Wednesday 25 July 2018

Bandit Queen : फूलनदेवी


आपको फूलन देवी याद है ? नहीं न !
चलिये मैं बताता हूँ । उसके बारे में सबसे प्रचलित शब्द है "बैंडिट क्वीन" या चंबल की रानी ।
यह कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसने ताजिंदगी संघर्ष किया, और उस संघर्ष में जीती भी । पर आज ही की तारीख को 17 साल पहले एक जंग हार गई,  25 जुलाई 2001 को शेरसिंह राणा नाम के स्वयंभू उच्च जाति के रक्षक ने इनकी गोली मारकर हत्या कर दी ।
चलिये अब आपको थोड़ा पीछे ले चलता हूँ, 10 अगस्त 1963 को यूपी में जालौन के 'घूरा का पुरवा' गांव में फूलन का जन्म हुआ था । लाख विरोध के बावजूद 11 साल की उम्र में फूलन देवी को गांव से बाहर भेजने के लिए उसके चाचा मायादिन ने फूलन की शादी एक अधेड़ आदमी पुट्टी लाल से करवा दी । और 11 साल की छोटी सी उम्र में फूलन ब्याहकर फूलन देवी बन चुकी थी । यहीं से फूलन के संघर्ष के दिन शुरू हो गए थे । शादी के समय फूलन नाबालिग थी पर पति ने अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिये अबला फूलन की जिंदगी नर्क बना दी । ससुराल में फूलन से उसका पति रोज बलात्कार करता, इससे फूलन बीमार पड़ गयी और अपने पीहर लौट आई । यहां उसने अपने परिवार के साथ मजदूरी करना शुरू कर दिया। यहीं से फूलन के विद्रोही स्वभाव का पहला नजारा देखने को मिला । एक बार एक आदमी ने फूलन को मकान बनाने में की गई मजदूरी का मेहनताना देने से मना कर दिया, तो उसने रात को उस आदमी के मकान को ही कचरे के ढेर में बदल दिया ।
पीछे से उसके पति ने दूसरी शादी कर ली तो फूलन ने भी सामाजिक तानों से परेशान होकर डाकु बाबू गुज्जर के गिरोह में शामिल हो गयी । गिरोह के सरदार बाबू गुज्जर और दूसरे डाकू विक्रम मल्लाह दोनों फूलन को पसंद करते थे पर फूलन विक्रम मल्लाह को पसंद करती थी । इस बात पर उन दोनों में तनातनी हुई जिसमें विक्रम मल्लाह, बाबू गुज्जर को मारकर गिरोह का सरदार बन गया और फूलन ने विक्रम के साथ एक बार फिर से गृहस्थ जीवन की शुरुआत की ।
फूलन अपने घावों को भूलने वालों में से नहीं थी, इसलिये उसने फैसला किया कि उसका जीवन नारकीय बनाने वाले अपने पहले पति से बदला लेगी और चल पड़ी अपने गिरोह के साथ अपने पुराने ससुराल । वहाँ पहुँचकर उसने अपने पुराने पति से मिले घावों का बदला लिया ।
इसी दौरान ठाकुर गिरोह के सरगना श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर, जो बाबू गुज्जर से हमदर्दी रखते थे, इस बात से नाराज थे कि कैसे कोई छोटी जाति का आदमी उस गिरोह का सरदार बन गया । ठाकुर गिरोह के नजर में इस पूरे वाकये की जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ फूलन थी ।
इसी बीच एक दिन ठाकुर गिरोह ने मौका पाकर रात को सोते हुए विक्रम मल्‍लाह को मारकर फूलन को उठा कर बेहमई गाँव ले जाया गया ।
वहाँ कुसुम ठाकुर नामक औरत ने उसके कपड़े फाड़े और गाँव के आदमियों के सामने नंगा छोड़ दिया । ठाकुर गिरोह उसे नग्न अवस्था में रस्सियों से बांधकर पूरे बेहमई गांव में नंगा घुमाया । उसके बाद सबसे पहले ठाकुर गिरोह के सरगना श्रीराम ठाकुर ने उसके साथ बलात्कार किया । फिर बारी-बारी से गांव के लोगों ने उसकी इज्जत लूटी, उसे बालों से पकड़कर खींचा, लाठियों से पीटा । करीब दो सप्‍ताह से अधिक समय तक फूलन को नग्‍न अवस्‍था में बेहमई में बंधक बनाकर रखा । इस दौरान उसके साथ रोज तब तक सामूहिक बलात्कार किया जाता जब तक वह बेहोश नहीं हो जाती । वहाँ से छूटने के बाद फूलन न्याय के लिए दर-दर भटकती रही लेकिन कहीं से न्याय न मिलने पर फूलन ने बंदूक उठाने का फैसला किया और वो डकैत बन गई ।
