एक मित्र का FB पर विचार
" चिपचिपी गर्मी में पूरे परिवार की रोटीयां बनाकर , बरतन धो कर , फिर सबको दूध देकर बच्चों को सोने के लिये कहती और उनके लिये सुबह के स्कूल की तैयारी करती औरत जब बेड पर आकर गिरती है , और तब भी सोने से ज्यादा उसका ध्यान सुबह जल्दी उठकर फिर से उसी बदमजा बोरिंग रूटीन में जाने पर होता है , उसी औरत में से रात को सनीलियोनी तलाश करना अन्याय ही है "
इस कमेंट पर मेरा जवाब इस प्रकार था
" यदि आप प्रैक्टिकली सोचें तो यही हाल पुरुषों का है, जो सुबह निकलता है और शाम अँधेरे ढ़ले घर पहुँचता है, बॉस के ताने और ओवरटाइम काम के बोझ से अधमरा पति घर पहुँच के बच्चों की जिद को कल परसों पर टालता हुआ जब बेड पर गिरता है तो यही सोचता है कि कल बच्चों की जिद कैसे पूरी की जाये या माँ-बाबा को अस्पताल कब दिखाया जाये या बीवी को शॉपिंग कब करवायी जाये या काश ! उन फाइलों (काम) में कुछ कमी हो जाये या बॉस ताने न मारें । पूरा साल निकल जाता है पर वो परिवार के साथ घूमने के लिये एक सप्ताह कभी भी नहीं निकाल पाता है अब वो अपनी बीवी, जिसे हम सुख- दुःख का साथी या अर्धांगिनी या और न जाने क्या क्या कहते हैं, उसमें सनी लियॉन या कुछ और खोजता है तो क्या गलत करता है ? आखिर दैहिक संतुष्टि भी तो पति और पत्नी की एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी होती है । यदि पति सनी लियॉन ढूंढता है तो पत्नी भी उसमें टॉम क्रूज या कोई और पोर्न स्टार ढूँढती ही है ।"
पर यहाँ मुख्य सवाल था सेक्स को लेकर, इसे लेकर कुछ सवाल हैं । जैसे -
आखिर क्यों हम लोग सेक्स को इतना महत्वपूर्ण मुद्दा बनाये हुये हैं ?
क्यों हम सेक्स को इतना घिनौना मानते हैं ?
क्यों इसे अपनी इज्जत से जोड़े हुये हैं ?
एक ऐसी क्रिया, जिससे एक नई पीढ़ी आकार लेती है, हमारी संख्या बढ़ाती है, को हमने इतना घृणित क्यों मान लिया है ?
सेक्स, जो एक जरूरत है, उसपर हम इतना बवाल क्यों मचाये हुये हैं ?
जो बवाल मचा रहे हैं वो क्या बिना सेक्स के इस दूनिया में आये हैं ?
