अभी न्यूज़ देखी कि हिंदूवादी संगठनों ने कन्नड़ विद्वान और हम्पी यूनिवर्सिटी के पूर्व वाईस चांसलर डॉ. MM कलबुर्गी (78 ) की सुबह 8 बजे उनके घर पर गोली मारकर हत्या कर दी गयी । उनको 2 गोली मारी गयी; एक सिर में पर दूसरी छाती पर । वो मूर्ति पूजा के विरोधी थे । उनको आरएसएस, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद से कई दिनों से जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थी । पिछले कुछ महीनों में हिंदू संगठनों द्वारा की गयी ये तीसरी हत्या है । मन उदास सा हो गया, सोचने लगा
-क्या हो गया है इन लोगों को ?
-क्यों ये इंसानियत के दुश्मन बने हुये हैं ?
-क्यों ये अपने उस ईश्वर, जिसके बारे में ये बोलते हैं कि उसने ये दुनिया बनाई है,अर्थात दूनिया बनाने वाले की रक्षा के लिये खून के प्यासे हो गये हैं ?
-क्या धार्मिक होना इंसान होने से बड़ा हो गया है ?
-आप जिस हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्म को मानने का दम्भ भरते हो लेकिन उसकी मुख्य शिक्षा 'अहिंसा' को ही भूल जाते हो तो फिर आप धर्मिक कैसे हुये और आप कौनसे भगवान और धर्म की रक्षा की बात कर रहे हो ?
-क्यों ये इंसानियत के दुश्मन बने हुये हैं ?
-क्यों ये अपने उस ईश्वर, जिसके बारे में ये बोलते हैं कि उसने ये दुनिया बनाई है,अर्थात दूनिया बनाने वाले की रक्षा के लिये खून के प्यासे हो गये हैं ?
-क्या धार्मिक होना इंसान होने से बड़ा हो गया है ?
-आप जिस हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्म को मानने का दम्भ भरते हो लेकिन उसकी मुख्य शिक्षा 'अहिंसा' को ही भूल जाते हो तो फिर आप धर्मिक कैसे हुये और आप कौनसे भगवान और धर्म की रक्षा की बात कर रहे हो ?
बांग्लादेश में ये धार्मिक कट्टरपंथ की कोई पहली घटना नहीं है, यहाँ तो पूरा का पूरा इतिहास ही ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है ।
बीते 12 मई (मंगलवार) सुबह साढ़े 8 बजे बांग्लादेश में एथिस्ट ब्लॉगर अनंत बिजोय दास की गला काटकर हत्या कर दी गयी । अनंत 'मुक्त मन' ब्लॉग में लिखा करते थे। इसके फाउंडर बांग्लादेश मूल के अमेरिकी नागरिक अविजित रॉय हैं जिन्हें इसी साल फरवरी में मौत के घाट उतार दिया गया था । बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों में सेकुलर ब्लॉगर को कत्ल करने की ये तीसरी घटना है ।
इससे पहले 30 मार्च को वशिकुर रहमान की उनके घर से कुछ 500 मीटर की दुरी पर चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई थी । अभी कुछ महीने पहले 26 फरवरी की रात को एथिस्ट ब्लॉगर अविजित रॉय जब ढाका यूनिवर्सिटी में आयोजित पुस्तक मेले से रात को अपनी पत्नी के साथ जब वापस घर आ रहे थे तो उनकी चाकू मारकर हत्या कर दी गयी थी और इसमें उनकी बीवी ( साथी ब्लॉगर ) भी बुरी तरह से घायल हो गई थी । थोड़ा उससे 2 साल पहले ऐसे ही दो और ब्लॉगर रजीब हैदर और मोहिनुद्दीन की ढाका में हत्या कर दी गयी थी ।
वहीं इससे एक दशक पहले प्रसिद्ध लेखक प्रो. हुमांयू आजाद पर 2004 में पुस्तक मेले से लौटते वक्त हमला किया गया था ।
बीते 12 मई (मंगलवार) सुबह साढ़े 8 बजे बांग्लादेश में एथिस्ट ब्लॉगर अनंत बिजोय दास की गला काटकर हत्या कर दी गयी । अनंत 'मुक्त मन' ब्लॉग में लिखा करते थे। इसके फाउंडर बांग्लादेश मूल के अमेरिकी नागरिक अविजित रॉय हैं जिन्हें इसी साल फरवरी में मौत के घाट उतार दिया गया था । बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों में सेकुलर ब्लॉगर को कत्ल करने की ये तीसरी घटना है ।
