Thursday 11 February 2016

देशभक्ति

( मैं आज कई बातें करना चाहूँगा जो अक्सर कर नहीं पाता हूँ । क्योंकि मैं भी खुद को बाकि भीड़ की तरह देशभक्त दिखना चाहता हूँ पर आज मैं पुरे होशो-हवाश में लिखना चाहता हूँ । )

R.I.P. Hanumanthappa sir,
कुछ समय बाद, हर शहीद की तरह आपकी शहादत भी भुला दी जायेगी । आप हमारे रोहित वेमुल्ला हो । क्योंकि रोहित संस्थानिक हत्या का और आप राजनैतिक हत्या का न तो पहला और न ही अंतिम उदाहरण हो लेकिन आपकी वजह से सवाल उठे हैं । इसलिये आप का स्थान थोड़ा अलग है पर हश्र आपकी शहादत का भी वही होना है । 4 दिन की मीडियाबाज़ी और कुछ सरकारी कारिंदो के 2 मिनट बाइट्स, इससे ज्यादा की उम्मीद रखना बेवकूफी होगी ।

पर आपकी शहादत कई सवाल छोड़ गयी है ।
पहला सवाल तो यही है कि आख़िरकार देशभक्ति क्या है ? किसी की मौत पर DP में तिरंगा लगा लेना ? देशभक्ति के 4 मेसेज भेजना ? या फिर कश्मीर को लेकर पाकिस्तान को गाली निकालना । हिन्दुओं में देशभक्ति मुसलमानों को गाली निकालने पर साबित की जाती है और मुस्लिमों में वंदे मातरम् या भारत माता की जय बोलकर देशभक्ति साबित की जाती है । यदि आप में भी इनमें से कोई गुण है तो माफ़ करना मेरी नजर में आप देशभक्त या यूँ कहें कि कथाकथित राष्ट्रवादी नहीं है ।
मेरी नजर में देशभक्ति आम आदमी की मुख्य समस्याओं पर बोलने को लेकर है, अगर आप रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, गरीबी और आतंकवाद को लेकर बात करते हो तो देशभक्त हो वरना मन्दबुद्धि या मनोरोगी से ज्यादा नहीं जिसे बार बार कश्मीर - मुसलमानों के दोरे आते हो । आतंकवाद एक छोटी सी समस्या है जिसको नेताओं और कथित देशभक्तों ( मन्दबुद्धि ) ने सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया है । इसकी आड़ लेकर कोई भी बच जाता है ।

अब बात करते हैं आँकड़ो की, जिनसे आपको थोड़ी समझने में आसानी हो जैसे सियाचीन पर सरकार आज तक लगभग 900 जवानों को मरवा चुकी है, वो भी बिना गोली खाये और वो गिनती से बाहर हैं जो वहाँ ड्यूटी के दौरान बीमार हो के बाद में मर गये । कारगिल में हमारे कुछ 550 जवान शहीद हुए थे । इस हिसाब से हम ढेढ़ कारगिल बिना गोली खाये ही लड़ चुके हैं । एक रोटी वहाँ यदि कोई जवान खाता है तो ₹200 रुपये की पड़ती है । रहने के लिये लाखों रुपयों के विशेष सूट दिए जाते हैं । सोने के लिये लाखों का एयरबैग, पानी पीने से पहले एक गोली डालनी पड़ती है पानी में ।

मेरे घर में भी 7 लोग फौज में हैं, जब कहीं भी किसी के मरने की खबर आती है तो अंदर डर सा लगता है । घरवालों का नाम नहीं मिलता तो क्षणिक ख़ुशी होती है, क्षणिक इसलिये क्योंकि मेरे घर का न सही किसी दूसरे का चिराग तो बुझा ही है ।  मन खिन्न हो जाता है, पर क्या करें दोष भी किसको दें ? पाक आर्मी के उन जवानों को; जो हमारे जवानों की भाँति किसी कॉर्पोरेट घराने की सरकार की हठी पर मरते हैं या मारते हैं । नहीं, कभी नहीं । क्योंकि उनके तो हाल हमसे भी फटेहाल हैं । 2 साल पहले ही उनके 129 जवान बर्फ में दबके शहीद हो गये ।

मेरा गुस्सा मेरी सरकार ( चाहे वो मेरे वोट से बनी हो या न बनी हो ) से है । जब मुझे ये पता चला कि पाकिस्तान ने आगे चलकर भारत सरकार को कहा है कि वहाँ से दोनों देशों द्वारा सेना हटा ली जाये । यही नहीं, इस मुद्दे को पाकिस्तान UN तक भी लेकर गया है पर अफ़सोस हमारी सरकार मामले को पेचीदा बनाये रखने पर आमदा है । कल भी पाक के भारत में उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कहा " अब दोनों देशों को बैठकर निर्णय करना चाहिये कि आगे ऐसे कोई और हनुमन्थप्पा शहीद न हो, हम सेना हटाने की अपील करते हैं ।" पर हमारी सरकार की तरफ से इस तरह के किसी भी बयान की आहट अभी तक सुनाई नहीं दी ।