नहीं न ।
सब जानते हैं कि जो इस दुनिया में आया है, वो इसी क्रिया के होने से आया है ।
सेक्स शरीर की जरूरत है, इससे ज्यादा कुछ नहीं । इसके लिये आपको एक साधारण सा उदाहरण देता हूँ -
एक किसान अपने पालतू जानवरों भैंस, गाय, बकरी आदि को खुद भैंसे, बैल, बकरे के पास ले जाता है क्योंकि अगली बार दुहना है तो बच्चे पैदा होना जरूरी है, और बच्चे तभी होंगे जब सेक्स होगा । तो वो किसान अपने जानवरों के सेक्स को तो खुद आगे चलकर पुरे गाँव में प्रमोट करता है, उसका जानवर जब बोलता है ( यानि पाले आना या सेक्स करना चाहता है ) तो वो सबको बताता है लेकिन दूसरा लड़का ( या लड़की ) उसकी लड़की (या लड़का ) के साथ ये काम करले तो मरने / मारने पर उतारू हो जाता है ।
एक बात पूछता हूँ आप लोगों से कि जब आपका शरीर भूख, मल, मूत्र, पसीना आदि क्रियाएं करता है तो आप निःसंकोच कहीं भी ये सब कर लेते हैं, वो भी बिना किसी झिझक के । तो इसी प्रकार सेक्स भी शरीर की एक जरूरत है ।
जरूरत बता रहा हूँ इसका मतलब ये नहीं हुआ कि आप हद पार कर जाओ और किसी के साथ भी करो । नहीं, नागरिक समाज ने जो नियम निर्धारित कर रखें हैं उस हिसाब से करो जैसे शादी, लिव इन, गर्लफ्रेंड- बॉयफ्रेंड ( शादी को छोड़कर बाकि का भारत में चलन कम है ) । हम लोग तो किसी के फोन पर बात करने, विपरीत सेक्स के साथ चलने, हाथ पकड़ने, गले मिलने तक को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो सेक्स को इतने खुले तौर पर स्वीकार करना तो बड़ी दूर की कोड़ी है इस देश में ।
अभी तो चलो फिर भी कुछ बदलाव हुये हैं वरना पहले पहल तो गाँवों में ( देश की 75 % जनसंख्या ) किसी शादीशुदा जोड़े ने रात को सेक्स किया है, ये मात्र का समाज को पता चल जाने भर से वो अगले दिन किसी से नजरें नहीं मिला पाते थे ।
यौन रोगों के बारे में भ्रांति न फैले, लोग एड्स जैसी गंभीर बीमारी का खुलकर इलाज करवा सके और समाज में हँसी का पात्र न बनें, दुकान में इससे बचाव के लिये बिना घबरायें कंडोम खरीद सके, आने वाली पीढ़ी को इस बारे में पूरा ज्ञान मिले और आपका बच्चा छुप-छुपकर कुछ गलत सिखने के बजाय आसानी से सही ज्ञान ले इसके लिये जरूरी है कि सेक्स को किताबों में लाइए । सेक्स को हौव्वा मत बनाइये, सेक्स को सेक्स ही रहने दें । बदलाव जरूरी हैं, इसलिये बदलाव में भागीदार बनें
" चिपचिपी गर्मी में पूरे परिवार की रोटीयां बनाकर , बरतन धो कर , फिर सबको दूध देकर बच्चों को सोने के लिये कहती और उनके लिये सुबह के स्कूल की तैयारी करती औरत जब बेड पर आकर गिरती है , और तब भी सोने से ज्यादा उसका ध्यान सुबह जल्दी उठकर फिर से उसी बदमजा बोरिंग रूटीन में जाने पर होता है , उसी औरत में से रात को सनीलियोनी तलाश करना अन्याय ही है "
इस कमेंट पर मेरा जवाब इस प्रकार था
" यदि आप प्रैक्टिकली सोचें तो यही हाल पुरुषों का है, जो सुबह निकलता है और शाम अँधेरे ढ़ले घर पहुँचता है, बॉस के ताने और ओवरटाइम काम के बोझ से अधमरा पति घर पहुँच के बच्चों की जिद को कल परसों पर टालता हुआ जब बेड पर गिरता है तो यही सोचता है कि कल बच्चों की जिद कैसे पूरी की जाये या माँ-बाबा को अस्पताल कब दिखाया जाये या बीवी को शॉपिंग कब करवायी जाये या काश ! उन फाइलों (काम) में कुछ कमी हो जाये या बॉस ताने न मारें । पूरा साल निकल जाता है पर वो परिवार के साथ घूमने के लिये एक सप्ताह कभी भी नहीं निकाल पाता है अब वो अपनी बीवी, जिसे हम सुख- दुःख का साथी या अर्धांगिनी या और न जाने क्या क्या कहते हैं, उसमें सनी लियॉन या कुछ और खोजता है तो क्या गलत करता है ? आखिर दैहिक संतुष्टि भी तो पति और पत्नी की एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी होती है । यदि पति सनी लियॉन ढूंढता है तो पत्नी भी उसमें टॉम क्रूज या कोई और पोर्न स्टार ढूँढती ही है ।"
पर यहाँ मुख्य सवाल था सेक्स को लेकर, इसे लेकर कुछ सवाल हैं । जैसे -
आखिर क्यों हम लोग सेक्स को इतना महत्वपूर्ण मुद्दा बनाये हुये हैं ?
