संघीय व्यवस्था में जाना कि हर भगवा पुरुष का पूरा जीवन हीनभावना में गुज़रता है, वो हर पढ़े-लिखे व्यक्ति को वामपंथी कहता है और उसे ऊपर से गाली देता है परंतु भीतर से admire करता है और उनके जैसा बनना चाहता है।
वह अपनी राजनैतिक विवश्ताओं के कारण कुतर्की व्यवहार त्याग नहीं सकता और अपनेआप को विरोधाभास के जंजाल में फंसा पाता है, इन्हीं कारणों से उसका जीवन दूसरों को भी अंधविश्वासी बनाने में लग जाता है क्योंकि अपनेआप को वैचारिक धरातल पर अकेले पाने से उसे ग्लानि होती है, वहीँ अधिक से अधिक लोगों को अपने जैसी अर्धनिन्द्रा की स्थिति में देख उसे कुछ राहत मिलती है।
गंभीर बात यह है कि यही लोग शिक्षण संस्थानों ( शिशु मन्दिर ) में घुस कर अगली पीढ़ी को भी अँधा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, इस प्रकार राष्ट्रविरोधी कार्य करते हुए भी वो स्वयं को राष्ट्रवादी कहलाते हैं।
Friday 3 July 2015
संघीय ( RSS ) व्यवस्था by Manish Dubey
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