Wednesday 19 August 2015

लोकतंत्र की बोली

पिछले 2 दिन की खबरें पढ़के बड़ा अजीब लग रहा है, जैसे हम लोकतंत्र में नहीं बल्कि तानाशाही में जी रहे हैं । जैसे पहली खबर है बिहार को चुनावों से पहले मिले पैकेज की
मेरे पापा जब मैं पढ़ने के लिये अपनी जयपुर में कोचिंग आता हूँ तब मेरे खर्चे के लिये अपनी मेहनत से कमाये पैसे मुझे देते हैं तो पूछते हैं कि कितने दूँ ?
मै बोलता हूँ 7 बहुत है,
पापा बोलते हैं वो कपड़े लेने थे न ?
8 दे दो, इसमें चल जायेगा
9 दे दूँ, फिर मत बोलना कि कम पड़ गये । चाहे तो हजार और ले ले और शर्म आ रही है तो बाद में बोल देना अकाउंट में डलवा दूँगा ।
( ये तो हुई एक नॉर्मल बातचीत जो एक स्टूडेंट बेटे और उसके पिता के बीच का वार्तालाप है )
और यही तरीका मोदी का था बिहार वालों के सामने ... 60 दूँ, 70 दूँ, 90 दूँ । बोलो कितना दूँ ? ऐसे लग रहा था कि कोई लोकतन्त्र की बोली लगा रहा हो और हमारी भोली-भाली जनता ऐसे खुश हो रही जैसे वो अपनी जेब से दे रहा हो । बेवकूफों, ये हमारे टैक्स के पैसे से हमको भिखारी साबित करने पे तुला है । अरे PM है तो देश का काम सम्भालने के लिये है, हमें भिखारी बनाने के लिए नहीं है । वो हमारा पैसा था, जो हम पर ही खर्च होना है, तो इसमें इतने अहसान वाले तरीके से क्यों पूछ रहा है वो ।
एक बात और कहना चाहूँगा कि ये पैकेज अभी 
मिल जाये तब तो ठीक है फिर तो तभी मिलेगा जब बीजेपी जीतेगी वरना हार गए तो अमित शाह जी बोलेंगे कि " कालाधन की तरह ये भी एक चुनावी जुमला मात्र था ।"


दूसरी खबर भी इन्हीं महोदय से जुड़ी है, जो है विदेशों में जाकर ये बोलना कि पिछली सरकारों ने हमारे लिये विरासत में खड्डे छोड़े हैं जो मैं भर रहा हूँ ।
जब पिछली सरकारों ने गड्ढे ही छोड़े थे तो ये देश विश्व की टॉप 10 अर्थव्यवस्था वाले देशों में कैसे शुमार हो गया ? चाँद पर जाने वाले चन्द देशों में कैसे आया ? 1971 में परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों में कैसे शामिल हुआ ? विश्व की बड़ी GDP वाले देशों में कैसे शामिल हुआ ?
प्रिय मोदीजी, ये सब आपके दिए लच्छेदार भाषणों से हासिल नहीं हुआ है । ये विदेशों में जाकर अपने देश की बेइज्जती करना बन्द करो । घर का मामला घर में सुलझाना ही उसके मालिक का फर्ज होता है जिसमें आप बुरी तरह से नाकाम तो रहे ही हो, उल्टा इसका प्रचार प्रसार भी कर रहे हो ।
तीसरी खबर थी जंतर मंतर पर 60 दिन से शांतिपूर्ण  प्रदर्शन कर रहे पूर्व सैनिकों पर लाठीचार्ज की, बजाय समस्या को हल करने के उल्टा बढ़ा रहे है । पिछली यूपीए सरकार ने वन रैंक, वन पेंशन के लिये 1000 करोड़ रूपये आवंटित कर दिये थे तो अब इसे लागू करने के लिये इतनी आना कानी क्यों ? और लाठीचार्ज क्यों ? वो भी उन लोगों पर जिसने आपके लिये अपनी सारी जवानी सीमा पर निकाल दी । दिल्ली में एक पूर्व सैनिक ने आपके बारे में जो कहा, वो लिख रहा हूँ " जब विपक्ष में थे तब बोलते थे कि PM करना नहीं चाहता, कमजोर है । मैं बनते ही लागू करूँगा । भाई .... ऐसा है तो ज्ञान मत दो, फेंको मत । बोलो कि नहीं सम्भल रहा, और वक़्त लगेगा "
चौथी खबर है इलाहबाद हाइकोर्ट का वो फैसला, जिसमें कहा गया है कि नेता, नोकरशाह और न्यायधीश अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ायें ।
सम्मानित न्यायालय का देर से सही पर ऐतिहासिक फैसला, जो तत्काल प्रभाव से पुरे देश में समान रूप से लागु हो । सरकारी स्कूलों की व्यवस्था सँभालने वाले नेता और नोकरशाहों के बेटे जब यहाँ पढ़ेंगे तो वे अपने आप इस व्यवस्था को बदलेंगे । और न बदलें तो इसको आगे भोगेंगे । मैं शुरू से लेकर 12वीं तक ( 3 साल छोड़कर, पास कोई स्कूल न होने से ) सरकारी स्कूल में पढ़ा हूँ और मेरी छोटी बहन 9वीं में है और आजतक सरकारी में ही पढ़ रही है । क्यों ? क्योंकि मेरे पापा खुद शिक्षा विभाग में अफसर थे तो वो हमेशा ही यही कहते थे कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक वो बनते हैं जो सरकारी नोकरी के लायक नहीं होते । जो एक सच्चाई भी है ।
पहली 3 झलकियाँ तो हुई आत्ममुग्धता और तानाशाही पूर्ण रवैये की, अब चौथी थी एक नई शुरुआत की और अंतिम खबर है दिल्ली में बिजली कम्पनियों द्वारा किये जा रहे ₹8000 करोड़ के घोटाले की, जिनके मालिक हैं अम्बानी और टाटा जैसे घराने ।
कुछ साल पहले एक आदमी ने इस घोटाले के खिलाफ आवाज उठाई थी और बोला था ये घोटाला पकड़ में जाये तो बिजली के बिल आधे हो सकते हैं । शीला दिक्सित और ये कंपनियां मिलकर दिल्ली वालों को लूट रही हैं । पर तब हर किसी ने उसको बेवकूफ कहा था क्योंकि हमारी बेवकूफ जनता को एक आम आदमी से ज्यादा अम्बानी, टाटा की झूठी बैलेंस शीट पर ज्यादा भरोसा था ।
ये बंदा आज दिल्ली का CM है, जिसने इस देश की राजनीति को कई मायनों में बदला है । आप उनसे कई मुद्दों पर असहमत हो सकते हो पर उन्होंने जनता को नेताओं से सवाल करना सिखाया है । उनके किये वादे याद करवाना सिखाया है । जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ अरविन्द केजरीवाल की । जो बात करता है नेताओं के हाथ में पॉवर के विकेंद्रीकरण की, जनता के राज यानि स्वराज की ।
मैं यहाँ किसी पार्टी की तरफदारी नहीं करने के लिये नहीं लिख रहा हूँ, अब बात मुद्दों की हो, जनता को अधिकार मिले, जनता को भिखारी न समझें, जनता की समस्या पर बोलने वालों को चुनों । आपकी पार्टी जनता के मुद्दों पर नहीं बोलती तो उसे बोलना सिखाओ ,,, पर देश की राजनीति के तौर तरीके बदलो ।

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