किसी भी देश की सबसे बड़ी पूँजी होती है नागरिक, और जिस देश के नागरिक अशिक्षित या अज्ञानी हो उस देश का विनाश कभी भी हो सकता है । जैसा कि राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने स्कूलों के खुले में चलने को लेकर टिप्पणी की, " लगता है राज्य सरकार की स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये भवन, खेल मैदान मुहैया कराने, अध्यापक - स्टाफ की व्यवस्था करने में कोई रूचि नहीं है ।"
आज देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में में शिक्षा व्यवस्था कैसी है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि राज्य की राजधानी जयपुर में 162 स्कूल बिना भवनों के चल रहे है । ये हालात तो तब है जब एक स्कूल को दूसरी में मर्ज कर दिया है, इसके बावजूद आज राज्य में 848 विद्यालय बिना भवन के चल रहे है । वरना तो हालात इससे भी बदतर थे । राज्य में आज शिक्षकों के 81,243 पद खाली पड़े है और बात अगर स्कूल स्टाफ की की जाये तो ये आँकड़ा बढ़कर 98079 हो जाता है, जिनमें बाबू, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, पीटीआई आदि के 16836 पद खाली पड़े है और जहाँ भवन है वहाँ स्टाफ नहीं है । स्टाफ है तो वो आते नहीं है और गर आ भी गए तो पढ़ाते नहीं है । इन सबका कारण है स्कूल की निगरानी करने वालों का ढंग से काम न करना । सरकारी मशीनरी का इस तरह से काम न करने का मतलब है कि सरकार अपना काम ढंग से नहीं कर रही, शिक्षा मंत्री तबादलों की डिजायर देखने में बिजी है । कुल मिलाकर राजस्थान में सरकार जिस काम के लिए बनी थी उसके अलावा वो सबकुछ कर रही है
Wednesday, 21 September 2016
राजस्थान में चरमराती शिक्षा व्यवस्था
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डॉ कलाम को श्रद्धांजलि
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