क्या वो इतना भी नहीं कर सकती कि तीनों देश बैठ के आराम से इस मसले को सुलझा ले । कर सकती है पर नहीं करती, क्योंकि उनको पता है, चाहे एक जवान मरे पर पुरे देश में के  सब सवालों को अपनी चिता में कुछ दिनों के लिये तो समेट ही लेगा । इस तरह सरकारों का काम हम आज तक निकालते आये हैं और निकालते रहेंगे । जहाँ हमें सबसे ज्यादा सवाल करने चाहिये वहीं हम सबसे पहले चुप हो जाते हैं । हम जैसे सैनिक परिवारों के लोग सवाल उठाते हैं पर हमें तुरंत  देशद्रोही बोलकर चुप करा दिया जाता है । और ये चुप कराने वाले वे लोग हैं जिनकी 7 पीढ़ियों का भी फौज से कोई वास्ता न पड़ा हो । ये वही लोग हैं जो आपको बात बात पर पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं । क्योंकि इनकी देशभक्ति किसी शहीद की चिता से उबाल मारती है ।  क्योंकि इनका सवाल रोटी, कपड़ा और मकान नहीं हैं । इस जमात को जब तक कश्मीर नहीं दिखाया जाता तब तक इनकी देशभक्ति किसी कोने में निर्जीव सी पड़ी होती है पर कश्मीर आते ही इनकी देशभक्ति फड़फड़ाने लगती है । ये ही लोग हल्ला मचाने में सबसे आगे हैं ।

देशभक्ति के नाम पर बनाई जा रही हवा को मैं कुछ उदाहरणों से हवा करना चाहूँगा, जैसे सबसे पहले बाबा ( बनिया ) रामदेव का उदाहरण देता हूँ । जैसे ही हनुमन्थप्पा सर की बॉडी बाहर निकाली और पता चला कि कुछ साँसे बाकि है तो बोले " ये योग का कमाल है, आप भी कीजिये । "
ये रामदेव जैसे उसी बाजार के हिस्सा हैं जो किसी हनुमन्थप्पा के जिंदा बर्फ से निकलने को अपने किसी #उत्पाद का कमाल बताते हैं । पर उनका हक़ जायज है क्योंकि हम लोग ही उनकी बात को और अधिक मजबूती से रखते हैं ।

दूसरा उदाहरण है नेता जी का, जो इस प्रकार है -
कुछ दिन पहले की बात है जब एक फाइटर प्लेन क्रैश में एक पायलट की मौत हो गयी थी तो उस शहीद की बेटी ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी से पूछा था " जब प्लेन नकारा हैं तो इनको हटाते क्यों नही ? हर बार हम ही क्यों मरते हैं ? हर बार इसका शिकार एक सैनिक ही क्यों होता है ? " गृहमंत्री ने निकलने में भलाई समझी बजाय किसी निर्णय के ।

अंतिम है बेवकूफी में निकली सच्चाई का । कुछ दिन पहले जब झुंझुनू में केंद्रीय मंत्री ने बयान दिया " जहाँ बेरोजगारी होती है वहाँ के लोगों का फौज में रुझान ज्यादा होता है । "
लोगों ने खूब आपतियां की पर मुझे बिल्कुल भी खामी नजर नहीं आई । जिनको नजर आई वो या तो फौजी परिवारों से अंजान हैं या फिर दिखावा कर रहे हैं । सबको पता है फौज में जाने वाले किसान या मजदूर परिवारों से होते हैं, हनुमन्थप्पा का उदाहरण ही ले लो, चौथी बार में जाकर सेना में भर्ती हो पाये थे । 6km दूर स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे । घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी । घरवालों को पता था कि गोली कभी भी सीने से आर पार हो सकती है, फिर भी हँसते हँसते विदा करते थे । क्यों ?  क्योंकि पेट भरना भी जरूरी है । बहकावे की दूनिया से बाहर निकलिये, हकीकत में आइये । मैं खुले तौर पर स्वीकार करता हूँ कि मुझे उस सरकार पर जरा सा भी विस्वास नहीं जो गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आतंकवाद जैसी मुख्य समस्याओं पर बात नहीं करती है ।  देशभक्ति लोकतंत्र में हक़ मारने का नया हथियार बन गया है । 
अब सवाल करने का समय है, भावनाओं में बहने का नहीं । सरकार के खजाने को देश का भिखारी भी टैक्स से भरता है, सवाल करना हक़ है, तो जमके सवाल कीजिये





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