कॉर्पोरेट्स कैसे आम आदमी को ठगते है, इसे समझने के लिये, पहले एक कहानी सुनाता हूँ, फिर आगे की बात करेंगे । तो कहानी ये है :-
मैंने मेरे दूध वाले के साथ समझौता किया कि वो मुझे सालभर तक एक निश्चित कीमत पर दूध दे और मैं उसे हर साल 31 मार्च को पूरा पेमेंट कर दूँगा, लेकिन उसने 31 मार्च को दूध दे के बोला साहब !हमारा ये साल पूरा हो गया, कल से नया साल शुरू हो जायेगा, इसलिये इस साल का पेमेंट कर दें, मैंने कहा कि आपने तो सिर्फ एक दिन दूध दिया है, तो पैसे पुरे साल के क्यों ? तो उसने समझौता पत्र दिखाया जिसमें मैंने लिखा था कि मेरे हिसाब करने का साल 31 मार्च तक का है । और जब मैंने उसे पुरे साल के पैसे देने से मना किया तो वो मुझे दूध वालों की कोर्ट ( अपीलीय ट्रिब्यूनल ) ले गया । जहाँ उसके पास अच्छे वकील होने की वजह से मैं हार गया और कोर्ट ने पैसे देने का फरमान सुनाया । मैं कुछ भी सोच नहीं पा रहा था, तभी मेरे कुछ शुभचिंतक इस मामले को बड़ी कोर्ट में ले गये और मुझे इससे राहत दिलवाई ।
ऊपर तो थी एक कहानी, जिसको पढ़कर आपको कुछ बातें समझ आ गयी होगी, जिसमें मैं था जनता, दूधवाला था अंबानी और शुभचिंतक था AIPEF ( रिटायर्ड इंजीनियर की ट्रेड यूनियन ) ।
अब आते है असल मुद्दे पर, रिलायंस पॉवर का सासन ( मध्य प्रदेश ) में पॉवर प्लांट है जिससे मप्र, हरयाणा सहित कई राज्यो को बिजली बेचीं जा रही है । इस प्लांट की अंतिम इकाई के Commercial Operation से एक साल तक सस्ती बिजली (70 पैसे की दर पर) मिलनी थी। रिलायन्स ने कमर्शियल ऑपरेशन 31 मार्च 2014 को घोषित कर दिया वो भी प्लांट को पूरी क्षमता पर 72 घंटे तक चलाने की महत्वपूर्ण शर्त को पूरा किये बगैर । नतीजा जो सस्ती बिजली एक साल तक देनी थी वह एक दिन में ही पूरी हो गई क्योंकि 31 मार्च से शुरू हो कर वित्तीय वर्ष उसी 31 मार्च को समाप्त हो गया। केंद्रीय विद्युत् नियामक आयोग ने इसे मानने से इंकार कर दिया, रिलायंस ने आयोग के विरुद्ध अपीलेट ट्रिब्यूनल में केस लगाया और अपने बड़े बड़े वकीलों की जिरह से सफल हो गया।
केस जीतने के तुरंत बाद रिलांयस ने राज्यों को 1050 करोड़ का अतिरिक्त बिल थमा दिया । ये आम उपभोक्ताओं से वसूलना था। रिलायंस के रसूख के चलते कोई भी राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला नहीं कर प् रही थी ।
ऐसे में आल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ( AIPEF ) ने पहल की । पहले पूरे विवरण के साथ पत्र लिखे, प्रेस वार्ताएं कीं, दौरे किए पर फिर भी जब बात नहीं बनी तो स्वयं PIL फाइल की , 16 मई 2016 को ।
http://www.hastakshep.com/english/release/2014/06/04/states-have-suffered-an-energy-loss-due-to-reliance-power-plant#sthash.rixeFI82.dpuf
एक बार केस लग गया तो एक एक कर राज्य सरकारों को भी सामने आना ही पड़ा । रिलायंस ने पी चिदंबरम और कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ वकीलों की मदद ली पर अंत में जीत सच की हुई । 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। वेब साइट पर उपलब्ध है । उपभोक्ताओं का 1050 करोड़ रिलायंस के खाते में जाने से बच गया ।
महत्वपूर्ण तथ्य :-
1. बहुत लंबे समय बाद एक ट्रेड यूनियन ने विशुद्ध जनहित की लड़ाई लड़ी ।
2. लड़ने वाले पुरोधा पद्मजीत सिंह, अशोक राव, ए के जैन, शैलेन्द्र दुबे सभी 65 पार रिटायर्ड इंजीनियर्स हैं ।
3 रिलायंस ने इन पर दबाव बनाने के लिए और प्रेस कवरेज रोकने के लिये पद्मजीतसिह और शैलेन्द्र दुबे पर व्यक्तिगत तौर पर और AIPEF पर संस्थागत 100 - 100 करोड़ का मानहानि मुकदमा दायर किया है, पर ये लोग विचलित नहीं हुए ।
4 इतने बड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मात्र पांच माह में फैसला दे दिया। ( राज्य सरकारों को अपील फाइल करने का फैसला करने के लिए इससे ज्यादा समय लग गया था ।)
5 अभी तक कोई मीडिया कवरेज नहीं दिख रहा, जो कि अंबानी के मीडिया हाउसेस के अधिग्रहण की सफलता दर्शाता है । सिर्फ ट्रिब्यून ने एक छोटा सा आर्टिकल लिखा है, जिसका लिंक साझा कर रहा हूँ ।
http://www.tribuneindia.com/mobi/news/chandigarh/courts/sc-rejects-commercial-operation-date-of-reliance-power/334941.html
जनहित में सक्रिय योद्धाओं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय का अभिनंदन ।
