अभी कुछ दिन पहले 14 अप्रैल को जब जंतर मंतर पर तमिल किसानों से मिलने गये थे तब उन्होंने कुछ देर बात करने के बाद पूछा कहाँ से हो बेटा ? मैं बोला राजस्थान से । तो अपने साथी किसान से बोले बड़ी दूर से मेहमान आये है, कुछ खाने - पीने को लाओ, हमारे बहुत मना करने के बाद भी एक केला पकड़ा दिया । मेरे पास उस समय बोलने को कुछ नहीं था, बस सोच रहा था कि हिंदुस्तान के सुदूर दक्षिण के किसान जो अकाल और भूख की वजह से दिल्ली में धरना दे रहे है लेकिन फिर हमसे खाने की पूछना नहीं भूले । मुझे तब लगा कि हम किसान भाषा, पहनावे से जरूर अलग है पर किसानीयत से एक है । कोई फर्क नहीं, बिल्कुल एक है । कमी है तो बस एकता की, एक हो जाये तो किस मोदी - मनमोहन - वाजपयी - गांधी की औकात जो हमसे हमारे हक़ छीन ले । पर वो लगातार हमारी जमीनें उधोगपतियों को दे रहे है, बैंकों में हमारे ही सेविंग्स से वो अपना बिज़नेस चला रहे है, और वही बैंक कुछ हजार रुपये समय पर न चुकाने की वजह से थाने में क्रिमिनल के साथ फोटो लगा देती है । और यही उधोगपति जब लोन के पैसे नहीं चुका पाते है तो हमारे सेविंग के बाकि बचे पैसे फिर से लोन दे देते है लेकिन यही बात जब एक किसान कहता है तो किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती ।
दिल्ली में चल रहे इस धरने को National South Indian Rivers Interlinking Farmer's Association के स्टेट प्रेजिडेंट पी. इयाक्कन्नु जी लीड कर रहे है ( जो नीचे फोटो में मेरे साथ है )।
ये बताते है कि दिल्ली की साउथ इंडियन कम्युनिटी अभी इनके खाने पीने का खर्चा उठा रही है । उनका शुक्रिया अदा करते हुऐ कहते है कि हमारे पास तो इतना पैसा भी नहीं था कि हफ्तेभर से ज्यादा यहाँ टिक पाते लेकिन इन लोगों की सहायता से पूरे तमिलनाडु के किसानों की लड़ाई लड़ना संभव हुआ है । आगे बताते है कि हम यहाँ हर जिले से करीब 2 या 3 किसान मौजूद है, शुरुआती जत्था करीब 90 किसानों का था जो बढ़ते घटते रहते है ।
क्या कुछ नहीं किया इन लोगों ने अपने हक़ के लिये, अपने मरहूम साथियों की खोपड़ी गले मे डालकर मार्च किया, चूहे मुँह में दबाकर प्रदर्शन किया, जमीन को थाली मानकर कंकड़ मिट्टी सहित खाना खाया, अपने कपड़े तक उतार दिये फिर भी इस लोकतंत्र के किसी भी स्तम्भ पर कोई असर पड़ा हो तो बताइये ?
