आज भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल बाद भी आरएसएस के स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी और अन्य संघ नेताओं को गाँधी जी की मजबूरी में तारीफ करनी पड़ रही है तो ये कहीं न कहीं उनका प्रताप ही है । गाँधी जी का राष्ट्रवाद आज के संघी राष्ट्रवाद की तरह दिखावटी या सतही राष्ट्रवाद नहीं था । तब देश के हर क्षेत्र, धर्म, जाति, वर्ग के लोगों ने गाँधीजी के साथ आज़ादी की लड़ाई में "करो या मरो" का प्रण लिया था, संघ के नेताओं की तरह मैदान छोड़कर भागे नहीं थे ।
ये इतिहास का वो काला सच है जिसको आज छिपाने का प्रयास किया जाता है । आरएसएस के दूसरे प्रमुख एम एस गोलवलकर ने 24 मार्च, 1936 को आरएसएस प्रचारक कृष्णराव वाडेकर को एक चिठ्ठी लिखी, जिसमें लिखा "क्षणिक उत्साह और भावनात्मक उद्वेलन से पैदा हुये कार्यक्रमों से संघ को दूर रहना चाहिये । इस तरह से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिश 'सतही राष्ट्रवाद' है । अभी आप धूले जलगांव इलाके में संघ की शाखा स्थापित करने पर ध्यान दीजिये ।"
इनके प्रणेता सावरकर ने तो बाकायदा अंग्रेजों से वादा किया था कि वो कालापानी से छूटने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ किसी भी राजनीतिक क्रियाकलापों में शामिल नहीं होंगे । आगे चलकर बंगाल में सावरकर की हिन्दू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर न सिर्फ सरकार बनाई बल्कि उपमुख्यमंत्री समेत कई पद लेकर सत्ता सुख भी भोगा । तब मुख्यमंत्री पद पर मुस्लिम लीग की तरफ से फजल-उल-हक और उपमुख्यमंत्री पद पर हिंदू महासभा की तरफ से श्यामा प्रसाद मुखर्जी आसीन हुए ।
तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 6 जुलाई, 1942 को गवर्नर को आधिकारिक तौर पर लिखा था- "सवाल ये है कि बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन का सामना कैसे किया जाये? प्रशासन को इस तरह से चलाया जाये कि कांग्रेस की भरसक कोशिश के बाद भी ये आंदोलन बंगाल में अपनी जड़ें न जमा पाये, असफल हो जाये ... भारतीयों को ब्रिटिशर्स पर यकीन करना होगा ।"
भले ही लाख गालियाँ दे ले पर गाँधीजी ने जो किया उसी की वजह से तब आज़ादी मिली थी । और जो आज देशभक्ति की बड़ी बड़ी बातें कर रहे है न तब वो और उनके नेता अंग्रेजों की चमचागिरी या उनसे माफी मांग रहे थे । देश के 2 टुकड़े कराने में भी इसी संघ का पूरा-पूरा योगदान था, 2 नेशन थ्योरी सिर्फ मुस्लिम लीग की नहीं थी, आरएसएस और हिन्दू महासभा का भी वही स्टैंड था जो जिन्ना का था ।
सबसे पहले सावरकर ने 1923 में प्रकाशित अपनी किताब हिंदुत्व में हिंदू राष्ट्र का सिद्धांत रखा । जो बाद में 30 दिसंबर 1937 को हिन्दू महासभा के अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा " यहाँ 2 देश होने चाहिये, हिंदुओ का हिंदुस्तान और मुस्लिमो का अलग"
इसी को आधार बनाकर मुस्लिम लीग के जिन्ना ने लाहौर अधिवेशन ( मार्च 1940, फजल-उल-हक की अध्यक्षता में ) में अलग पाकिस्तान की माँग की । जो आगे चलकर देश के टुकड़े कराने का कारण बनी और कई लाखों लोग मारे गए और बेघर हो गये । और आज वही पाकिस्तान की वजह से देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा रक्षा क्षेत्र में बर्बाद हो रहा है और कश्मीर में न जाने कितने जवान शहीद हो चुके है ।
बाद में इसी हिंदू महासभा के नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को गोली मारकर गाँधी जी की हत्या कर दी, उपरांत आरएसएस को आतंकी संगठन बताकर उन्हीं सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्रतिबंध लगा दिया जिन्हें ये आज अपना बनाने पर तुले है । क्या ये पटेल को गवारा होता ? आप सोचिये
सबसे पहले सावरकर ने 1923 में प्रकाशित अपनी किताब हिंदुत्व में हिंदू राष्ट्र का सिद्धांत रखा । जो बाद में 30 दिसंबर 1937 को हिन्दू महासभा के अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा " यहाँ 2 देश होने चाहिये, हिंदुओ का हिंदुस्तान और मुस्लिमो का अलग"
इसी को आधार बनाकर मुस्लिम लीग के जिन्ना ने लाहौर अधिवेशन ( मार्च 1940, फजल-उल-हक की अध्यक्षता में ) में अलग पाकिस्तान की माँग की । जो आगे चलकर देश के टुकड़े कराने का कारण बनी और कई लाखों लोग मारे गए और बेघर हो गये । और आज वही पाकिस्तान की वजह से देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा रक्षा क्षेत्र में बर्बाद हो रहा है और कश्मीर में न जाने कितने जवान शहीद हो चुके है ।
बाद में इसी हिंदू महासभा के नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को गोली मारकर गाँधी जी की हत्या कर दी, उपरांत आरएसएस को आतंकी संगठन बताकर उन्हीं सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्रतिबंध लगा दिया जिन्हें ये आज अपना बनाने पर तुले है । क्या ये पटेल को गवारा होता ? आप सोचिये
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