लातूर ( महारष्ट्र ) में पानी के स्रोतो पर धारा 144 लगी है, 8 - 10 किसान रोजाना आत्महत्या कर लेते हैं, पूरा विदर्भ आपातकाल में जी रहा है, पीने को पानी महीने में एक बार मिल रहा है । उत्तर भारतियों की तरह बाथ टब में नहाने, कार वाश या लोन में पानी छिड़काने वाली हालत अब विदर्भ की नही रही । साफ साफ शब्दों में कहूँ तो महाराष्ट्र में अब जीने का अधिकार भी छीन सा गया है । हर तरफ लोग परेशान हैं पर आईपीएल को पानी मिल रहा है क्योंकि उनको खेलने का अधिकार है पर आपको जीने का नहीं ।
एक बड़े से राष्ट्र के अंदर एक छोटा सा महाराष्ट्र है और उसमें भी 10 - 15 छोटे मोटे लातूर - फतुर टाइप के जिले । तो अब ये असंवेदनशील भीड़ आपके इन छोटे मोटे पचड़ों में पड़े या आईपीएल, भारत माता जैसे बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करे जिसमें आम लोगों के हक़ आसानी से मारे जा सके ।
सवाल है मानव कल्याण का, जो अब उठता या हम उठाते नहीं दिख रहे ? तो क्या हम सब मर / सो गए हैं जो कुछ नहीं कर पा रहे ? नहीं हम जिंदा है और जागे हुये भी पर हम कहीं ओर उलझे हुये हैं । मानव कल्याण अब हमारा मुद्दा नहीं रहा । अब हमें किसी के जीने या मरने पर बात करने का वक्त नही रहा । एक दिन ये हमारे साथ भी होगा पर तब बाकि लोगों के पास भी ऐसे बेकार के मुद्दों के लिये वक्त नहीं रहेगा । तब हम उस भीड़ को कोसेंगे जो आज हमने तैयार की है, एक असंवेदनशील भीड़, लेकिन कोई फायदा नहीं होगा । हम अपने चारों तरफ नरमुंडों का ऐसा हुजूम इकट्ठा किये जा रहे हैं जिनमें इंसानी लक्षण न के बराबर हैं । जानवरों की तरह व्यवहार करने वाला इंसानी हुजूम, जिनमें समझ नाम की चीज बिल्कुल नहीं है ।
तो आप सोचिये जिंदा है कि परलोक गमन कर गये
एक बड़े से राष्ट्र के अंदर एक छोटा सा महाराष्ट्र है और उसमें भी 10 - 15 छोटे मोटे लातूर - फतुर टाइप के जिले । तो अब ये असंवेदनशील भीड़ आपके इन छोटे मोटे पचड़ों में पड़े या आईपीएल, भारत माता जैसे बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करे जिसमें आम लोगों के हक़ आसानी से मारे जा सके ।
सवाल है मानव कल्याण का, जो अब उठता या हम उठाते नहीं दिख रहे ? तो क्या हम सब मर / सो गए हैं जो कुछ नहीं कर पा रहे ? नहीं हम जिंदा है और जागे हुये भी पर हम कहीं ओर उलझे हुये हैं । मानव कल्याण अब हमारा मुद्दा नहीं रहा । अब हमें किसी के जीने या मरने पर बात करने का वक्त नही रहा । एक दिन ये हमारे साथ भी होगा पर तब बाकि लोगों के पास भी ऐसे बेकार के मुद्दों के लिये वक्त नहीं रहेगा । तब हम उस भीड़ को कोसेंगे जो आज हमने तैयार की है, एक असंवेदनशील भीड़, लेकिन कोई फायदा नहीं होगा । हम अपने चारों तरफ नरमुंडों का ऐसा हुजूम इकट्ठा किये जा रहे हैं जिनमें इंसानी लक्षण न के बराबर हैं । जानवरों की तरह व्यवहार करने वाला इंसानी हुजूम, जिनमें समझ नाम की चीज बिल्कुल नहीं है ।
तो आप सोचिये जिंदा है कि परलोक गमन कर गये
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