Sunday 3 May 2015

कमजोर होता लोकतंत्र का चौथा खंभा

आज ट्विटर पर नेपाल में सुबह से ही #GoHomeIndianMedia ट्रेंड कर रहा था और उसके बाद भारत में तो #DontComeBackIndianMedia ‪#‎GetOutIndianMedia‬ भी यही ट्रेंड करने लगा, वैसे तो ट्विटर पर ट्रेंड आजकल बड़ी खबरों का आधार बनने लगा है पर आज का ट्विटर ट्रेंड उनपर था जो खुद खबर बनाते हैं । आज 3 मई को " अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस " भी था तो इस ट्रेंड की सार्थकता और बढ़ जाती है । तब तो और अधिक जब ये किसी दूसरे देश के लोग बोले वो भी ऐसे समय में जब वो देश उस समय की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा हो और भारतीय मीडिया उनसे बेतुके सवाल कर रही है । जब भारतीय मदद पहुँचाने के मामले में टॉप 14 देशों में नहीं हैं ( CNN की रिपोर्ट ) और राहत पहुँचाने वाले हेलीकॉप्टर्स में सैनिक कम पत्रकार ज्यादा दिखाई पड़ रहे हैं, तो ये गुस्सा तो लाजिमी है ।
इस विषय पर NDTV के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने लिखा  - ''नेपाल में ट्वीटर पर #GoHomeIndianMedia ट्रेंड तो कर ही रहा था और उसकी प्रतिक्रिया में भारत में भी ट्रेंड करने लगा है। मुझे इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी मगर कुछ तो था जो असहज कर रहा था। टीवी कम देखने की आदत के कारण मीडिया के कवरेज पर टिप्पणी करना तो ठीक नहीं रहेगा, लेकिन जितना भी देखा उससे यही लगा कि कई ख़बरों में सूचना देने की जगह प्रोपेगैंडा ज्यादा हो रहा है। ऐसा लग रहा था कि भूकंप भारत में आया है और वहां जो कुछ हो रहा है वो सिर्फ भारत ही कर रहा है। कई लोग यह सवाल करते थक गए कि भारत में जहां आया है वहां भारत नहीं है। उन जगहों की उन मंत्रियों के हैंडल पर फोटो ट्वीट नहीं है जो नेपाल से लौटने वाले हर जहाज़ की तस्वीर को रीट्विट कर रहे थे। फिर भी ट्वीटर के इस ट्रेंड को लेकर उत्साहित होने से पहले वही गलती नहीं करनी चाहिए जो मीडिया के कुछ हिस्से से हो गई है।''

Some Tweets are -
ट्विटर यूज़र ज्ञान लोहनी ‏ने ट्वीट किया, "भारतीय मीडिया की अनैतिक, तथ्यहीन और बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई जा रही ख़बरें स्वीकार्य नहीं हैं."
साजन राजभंडारी ने लिखा, "मुझे हैरानी है कि भारतीय अपने न्यूज़ चैनलों को रोज कैसे देखते हैं. मेरा सिर तो पाँच मिनट में ही चकरा गया."
अनुराग सक्सेना (‏@सक्सेनाअनुराग) ने ट्वीट किया, "भारतीय मीडिया और उसके लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं मानो वे कोई पारिवारिक धारावाहिक शूट करने आए हों."
नेहा (@नेहाआईपीएन) ने सवाल उठाया है कि भूकंप कवर करने गए पत्रकार पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी से उनका वेतन पूछते हैं, इसका क्या तुक है ?
रत्ना विश्वनाथन ने ट्वीट किया कि एक बड़े अंग्रेज़ी चैनल का रिपोर्टर एक महिला से पूछता है कि क्या उसका कोई मरा है, उसके हां कहने के बाद वह यह सवाल दस बार करता है ।
मीडियाक्रुक्स (@मीडियक्रुक्स) कहते हैं कि यह मरे हुए लोगों पर घटिया नाटक के अलावा कुछ नहीं है ।

