Wednesday 8 April 2015

" आप " से ये उम्मीद न थी

किसी महापुरुष ने कहा था कि अच्छे लोग एक जगह नहीं टिक सकते क्योंकि उनमे लालच नहीं होता है लेकिन बुरे लोग एक जगह टिक जाते हैं क्योंकि उनको लालच एक जगह बांधे रखता है और यही बात आज के दौर में आम आदमी पार्टी पर सटीक लगती है । आज सर्वश्री प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, प्रो. आनन्द कुमार का रास्ता अलग और अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय का रास्ता अलग होने को है । एक ग्रुप उन आदर्श, विचारों के रास्ते पर चलना चाहता  हैं तो दूसरा ग्रुप व्यावहारिकता के रास्ते पर चलना चाहता हैं, पर इस आदर्श और व्यावहारिकता की लड़ाई में मेरे जैसे हजारों वालंटियर्स आज दौराहे पर खड़े हैं, कि जायें तो जायें किधर ?

इस यक्ष प्रश्न को समझने के लिये हमें थोड़ी देर के लिये फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा

अप्रैल 2011 में जब जनलोकपाल आंदोलन शुरू हुआ तब से अरविन्द और प्रशांत जी को देखता आ रहा हूँ, मुझे दोनों ही बहुत प्रेरित करते हैं और करते रहेंगे क्योंकि दोनों अपने अपने क्षेत्रों के धुरंधर हैं, पहला उस आदमी के लिये संघर्ष करता है जिसने सरकारी योजनायें सिर्फ नेताओं के लुभावने भाषणों में ही सुनी हैं लेकिन लाभ नहीं उठा पाया है और दूसरा उस न्यायिक व्यवस्था में एक आशा की लौ जलाता है जहाँ कई पीढीयाँ कोर्ट के चक्कर काटती हुई शमशान में राख हो गयी लेकिन उन्हें इंसाफ नसीब नहीं हुआ ।

जब अगस्त 2012 में अन्ना जी ने एक राजनैतिक विकल्प देने के साथ आंदोलन समाप्ति की घोषणा की तो उस विकल्प का संविधान बनाने का जिम्मा प्रसिद्ध समाजवादी श्री योगेन्द्र यादव को दिया गया और 26 नवंबर को जब पार्टी की विधिवत घोषणा की गई तो सर्वश्री अरविन्द केजरीवाल, योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण इस पार्टी के प्रमुख चेहरे बने । मुझ जैसे नौसिखिये को भी ये लगा कि अपने क्षेत्रों के 3 धुरंधर जब हमें नेतृत्व देने को तैयार हैं तो हमें भी भ्र्ष्टाचार की इस लड़ाई में जितना हो सके उतना सहयोग देना चाहिये और दिया भी । दिल्ली में दोनों बार हुये विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिये एक वालंटियर के रूप में सेवा दी और राजस्थान में हुये लोकसभा चुनावों में भी पूरी जी जान से सेवा दी । लोकसभा चुनाव में हम हार गये थे, हमारे लगभग 400 उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गयी थी लेकिन फिर भी डेढ़ साल पुरानी राजनैतिक पार्टी के तौर पर 4 सीट जीतकर अच्छी शुरुआत की थी ।
इसके बाद हमें जगह जगह यही सुनने को मिला कि प्रधानमन्त्री बनने चले थे भगोड़े कहीं के , ये अपमान का घूँट पीकर हमने जैसे तैसे 10 फरवरी,2015 की सुबह तक दिन काटे लेकिन हमारे लिए 10 फरवरी वो दिन था जब हम सीना ठोकके कह कह रहे थे सच्चाई हारती नहीं है, हाँ उसे जीतने में कुछ वक्त लग सकता है पर हारती नहीं है । वो दिन शायद आप के  वालंटियर्स का सबसे सुकून वाला दिन था ।

लेकिन उसके बाद जो हुआ वो सब उस सुकून को तार तार करने वाला था । पार्टी में दोनों ग्रुप एक दूसरे पर नीचा दिखाने के लिए अनर्गल आरोप लगाने लगे जैसे केजरीवाल ग्रुप कहने लगा कि YY, PB अरविन्द को हटाकर खुद पार्टी संयोजक बनना चाहते हैं और दूसरे खेमे का ये आरोप था कि पार्टी में स्वराज और लोकतन्त्र नहीं है । दोनों तरफ से जो आरोप लगे थे वो बेबुनियाद थे और इन सब के बीच में पीस रहे हैं सेवाभावी वालंटियर्स लेकिन असलियत क्या है ये बहुत कम वालंटियर्स जानते हैं, आज हम बताते हैं असलियत

आरोप और सच्चाई

आरोप - केजरीवाल को YY और PB संयोजक पद से हटाकर खुद काबिज होना चाहते हैं
सच्चाई - ये कोई मुद्दा ही नहीं है असलियत में, इसे तो सिर्फ बचाव के लिए बोला जा रहा है केजरीवाल खेमे द्वारा