क्यों हम सेक्स को इतना घिनौना मानते हैं ?
क्यों इसे अपनी इज्जत से जोड़े हुये हैं ?
एक ऐसी क्रिया, जिससे एक नई पीढ़ी आकार लेती है, हमारी संख्या बढ़ाती है, को हमने इतना घृणित क्यों मान लिया है ?
सेक्स, जो एक जरूरत है, उसपर हम इतना बवाल क्यों मचाये हुये हैं ?
जो बवाल मचा रहे हैं वो क्या बिना सेक्स के इस दूनिया में आये हैं ?
नहीं न ।
सब जानते हैं कि जो इस दुनिया में आया है, वो इसी क्रिया के होने से आया है ।
सेक्स शरीर की जरूरत है, इससे ज्यादा कुछ नहीं । इसके लिये आपको एक साधारण सा उदाहरण देता हूँ -
एक किसान अपने पालतू जानवरों भैंस, गाय, बकरी आदि को खुद भैंसे, बैल, बकरे के पास ले जाता है क्योंकि अगली बार दुहना है तो बच्चे पैदा होना जरूरी है, और बच्चे तभी होंगे जब सेक्स होगा । तो वो किसान अपने जानवरों के सेक्स को तो खुद आगे चलकर पुरे गाँव में प्रमोट करता है, उसका जानवर जब बोलता है ( यानि पाले आना या सेक्स करना चाहता है ) तो वो सबको बताता है लेकिन दूसरा लड़का ( या लड़की ) उसकी लड़की (या लड़का ) के साथ ये काम करले तो मरने / मारने पर उतारू हो जाता है ।
एक बात पूछता हूँ आप लोगों से कि जब आपका शरीर भूख, मल, मूत्र, पसीना आदि क्रियाएं करता है तो आप निःसंकोच कहीं भी ये सब कर लेते हैं, वो भी बिना किसी झिझक के । तो इसी प्रकार सेक्स भी शरीर की एक जरूरत है ।
जरूरत बता रहा हूँ इसका मतलब ये नहीं हुआ कि आप हद पार कर जाओ और किसी के साथ भी करो । नहीं, नागरिक समाज ने जो नियम निर्धारित कर रखें हैं उस हिसाब से करो जैसे शादी, लिव इन, गर्लफ्रेंड- बॉयफ्रेंड ( शादी को छोड़कर बाकि का भारत में चलन कम है ) । हम लोग तो किसी के फोन पर बात करने, विपरीत सेक्स के साथ चलने, हाथ पकड़ने, गले मिलने तक को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो सेक्स को इतने खुले तौर पर स्वीकार करना तो बड़ी दूर की कोड़ी है इस देश में ।
अभी तो चलो फिर भी कुछ बदलाव हुये हैं वरना पहले पहल तो गाँवों में ( देश की 75 % जनसंख्या ) किसी शादीशुदा जोड़े ने रात को सेक्स किया है, ये मात्र का समाज को पता चल जाने भर से वो अगले दिन किसी से नजरें नहीं मिला पाते थे ।
यौन रोगों के बारे में भ्रांति न फैले, लोग एड्स जैसी गंभीर बीमारी का खुलकर इलाज करवा सके और समाज में हँसी का पात्र न बनें, दुकान में इससे बचाव के लिये बिना घबरायें कंडोम खरीद सके, आने वाली पीढ़ी को इस बारे में पूरा ज्ञान मिले और आपका बच्चा छुप-छुपकर कुछ गलत सिखने के बजाय आसानी से सही ज्ञान ले इसके लिये जरूरी है कि सेक्स को किताबों में लाइए । सेक्स को हौव्वा मत बनाइये, सेक्स को सेक्स ही रहने दें । बदलाव जरूरी हैं, इसलिये बदलाव में भागीदार बनें
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