वरिष्ठ पत्रकार अजित साही के अनुसार भारतीय मीडिया के गिरते स्तर के चार प्रमुख कारण हैं -
पहला, पत्रकारों को मिले विशेष क़ानूनी संरक्षण का पतन.
दूसरा, ख़बर की बजाए मुनाफ़े को प्राथमिकता.
तीसरा, समाचार संगठनों में उद्योगपतियों का निवेश. और
चौथा, पत्रकारों के निजी स्वार्थ.
आगे बताते हैं कि एक वक़्त था जब अख़बार का सालाना ख़र्चा कमोबेश बिक्री और विज्ञापन से निकल ही आता था, लेकिन टीवी चैनल लगाने और चलाने के विशाल ख़र्चे विज्ञापन से पूरे नहीं हो सकते थे. ऐसे में बड़े उद्योगपतियों ने धंधे में पूँजी लगाना शुरू किया.
इस तरह औद्योगिक व्यवस्था का प्यादा बन गए पत्रकार से निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की अपेक्षा बेतुकी और अनुचित है. वो पत्रकार नहीं "मीडियाकर्मी" है. उसका काम अख़बार की बिक्री और समाचार टीवी चैनल की रेटिंग बढ़ाना है.
और ऐसा भी नहीं कि आज पत्रकार इस उत्तरदायित्व से क़तराना चाहता है बल्कि हर पत्रकार आगे बढ़ कर मैनेजर की ज़िम्मेदार ओढ़ने की कामना रखता है. आख़िरकार धंधे में ऊपर चढ़ने की अब यही एक सीढ़ी है.

भारतीय मीडिया की ये हालत आज अचानक नहीं हुये हैं बल्कि पिछले 3-4 साल से मीडिया का स्तर दिन-ब-दिन गिरता ही जा रहा है, हाँ NDTV, News Nation, BBC जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और जनसत्ता, पत्रिका, HT जैसे प्रिंट मीडिया ने जरूर इसकी इज्जत बचा रखी है पर Z News, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़, आज तक जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और पंजाब केसरी, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण जैसे प्रिंट मीडिया ने पत्रकारिता का स्तर गिरा रखा है । अब बात करते हैं भारतीय मीडिया के गिरते स्तर की -
एक समय टाइम्स आफ इंडिया ग्रुप को चलाने वाले बेनेट कोलमेन एंड कंपनी के मालिकान अपने संपादकों से कहते थे कि भले ही उनके प्रकाशन घाटे में चलें लेकिन उनकी विश्वसनीयता और प्र्रमाणिकता पर कोई आंच नहीं आना चाहिए लेकिन उन्हीं की तीसरी पीढ़ी ने उन संपादकों की छुट्टी कर दी जो अखबार का रेवेन्यू नहीं बढ़ा पा रहे थे। आज संपादक की नौकरी का अस्तित्व टीआरपी या सर्कुलेशन से पूरी तरह जुड़ा हुआ है।
ग्वालियर की पुलिस ने एक घपलेबाज को ईनामी बदमाश घोषित कर रखा है... यानि इसकी खोज खबर देने वाले को पुलिस की ओर से 2000 रुपये का ईनाम दिया जाएगा.... इस आदमी पर अन्य तमाम गंभीर धाराओं के अलावा धोखाधड़ी यानि 420 का अपराध भी पंजीकृत है । ये अलग बात है कि एमपी की पुलिस इसे गिरफ्तार करना ही नहीं चाहती? वरना वो अब तक गिरफ्तार कर चुकी होती... बहरहाल पुलिस से बचने और उस पर रौब गांठने के लिए इस ईनामी बदमाश ने किसी की सलाह पर दिल्ली में एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल खरीद लिया । अब ये पैसे और चैनल की आड़ में सरकार को फिरंगी की तरह नचा रहा है
इसके अलावा कोल ब्लॉक घोटाले में " जी न्यूज़ -जिंदल स्टील ब्लैकमेल " केस के बारे में तो आपने सुना ही होगा ।
जी न्यूज और जी बिजनेस के एडिटर सुधीर चौधरी व समीर अहलूवालिया ने नवीन जिंदल से पैसे की मांग  अपने लिए नहीं, अपने आका सुभाष चंद्रा के लिए की जो जी ग्रुप के मालिक हैं. जिसमें फिर इन दोनों सम्पादकों को फिर जेल की हवा खानी पड़ी और आज फिर बेशर्मी से टीवी पर बिकाऊ खबरे बढ़ चढ़ कर दिखा रहे हैं ।
इसके अलावा पेट्रोगेट मामले में सैकिया और 2G घोटाले वाले मामले में नीरा राडिया ने जो लॉबिंग की वो मीडिया पर सबसे बड़े कलंकों में से एक है ।
ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही वो दिन भी आयेगा जब लोकतंत्र का ये चौथा खम्भा ढह जायेगा और हमें सोशल साइट्स को इसका विकल्प बनाना पड़ेगा 

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