14 फरवरी, 1981 को फूलन फिर अपने घावों को भरने बहमई गांव लौटी, और वहाँ उसे 2 ठाकुर मिले जिन्होंने उसके साथ बलात्कार किया था । उसने उन दोनों समेत 22 ठाकुरों को गांव के बीच में एक साथ खड़ा कर गोलियों से भून दिया ।
उस समय फूलन की उम्र करीब 18 साल की थी ।
इस पूरे प्रकरण के बाद से फूलन "बैंडिट क्वीन" के नाम से पूरे देश की मीडिया में छा गयी ।
ठाकुरों से उसकी दुश्मनी थी इसलिए उन्हें अपनी जान का ख़तरा हमेशा महसूस होता था । चंबल के बीहड़ों में पुलिस और ठाकुरों से बचते-बचते वह थक गईं थीं इसलिए तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से 1983 में फूलन देवी से सरेंडर करने की सलाह को फूलन ने मान लिया । पर आत्मसमर्पण को लेकर फूलन में मन में शक था कि यूपी पुलिस आत्मसमर्पण के बाद मेरी व मेरे साथियों की हत्या कर देगी इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण से पहले 3 प्रमुख शर्तें रखी -
1. मध्य प्रदेश सरकार के सामने हथियार डालेगी ।
2. उसे या उसके सभी साथियों को मृत्युदंड नहीं देने की थी ।
3. उसके गैंग के सभी लोगों को 8 साल से अधिक की सजा न दी जाए ।
सरकार की पहल पर भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी और फूलन में कई दौर की बात चली और सभी शर्तें मानने के बाद फूलन आत्मसमर्पण को राजी हो गई । मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले और उस समय उन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के मामले थे । उस समय फूलन की एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ जमा थी ।
फूलन को बिना सज़ा सुने 11 साल जेल में रहना पड़ा । मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया और 1994 में फूलन जेल से छूट गई । जेल से छूटने के बाद उम्मेद सिंह से फूलन ने शादी की और राजनीति में कदम रखा ।
1996 में फूलन देवी ने मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीतकर सांसद बनी । चम्बल में घूमने वाली फूलन अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले नम्बर 44 में रहने लगी । 1998 के आम चुनावों में हार गई पर 1 साल बाद 1999 में फिर वहीं से जीत गईं ।
25 जुलाई 2001 को शेरसिंह राणा नाम का बैंक चोर विक्की, शेखर, राजबीर, उमा कश्यप, उसके पति विजय कुमार कश्यप के साथ दो मारूति कारों से दिल्ली आया और फूलन के घर के बाहर फूलन के संसद से घर लौटने का इंतजार कर रहा था । फूलन के गाड़ी से उतरते ही राणा ने उनके सिर में गोली मारी जबकि विक्की ने उनके पेट में कई गोलियां उतार दी ।
पुलिस के आरोप-पत्र के मुताबिक, बाद में राणा ने जमीन पर गिर चुकी फूलन पर अंधाधुंध गोलियों की बरसात कर दी । और उस दिन फूलन अपने जिंदगी के संघर्ष से हार गई ।
फूलन किसी के लिये कानून की गुनाहगार थी तो कइयों का लिये जिंदगी की हर तकलीफ से लड़कर जीने का जज्बा । फूलन कुछ भी रही हो पर उसने कभी झुककर जीना नहीं सीखा । और उन लाखों बलात्कार पीड़िताओं के लिये एक सीख थी जो बलात्कार के बाद खुद को जमाने के सामने असहाय मान लेती है । जिंदगी में इतनी कठिनाइयों के बाद भी खुलकर जीने का सलीका किसी से सीख सकते है तो वो सिर्फ फूलन देवी ही है ।

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