ये भगवान आखिर किधर है भाई
और ये मन्नत मांगना और पूरी करने वाला क्या लफड़ा है जी
मेरे हिसाब से तो कुछ नहीं
ये सब ढपोल बनाने के तरीके हैं
कोई दम नहीं है इन मन्नतों में
मन्नत पूरी करने वाला न कोई भगवान है न कोई खुदा
सब तुक्के के खेल हैं
तुक्का लगा तो मन्नत पूरी हुई समझ लो
तुक्का नहीं लगा तो बुराई का भांडा आपके माथे फूटना है कि सच्चे मन से मन्नत नहीं मांगी थी
एक बानगी
जब हमारी झमकुड़ी प्रेग्नेंट थी तो सब घरकों की दिली इच्छा थी बेटी होये
इसलिए सभी ने बेटी के लिए अपने अपने स्तर पर भगवान से मन्नत मांगी
किसी ने बालाजी से
किसी ने माताजी से
किसी ने भैरुजी से
किसी ने पितर जी से
कोई ब्रत कर रहा था
कोई प्रसाद बोल रहा था
कोई सवामणी बोल रहा था
कोई दुआ मांग रहा था
लेकिन हुआ क्या ??
आपको पता ही है
अपने # Vishu
अब गौर करने वाली बात ये है कि एक आधा भगवान तो फ़ैल हो जाए चूक हो जाए
लेकिन सभी कैसे चूक गए सभी कैसे फ़ैल हो गए
रही बात सच्चे मन से मन्नत मांगने नहीं मांगने की
तो एक आध मेरे जैसे की तो मान लें कि ये एकदम झूठा है लेकिन सभी तो झूठे नहीं हो सकते
फिर गड़बड़ी आखिर हुई तो कहाँ हुई ?
अजी गड़बड़ी कुछ नहीं हुई
बस तुक्का नहीं लगा
तुक्का किसका ?
जब निषेचन की प्रक्रिया सम्पन्न होने को थी उस वक्त X गुणसूत्र वाले शुक्राणु का अंडाणु के साथ निषेचन का तुक्का नहीं लगा
तुक्का ऐसा लगा कि X और Y गुणसूत्र ऊँचके दौड़ रहे शुक्राणुओं में से Y वाला तेज निकला या तुक्का लगा, जो भी हुआ Y वाला जीत गया था
वहीं भगवान जी भी फ़ैल हो गए थे
अब दुआओं में और मन्नतों में और सवामणी प्रसादों वाली घूस में क्या रखा था
जिसको जीतना था वो तो जीत चुका था अब इसको न कोई भगवान न कोई खुदा बदल सकता था
अब सवाल ये है कि फिर ये भगवान जी नाम की दुकानदारी आखिर चल कैसे रही है ?
चल ऐसे रही है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी मानसिक तौर पर गुलामी सहते आये हैं भगवान नाम की दूकान लगाये व्यापरियों की, जो हमें इस गुलामी में आस्था, धर्म, शांति आदि शब्दों के मायाजाल में फंसा कर बैठे हैं और मजे से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और दान चढ़ावे के नाम पर लोग जेब कटाये जा रहे हैं।
अगर उस दिन X वाले का तुक्का लग जाता तो हम सब पक्के वाले भगत होके कहते फिरते देखो जी फलाणे मिन्दर वाले भगवान ने हमारी मिन्नत पूरी कर दी
और दो च्यार को और उधर जोड़ देते फोगट में भचीड़ खाने को
मैं तो तब भी कहता था जो होना है वो फाइनल हो चुका
लेकिन घरके थोड़े मान जाएँ
वो तुक्के के चक्कर में अटके रहे पूरे नौ महीने
आखिर तुक्का नहीं लगा तो सब आराम से अपने अपने काम लग गए
इसलिए
कुछ नहीं रखा इसमें भैया
इस मायाजाल से जितना जल्दी होये निकलने में फायदा है
नहीं तो बने रहो गुलाम उन व्यापारियों के और ठगाते लुटवाते रहो खुद को।
आपको भगवान को खोजना है पूजना है
भगवान कहीं और नहीं अपने भीतर है उसको खोजिए उसको पहचानिये उसको पूजिए। अपने भीतर के भगवान को जगाइए और इंसानियत की मानवता की बेहतरी का काम कीजिये वरना जिन भगवानों के पीछे हम दौड़ रहे हैं वो न कभी मिलने वाले हैं न किसी का भला करने वाले हैं दौड़ाते रहेंगे भगाते रहेंगे और हमें लुटाते रहेंगे।
नोट - आप मुझे नास्तिक भी समझें तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है
और हाँ किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो कृपया शालीनता और सभ्यता से बता दें ताकि पता लगे कि कितनों को चिरमिराट हुआ है क्योंकि सही बात कहकर चिरमिराट लगाना ही हमारा उद्देश्य है ।
( लेखक पेशे से शिक्षक हैं और खरी-खरी कहने के जाने जाते हैं )
और ये मन्नत मांगना और पूरी करने वाला क्या लफड़ा है जी
मेरे हिसाब से तो कुछ नहीं
ये सब ढपोल बनाने के तरीके हैं
कोई दम नहीं है इन मन्नतों में
मन्नत पूरी करने वाला न कोई भगवान है न कोई खुदा
सब तुक्के के खेल हैं
तुक्का लगा तो मन्नत पूरी हुई समझ लो
तुक्का नहीं लगा तो बुराई का भांडा आपके माथे फूटना है कि सच्चे मन से मन्नत नहीं मांगी थी
एक बानगी
जब हमारी झमकुड़ी प्रेग्नेंट थी तो सब घरकों की दिली इच्छा थी बेटी होये
इसलिए सभी ने बेटी के लिए अपने अपने स्तर पर भगवान से मन्नत मांगी
किसी ने बालाजी से
किसी ने माताजी से
किसी ने भैरुजी से
किसी ने पितर जी से
कोई ब्रत कर रहा था
कोई प्रसाद बोल रहा था
कोई सवामणी बोल रहा था
कोई दुआ मांग रहा था
लेकिन हुआ क्या ??