इससे पहले 30 मार्च को वशिकुर रहमान की उनके घर से कुछ 500 मीटर की दुरी पर चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई थी । अभी कुछ महीने पहले 26 फरवरी की रात को एथिस्ट ब्लॉगर अविजित रॉय जब ढाका यूनिवर्सिटी में आयोजित पुस्तक मेले से रात को अपनी पत्नी के साथ जब वापस घर आ रहे थे तो उनकी चाकू मारकर हत्या कर दी गयी थी और इसमें उनकी बीवी ( साथी ब्लॉगर ) भी बुरी तरह से घायल हो गई थी । थोड़ा उससे 2 साल पहले ऐसे ही दो और ब्लॉगर रजीब हैदर और मोहिनुद्दीन की ढाका में हत्या कर दी गयी थी ।
वहीं इससे एक दशक पहले प्रसिद्ध लेखक प्रो. हुमांयू आजाद पर 2004 में पुस्तक मेले से लौटते वक्त हमला किया गया था ।
बांग्लादेश की एक और लेखिका हैं, डॉ. तसलीमा नसरीन, जो कि महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं ; को तो बांग्लादेश ने देश निकाला दे दिया था जिसके बाद वो स्वीडन और बाद में भारत में आकर रहने को मजबूर हुई । इनके खिलाफ भी बांग्लादेशी धर्म गुरुओं ने कई फतवे जारी किये जिनमें इनको जान से मारने का भी फतवा था । अब भी महिला अधिकारों के लिए सतत् संघर्षशील हैं और वर्तमान में कोलकाता में निर्वासित जीवन बिता रही हैं । हालाँकि इन्होंने भारत सरकार के समक्ष नागरिकता की अर्जी लगा दी है पर इसपर अभी तक कोई फैसला नहीं आ पाया है ।
अकेला बांग्लादेश ही क्यों ? सभी दक्षिण एशियाई देशों का यही हाल है । यहाँ अपने हिन्दुस्तान को ही ले लो
पिछले साल 20 अगस्त 2013 पुणे में MANS ( महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ) के संस्थापक अध्यक्ष 'पद्मश्री'(मृत्यु पश्चात्) डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की सुबह सैर करते समय अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी । सरकार ने उनको कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई जबकि उनको सन् 1983 से जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थी । डॉ. दाभोलकर, जो कि गाँवों में फैले अंधविश्वासों को मिटाने के लिए सन् 1980 से कार्यरत थे, ने 3000 गाँवो में जाके समाज में फैले अंधविश्वासों को मिटाने के लिये सभायें की । इससे उन गाँवों में फैले विभिन्न धर्मों के ठेकेदारों की दुकानें बन्द होने को आ गयी जो अंततः डॉ. दाभोलकर की हत्या पर आकर रुकी ।
सलमान रुश्दी, जिनके लिखे एक उपन्यास पर पूरी मुस्लिम कायनात उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गयी । जान से मारने की धमकियाँ मिलने लगी और इनके खिलाफ कई फतवे जारी हो गये । और हद तो तब हो गयी जब इस्लाम के सर्वोच्च गुरु कहे जाने वाले आयतुल्ला खुमैनी ने हत्या का फतवा जारी कर दिया और मारने वाले को साथ में ईनाम देने की घोषणा की गई । इनपर कई बार जानलेवा हमले हुये लेकिन हर बार वो बच गये । तदनोपरांत रुश्दी को लगभग 10 साल छुपकर काटने पड़े लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारे और लगातार लेखन जारी रखें हुये है ।
इसके अलावा कुछ महीने पहले तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन को RSS, VHP जैसे हिंदूवादी संगठनों के विरोध और जान से मारने की धमकी के बीच ये घोषणा करनी पड़ी कि " लेखक मुरुगन की मृत्यु हो गयी है, आगे से लेखन बंद "
और पडोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो मुस्लिम कट्टरपंथी किसी को भी ईशनिंदा कानून से मौत की सजा सुना देते हैं ।
कुछ साल पहले एक नासमझ बच्चे ने कुरान का एक पेज जला दिया था जिसके बाद उसको मौत की सज़ा सुना दी थी । जबकि धर्म भी ये मानता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं ।
खैबर पख़्तूनवा प्रांत की स्वात घाटी में बीबीसी के लिए महिला और शिक्षा विषयों पर ब्लॉग लिख कर चर्चा में आयी मलाला यूसुफ़ज़ई को 9 अक्टूबर 2012 को स्कूल बस में तालिबानी आतंकियों ने सिर में 3 गोलियाँ मार दी थी । हालाँकि इसके बाद वो जिन्दा बच गयी थी और 2014 में सबसे कम उम्र की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ( बचपन बचाओ आंदोलन के कैलाश सत्यार्थी के साथ ) भी बनी ।
