हे ! जन गण मन,
तू खुद को ना मायूस समझ,
तू खुद को ना लाचार समझ,
तू खुद को शोषितों का ना आचार समझ,
तू खुद को पूंजीपतियों का ना बाजार समझ,
तू उठ,
अज़ान लगा,
तू विरोध कर,
तू सवाल कर,
तू बवाल कर,
तू इंक़लाब कर,
तू बदलाव का यलगार कर,
कर सकता है तू,
गर तू खुद को पहचान ले,
हक की ढाल ले,
पगड़ी को संभाल ले,
सबको साथ ले,
सबको साध ले,
और ये ठान ले,
बदलेगा ये मंजर,
जरूर एक दिन,
गर तू खुद को पहचान ले ।
गर तू खुद को पहचान ले ।।
तू खुद को ना मायूस समझ,
तू खुद को ना लाचार समझ,
तू खुद को शोषितों का ना आचार समझ,
तू खुद को पूंजीपतियों का ना बाजार समझ,
तू उठ,
अज़ान लगा,
तू विरोध कर,
तू सवाल कर,
तू बवाल कर,
तू इंक़लाब कर,
तू बदलाव का यलगार कर,
कर सकता है तू,
गर तू खुद को पहचान ले,
हक की ढाल ले,
पगड़ी को संभाल ले,
सबको साथ ले,
सबको साध ले,
और ये ठान ले,
बदलेगा ये मंजर,
जरूर एक दिन,
गर तू खुद को पहचान ले ।
गर तू खुद को पहचान ले ।।
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