आपको पता ही है
अपने # Vishu
अब गौर करने वाली बात ये है कि एक आधा भगवान तो फ़ैल हो जाए चूक हो जाए
लेकिन सभी कैसे चूक गए सभी कैसे फ़ैल हो गए
रही बात सच्चे मन से मन्नत मांगने नहीं मांगने की
तो एक आध मेरे जैसे की तो मान लें कि ये एकदम झूठा है लेकिन सभी तो झूठे नहीं हो सकते
फिर गड़बड़ी आखिर हुई तो कहाँ हुई ?
अजी गड़बड़ी कुछ नहीं हुई
बस तुक्का नहीं लगा
तुक्का किसका ?
जब निषेचन की प्रक्रिया सम्पन्न होने को थी उस वक्त X गुणसूत्र वाले शुक्राणु का अंडाणु के साथ निषेचन का तुक्का नहीं लगा
तुक्का ऐसा लगा कि X और Y गुणसूत्र ऊँचके दौड़ रहे शुक्राणुओं में से Y वाला तेज निकला या तुक्का लगा, जो भी हुआ Y वाला जीत गया था
वहीं भगवान जी भी फ़ैल हो गए थे
अब दुआओं में और मन्नतों में और सवामणी प्रसादों वाली घूस में क्या रखा था
जिसको जीतना था वो तो जीत चुका था अब इसको न कोई भगवान न कोई खुदा बदल सकता था
अब सवाल ये है कि फिर ये भगवान जी नाम की दुकानदारी आखिर चल कैसे रही है ?
चल ऐसे रही है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी मानसिक तौर पर गुलामी सहते आये हैं भगवान नाम की दूकान लगाये व्यापरियों की, जो हमें इस गुलामी में आस्था, धर्म, शांति आदि शब्दों के मायाजाल में फंसा कर बैठे हैं और मजे से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और दान चढ़ावे के नाम पर लोग जेब कटाये जा रहे हैं।
अगर उस दिन X वाले का तुक्का लग जाता तो हम सब पक्के वाले भगत होके कहते फिरते देखो जी फलाणे मिन्दर वाले भगवान ने हमारी मिन्नत पूरी कर दी
और दो च्यार को और उधर जोड़ देते फोगट में भचीड़ खाने को
मैं तो तब भी कहता था जो होना है वो फाइनल हो चुका
लेकिन घरके थोड़े मान जाएँ
वो तुक्के के चक्कर में अटके रहे पूरे नौ महीने
आखिर तुक्का नहीं लगा तो सब आराम से अपने अपने काम लग गए
इसलिए
कुछ नहीं रखा इसमें भैया
इस मायाजाल से जितना जल्दी होये निकलने में फायदा है
नहीं तो बने रहो गुलाम उन व्यापारियों के और ठगाते लुटवाते रहो खुद को।
आपको भगवान को खोजना है पूजना है
भगवान कहीं और नहीं अपने भीतर है उसको खोजिए उसको पहचानिये उसको पूजिए। अपने भीतर के भगवान को जगाइए और इंसानियत की मानवता की बेहतरी का काम कीजिये वरना जिन भगवानों के पीछे हम दौड़ रहे हैं वो न कभी मिलने वाले हैं न किसी का भला करने वाले हैं दौड़ाते रहेंगे भगाते रहेंगे और हमें लुटाते रहेंगे।
नोट - आप मुझे नास्तिक भी समझें तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है
और हाँ किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो कृपया शालीनता और सभ्यता से बता दें ताकि पता लगे कि कितनों को चिरमिराट हुआ है क्योंकि सही बात कहकर चिरमिराट लगाना ही हमारा उद्देश्य है ।
( लेखक पेशे से शिक्षक हैं और खरी-खरी कहने के जाने जाते हैं )