आरोप - योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और शांति भूषण पार्टी को हराना चाहते थे
सच्चाई - ये आरोप सही है, क्योंकि शांति भूषण केजरीवाल से नाराज थे 12 mla को टिकट देने के मुद्दे पर और वो और उनके पुत्र प्रशांत भूषण पार्टी को हराना चाहते थे जिससे अरविन्द का दिमाग ठिकाने आये ( SB की भाषा में ), ये चाहते थे की पार्टी हारे लेकिन बुरी तरह से नहीं 20 - 25 सीट आ जाये जिससे पार्टी खत्म भी न हो और अरविन्द का दिमाग भी ठिकाने आ जाये । इसका एक अन्य सबूत है, मैं जिस असेंबली (रोहतास नगर ) में वालंटियरशिप कर रहा था उसमें YY और PB की जनसभा थी और उसमें दोनों ही नहीं आये थे ।

आरोप - पार्टी में अरविन्द की तानाशाही है और टिकट दूसरी पार्टियों से आये हुये लोगों को दिये गये हैं
सच्चाई - लोकसभा चुनावों में 400+ सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला अरविन्द के न चाहते हुये YY द्वारा लिया गया था, अरविन्द तो कुछ चुनिंदा सीटों पर ही लड़ना चाहते थे । और लोकसभा चुनाव में सभी ( YY और PB भी ) ने मिलकर टिकट बाँटे थे जिनमे बहुत से उम्मीदवार दूसरी पार्टियों से आये हुये थे

आरोप - पार्टी फण्ड में अनियमितता
सच्चाई - जिस 2 करोड़ के चंदे की बात YY और PB कर रहे हैं उसमें पार्टी की तरफ से कोई गलती नही की गयी थी, पार्टी जो चीजें देखती है वो पूरी तरह से सही थी जैसे कंपनी का रजिस्ट्रेशन न., पैन न. आदि

आरोप - 12 उम्मीदवार दागी थे
सच्चाई - सभी उम्मीदवारों की लोकपाल एडमिरल रामदास द्वारा जाँच करवाई गयी थी जिनमे दो के खिलाफ सबूत पाया गया जिसके बाद दोनों की टिकट बदल दी गयी । पालम से भावना गौड़ पर आरोप था कि उन्होंने मकान पर कब्जा किया हुआ है लेकिन वो उनके पिताजी के द्वारा किया हुआ था जो बाद में रजामन्दी से निपट गया था । हालाँकि भावना गौड़ ने अपने पिता से खुद को 10 साल पहले ही अलग कर लिया था

आरोप - महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड और जम्मू-कश्मीर में पार्टी के चुनाव लड़ने का मुद्दा
सच्चाई - YY चाहते थे कि यहाँ चुनाव लड़े जायें और अरविंद नहीं चाहते थे । अरविन्द का मत था कि हमारी इन राज्यों में अभी तक बूथ लेवल कमिटियाँ नहीं बनी है तो बिना सन्गठन के चुनाव नहीं लड़ा जाना चाहिये ।

आरोप - NE की 28 मार्च की मीटिंग में बाहरी बाउंसर मौजूद थे, जिन्होंने मारपिट और धक्का मुक्की की
सच्चाई - NE में बाहर से बुलाया हुआ कोई भी बाउंसर नहीं था, सभी पार्टी वालंटियर्स ही थे, जो सभी मीटिंग्स में व्यवस्था बनाये रखने के लिये लगाये जाते हैं । मीटिंग में कोई भी मारपीट की घटना नहीं हुयी थी ।

आरोप - पार्टी में आंतरिक लोकतन्त्र और स्वराज नहीं है
सच्चाई - हाँ, इस आरोप में सच्चाई है, कुछ उदा. हैं, जैसे
* जब कभी भी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ किसी ने कुछ बोला तो बजाय उसको सुनने के, पार्टी से बाहर कर दिया गया जैसे प्रो. आनन्द कुमार ।
* 28 मार्च को हुई बैठक में YY और PB को अपनी बात रखने का मौका न दिया जाना ।
* 28 की बैठक बाद जिसने भी YY और PB का समर्थन किया उसको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जो आंतरिक लोकतन्त्र की हत्या है ।
* इस बैठक के बाद की जो कारवाई पार्टी वालंटियर्स पर हुई हैं वो जरूर इस बात की पुष्टि करती हैं ।

जिस तरह से अरविन्द ने इस मुद्दे को हैंडल किया है उससे लगता है कि ये मुद्दा इतना बड़ा था नहीं जितना कि बना दिया गया है, बातचीत से सुलझ सकता था लेकिन नहीं सुलझाया गया क्योंकि दोनों पक्षों द्वारा इसे अहम की लड़ाई बना लिया गया ।
              अब यही प्रार्थना है पार्टी प्रमुखों से कि इस बीच किसी पार्टी के वालंटियर के सपनों की मौत न हो जाये । सबसे बुरा होता है किसी के सपनों का मर जाना ।
अंत में इतना ही कहूँगा कि कहीं इस व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ते लड़ते हम ही न बदल जाये और एक बार फिर बदलाव की बात हास्यापद न हो जाने जाये ,,, जय हिन्द

4 comments:

  1. वाह भाई
    एकदम सच लिखा है

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  2. धन्यवाद मित्र, हौसला अफजाई के लिये

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  3. आपने सच को बहुत सही बयान किया है । पहली बार पूर्णतया पक्षपात रहित पोस्ट देख रहा । धन्यवाद् ।

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  4. मैंने हर एक का पक्ष देखा और रखने की कोशिश की है यहाँ ... कोई कहीं छूट गया हो तो क्षमा करें ... धन्यवाद

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