मलाला की तरह ही एक और लड़की, हिना खान, ने भी महिला शिक्षा की आवाज उठायी तो तालिबान ने इनके परिवार को भी धमकी दी जिसकी वजह से इनको परिवार समेत स्वात घाटी को छोड़कर इस्लामाबाद आना पड़ा लेकिन अभी उनको जान से मारने की धमकियां लगातार मिल रही हैं ।
कुछ साल पहले एक नासमझ बच्चे ने कुरान का एक पेज जला दिया था जिसके बाद उसको मौत की सज़ा सुना दी थी । जबकि धर्म भी ये मानता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं ।
खैबर पख़्तूनवा प्रांत की स्वात घाटी में बीबीसी के लिए महिला और शिक्षा विषयों पर ब्लॉग लिख कर चर्चा में आयी मलाला यूसुफ़ज़ई को 9 अक्टूबर 2012 को स्कूल बस में तालिबानी आतंकियों ने सिर में 3 गोलियाँ मार दी थी । हालाँकि इसके बाद वो जिन्दा बच गयी थी और 2014 में सबसे कम उम्र की नोबेल शांति पुरस्कार विजेता ( बचपन बचाओ आंदोलन के कैलाश सत्यार्थी के साथ ) भी बनी ।
मलाला की तरह ही एक और लड़की, हिना खान, ने भी महिला शिक्षा की आवाज उठायी तो तालिबान ने इनके परिवार को भी धमकी दी जिसकी वजह से इनको परिवार समेत स्वात घाटी को छोड़कर इस्लामाबाद आना पड़ा लेकिन अभी उनको जान से मारने की धमकियां लगातार मिल रही हैं ।
पाक के थोडा ऊपर ही अफगानिस्तान है जो कट्टरपंथ की दुनिया में भी बाकियों से ऊँचा ही है ।
मुस्लिम कट्टरपंथ में एक कुप्रथा है "बाद" जिसमें किसी की हत्या के हर्जाने के तौर पीड़ित परिवार को एक कुँवारी लड़की देनी पड़ती है ।
बीबी आइशा का दोष इतना था कि इनके परिवार में चाचा ने एक व्यक्ति को मार दिया था तो मुआवजे के तौर पर इनकी 14 साल की उम्र में एक तालिबानी से शादी कर दी गयी । जब वो इस कुप्रथा के विरोध में अपने ससुराल से भाग गयी तो बीबी की नाक और कान काट दिये थे । जो की बाद में टाइम पत्रिका (2010) के मुखपृष्ठ पर भी आई थी ।
बीबी आइशा का दोष इतना था कि इनके परिवार में चाचा ने एक व्यक्ति को मार दिया था तो मुआवजे के तौर पर इनकी 14 साल की उम्र में एक तालिबानी से शादी कर दी गयी । जब वो इस कुप्रथा के विरोध में अपने ससुराल से भाग गयी तो बीबी की नाक और कान काट दिये थे । जो की बाद में टाइम पत्रिका (2010) के मुखपृष्ठ पर भी आई थी ।
फारखुन्दा, यही नाम था उस मुस्लिम धर्म शिक्षिका का जिसको पहले तो लोगों ने पीटा फिर एक पूल से निचे फेंका और इतने में भी जी नहीं भरा तो अधमरी हालत में ही आग के हवाले कर दिया । इससे भी जी नहीं भरा तो जली हुई लाश को नदी में फेंक दिया ।
कसूर क्या था उसका, यहीं न कि उसने एक जाहिल मुल्ले से बहस की इस्लाम पर और उसको इस्लाम सिखाने की कोशिश की । जब मुल्ला अपने तर्क़ों में हार गया तो कुतर्क ( कुरान को जलाने का इल्जाम ) से भीड़ को भड़का के मरवा दिया,
अभी इसी 19 मार्च को की ही तो घटना है ये, ज्यादा दिन नहीं बीतें हैं इसे ।
आज के समय को देखकर लगता नहीं कि ये सिलसिला यहीं रुकने वाला है, आने वाले समय में तो इसके और विकट होने की संभावना है ।
हम जितना धार्मिक कट्टरपंथ से बच सकते है बचें, क्योंकि ना हिन्दू बुरा है ना मुसलमान बुरा है जो जुल्म पे उत्तर जाये वो इंसान बुरा है ।
हम जितना धार्मिक कट्टरपंथ से बच सकते है बचें, क्योंकि ना हिन्दू बुरा है ना मुसलमान बुरा है जो जुल्म पे उत्तर जाये वो इंसान बुरा है ।
किसी शायर ने कहा था कि 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना' लेकिन जैसा कि हम देख रहे हैं उससे तो ये नहीं लगता है, बल्कि इससे उल्टा ज्यादा प्रासंगिक है
" मजहब ही सिखाता है आपस में बैर रखना "
" मजहब ही सिखाता है आपस में बैर रखना "
सही ही लग रहा है, मजहब ही सिखाता आपस में बैर रखना.
ReplyDeleteआजकल आदाब अर्ज बाद में होता है और धर्म, जात की पूछ पहले
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