न नेता ध्यान दे रहे, न अफसर दे रहे, न स्वतः संज्ञान लेने वाली कोर्ट को कुछ दिख रहा है और न ही देशभक्ति के नाम पर बेवकूफ बनाती मीडिया ध्यान दे रही । इन सबके इस निकम्मेपन का एक ही ईलाज है, पाँचवाँ स्तंभ, यानी हम और आप मतलब जनता । इनको रास्ते पर लाना है तो हमें जागरूक और जिम्मेदार बनना होगा । नहीं बने तो फिर हालत इससे भी बदतर होने वाली है, नोट कर लीजिये आज ही
दिल्ली में चल रहे इस धरने को National South Indian Rivers Interlinking Farmer's Association के स्टेट प्रेजिडेंट पी. इयाक्कन्नु जी लीड कर रहे है ( जो नीचे फोटो में मेरे साथ है )।
ये बताते है कि दिल्ली की साउथ इंडियन कम्युनिटी अभी इनके खाने पीने का खर्चा उठा रही है । उनका शुक्रिया अदा करते हुऐ कहते है कि हमारे पास तो इतना पैसा भी नहीं था कि हफ्तेभर से ज्यादा यहाँ टिक पाते लेकिन इन लोगों की सहायता से पूरे तमिलनाडु के किसानों की लड़ाई लड़ना संभव हुआ है । आगे बताते है कि हम यहाँ हर जिले से करीब 2 या 3 किसान मौजूद है, शुरुआती जत्था करीब 90 किसानों का था जो बढ़ते घटते रहते है ।
आगे एक दूसरा किसान जो कि थोड़ी बहुत हिंदी जानता था, उससे पूछा कि अभी तक आपसे कोई मिलने आया है कि नहीं ? तो वो बोले "हमारे स्टेट मिनिस्टर राधाकृष्णन कुछ दिन पहले मिलने आये थे और धमकी देकर गए है कि अगर जंतर मंतर से ये धरना नहीं उठाया तो पीट पीटकर खाली करवा देंगे । एक रुपया नहीं देंगे तुम्हें ।" धरना शुरू होने के कुछ 4 हफ्ते बाद PM ऑफिस से जवाब आता है कि PM साहेब ने आप लोगों को मिलने का समय दे दिया है, कल मीटिंग है और जब मिलने जाते है तो PM साहेब ऑस्ट्रेलियाई PM को डेल्ही मेट्रो के दर्शन करवाने निकल जाते, क्योंकि उनको लगता है कि किसानों से ज्यादा जरूरी मेट्रो दिखाना है ।
कुछ लोगों को या फिर सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा समर्थकों को लगता है कि ये किसान दिल्ली में सिर्फ नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिये सबकुछ कर रहे है, तो उन लोगों की जानकारी के लिये बता दूं कि तमिलनाडु के किसानों की माँगे क्या है :
1. 2 साल से पड़ रहे सूखे की वजह से हुई बर्बादी की भरपाई के लिए दूसरे राज्यो की तर्ज पर 40000 करोड़ का विशेष पैकेज जारी हो।
2. अटल सरकार की योजना के मुताबिक नदियों को जोड़ने का कार्य प्रारंभ हो ताकि ऐसा सूखा दोबारा ना आये।
3. कावेरी से मिलने वाले पानी पर तत्काल फैसला हो
4. फसल की MSP बढ़ाई जाये
अब भी जो लोग कह रहे है कि इन्हें दिल्ली में नहीं, वरन चेन्नई में राज्य सरकार के खिलाफ धरना देना चाहिये तो ये उनकी नासमझी होगी ।
क्या कुछ नहीं किया इन लोगों ने अपने हक़ के लिये, अपने मरहूम साथियों की खोपड़ी गले मे डालकर मार्च किया, चूहे मुँह में दबाकर प्रदर्शन किया, जमीन को थाली मानकर कंकड़ मिट्टी सहित खाना खाया, अपने कपड़े तक उतार दिये फिर भी इस लोकतंत्र के किसी भी स्तम्भ पर कोई असर पड़ा हो तो बताइये ?
न नेता ध्यान दे रहे, न अफसर दे रहे, न स्वतः संज्ञान लेने वाली कोर्ट को कुछ दिख रहा है और न ही देशभक्ति के नाम पर बेवकूफ बनाती मीडिया ध्यान दे रही । इन सबके इस निकम्मेपन का एक ही ईलाज है, पाँचवाँ स्तंभ, यानी हम और आप मतलब जनता । इनको रास्ते पर लाना है तो हमें जागरूक और जिम्मेदार बनना होगा । नहीं बने तो फिर हालत इससे भी बदतर होने वाली है, नोट कर लीजिये आज ही
साउथ के किसानों का मुद्दा बहुत दिनों से उदासीनता का शिकार हो रहा..इन के साथ विपक्षी दलों को आना चाहिए..ताकि इनकी आवाज को परवाज़ मिले .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा भाई..👍
विपक्ष से तो अपना घर नहीं सभल रहा है
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