Thursday 5 May 2016

मैं और कम्युनिज्म

आज महान दार्शनिक कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है ( फोटो में उनकी लंदन के हाइड पार्क में स्थित कब्र । इस पर ऊपर ये शब्द लिखे हैं – दुनिया के मज़दूरों एक हो ! और नीचे लिखे हैं मार्क्स के प्रिय शब्द – दार्शनिकों ने दुनिया की तरह-तरह से व्याख्या की है, पर असली सवाल तो उसे बदलने का है! )

इस बहाने लगे हाथ अपनी भी बात कर लेते हैं । अपने साथ भी इनका थोडा कनेक्शन है तो उस पर भी बात कर लेते हैं । लोग बोलते हैं कि रहन-सहन, बात-विचार से तुम भी कॉमरेड हो । पर कम्युनिस्ट बोलते हैं तुम अवसरवादी हो या तुम पक्के कॉमरेड नहीं हो या लचीले या समझौतावादी कम्युनिस्ट हो । हो सकता है मैं उतना खाँटी कम्युनिस्ट नहीं हूँ जितने कि आप हैं । और न मैं खुद को कम्युनिस्ट कहता हूँ, मैं खुद को मानवतावादी कहलाना ज्यादा पसन्द करता हूँ बजाय कम्युनिस्ट के । अभी कुछ दिन पहले कन्हैया का न्यूज़ लॉण्ड्री को दिया इंटरव्यू देख रहा था, उसमें उसने 1 बात कही थी कि #Communism_is_highest_form_of_Humanism इस हिसाब से कोई मुझे कॉमरेड बोलता है तो ठीक है बाकि मुझे थोड़ा अजीब लगता है ।
मैं तो एक बात पूछता हूँ आप कम्युनिस्टों से कि क्या कम्युनिस्ट होना मानवतावादी होने से भी बड़ा है ?
जैसे कि कम्युनिस्ट सोच के 3 केंद्रीय बिंदु हैं

1. बाजार पर पूँजीपतियों का नियंत्रण हटाकर सरकारी नियंत्रण, मतलब बाजार का सरकारी मशीनरी द्वारा कंट्रोल
2. कोई काम करे या न करे पर सबको समान संसाधन वितरण यानि कि एक मनुष्य को एक इकाई मानना, ऊँच-नीच रहित समाज
3. सर्वहारा वर्ग ( मजदूरों ) का बुर्जुआ ( कम या ज्यादा अमीरों ) वर्ग पर तानाशाही आदि आदि ।

हाँ ठीक है, सहमत हूँ आपके पहले 2 बिंदुओं से कि पूँजीवाद / बाज़ारवाद ग़रीबो का हक़ मारता है । अमीर लोग गरीबों के हिस्से के संसाधन का बेतरतीब तरीके से उपभोग करते हैं । सहमत हूँ आपकी दोनों बातों से पर मेरा आपसे विरोध तीसरी बात को लेकर है जिसमें आप तानाशाही की बात करते हो । कम्युनिस्टों की सोच है कि ऐसे समाज का निर्माण सिर्फ हिंसा से होते हुये तानाशाही से ही लाया जा सकता है ।
तो क्या आपको तानाशाही में कहीं से भी मानवता की किरण नजर आती है कॉमरेड ? आती है तो मुझे बतायें कि कैसे ? और कहाँ आई ?
कॉमरेड भगत सिंह ने कहा था कि " हिंसा आखिरी रास्ता होना चाहिये, न कि पहला ।"

खाँटी कम्युनिस्ट क्या होते हैं ? और कैसे होते हैं ? मुझे नहीं पता । मैंने तो जिन कम्युनिस्टों को पढ़ा है पर उनमें कुछ खास नजर नहीं आया सिर्फ Ideological बातों के और आस पास जो देखें हैं उनके बारे में तो कुछ न कहूँ तो अच्छा है क्योंकि वो तो मुझ जैसे समझौतावादी से भी गये गुजरे हैं ।
एक बात पर और विरोध है आपसे कि आप धर्मों को इन सब में रोड़ा मानते हो । मैं भी मानता हूँ कि धर्म, मानव समाज को बाँटने और उनके मूल अधिकारों से वंचित रखने का ब्राह्मणवादी ताक़तों का एक तरीका है ।
आप उन धार्मिक आसमानी किताबों का भी विरोध करते हो पर आप ये खुद पर लागु क्यों नहीं करते ।
जैसा कि मार्क्स के विचारों ( #Communist_Manifesto ) को मानने वाले मार्क्सवादी कहलाये, और आज से 200 साल पहले लिखी उनकी किताब की बातों का आप रट्टा लगाये घूमते हो और बाकियों को आप जहर बताते हो । आप भी सोचिये कि 200 साल पहले की परिस्थितियों में लिखा गया दर्शन आज के समय में कितना असरकारक है ? क्या उसमें समय के साथ बदलाव की जरूरत नहीं है ? है तो आप कितने बदले ? और कितना बदलने को तैयार हो ? आपकी ये दलील कि लेनिन, स्टालिन, माओ आदि कम्युनिज्म के निखरे हुये रूप हैं, मैं नहीं मानता । ये सब अपने समय-काल, परिस्थिति आदि के हिसाब से बने बिगड़े हैं । इसलिये इनको कम्युनिज्म में बदलाव की बयार में शामिल करने जैसा कुतर्क न दें ।
हाँ, अंत में एक बात और कॉमरेड, आप बोलते हैं कि फलां विचार बुरा है और वो आपको बुरा बताते हैं । आप विरोधी विचारों को खत्म करने की वकालत करते हैं पर आप ये कैसे भूल जाते हो कि ये आपको जड़ता की तरफ ले जा रहा है और आप हैं कि ख़ुशी - ख़ुशी इसकी गिरफ्त में आये जा रहे है और इसपर गर्व भी करते हैं । कॉमरेड भगतसिंह ने कहा था " पुरानी धारणाओं को तोड़ दीजिये ।"
सवाल है कि आपने कितनी तोड़ी ?

नोट : यहाँ मैं ये नहीं कहता कि मैं ही सर्वज्ञाता हूँ या मेरी सोच ही सबसे सही है या मेरा रास्ता सबसे सटीक है । यदि मैं भी यही मानने लगा तो निश्चित ही मैं भी जड़ हूँ । मेरा यही मानना है कि व्यक्ति को जड़ न होकर प्रगतिशील होना चाहिये, सर्वश्रेष्ठ का भाव नहीं आना चाहिये और समय के साथ जरूरत के अनुसार विचारों में बदलाव आते रहने चाहिये जिससे कहीं भी जड़ता न आये । 

3 comments:

  1. एक दर्शन के प्रति कही गई दार्शनिक बातें अच्छी लगी

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