Sunday 14 August 2016

कैसी आज़ादी ?

आज़ादी, एक शब्द नहीं है जिसको हम 3 अक्षरों में बयान कर सकें, आज जो आप सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, भौगोलिक आज़ादी में जी रहे है वो लाखों शहीदों की शहादत पर पाई है, इसे सिर्फ हॉलिडे न समझे । आज 70 साल बाद जब हम आज़ादी की बात करते है तो हमें व्यवस्था के अंत में बैठे उस व्यक्ति बात करनी चाहिये जिसको हम आम आदमी या कॉमन मैन बोलते है, जो अशिक्षित, बेरोजगार, सुविधाहीन, सरकारी योजनाओं से अंजान है । हम उस तक कितना पहुँच पाये ? यही हमारी आज़ादी की समीक्षा है । इसे जानने के लिये आंकड़ो की जरूरत है जिसको हम आपके सामने रख रहे है :-

- वर्ल्ड बैंक के अनुसार 1.25 डॉलर ( 75 - 80 रुपये ) प्रतिदिन से कम कमाने वाले गरीबी रेखा से नीचे माने जाते है, इस हिसाब से देश के 21.9% लोग गरीब है ।  देश में एक साल में प्रति व्यक्ति आय 53,331 रुपये है ।


- Food and Agriculture Organization की रिपोर्ट के अनुसार 5 साल तक के 30.7% बच्चे अंडरवेट है, अगर इसे 20 साल तक के बच्चों पर देखा जाये तो ये आंकड़ा 22% तक है और 15% भारतीय कुपोषण से पीड़ित है ।

- देश में 12.6 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी में लगे है जो एक शर्मनाक सत्य है ।

- भारत उस लिस्ट में भी टॉप पर है जिसमें कहा गया है कि देश की 18 मिलियन आबादी को रहने, खाने की उचित सुविधा नही है या फिर यूँ कहें कि भारत में 18 मिलियन भिखारी है ।

- देश के 2 राज्यों में भी  आर्थिक असमानता है, देश के सबसे अधिक per capita वाले राज्य की प्रति व्यक्ति आय देश के सबसे कम per capita वाले राज्य से 3.2  गुना है ।
"Poverty rates in India’s poorest states are three to four times higher than those in the more advanced states. While India’s average annual per capita income was $1,410 in 2011 – placing it among the poorest of the world’s middle-income countries – it was just $436 in Uttar Pradesh (which has more people than Brazil) and only $294 in Bihar, one of India’s poorest states."
— World Bank: India Country Overview 2013

- अभी एक भारतीय की प्रति व्यक्ति आय 2110 डॉलर प्रतिवर्ष है जो कि अन्य पड़ोसी एशियाई देशों से कम है,खुश होने वाली बात ये है कि  पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान अभी भी हमसे पीछे है और दुःख की बात ये है कि श्रीलंका, फिलीपीन्स, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे देश हमसे आगे है जिनमें राजनीतिक स्थिरता की कमी है । दुनिया में 120 वें स्थान पर है 164 देशों में ।

-  40% युवा ही ग्रेजुएशन तक पढ़ पाते है, जिनमें भी सिर्फ 7% लोग ही ग्रेजुएशन से आगे की पढ़ाई कर पाते है, जबकि यूनिवर्सिटीज में लेक्चरर्स के 40% पद खाली पड़े है ।

- देश का 11.6% बजट सेना पर खर्च होता है जबकि शिक्षा पर सिर्फ 4%, जो किसी भी देश के लिये शर्मनाक होगा । इसमें वो बजट शामिल नहीं है जो होम मिनिस्टरी खर्च करती है, यदि उसको जोड़ दिया जाये तो ये आंकड़ा 17% तक पहुँच जायेगा ।

- Multy Dimensional Poverty Index ( MPI ) के अनुसार भारत में 55.4% लोग गरीबी रेखा से नीचे आते है,
-2015 तक के आंकड़ों के हिसाब से देश की GDP सेक्टर निम्न है -
Agriculture : 16.1%
Industry : 29.5%
Services: 54.4%
और इन पर आश्रित लोग
Agriculture : 49%
Industry : 20%
Services: 31%
इस लिहाज से जो क्षेत्र GDP में सबसे कम योगदान दे रहा है उस पर 49% आबादी आश्रित है और जो सबसे ज्यादा योगदान दे रहा है वो बमुश्किल 31% भी नहीं है, ये असमानता भी हमारे लिये शर्म का विषय है ।

 - सबसे बुरी हालत तो शिक्षा क्षेत्र की है जिसमें पिछली पंचवर्षीय योजना में 43,800 करोड़ का बजट रखा गया, जिसमें भी खर्च सिर्फ 28,800 करोड़ किये ।
जो कि देश की GDP का सिर्फ 3- 4% है, लेकिन बात करते है विश्वगुरु बनने की ।

-  भारत बच्चों में कुपोषण के मामले में विश्व के टॉप 20 देशों में शामिल है, जबकि यदि एशियाई देशों में देखें तो सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही हमसे पीछे है ।


- हम आज 70 साल बाद भी बंधुआ मजदूरों या गुलामों की लिस्ट में सबसे ऊपर है, नीचे दुनिया के 11 देश जिनमे सबसे ज्यादा गुलाम आज भी है -
1 भारत 1 करोड़ 43लाख
2 चीन 32 लाख
3 पाकिस्तान 1.13% आबादी यानि 21 लाख
4 उजेबकिस्तान 12 लाख
5 रूस 10लाख
6 नाइजीरिया 7लाख
7 इथोपिया 6लाख 51 हजार
8 थाईलैंड 4लाख 73 हजार
9 कांगो 4लाख 62 हजार
10 म्यांमार 3लाख 64 हजार
11 बांग्लादेश 3लाख 43 हजार

ये हमारे देश के वो आंकड़े है जिनपर हमें काम करने की जरूरत है, ये सिर्फ तथ्य है जिन्हें इसलिये बता रहा हूँ क्योंकि सरकारें अक्सर हमारी आँखों के सामने भ्रमजाल बून देती है जिनके पार हम देख नहीं पाते है । मेरा उद्देश्य देश की बेइज्जती या बदनामी जैसा नहीं है पर हमें हमारी कमियाँ मालूम होनी चाहिये । यदि आप देश से प्यार करते हो तो अपने नेताओं से सवाल करना सीखो, क्योंकि स्वस्थ लोकतंत्र में सवालों का होना बेहद जरूरी है ।

अंत में मुनव्वर राणा साहब का एक शेर -

हुकूमत मुँह - भराई के हुनर से खूब वाकिफ है,
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है ।


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