Note : हिस्सा व्हाट्स एप्प की एक पोस्ट से लिया गया है, जिसके लेखक का पता नहीं है ।
मैंने मेरे दूध वाले के साथ समझौता किया कि वो मुझे सालभर तक एक निश्चित कीमत पर दूध दे और मैं उसे हर साल 31 मार्च को पूरा पेमेंट कर दूँगा, लेकिन उसने 31 मार्च को दूध दे के बोला साहब !हमारा ये साल पूरा हो गया, कल से नया साल शुरू हो जायेगा, इसलिये इस साल का पेमेंट कर दें, मैंने कहा कि आपने तो सिर्फ एक दिन दूध दिया है, तो पैसे पुरे साल के क्यों ? तो उसने समझौता पत्र दिखाया जिसमें मैंने लिखा था कि मेरे हिसाब करने का साल 31 मार्च तक का है । और जब मैंने उसे पुरे साल के पैसे देने से मना किया तो वो मुझे दूध वालों की कोर्ट ( अपीलीय ट्रिब्यूनल ) ले गया । जहाँ उसके पास अच्छे वकील होने की वजह से मैं हार गया और कोर्ट ने पैसे देने का फरमान सुनाया । मैं कुछ भी सोच नहीं पा रहा था, तभी मेरे कुछ शुभचिंतक इस मामले को बड़ी कोर्ट में ले गये और मुझे इससे राहत दिलवाई ।
ऊपर तो थी एक कहानी, जिसको पढ़कर आपको कुछ बातें समझ आ गयी होगी, जिसमें मैं था जनता, दूधवाला था अंबानी और शुभचिंतक था AIPEF ( रिटायर्ड इंजीनियर की ट्रेड यूनियन ) ।
अब आते है असल मुद्दे पर, रिलायंस पॉवर का सासन ( मध्य प्रदेश ) में पॉवर प्लांट है जिससे मप्र, हरयाणा सहित कई राज्यो को बिजली बेचीं जा रही है । इस प्लांट की अंतिम इकाई के Commercial Operation से एक साल तक सस्ती बिजली (70 पैसे की दर पर) मिलनी थी। रिलायन्स ने कमर्शियल ऑपरेशन 31 मार्च 2014 को घोषित कर दिया वो भी प्लांट को पूरी क्षमता पर 72 घंटे तक चलाने की महत्वपूर्ण शर्त को पूरा किये बगैर । नतीजा जो सस्ती बिजली एक साल तक देनी थी वह एक दिन में ही पूरी हो गई क्योंकि 31 मार्च से शुरू हो कर वित्तीय वर्ष उसी 31 मार्च को समाप्त हो गया। केंद्रीय विद्युत् नियामक आयोग ने इसे मानने से इंकार कर दिया, रिलायंस ने आयोग के विरुद्ध अपीलेट ट्रिब्यूनल में केस लगाया और अपने बड़े बड़े वकीलों की जिरह से सफल हो गया।
केस जीतने के तुरंत बाद रिलांयस ने राज्यों को 1050 करोड़ का अतिरिक्त बिल थमा दिया । ये आम उपभोक्ताओं से वसूलना था। रिलायंस के रसूख के चलते कोई भी राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला नहीं कर प् रही थी ।
ऐसे में आल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ( AIPEF ) ने पहल की । पहले पूरे विवरण के साथ पत्र लिखे, प्रेस वार्ताएं कीं, दौरे किए पर फिर भी जब बात नहीं बनी तो स्वयं PIL फाइल की , 16 मई 2016 को ।
http://www.hastakshep.com/english/release/2014/06/04/states-have-suffered-an-energy-loss-due-to-reliance-power-plant#sthash.rixeFI82.dpuf
एक बार केस लग गया तो एक एक कर राज्य सरकारों को भी सामने आना ही पड़ा । रिलायंस ने पी चिदंबरम और कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ वकीलों की मदद ली पर अंत में जीत सच की हुई । 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। वेब साइट पर उपलब्ध है । उपभोक्ताओं का 1050 करोड़ रिलायंस के खाते में जाने से बच गया ।
महत्वपूर्ण तथ्य :-
1. बहुत लंबे समय बाद एक ट्रेड यूनियन ने विशुद्ध जनहित की लड़ाई लड़ी ।
2. लड़ने वाले पुरोधा पद्मजीत सिंह, अशोक राव, ए के जैन, शैलेन्द्र दुबे सभी 65 पार रिटायर्ड इंजीनियर्स हैं ।
3 रिलायंस ने इन पर दबाव बनाने के लिए और प्रेस कवरेज रोकने के लिये पद्मजीतसिह और शैलेन्द्र दुबे पर व्यक्तिगत तौर पर और AIPEF पर संस्थागत 100 - 100 करोड़ का मानहानि मुकदमा दायर किया है, पर ये लोग विचलित नहीं हुए ।
4 इतने बड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मात्र पांच माह में फैसला दे दिया। ( राज्य सरकारों को अपील फाइल करने का फैसला करने के लिए इससे ज्यादा समय लग गया था ।)
5 अभी तक कोई मीडिया कवरेज नहीं दिख रहा, जो कि अंबानी के मीडिया हाउसेस के अधिग्रहण की सफलता दर्शाता है । सिर्फ ट्रिब्यून ने एक छोटा सा आर्टिकल लिखा है, जिसका लिंक साझा कर रहा हूँ ।
http://www.tribuneindia.com/mobi/news/chandigarh/courts/sc-rejects-commercial-operation-date-of-reliance-power/334941.html
जनहित में सक्रिय योद्धाओं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय का अभिनंदन ।
Note : हिस्सा व्हाट्स एप्प की एक पोस्ट से लिया गया है, जिसके लेखक का पता नहीं है ।