आईना दिखाने का काम किया है।

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  3. पुनिया जी आपने आईना दिखाने का काम किया है।

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  4. एकदम करारा
    बधाई कलम को, जो बड़ी सही जा रही है

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    1. धन्यवाद, हौसला अफजाई के लिये

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