कल JNU में स्टूडेंट यूनियन के चुनाव है, देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन का प्रेजिडेंट बनना अपने आप में बड़ी बात है क्योंकि यहाँ बाकि यूनिवर्सिटी की तरह धन-बल पर चुनाव नहीं होते, यहाँ कैंडिडेट्स को छात्रों के सामने अपना विज़न रखना पड़ता है, डिबेट करनी पड़ती है, इसलिये मेरा मानना है कि लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण में ये सबसे नायाब नमूना है क्योंकि लोकतंत्र की परिभाषा सिर्फ JNU ही चरितार्थ करता है । यहाँ हर विचारधारा के लोगों को पुरे सम्मान के साथ रहने का हक़ है, बोलने का हक़ है, कुछ भी करने का हक़ है, और इतिहास गवाह है कि जब-जब छात्रहितों की बात आती है तो देश में पहली आवाज JNU से उठती है ।
छात्रसंघ चुनावों को लेकर JNU देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है जिसके छात्रसंघ चुनाव को लिंगदोह कमिटी ने मॉडल मानते हुये देशभर में लागू करने की सिफारिश की थी , जहाँ प्रेजिडेंट का चुनाव उनकी स्पीच के आधार पर होता है न कि दारू, पैसे और जोर-जबरदस्ती से, कल रात वहाँ डिबेट में जो साथी बोले उनकी स्पीच आपके सामने रख रहा हूँ, वैसे इस बार मुझे दलित, हॉस्टल और #StandWithJNU, महिला सुरक्षा सबसे बड़े मुद्दे लगे । आप भी जानिए कौन किस मुद्दे पर लड़ रहा है -
AISA - SFI से मोहित
https://youtu.be/vnrYzRwe_pA
ABVP से जान्हवी
https://youtu.be/cXGV1BJmVCQ
BAPSA से राहुल
https://youtu.be/zh5Dt3Ee1eI
स्वराज अभियान से दिलीप
https://youtu.be/AHmZE1UmeN4
NSUI से सन्नी
https://youtu.be/VgoN8qkI_NU
सबसे पहले बात करते है AISA - SFI से उम्मीदवार मोहित कुमार पाण्डेय की, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़े हुए है और अब JNU में है, मतलब देश की 2 टॉप की यूनिवर्सिटी से पढ़े हुये उम्मीदवार है और संगठन के हिसाब से JNU के सबसे मजबूत उम्मीदवार पर AISA एक्टिविस्ट अनमोल रतन पर लगे बलात्कार के आरोप के बाद थोड़े कमजोर नजर आये लेकिन इस मुद्दे से खुद को बचाने में सफल रहे । तापसी मलिक का उदाहरण बार बार दिया । JNU में नए हॉस्टल, लिंगदोह को redefine करने, आरक्षण को जारी रखने पर इनका ज्यादा जोर रहा ।
अब बात करते है ABVP की उम्मीदवार जाह्नवी की, बोलने में तेज तर्रार लेकिन अपने आका संगठन आरएसएस-बीजेपी की वजह से कई बार चुप्पी साधनी पड़ी या सवालों से बचकर निकलना पड़ा जैसे कि #ShutdownJNU, रोहित वेमुला को दलित न मानना और JNU की लड़कियों को रांड की उपमा देना लेकिन AISA - SFI गठजोड़ के अनमोल रतन वाले मामले में कमजोर पड़ने से मुकाबले में महिला होने का फायदा मिलेगा । इनकी उस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये जो उन्होंने करीब 3 बार कही कि मै आरएसएस-बीजेपी की spokeperson नही हूँ और न ही हमारा उनके कोई सम्बंध है । उनके इस कथन से उनकी असहजता साफ झलक रही थी ।
अब बात करते है दूसरी बार JNU छात्रसंघ में भाग ले रहे BAPSA के कैंडिडेट राहुल की, सबसे बेख़ौफ़ भाषण रहा और AISA - SFI और ABVP को जमकर लताड़ा । खासकर लेफ्ट फ्रंट द्वारा BAPSA के खिलाफ किये जा रहे प्रचार को कि बापसा को वोट दिया तो ABVP आ जायेगा, गब्बर आ जायेगा । इन्होंने कैंपस में समानीकरण, लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार, देश को अब ऊना मॉडल पर चलने पर जोर दिया । पिछड़े छात्रों के ड्रॉपआउट, एंटी-ब्राह्मणवाद, पिछडो को परीक्षा में कम नम्बर देना इनके प्रमुख मुद्दे है ।
बाबासाहेब अम्बेडकर की एक लाइन का बेहद खूबसूरती से प्रयोग किया, " कोई भी देश तब तक देश नहीं कहलाता जब तक कि अंतिम नागरिक उसे अपना देश न माने"
NSUI के सनी धीमान को देखकर लग ही नहीं रहा था कि वो ये लड़ाई जीतने आये है, उनका BAPSA के लिये कथन " आपकी और हमारी विचारधारा में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है " ये बताता है कि वो बापसा को फायदा पहुँचाने आये है । जैसा कि डिबेट में इन्होंने AISA - SFI और ABVP की जो हालत पतली की उससे भी यही लग रहा था कि इनका उद्देश्य बापसा को फायदा पहुँचाना ज्यादा है, जीतना कम । और ऐसा ही उद्देश्य ABVP का था, जो जाह्नवी बोली कि आपका हमारा उद्देश्य एक है राहुल, हम अम्बेडकर और विवेकानन्द के सपनो का भारत बनायेंगे" इतना कहकर बैठ गयी पर राहुल के जवाब से फिर उठकर सवाल करने आना पड़ा ।
अंत में बात करते है JNU में पहली बार स्वराज अभियान से दिलीप की, दिखने में साधारण और बोलने में मास्टर दिलीप ने सभी छात्र संगठनों की अच्छी अच्छी बातों को अपने प्रेसिडेंशल डिबेट में जगह दी । लेकिन सवाल करने में किसी को नहीं बख्शा, और डिबेट में हर किसी हतप्रभ किया ।
तो कल शाम तक इंतजार कीजिये, JNU को कन्हैया कुमार का वारिस मिल जायेगा, तब तक के लिये अंदाज़ा लगाते रहिये पर चौंकने को तैयार रहिये ... तब तक आप भी इनकी स्पीच सुनें
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